Sunday, April 24, 2016

कौन थे राजा वीर विक्रमादित्य..... ????

 बड़े ही शर्म की बात है कि महाराज विक्रमदित्य के बारे में देश को लगभग शून्य बराबर ज्ञान है, जिन्होंने भारत को सोने की चिड़िया बनाया था, और स्वर्णिम काल लाया था

उज्जैन के राजा थे गन्धर्वसैन , जिनके तीन संताने थी , सबसे बड़ी लड़की थी मैनावती , उससे छोटा लड़का भृतहरि और सबसे छोटा वीर विक्रमादित्य...
बहन मैनावती की शादी धारानगरी के राजा पदमसैन के साथ कर दी , जिनके एक लड़का हुआ गोपीचन्द , आगे चलकर गोपीचन्द ने श्री ज्वालेन्दर नाथ जी से योग दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए , फिर मैनावती ने भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग दीक्षा ले ली ,

आज ये देश और यहाँ की संस्कृति केवल विक्रमदित्य के कारण अस्तित्व में है
अशोक मौर्य ने बोद्ध धर्म अपना लिया था और बोद्ध बनकर 25 साल राज किया था
भारत में तब सनातन धर्म लगभग समाप्ति पर आ गया था, देश में बौद्ध और जैन हो गए थे
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रामायण, और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो गए थे, महाराज विक्रम ने ही पुनः उनकी खोज करवा कर स्थापित किया
विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाये और सनातन धर्म को बचाया
विक्रमदित्य के 9 रत्नों में से एक कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् लिखा, जिसमे भारत का इतिहास है
अन्यथा भारत का इतिहास क्या मित्रो हम भगवान् कृष्ण और राम को ही खो चुके थे
हमारे ग्रन्थ ही भारत में खोने के कगार पर आ गए थे,
उस समय उज्जैन के राजा भृतहरि ने राज छोड़कर श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग की दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए , राज अपने छोटे भाई विक्रमदित्य को दे दिया , वीर विक्रमादित्य भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से गुरू दीक्षा लेकर राजपाट सम्भालने लगे और आज उन्ही के कारण सनातन धर्म बचा हुआ है, हमारी संस्कृति बची हुई है
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महाराज विक्रमदित्य ने केवल धर्म ही नही बचाया
उन्होंने देश को आर्थिक तौर पर सोने की चिड़िया बनाई, उनके राज को ही भारत का स्वर्णिम राज कहा जाता है
विक्रमदित्य के काल में भारत का कपडा, विदेशी व्यपारी सोने के वजन से खरीदते थे
भारत में इतना सोना आ गया था की, विक्रमदित्य काल में सोने की सिक्के चलते थे , आप गूगल इमेज कर विक्रमदित्य के सोने के सिक्के देख सकते हैं।
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हिन्दू कैलंडर भी विक्रमदित्य का स्थापित किया हुआ है
आज जो भी ज्योतिष गणना है जैसे , हिन्दी सम्वंत , वार , तिथीयाँ , राशि , नक्षत्र , गोचर आदि उन्ही की रचना है , वे बहुत ही पराक्रमी , बलशाली और बुद्धिमान राजा थे ।
कई बार तो देवता भी उनसे न्याय करवाने आते थे ,
विक्रमदित्य के काल में हर नियम धर्मशास्त्र के हिसाब से बने होते थे, न्याय , राज सब धर्मशास्त्र के नियमो पर चलता था
विक्रमदित्य का काल राम राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है, जहाँ प्रजा धनि और धर्म पर चलने वाली थी
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पर बड़े दुःख की बात है की भारत के सबसे महानतम राजा के बारे में कांग्रेसी और वामपंथीयों का इतिहास भारत की जनता को शून्य ज्ञान देता है, कृपया आप शेयर तो करें ताकि देश जान सके कि सोने की चिड़िया वाला देश का राजा कौन था ?


।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

Wednesday, April 20, 2016

विट्ठल भगवान के अवतार कहानी


भगवान विट्ठल को आम तौर से भगवान विष्णु या उनके अवतार कृष्ण की एक मिसाल कहा गया है। पांडुरंग की प्रसिद्धि का श्रेय उनके एक भक्त पुंडलिक को जाता है जो उन्हें पंडरपुर लाया था।

पांचवी या छठी शताब्दी में पुंडलिक नाम का एक व्यक्ति हुआ जो विष्णु भगवान की पूजा करता था और दांडीवन नामक एक जंगल में अपने माता-पिता के साथ ही रहा करता था। वह विष्णु भगवान का भक्त होने के साथ -साथ एक बहुत अच्छा पुत्र भी था, जो अपने माता-पिता का बहुत खयाल रखता था। पर जब उसका विवाह हो गया, तब उसने अपने माता-पिता को अनदेखा करना शुरू कर दिया और पत्नी पर उसका ध्यान ज्यादा केंद्रित रहने लगा। पुत्र के दुर्व्यवहार से शिथिल होकर माता-पिता तीर्थ यात्रा पर काशी पैदल निकल पड़े। जब पुंडलिक और उसकी पत्नी को पता चला तो उन दोनों ने भी तीर्थस्थान पर जाने का फैसला किया। तीर्थस्थान पर पहुंचने के बाद उसकी भेंट माता पिता से होती है, जिनसे वह अपने घोड़ों की सेवा तथा अन्य कार्य करने को कहता है। जिससे वह बहुत अप्रसन्न होते हैं। जब भी रात को काफिला रुकता तो पुंडलिक उनसे कठिन कार्य करवाता था। एक दिन काफिला भारत के कुकुट्स्वामी के आश्रम पहुंचा जो कि एक समय में अपनी विचारशीलता के लिए उत्कृष्ट था। लंबी यात्रा के चलते यात्री काफी थक गए थे तो उन्होंने सोचा कि क्यों न दो रातें कुकुट्स्वामि के आश्रम में ही बिता ली जाएं। सब लोग रात को वहीं ठहर गए। सारे लोग सो गए पर पुंडलिक को नींद नहीं आ रही थी। कुछ ही समय में वह देखता है कि मिट्टी से मैले कपड़ों में एक बहुत ही सुंदर कन्याओं की टोली आ रही है। यह कन्याएं फर्श धोती हैं, संत के वस्त्र साफ करती हैं, ये सारे कार्यों से निपटने के बाद पूजा कक्ष में जाती हैं । कुछ समय के बाद जब वे पूजा कक्ष से बाहर आती हैं तो उनके वस्त्र एकदम साफ सुथरे और बिना धब्बों के प्रतीत होते हैं। उसके बाद शीघ्र ही वे सभी वहां से बिना किसी स्पष्टीकरण के ओझल हो जाती हैं । पुंडलिक इन कन्याओं से सम्मोहित हो जाता है और उनके बारे में अधिक जानने की कोशिश करता है। अगली बार जब वे कन्याएं आती हैं तो पुंडलिक उनसे पूछता है कि कौन हैं। वे कन्याएं उसे बताती हैं कि वो गंगा यमुना नदियों का स्वरूप हैं जहां तीर्थयात्री अपने -अपने पाप धोते हैं, साथ ही उसको ये भी बताया कि वह दुनिया का सबसे बड़ा पापी है, क्योंकि वह अपने माता -पिता के साथ खराब बर्ताव करता है। उनकी टिप्पणी से पुंडलिक दंग रह गया और उसके बाद उसमें परिवर्तनकारी बदलाव आ गया और वह एक बार फिर से एक समर्पित पुत्र बन जाता है और अपने माता -पिता को लेकर वापस दांडीवन जंगल में पहुंच जाता है तथा आजीवन उनकी सेवा करता है।

एक दिन पुंडलिक अपने माता-पिता के पैर दबा रहे थे कि श्रीकृष्ण रुक्मिणी के साथ वहां प्रकट हो गए, लेकिन पुंडलिक पैर दबाने में इतने लीन थे कि उनका अपने इष्टदेवकी ओर ध्यान ही नहीं गया। तब प्रभु ने ही स्नेह से पुकारा, 'पुंडलिक, हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने आए हैं।' पुंडलिक ने जब उस तरफ दृष्टि फेरी, तो रुक्मिणी समेत सुदर्शन चक्रधारी को मुस्कुराता पाया। उन्होंने पास ही पड़ी ईंटें फेंककर कहा, 'भगवन! कृपया इन पर खड़े रहकर प्रतीक्षा कीजिए। पिताजी शयन कर रहे हैं, उनकी निद्रा में मैं बाधा नहीं लाना चाहता । कुछ ही देर में मैं आपके पास आ रहा हूं।' वे पुनः पैर दबाने में लीन हो गए। पुंडलिक की सेवा और शुद्ध भाव देख भगवान इतने प्रसन्न हो गए कि कमर पर दोनों हाथ धरे तथा पांवों को जोड़कर वे ईंटों पर खड़े हो गए । किंतु उनके माता-पिता को निद्रा आ ही नहीं रही थी। उन्होंने तुरंत आंखें खोल दीं। पुंडलिक ने जब यह देखा तो भगवान से कह दिया, 'आप दोनों ऐसे ही खड़े रहे' और वे पुनः पैर दबाने में मग्न हो गए। भगवान ने सोचा कि जब पुंडलिक ने बड़े प्रेम से उनकी इस प्रकार व्यवस्था की है, तो इस स्थान को क्यों त्यागा जाए? और उन्होंने वहां से न हटने का निश्चय किया। पुंडलिक माता-पिता के साथ उसी दिन भगवत्‌धाम चले गए, किंतु श्रीविग्रहके रूप में ईंट पर खड़े होने के कारण भगवान 'विट्ठल' कहलाए और जिस स्थान पर उन्होंने अपने भक्त को दर्शन दिए थे।

विठोबा एक शंकु के आकार का मुकुट पहनते हैं जो कि शिव लिंग का प्रतीक है। उनको एक सुंदर मुद्रा में दर्शाया गया है जहां एक श्यामल व्यक्ति ईंट पर अपनी कमर पर हाथ रख कर खड़ा है। जिसके गले में तुलसी मोती का बना हार है, मछली के आकार की कानों में बालियां हैं, बाएं हाथ में शंख तथा दाहिने हाथ में एक कमल का फूल है। विठोबा शब्द दो शब्दों विट्ठा और ला को जोड़कर बनाया है, विट्ठा का अर्थ होता है अज्ञानता और ला का अर्थ है स्वीकार करना जिसका मतलब हुआ वह व्यक्ति जो अबोध लोगों को स्वीकार करता हो।

कब जाएं पंढरपुर

पंढरपुर में गर्मी और जाड़ा दोनों ही मौसम का पूरा प्रभाव रहता है. यहां कभी भी आया जा सकता है चाहे गर्मी, बारिश या ठंड का मौसम हो.

गर्मियों (मार्च-जून) के दौरान यहां का तापमान 42 डिग्री तक पहुंच जाता है. जबकि मानसून (जुलाई-सितंबर) के दौरान यहां सामान्य बारिश होती है. जाड़े (नवंबर-फरवरी) के दौरान यहां के मौसम में थो़ड़ी आर्द्रता या नमी होती है. इस दौरान यहां का तापमान 10 डिग्री तक जा सकता है. अक्टूबर से फरवरी का मौसम यहां आने का सबसे बेहतरीन समय माना जाता है जब आप यहां के आसपास के दर्शनीय स्थलों का ही नहीं बल्कि मंदिर के उत्सवों का भी आनंद ले सकते हैं.

कैसे पहुंचे पंढरपुर

रेल यात्रा
पंढरपुर में कुर्दुवादि रेलवे जंक्शन (KURDUVADI) से जुड़ा हुआ है. कुर्दुवादि जंक्शन से होकर लातुर एक्सप्रेस (22108), मुंबई एक्सप्रेस (17032), हुसैनसागर एक्सप्रेस (12702), सिद्धेश्वर एक्सप्रेस (12116) समेत कई ट्रेने रोजाना मुंबई जाती हैं. पंढरपुर से भी पुणे के रास्ते मुंबई के लिए चलती है ट्रेन.

सड़क मार्ग
महाराष्ट्र के कई शहरों से सड़क परिवहन के जरिए जुड़ा है पंढरपुर. इसके अलावा उत्तरी कर्नाटक और उत्तर-पश्चिम आंध्र प्रदेश से भी प्रतिदिन यहां के लिए बसें चलती हैं.

वायु मार्ग
निकटतम घरेलू एयरपोर्ट पुणे है जो लगभग 245 किलोमीटर की दूरी पर है. जबकि निकटतम अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट मुंबई में स्थित है.

प्रमुख शहरों से दूरी

-संगोला से पंढरपुर की दूरी 32 किलोमीटर है.

-कुर्दुवादि जंक्शन की दूरी 52 किलोमीटर स्थित है.

-इसके अलावा सोलापुर 72 किलोमीटर, मिराज 128 किलोमीटर और अहमदनगर 196 किलोमीटर दूर स्थित है.

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।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।