आज के दिन में आपसे शंकराचार्य जी की कुछ ऐसी बाते बताना चाहता हूँ जो आपने कभी नही सुनी होगी या यूँ कहे की मैकॉले सिस्टम ने आपसे जानबूझकर छुपाई ताकि आपमें स्वाभिमान न जाग सके !
आपने कभी सुना होगा कि हिंदू कभी खत्म नही होगा,इसका उदाहरण आपको यहाँ पर समझ आ जाऐगा !
आज से लगभग ३००० वर्ष पहले गौतम बुद्ध हुए और उन्होने अपने तप से शांति,तप,अंहिसा,मोक्ष का नया मार्ग निकाला और संघ की स्थापना की ! संघ के निर्माण के पीछे उनका उद्देश्य था जो भी व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करना चाहता हो वह संघ में आकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है (आज की भाषा में Meditation ) ! ये भगवान बुद्ध के खुद के बोल है कि यह संघ सिर्फ ५०० वर्षो तक ईमानदार रहेगा,फिर इसमें बुराईया आनी शुरू हो जाऐगी और संघ की स्थापना के १००० वर्ष पूरे होते होते यह संघ पूरी तरह से धर्मभ्रष्ट हो जाएगा ! मोक्ष के प्यासे लोगो से उनका संघ बहुत प्रचलित हुआ लेकिन जीवन पर्यन्त कभी उन्होने नये धर्म की स्थापना नही की ! भगवान बुद्ध के जीवन से कुच करने के लगभग 150 वर्ष बाद (अर्थात् मृत्यु के बाद लगभग 6 पीढिया निकल जाने के पश्चात् ) कुछ व्याभिचारी लोगो ने अपने निजी स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए एक राष्ट्रीय वार्ता के लिए मंच बनाया और उसमें जो लोग मौजुद थे उनकी वार्ता को लिखा गया और आज के समय में वही बौद्ध धर्म की धार्मिक पुस्तके है ! है ना बेवकुफी ! उस वार्ता में उपस्थित लोगो ने निर्णय लिया कि सनातन धर्म से बगावत करके नया बौद्ध धर्म बनाया जाए ! बस उसी समय से बौद्ध धर्म चल पड़ा ! यह है इस धर्म की सच्चाई !
समय चलता गया और जो लोग या उनके पुर्वज बुद्ध से प्रभावित थे ( जैसे मंगल पांडे की शहीदी के १५० वर्ष पश्चात् भी हम उनसे प्रभावित है ) वे आसानी से बौद्ध धर्म में आ गए ! कुछ समय पश्चात् दुर्भाग्य से सम्राट अशोक ने बौद्धियो से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म अपनाया और अपनी सर्वस्व प्रजा को धर्म परिवर्तन करने पर विवश किया ! आमतौर पर हमें झूठ पढाया जाता है कि अशोक ने हिंसा से दुखी होकर बौद्ध धर्म अपनाया जो बिल्कुल गलत है आज सैकड़ो प्रमाण है कि किस तरह अशोक ने तलवार के जोर पर देश को बौद्ध बनाया ! उदाहरणार्थ एक बार किसी जैन धर्मावलम्बी चित्रकार ने एक चित्र बनाया कि भगवान बुद्ध भगवान महावीर का आशीर्वाद ले रहे है ! इसे देखकर अशोक को इतना गुस्सा आया कि उसने 14,000 जैनियो के सिर धड़ से अलग करवा दिया ! ऐसे थे अहिंसावादी अशोक !
अशोक के कुचक्र से एक समय ऐसा आ गया कि भारत में गिनने मात्र हिंदू रह गये थे ,पूरा देश बौद्ध बन गया था ! जब शंकराचार्य का जन्म हुआ तब भारत में सिर्फ 762 के करीब हिंदू बचे थे ! जी हाँ सिर्फ 762 हिंदू ! शंकराचार्य एक अवतारी पुरूष थे जो लुप्त होते सनातन धर्म को फिर से बचाकर चले गए ! जब सनातन धर्म इसी तरह लुप्त होने लगता है तब हर बार ऐसे पुरूष ईश्वरीय ईच्छा से जन्म लेते है ! कलियुग चल रहा है इसलिए ऐसा हजारो बार लुप्त होगा और हजारो बार वापस स्थापित होगा ! यह समय का फेर है !
वापस मुद्दे पर आते है ! सर्वप्रथम तो जो लोग बौद्ध धर्म मे चले गए लेकिन उनकी सनातन धर्म में आस्था थी, को वापस सनातन धर्म में लाए ! फिर उन्होने पूरे भारत भ्रमण किया और पूरे भारत में शंख बजाते हुए चले ! कहते है कि जो लोग उनके शंख की ध्वनि सुन लेता था वो वापस सनातन धर्म में आ जाता था ! उसके बाद उन्होने धर्मद्रोही बौद्धि जो अपने कुविचार सबमें भरते थे उनको देश से खदेड़ना प्रारम्भ किया और सभी नास्तिकधर्मियो को देश से बाहर कर दिया ! इसलिए आज भी भारत में बौद्धि नगन्य है ! उसके बाद उन्होने वापस वेद धर्म की स्थापना की और शंकराचार्य पदवी की और चारो दिशाओ मे धर्म को फैलाने के लिए अलग अलग शंकराचार्य को नियुक्त किया जो आज तक चल रहा है !
तांत्रिक कर्मो के और मैली क्रियाओ के जानकार बौद्धि अपने वर्चस्व को खोने से बहुत क्षुब्ध हुए और अपने तांत्रिक कर्म भारतीयो पर करने शुरू किये जो आज तक जारी है ! इस महान आत्मा ने धर्म को बचाने का कार्य पूर्ण किया और मात्र 32 वर्ष की उम्र में ईश्वरलोक चले गए !
सभी को शंकराचार्य के जन्मदिन पर बधाई जिनके कारण आज हमारा अस्तित्व है !
[4/23/2015, 19:09] Me: कार्य हमेशा तीन प्रकार से मन, वाणी और शरीर के द्वारा ही किये जाते है, किसी भी कार्य को करते समय "कब हम अज्ञानी होते हैं और कब ज्ञानी होते हैं।"
भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं....
"त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः।
कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किंचित्करोति सः॥"
(गीता ४/२०)
"जो मनुष्य अपने सभी कर्म-फलों की आसक्ति का त्याग करके सदैव सन्तुष्ट तथा स्वतन्त्र रहकर सभी कार्यों में पूर्ण व्यस्त होते हुए भी वह मनुष्य निश्चित रूप से कुछ भी नहीं करता है।"
१. जब हम स्वयं के सुख की कामना करते हैं तब हम अज्ञानी होते हैं, और जब हम दूसरों के सुख की कामना करते हैं तब हम ज्ञानी होते हैं।
२. जब हम दूसरों को जानने का प्रयत्न करते हैं तब हम अज्ञानी होते हैं, और जब हम स्वयं को जानने का प्रयत्न करते हैं तब हम ज्ञानी होते हैं।
३. जब हम स्वयं को कर्ता मानकर कार्य करते हैं तब हम अज्ञानी होते हैं, और जब हम भगवान को कर्ता मानकर कार्य करते हैं तब हम ज्ञानी होते हैं।
४. जब हम दूसरो को समझाने का प्रयत्न करते हैं तब हम अज्ञानी होते हैं, और जब हम स्वयं को समझाने का प्रयत्न करते हैं तब हम ज्ञानी होते हैं।
५. जब हम दूसरों के कार्यों को देखने का प्रयत्न करते हैं तब हम अज्ञानी होते हैं, और जब हम स्वयं के कार्यों को देखने का प्रयत्न करते हैं तब हम ज्ञानी होते हैं।
६. जब हम दूसरों को समझाने के भाव से कुछ भी कहते या लिखते हैं तब हम अज्ञानी होते हैं, और जब हम स्वयं के समझने के भाव से कहते या लिखते हैं तब हम ज्ञानी होते हैं।
७. जब हम संसार की सभी वस्तुओं को अपनी समझकर स्वयं के लिये उपभोग करते हैं तब हम अज्ञानी होते हैं, और जब हम संसार की सभी वस्तुओं को भगवान की समझकर भगवान के लिये उपयोग करते हैं तब हम ज्ञानी होते हैं।
ज्ञानी अवस्था में किये गये सभी कार्य भगवान की भक्ति ही होते हैं।
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।
आपने कभी सुना होगा कि हिंदू कभी खत्म नही होगा,इसका उदाहरण आपको यहाँ पर समझ आ जाऐगा !
आज से लगभग ३००० वर्ष पहले गौतम बुद्ध हुए और उन्होने अपने तप से शांति,तप,अंहिसा,मोक्ष का नया मार्ग निकाला और संघ की स्थापना की ! संघ के निर्माण के पीछे उनका उद्देश्य था जो भी व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करना चाहता हो वह संघ में आकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है (आज की भाषा में Meditation ) ! ये भगवान बुद्ध के खुद के बोल है कि यह संघ सिर्फ ५०० वर्षो तक ईमानदार रहेगा,फिर इसमें बुराईया आनी शुरू हो जाऐगी और संघ की स्थापना के १००० वर्ष पूरे होते होते यह संघ पूरी तरह से धर्मभ्रष्ट हो जाएगा ! मोक्ष के प्यासे लोगो से उनका संघ बहुत प्रचलित हुआ लेकिन जीवन पर्यन्त कभी उन्होने नये धर्म की स्थापना नही की ! भगवान बुद्ध के जीवन से कुच करने के लगभग 150 वर्ष बाद (अर्थात् मृत्यु के बाद लगभग 6 पीढिया निकल जाने के पश्चात् ) कुछ व्याभिचारी लोगो ने अपने निजी स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए एक राष्ट्रीय वार्ता के लिए मंच बनाया और उसमें जो लोग मौजुद थे उनकी वार्ता को लिखा गया और आज के समय में वही बौद्ध धर्म की धार्मिक पुस्तके है ! है ना बेवकुफी ! उस वार्ता में उपस्थित लोगो ने निर्णय लिया कि सनातन धर्म से बगावत करके नया बौद्ध धर्म बनाया जाए ! बस उसी समय से बौद्ध धर्म चल पड़ा ! यह है इस धर्म की सच्चाई !
समय चलता गया और जो लोग या उनके पुर्वज बुद्ध से प्रभावित थे ( जैसे मंगल पांडे की शहीदी के १५० वर्ष पश्चात् भी हम उनसे प्रभावित है ) वे आसानी से बौद्ध धर्म में आ गए ! कुछ समय पश्चात् दुर्भाग्य से सम्राट अशोक ने बौद्धियो से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म अपनाया और अपनी सर्वस्व प्रजा को धर्म परिवर्तन करने पर विवश किया ! आमतौर पर हमें झूठ पढाया जाता है कि अशोक ने हिंसा से दुखी होकर बौद्ध धर्म अपनाया जो बिल्कुल गलत है आज सैकड़ो प्रमाण है कि किस तरह अशोक ने तलवार के जोर पर देश को बौद्ध बनाया ! उदाहरणार्थ एक बार किसी जैन धर्मावलम्बी चित्रकार ने एक चित्र बनाया कि भगवान बुद्ध भगवान महावीर का आशीर्वाद ले रहे है ! इसे देखकर अशोक को इतना गुस्सा आया कि उसने 14,000 जैनियो के सिर धड़ से अलग करवा दिया ! ऐसे थे अहिंसावादी अशोक !
अशोक के कुचक्र से एक समय ऐसा आ गया कि भारत में गिनने मात्र हिंदू रह गये थे ,पूरा देश बौद्ध बन गया था ! जब शंकराचार्य का जन्म हुआ तब भारत में सिर्फ 762 के करीब हिंदू बचे थे ! जी हाँ सिर्फ 762 हिंदू ! शंकराचार्य एक अवतारी पुरूष थे जो लुप्त होते सनातन धर्म को फिर से बचाकर चले गए ! जब सनातन धर्म इसी तरह लुप्त होने लगता है तब हर बार ऐसे पुरूष ईश्वरीय ईच्छा से जन्म लेते है ! कलियुग चल रहा है इसलिए ऐसा हजारो बार लुप्त होगा और हजारो बार वापस स्थापित होगा ! यह समय का फेर है !
वापस मुद्दे पर आते है ! सर्वप्रथम तो जो लोग बौद्ध धर्म मे चले गए लेकिन उनकी सनातन धर्म में आस्था थी, को वापस सनातन धर्म में लाए ! फिर उन्होने पूरे भारत भ्रमण किया और पूरे भारत में शंख बजाते हुए चले ! कहते है कि जो लोग उनके शंख की ध्वनि सुन लेता था वो वापस सनातन धर्म में आ जाता था ! उसके बाद उन्होने धर्मद्रोही बौद्धि जो अपने कुविचार सबमें भरते थे उनको देश से खदेड़ना प्रारम्भ किया और सभी नास्तिकधर्मियो को देश से बाहर कर दिया ! इसलिए आज भी भारत में बौद्धि नगन्य है ! उसके बाद उन्होने वापस वेद धर्म की स्थापना की और शंकराचार्य पदवी की और चारो दिशाओ मे धर्म को फैलाने के लिए अलग अलग शंकराचार्य को नियुक्त किया जो आज तक चल रहा है !
तांत्रिक कर्मो के और मैली क्रियाओ के जानकार बौद्धि अपने वर्चस्व को खोने से बहुत क्षुब्ध हुए और अपने तांत्रिक कर्म भारतीयो पर करने शुरू किये जो आज तक जारी है ! इस महान आत्मा ने धर्म को बचाने का कार्य पूर्ण किया और मात्र 32 वर्ष की उम्र में ईश्वरलोक चले गए !
सभी को शंकराचार्य के जन्मदिन पर बधाई जिनके कारण आज हमारा अस्तित्व है !
[4/23/2015, 19:09] Me: कार्य हमेशा तीन प्रकार से मन, वाणी और शरीर के द्वारा ही किये जाते है, किसी भी कार्य को करते समय "कब हम अज्ञानी होते हैं और कब ज्ञानी होते हैं।"
भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं....
"त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः।
कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किंचित्करोति सः॥"
(गीता ४/२०)
"जो मनुष्य अपने सभी कर्म-फलों की आसक्ति का त्याग करके सदैव सन्तुष्ट तथा स्वतन्त्र रहकर सभी कार्यों में पूर्ण व्यस्त होते हुए भी वह मनुष्य निश्चित रूप से कुछ भी नहीं करता है।"
१. जब हम स्वयं के सुख की कामना करते हैं तब हम अज्ञानी होते हैं, और जब हम दूसरों के सुख की कामना करते हैं तब हम ज्ञानी होते हैं।
२. जब हम दूसरों को जानने का प्रयत्न करते हैं तब हम अज्ञानी होते हैं, और जब हम स्वयं को जानने का प्रयत्न करते हैं तब हम ज्ञानी होते हैं।
३. जब हम स्वयं को कर्ता मानकर कार्य करते हैं तब हम अज्ञानी होते हैं, और जब हम भगवान को कर्ता मानकर कार्य करते हैं तब हम ज्ञानी होते हैं।
४. जब हम दूसरो को समझाने का प्रयत्न करते हैं तब हम अज्ञानी होते हैं, और जब हम स्वयं को समझाने का प्रयत्न करते हैं तब हम ज्ञानी होते हैं।
५. जब हम दूसरों के कार्यों को देखने का प्रयत्न करते हैं तब हम अज्ञानी होते हैं, और जब हम स्वयं के कार्यों को देखने का प्रयत्न करते हैं तब हम ज्ञानी होते हैं।
६. जब हम दूसरों को समझाने के भाव से कुछ भी कहते या लिखते हैं तब हम अज्ञानी होते हैं, और जब हम स्वयं के समझने के भाव से कहते या लिखते हैं तब हम ज्ञानी होते हैं।
७. जब हम संसार की सभी वस्तुओं को अपनी समझकर स्वयं के लिये उपभोग करते हैं तब हम अज्ञानी होते हैं, और जब हम संसार की सभी वस्तुओं को भगवान की समझकर भगवान के लिये उपयोग करते हैं तब हम ज्ञानी होते हैं।
ज्ञानी अवस्था में किये गये सभी कार्य भगवान की भक्ति ही होते हैं।
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।
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