Tuesday, June 23, 2015

पुत्रन्जीवा रॉक्सबर्गाई

साथियों,

जिन लोगो को आयुर्वेद का ज्ञान ही नहीं वह भी अज्ञान में मनचाहे आरोप लगाकर सुर्खिया बटोरते रहतें हैं,

यह तो केवल एक पेड़ के बीज हैं जिसको सिर्फ दिव्या फार्मेसी द्वारा पैकिंग की जाती है, न बनाया जाता है, न घोटा जाता है, न कुछ मिलाया जाता है, और यही पैकिंग दूसरी आयुर्वेद की कंपनिया भी बेचती हैं, जैसे ऊंझा फार्मेसी, महेश्वरी फार्मेसी आदि कई फार्मेसी हैं,

पुरे भारत की किसी दुकान पर जायेंगे तो यह पुत्रजीवक के नाम से बेचीं व् खरीदी जाती है,
किसी नर्सरी में इसका पौधा लेंगे तो वह भी पुत्रजीवक के नाम से माँगा जाता है.
यह पुत्रजीवक नाम न स्वामीजी ने रखा है न किसी व्यक्ति ने.

आइये इस पौधे की विशेषता जानते हैं-
Putranjiva roxburghii यानि पुत्रन्जीवा रॉक्सबर्गाई बॉटेनिकल नाम वाला ये सदाबहार पेड़ है। बहुत सारी शाखाओं वाले इस पेड़ की छाल स्लेटी होती है। पत्तियां लंबी और गहरी चमकदार हरी होती हैं। इसके पुष्प छोटे और घने गुच्छों में लगे होते हैं।

आर्थिक दृष्टि से विशेषताएं

1. इस पेड़ की लकड़ी का घरों के निर्माण में इस्तेमाल
2. कृषि उपकरण, औजार के हत्थे बनाने में भी पेड़ की लकड़ी का प्रयोग
3. पत्तियों का इस्तेमाल ठंड, बुखार और गठिया जैसे रोग दूर करने में
4. पत्तियों का पशुओं के आहार के तौर पर भी इस्तेमाल
5. बीजों से वसादार तेल निकलता है

इसका तमिल तेलुगु में कन्नड़ नेपाली व अंग्रेजी का बोटानिकल नाम जी पुत्रजीवक है,

अलग अलग भाषायो में नाम -
अब इसको बंगाली में भी यही कहते हैं  • Bengali: putranjiva, जियापुन्ता • गुजरती में भी ----Gujarati: પુત્રંજીવા putranjiva • Hindi: पुत्रजीव putrajiv, पितौजिया,  जियापोथा•कन्नड़ में भी -- Kannada: ಮೆಣಸಿನಕಲೆ menasinakale, ಪುತ್ರಮ್ಜೀವputramjiva • Konkani: saman •मलयालम में भी - Malayalam:പുത്തിലഞ്ഞി puththilanji •मराठी में भी पुत्रजीवक हैं-
Marathi: जीवपुत्रकjivputrak, पुत्रजीवी putrajivi • Oriya: poilundia, sutajivah • Sanskrit: अपत्यम्जीवः apatyamjivah,पुत्रंजीवः putranjivah, श्लीपदमपहः shripadamapah • Tamil: கறிப்பாலை kari-p-palai, புத்திரசீவிputtira-civi •Telugu: కుదురు౛ువ్వి kuduruuvvi,పుత్రజీవిక putra-jivika; गर्भकर

अब कोई हमारे अल्पज्ञानी  सांसद और अल्पज्ञानी बहन जया बच्चन जी से पूछे की क्या यह नाम बाबा रामदेव ने रखा है, क्या जब कोई इस पौधे की बात करेगा, या इसके बीजों की चर्चा करेगा  तो क्या वही नाम नहीं प्रयोग करना पड़ेगा जो सभी भाषाओँ में हजारों सालों से हैं,

अब ये नाम तो हजारो वर्षों  की संस्कृति की देन  हैं, क्या इसको कोई भी अपनी मर्जी से बदल सकता है,
बाबा रामदेव जी की इस दवाकी कीमत है सौ ग्राम बीजो की मात्र पैतीस रूपए.
अब पैतीस रूपए में कोई वनवासी, आदिवासी या किसान इनको इक्कठा करता है,साफ़ करता है.-स्थानीय मंडी तक पहुचता है फिर यह  यातायात से हरिद्वार पहुचती है फिर इसकी  अच्छी पैकिंग की जाती है फिर भी केवल पैतीस रूपए में उपलब्ध करवाया जाता है, अब कोई बताये की पैतीस रूपए में उपलब्ध करवाकर इसमें दिव्या फार्मेसी ने क्या कोई आर्थिक लाभ लिया होगा - और कितने पैकेट यह दवा रोज या साल में बिकती होगी.. और इससे कितना  आर्थिक लाभ होता होगा. जिसके कारन कोई कुछ गलत करेगा .
पैकेट के ऊपर कही भी नहीं लिखा की इससे लड़का होता है, केवल यही लिखा है की इससे संतान प्राप्ति होती है और बाँझपन दूर होता है,

अब ये नाम तो चरक या महर्षि शुश्रुत जैसे ऋषियों ने लिखे होंगे -
इन के सी  त्यागी जैसे अल्पज्ञानी माननीयों का वश चले तो यह महर्षि चरक व् शुश्रुत आदि ऋषियों को भी  कोर्ट में खड़ा करके मुकदमा चला दे और उसको भी जेल में डाल दें. क्योकि इनको तो सिर्फ राजनैतिक रोटी सेकनी है, सेवा से कोई लेना देना  नहीं .......

अब आयुर्वेद में एक दवा  और है गोदंती भस्म - कुछ मुर्ख लोगों ने कहा की यह गाय के दांत से बनती है, अब कोई उनको बताये गाय के दांत जैसा दिखने वाल एक मिनरल (पत्थर) से गो दंती भस्म है इसका गाय के दांत से कोई लेना देन नहीं है.

इसी प्रकार एक और दवा है-दारू हल्दी -कोई मुर्ख कह सकता है की शराब (दारु) व् हल्दी मिला कर इसको बनाते है. बाबा तो ऐसी चीजे बेचते हैं,

इसी प्रकार - सर्प गंध को कोई कह सकता है की सांप को पीसकर बनायीं है,

अश्वगंधा को कह सकता है अश्व की गंध के लिए अश्व यानि घोड़े  से बनायीं गयी है,

लेकिन यह तो केवल पौधों के नाम हैं इनका इससे कोई लेना देन नहीं है.
रही बात ऋषियों ने पुत्रजीवक शब्द क्यों लिखा तो वेदों में अधिकाश सभी जगह संतान के लिए पुत्र शब्द का प्रयोग आता है , पुत्र का अर्थ  केवल बेटा नहीं अपितु संतान है.

हर पंसारी इसको इसी नाम से आज भी बेचता है हर किसान इसी नाम से बेचता है
अगर के सी त्यागी कर सकते है तो दुनिया से इसका बोटानिकल नाम बदलवाएँ

🙏 साथियों अगर अनपढ़ और ऐसे लोगों को चुन कर भेजेंगे जिन्हें न तो अपनी सभ्यता का पता है और न संस्कृति का।

अपना देश अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति अपनी भाषा अपना गौरव

वंदे मातरम्

# भारतीय स्वदेशी पीठ

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।

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