जहां हिंद महासागर और अरब सागर और बंगाल की खाड़ी की धाराएं भारत की धरती को चूमती हैं ठीक वहीं पर स्थित है कुमार अमान मंदिर। ये देवी पार्वती का मंदिर है। मंदिर के पास समंदर की लहरों की आवाज ऐसी सुनाई देती है मानों स्वर्ग का संगीत हो। यहां आने वाले भक्तगण मंदिर में प्रवेश करने से पहले त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं। मंदिर का पूर्वी प्रवेश द्वार को हमेशा बंद करके रखा जाता है। कहा जाता है कि किसी जमाने में मंदिर में स्थापित देवी के आभूषण की आभा से समुद्री जहाज इसे लाइट हाउस समझने की भूल कर बैठते थे। इस क्रम में जहाज को किनारे करने के कोशिश में दुर्घटनाग्रस्त हो जाते थे।
क़रीब दस फुट ऊंचे परकोटे से घिरे वर्तमान मंदिर का निर्माण पांड्य राजाओं के काल में हुआ था। देवी कुमारी पांड्य राजाओं की अधिष्ठात्री देवी थीं। मंदिर को कुमारी अम्मन यानी कुमारी देवी का मंदिर कहा जाता है।
मंदिर की कथा - कहा जाता है कि भगवान शिव ने असुर वाणासुर को वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अलावा किसी के हाथों उसका वध नहीं होगा। राजा भरत को आठ पुत्री और एक पुत्र था। भरत ने अपना साम्राज्य को नौ बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी संतानों को दे दिया। दक्षिण का हिस्सा उसकी पुत्री कुमारी को मिला। कुमारी शक्ति देवी का अवतार थीं। कुमारी की इच्छा थी कि वह शिव से विवाह करे। इसके लिए वह उनकी पूजा करती थी। शिव विवाह के लिए राजी भी हो गए थे और विवाह की तैयारियां होने लगीं थी। लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि वाणासुर का कुमारी के हाथों वध हो जाए। इस कारण शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया। इस बीच वाणासुर को जब कुमारी की सुंदरता के बारे में पता चला तो उसने कुमारी से शादी का प्रस्ताव रखा। कुमारी ने कहा कि यदि वह उसे युद्ध में हरा देगा तो वह उससे विवाह कर लेगी। दोनों के बीच युद्ध हुआ और वाणासुर को मृत्यु हुई। कुमारी की याद में ही दक्षिण भारत के इस स्थान को कन्याकुमारी कहा जाता है। माना जाता है कि शिव और कुमारी के विवाह की तैयारी का सामान आगे चलकर रंग बिरंगी रेत में बदल गया। इसलिए कन्याकुमारी समुद्र तट पर रंग बिरंगी रेत नजर आती है।
मंदिर में प्रवेश - मंदिर में पुरूषों को प्रवेश के लिए कमर से ऊपर नग्न
हालत में जाना पड़ता है। मंदिर सुबह साढ़े चार बजे से रात पौने नौ बजे तक
खुला रहता है। यहां समान्य दर्शन के अलावा स्पेशल दर्शन के लिए भी कूपन
उपलब्ध हैं।
।।जय हिंदुत्व।।
।।जय श्रीराम।।
।।जय महाकाल।।
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