Thursday, June 18, 2015

मंदिर क्यों जाते है ?

" पापा !"
" बोलो बेटा."
" आप हर मंगलवार मंदिर क्यों जाते है ?"
" बेटे , ईश्वर इस सृष्टि का नियंता है , हनुमान जी उस ईश्वर के भक्तों में अनन्य हैं , कष्टों के निवारक हैं , ईश्वर के प्रति आस्था प्रकट करने का साधन हैं . इसलिए मैं हर मंगलवार को मंदिर जाता हूँ ."
" पापा ! ईश्वर के प्रति आस्था तो घर में भी प्रकट की जा सकती है , इसके लिए मंदिर जाने की क्या जरूरत है ? "
" बेटे , ऐसा कहा जाता है कि जहाँ हर छण केवल उस अद्र्श्य शक्ति का ही चिंतन और मनन हो , वहां उसका वास भी हो जाता है , मुझे भी ऐसा लगता है कि मैं वहां जाकर अपने मन की बात ईश्वर से सीधे - सीधे कर लेता हूँ , इसलिए मैं वहां जाता हूँ ."
" पर पापा , वहां के पंडित जी की नजर तो हर समय इस बात पर होती है कि कौन कितना चढ़ावा चढ़ा रहा है , वो उसी को इम्पार्टेन्स देते हैं जो ज्यादा चढ़ावा चढ़ाता है तो क्या उनकी इस हरकत पर हनुमान जी को क्रोध नहीं आता .?"
" बेटे ! पंडित जी क्या करते हैं और क्या नहीं , उनके क्रिया - कलापों पर हनुमान जी ने क्या एक्शन लेना है या कोई एक्शन नहीं लेना है , इसका निर्णय लेने का अधिकार हमारे पास नहीं है ."
" यह क्या बात हुई पापा ? हर बात का कुछ तो लॉजिक होना चाहिए . बिना लॉजिक के यकीन करना तो मूर्खता ही कही जाएगी ."
" बेटे ! एक बात बताओ ?"
" कहिये पापा ."
" तुम स्कूल क्यों जाते हो ?"
" पढ़ाई के साथ नॉलेज गेन करने ."
" वो तो घर में भी हो सकती है क्योंकि तुम्हारे पास बुक्स तो हैं हीं ."
"पर पापा , टीचर तो स्कूल में ही हैं न , सिर्फ बुक्स से क्या होता है ?"
" क्या सभी टीचर अपना काम ईमानदारी से करते हैं ?"
" नहीं पापा , कुछ तो बहुत बोर करते हैं ,मैथ वाले सर तो सिर्फ टाइम पास करते हैं ."
" फिर भी तुम उनकी क्लास मिस नहीं करते ."
" हाँ पापा , पर ..."
" पर - वर कुछ नहीं . जिस तरह पढ़ाई करने के लिए स्कूल जरूरी है और बहुत सी बुराइओं के बाद भी स्कूल का महत्व कम नहीं हो जाता , उसी तरह अनेक कमियों के बाद भी पूजा घरों की अहमियत कम नहीं हो जाती . बुराई उस आस्था में नहीं है जो हमें अच्छे मार्ग को चुनने में मद्त करे , बुराई उस शख्स में है जो उस आस्था पर शक करे ."
"यह भी ठीक है पापा ."

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