सभी मित्र इसे ध्यान से पढिये , समझिये और फिर शेयर करिये.
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मित्रो , कुछ अज्ञानी किस्म के सेक्युलर अक्सर कहते फिरते है कि सभी धर्म एक है और सभी धर्मो मे कोई अंतर नही है !
लेकिन वास्तव मे हिन्दू सनातनधर्म और अन्य धर्मों में तुलना असंभव है !
तो आइए जानते है कि हिन्दू सनातन धर्म और अन्य मजहबो में मुख्य - मुख्य आधारभूत अंतर क्या है, जो इनकी तुलना करने में आडे आ रहे है : -
(१ ) . सत्य निरपेक्ष है या सापेक्ष
====================
हिन्दू सनातन धर्म में सत्य को निरपेक्ष माना गया है अर्थात सत्य इसलिए सत्य नहीं कि वह किसी पैगंबर या किसी मजहबी किताब द्वारा कथित है , अपितु वह अपने आप में सत्य है !
यदि कोई पैगंबर सत्य को असत्य करार दे दे तो भी सत्य ,सत्य ही रहेगा न कि वह असत्य हो जाएगा ।
इस्लाम, ईसाई या अन्य गैर हिन्दू सनातन धर्म में सत्य को सापेक्ष माना गया है ।
इन धर्मावलंबियों के अनुसार सत्य इसलिए सत्य है क्योकि उक्त कथन उनके पैगंबर और उनकी मजहबी किताब द्वारा कथित है , न कि सत्य अपने आप में सत्य है !
(२ ) . जीव दया और करूणा
==================
करूणा और दया हिन्दू सनातन धर्म का मूल है, तभी तो कहा गया है- जहाँ जीव दया तहां धर्म है .
जब बाइबल पढते हुए कोई हिन्दू जब यह लिखा हुआ पाता है कि ईसा मसीह ने एक रोटी और एक सूखी मछली से सभी अनुयाइयों का पेट भर दिया तो वो समझ नहीं पाता कि यह कैसा ईश्वर है या ईश्वर का पुत्र है जिसे पेट भरने के लिए मछली को मारना या खाना पडा ?
इससे अच्छा तो वो भूखा रह लेता ।
एक हिन्दू कुछ इसी प्रकार की धारणा इसलाम या अन्य उन सभी धर्मों के प्रति रखता है जो अहिंसा का समर्थन निरपेक्ष रूप से नहीं करते ।
सनातन और अन्य धर्मों में यह दूसरा मुख्य अंतर है ।
हिन्दू जीव मात्र के लिए भी दया और कल्याण की भावना रखता है जबकि अन्य धर्म ऐसा नहीं सोचते ।
(३ ) .आत्मा की एकता और अमरता
======================
हिन्दू न केवल आत्मा को अजर अमर मानता है अपितु सभी आत्माओं की एकता में भी विश्वास करता है अर्थात वो मानता है कि सभी जीवों में एक जैसी आत्मा निवास करती है ,इसके विपरीत अन्य धर्म यह मानते है कि ईश्वर ही आत्माओं को पैदा करता है और वही नष्ट भी करता है ।
ईसाई धर्म तो पशुओं में आत्मा के अस्तित्व को नकारते हुए केवल मनुष्यों में ही इसके अस्तित्व को स्वीकारता है ।
यही कारण है कि वो इसे उपभोग की वस्तु मानता है जिसे मनुष्यों के उपभोग के लिए ईश्वर ने सृजित किया है ।
इसके विपरीत एक हिन्दू को भोजन या अन्न को जूठा छोडने में भी हिंसा नजर आती है कि इस व्यर्थ किए गए अन्न से किसी अन्य की भूख मिटाई जा सकती थी !
(४ ) . निरंतर चलने वाली समावेशी प्रकिया
==========================
सनातन धर्म व अन्य धर्मों में यह अंतर सबसे महत्वपूर्ण है । जब कोई भी नया विचार ( या धर्म ) पनपता है तो उस वक्त वह सर्वथा उपयुक्त और सत्य प्रतीत होता है लेकिन आगे कालांतरमें उसमें कमियां दृष्टिगोचर होने लगती है ।
ऐसे में इस पूर्ववर्ती विचारधारा के विपरीत दूसरी विचारधारा पनपती है । आगे चलकर इन दोनों विचारधाराओं को समन्वित करने वाली तीसरी विचारधारा का विकास होता है ।
इस प्रकार से यह किसी विचार या धर्म के विकास के लिए निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है ।
हिन्दू सनातन धर्म कि विशेषता यही है कि यह धर्म किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त मात्र न होकर अनेकानेक व्यक्तियों के विचारों और हजारो किताबो का सामुहिक प्रतिफल है जो हजारों सालों में परिमार्जित हुआ है ।
इस प्रकार से हिन्दू सनातन धर्म एक खुला धर्म है, जो विचार से नहीं अपितु विवेक से विकसित हुआ है ।
ईश्वर को साकार रूप मे मानने वाला हिंदू है और निराकार रूप मे मानने वाला भी हिंदू है !
आप राम को मान कर भी हिंदू हो सकते है व श्रीकृष्ण को मानकर भी और गुरू नानक , गौतमबुद्ध और महावीर को मानकर भी हिंदू हो सकते है।
"लेकिन यहा सिर्फ ' श्रीराम ' के मानने वाले को हिंदू नही कहा सकता । ". .. .
इसलिए सनातन धर्म किसी खास धर्म संस्थापक, पैगंबर या किसी खास पद्धति के एकाधिकार से परे है !
पर इसलाम मे मौहमम्द को मानना हर हाल मे जरूरी है साथ ही अल्लाह के अलावा मोहम्मद , फरिश्तो , आदम और अरबी इबादत के तरीको को हर हाल मे मानना जरूरी है।
इस प्रकार अरबी अल्लाह , अरबी मोहम्मद , अरबी फरिश्ते कुरान अरबी मे , हज अरब मे और अरबी इबादती तरीको से अरबी सभ्यता को मजहबी चोला पहनाया गया है और इन सभी को मानकर और फोलो करके ही मुस्लिम बना जा सकता है।
इसके विपरीत सनातन धर्म मे दिन मे एक बार सिर्फ मन मे ईश्वर का नाम लेने वाला भी हिंदू कहा जा सकता है ।
इस्लाम के सकारात्मक पक्ष जकात देना . .बुजुर्गो की इज्जत देना . .हज करना आदि बहुत ही सामान्य और साधारण मानवीय मूल्य है , जिनको अरबी कल्चर का चोला पहनाया गया है ।
कोई सामान्य बुद्धि का व्यक्ति यह समझता है कि बुजुर्गो से कैसे पेश आना है कैसे नियमो , कर्तव्यो का पालन करना है वगैरह वगैरह जबकि इस्लाम से पहले भी दुनिया कही ज्यादा समृद्ध , सभ्य , संस्कारी और विकसित थी !
खुद इस्लाम मानने वाले देशो मे कितनी भुखमरी , अराजकता और बदहाली है और वहा के ईमान वाले मुस्लिमो ने कितने नौबेल पुरस्कार जीते है ??
बस जहा इनका तेल खत्म वहा खेल खत्म .. .
काफिरो की शिक्षा और अविष्कारो का इस्तेमाल किये बिना सिर्फ अपनी कुरान के सहारे रिसर्च मे , विज्ञान मे , टैक्नोलोजी मे , मेडिकल मे , अंतरिक्ष अभियान मे और सैन्य क्षमता मे क्या करके दिखाया है ??
जब जमीन ही ऐसी है तो फसल भी ऐसी ही होगी . ..
बरहाल धर्म चाहे वह इस्लाम हो चाहे इसाई या कोई अन्य, सभी बंद धर्म है जो एक व्यक्ति मात्र के विचारों पर आधारित है और "जो यह मानकर चलते है कि समय अपरिवर्तित रहता है और व्यक्ति का विवेक भी । "
इसलिए इन धर्मों में "विचारों के विकास" का कोई महत्व नहीं है ।
यही कारण है कि इन धर्मों में विशेष आग्रह अथवा वैचारिक कट्टरता पाई जाती है ।
ईसाई धर्म में जो थोडी बहुत उदारता पाई जाती है उसका हेतु प्रोटेस्टेंट विचारधारा का विकास है अन्यथा इसाई धर्म भी उतना ही अनुदार और कट्टर होता जितना इस्लाम है ।
बेशक हिन्दू सनातन धर्म भी उतना ही कट्टर होता जितना ईसाई या इस्लाम धर्म है , यदि इसमें विभिन्न विचारधाराओं का समावेश न हुआ होता !
हिन्दू (सनातन) धर्म में ईश्वर तक पहुंचने का अनेक मार्ग बताया गया है, जैसे ज्ञानयोग , भक्तियोग ,नादयोग , लययोग, प्रेमयोग , कर्मयोग, राजयोग वगैरह - और कोई मार्ग किसी से श्रेष्ठ नहीं है .
हिन्दू को यह मानने में कोई दिक्कत नहीं हो सकती कि उस तत्व तक पहुंचने का और भी मार्ग हो सकता है क्योकि धर्म एक निंरतर चलने वाली प्रकिया है !
सनातन हिंदू धर्म किसी खास संस्थापक , पैगंबर या किसी खास पद्धति के एकाधिकार से परे है !
"असल मे धर्म तो सिर्फ सनातन है , बाकि सब तो संप्रदाय है".. !
इसलिए हजारो वर्षो मे न जाने कितने ही दूसरे मजहब और पंथ आये , फिर कही विलुप्त हो गये . ..
और न जाने कितने ही और पंथ मजहब आयेंगे और बाद मे कालचक्र मे कही खो जायेंगे . ..
लेकिन ये सनातन धर्म तब भी था . .आज है ..और सदैव रहेगा !
इसलिए हिन्दू सनातन धर्म की अन्य धर्मों से कोई तुलना नहीं की जा सकती . .. .
क्या सागर की तुलना किसी तालाब से की जा सकती है या बरगद की तुलना कैकटस से की जा सकती है ?
"वैसे भी हिन्दू कोई धर्म नहीं अपितु हिन्दू एक स्थानवाची संज्ञा है , धर्म तो सनातन है". .
जिसकी सत्या , अपरिग्रह, करुणा , दया, ममता , क्षमा , नमस्कार, वंदन, अरिहंत , पूजा, अर्चना , आराधना, तीर्थ ,उत्सव, पर्व , जैसे कई बातें किसी धर्म मे नही है. .
वासुदेव कुटुम्बकम , मिच्छामि दुक्कडाम ,सर्वत्रा सुखी भवतु एसी बाते कही सुन ने को नही मिलेगी. ..
मीरा , नरसिंह , प्रह्लाद , ध्रुव, चंदंबाला, जैसी प्रभु भक्ति, पंचतंत्र , चाणक्यनीति आदि कहा देखने को मिलेगी. .
वास्तुशास्त्र , पतंजलि- चरक चिकित्सा पद्धति , खगोल विज्ञान , नक्षत्र विज्ञान , आर्युवेद , योगशास्त्र जैसी सैकड़ो अमूल्य वैज्ञानिक पद्धतियाँ भला कहा देखने को मिलेगी ..होली, धुलेटी, दिवाली, उत्तरायण , शिवरात्रि,नवरात्रि रक्षाबन्धन , जन्माष्टमी , तीज जैसे उत्सव और कहाँ ??
पर्यूषण, श्रावण माज़ जैसे पर्व सिर्फ प्रभु भक्ति के लिये,ऐसा कही कहाँ ??
सुबह की रोटी गाय की और रात की एक रोटी कुत्ते के लिये - ऐसा कही कहाँ ??
अपनी वैभवशाली संस्कृति का कोई मोल नही है.. किस्मत वालो को ही सनातनी संस्कृति मिलती है. .!
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।
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मित्रो , कुछ अज्ञानी किस्म के सेक्युलर अक्सर कहते फिरते है कि सभी धर्म एक है और सभी धर्मो मे कोई अंतर नही है !
लेकिन वास्तव मे हिन्दू सनातनधर्म और अन्य धर्मों में तुलना असंभव है !
तो आइए जानते है कि हिन्दू सनातन धर्म और अन्य मजहबो में मुख्य - मुख्य आधारभूत अंतर क्या है, जो इनकी तुलना करने में आडे आ रहे है : -
(१ ) . सत्य निरपेक्ष है या सापेक्ष
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हिन्दू सनातन धर्म में सत्य को निरपेक्ष माना गया है अर्थात सत्य इसलिए सत्य नहीं कि वह किसी पैगंबर या किसी मजहबी किताब द्वारा कथित है , अपितु वह अपने आप में सत्य है !
यदि कोई पैगंबर सत्य को असत्य करार दे दे तो भी सत्य ,सत्य ही रहेगा न कि वह असत्य हो जाएगा ।
इस्लाम, ईसाई या अन्य गैर हिन्दू सनातन धर्म में सत्य को सापेक्ष माना गया है ।
इन धर्मावलंबियों के अनुसार सत्य इसलिए सत्य है क्योकि उक्त कथन उनके पैगंबर और उनकी मजहबी किताब द्वारा कथित है , न कि सत्य अपने आप में सत्य है !
(२ ) . जीव दया और करूणा
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करूणा और दया हिन्दू सनातन धर्म का मूल है, तभी तो कहा गया है- जहाँ जीव दया तहां धर्म है .
जब बाइबल पढते हुए कोई हिन्दू जब यह लिखा हुआ पाता है कि ईसा मसीह ने एक रोटी और एक सूखी मछली से सभी अनुयाइयों का पेट भर दिया तो वो समझ नहीं पाता कि यह कैसा ईश्वर है या ईश्वर का पुत्र है जिसे पेट भरने के लिए मछली को मारना या खाना पडा ?
इससे अच्छा तो वो भूखा रह लेता ।
एक हिन्दू कुछ इसी प्रकार की धारणा इसलाम या अन्य उन सभी धर्मों के प्रति रखता है जो अहिंसा का समर्थन निरपेक्ष रूप से नहीं करते ।
सनातन और अन्य धर्मों में यह दूसरा मुख्य अंतर है ।
हिन्दू जीव मात्र के लिए भी दया और कल्याण की भावना रखता है जबकि अन्य धर्म ऐसा नहीं सोचते ।
(३ ) .आत्मा की एकता और अमरता
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हिन्दू न केवल आत्मा को अजर अमर मानता है अपितु सभी आत्माओं की एकता में भी विश्वास करता है अर्थात वो मानता है कि सभी जीवों में एक जैसी आत्मा निवास करती है ,इसके विपरीत अन्य धर्म यह मानते है कि ईश्वर ही आत्माओं को पैदा करता है और वही नष्ट भी करता है ।
ईसाई धर्म तो पशुओं में आत्मा के अस्तित्व को नकारते हुए केवल मनुष्यों में ही इसके अस्तित्व को स्वीकारता है ।
यही कारण है कि वो इसे उपभोग की वस्तु मानता है जिसे मनुष्यों के उपभोग के लिए ईश्वर ने सृजित किया है ।
इसके विपरीत एक हिन्दू को भोजन या अन्न को जूठा छोडने में भी हिंसा नजर आती है कि इस व्यर्थ किए गए अन्न से किसी अन्य की भूख मिटाई जा सकती थी !
(४ ) . निरंतर चलने वाली समावेशी प्रकिया
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सनातन धर्म व अन्य धर्मों में यह अंतर सबसे महत्वपूर्ण है । जब कोई भी नया विचार ( या धर्म ) पनपता है तो उस वक्त वह सर्वथा उपयुक्त और सत्य प्रतीत होता है लेकिन आगे कालांतरमें उसमें कमियां दृष्टिगोचर होने लगती है ।
ऐसे में इस पूर्ववर्ती विचारधारा के विपरीत दूसरी विचारधारा पनपती है । आगे चलकर इन दोनों विचारधाराओं को समन्वित करने वाली तीसरी विचारधारा का विकास होता है ।
इस प्रकार से यह किसी विचार या धर्म के विकास के लिए निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है ।
हिन्दू सनातन धर्म कि विशेषता यही है कि यह धर्म किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त मात्र न होकर अनेकानेक व्यक्तियों के विचारों और हजारो किताबो का सामुहिक प्रतिफल है जो हजारों सालों में परिमार्जित हुआ है ।
इस प्रकार से हिन्दू सनातन धर्म एक खुला धर्म है, जो विचार से नहीं अपितु विवेक से विकसित हुआ है ।
ईश्वर को साकार रूप मे मानने वाला हिंदू है और निराकार रूप मे मानने वाला भी हिंदू है !
आप राम को मान कर भी हिंदू हो सकते है व श्रीकृष्ण को मानकर भी और गुरू नानक , गौतमबुद्ध और महावीर को मानकर भी हिंदू हो सकते है।
"लेकिन यहा सिर्फ ' श्रीराम ' के मानने वाले को हिंदू नही कहा सकता । ". .. .
इसलिए सनातन धर्म किसी खास धर्म संस्थापक, पैगंबर या किसी खास पद्धति के एकाधिकार से परे है !
पर इसलाम मे मौहमम्द को मानना हर हाल मे जरूरी है साथ ही अल्लाह के अलावा मोहम्मद , फरिश्तो , आदम और अरबी इबादत के तरीको को हर हाल मे मानना जरूरी है।
इस प्रकार अरबी अल्लाह , अरबी मोहम्मद , अरबी फरिश्ते कुरान अरबी मे , हज अरब मे और अरबी इबादती तरीको से अरबी सभ्यता को मजहबी चोला पहनाया गया है और इन सभी को मानकर और फोलो करके ही मुस्लिम बना जा सकता है।
इसके विपरीत सनातन धर्म मे दिन मे एक बार सिर्फ मन मे ईश्वर का नाम लेने वाला भी हिंदू कहा जा सकता है ।
इस्लाम के सकारात्मक पक्ष जकात देना . .बुजुर्गो की इज्जत देना . .हज करना आदि बहुत ही सामान्य और साधारण मानवीय मूल्य है , जिनको अरबी कल्चर का चोला पहनाया गया है ।
कोई सामान्य बुद्धि का व्यक्ति यह समझता है कि बुजुर्गो से कैसे पेश आना है कैसे नियमो , कर्तव्यो का पालन करना है वगैरह वगैरह जबकि इस्लाम से पहले भी दुनिया कही ज्यादा समृद्ध , सभ्य , संस्कारी और विकसित थी !
खुद इस्लाम मानने वाले देशो मे कितनी भुखमरी , अराजकता और बदहाली है और वहा के ईमान वाले मुस्लिमो ने कितने नौबेल पुरस्कार जीते है ??
बस जहा इनका तेल खत्म वहा खेल खत्म .. .
काफिरो की शिक्षा और अविष्कारो का इस्तेमाल किये बिना सिर्फ अपनी कुरान के सहारे रिसर्च मे , विज्ञान मे , टैक्नोलोजी मे , मेडिकल मे , अंतरिक्ष अभियान मे और सैन्य क्षमता मे क्या करके दिखाया है ??
जब जमीन ही ऐसी है तो फसल भी ऐसी ही होगी . ..
बरहाल धर्म चाहे वह इस्लाम हो चाहे इसाई या कोई अन्य, सभी बंद धर्म है जो एक व्यक्ति मात्र के विचारों पर आधारित है और "जो यह मानकर चलते है कि समय अपरिवर्तित रहता है और व्यक्ति का विवेक भी । "
इसलिए इन धर्मों में "विचारों के विकास" का कोई महत्व नहीं है ।
यही कारण है कि इन धर्मों में विशेष आग्रह अथवा वैचारिक कट्टरता पाई जाती है ।
ईसाई धर्म में जो थोडी बहुत उदारता पाई जाती है उसका हेतु प्रोटेस्टेंट विचारधारा का विकास है अन्यथा इसाई धर्म भी उतना ही अनुदार और कट्टर होता जितना इस्लाम है ।
बेशक हिन्दू सनातन धर्म भी उतना ही कट्टर होता जितना ईसाई या इस्लाम धर्म है , यदि इसमें विभिन्न विचारधाराओं का समावेश न हुआ होता !
हिन्दू (सनातन) धर्म में ईश्वर तक पहुंचने का अनेक मार्ग बताया गया है, जैसे ज्ञानयोग , भक्तियोग ,नादयोग , लययोग, प्रेमयोग , कर्मयोग, राजयोग वगैरह - और कोई मार्ग किसी से श्रेष्ठ नहीं है .
हिन्दू को यह मानने में कोई दिक्कत नहीं हो सकती कि उस तत्व तक पहुंचने का और भी मार्ग हो सकता है क्योकि धर्म एक निंरतर चलने वाली प्रकिया है !
सनातन हिंदू धर्म किसी खास संस्थापक , पैगंबर या किसी खास पद्धति के एकाधिकार से परे है !
"असल मे धर्म तो सिर्फ सनातन है , बाकि सब तो संप्रदाय है".. !
इसलिए हजारो वर्षो मे न जाने कितने ही दूसरे मजहब और पंथ आये , फिर कही विलुप्त हो गये . ..
और न जाने कितने ही और पंथ मजहब आयेंगे और बाद मे कालचक्र मे कही खो जायेंगे . ..
लेकिन ये सनातन धर्म तब भी था . .आज है ..और सदैव रहेगा !
इसलिए हिन्दू सनातन धर्म की अन्य धर्मों से कोई तुलना नहीं की जा सकती . .. .
क्या सागर की तुलना किसी तालाब से की जा सकती है या बरगद की तुलना कैकटस से की जा सकती है ?
"वैसे भी हिन्दू कोई धर्म नहीं अपितु हिन्दू एक स्थानवाची संज्ञा है , धर्म तो सनातन है". .
जिसकी सत्या , अपरिग्रह, करुणा , दया, ममता , क्षमा , नमस्कार, वंदन, अरिहंत , पूजा, अर्चना , आराधना, तीर्थ ,उत्सव, पर्व , जैसे कई बातें किसी धर्म मे नही है. .
वासुदेव कुटुम्बकम , मिच्छामि दुक्कडाम ,सर्वत्रा सुखी भवतु एसी बाते कही सुन ने को नही मिलेगी. ..
मीरा , नरसिंह , प्रह्लाद , ध्रुव, चंदंबाला, जैसी प्रभु भक्ति, पंचतंत्र , चाणक्यनीति आदि कहा देखने को मिलेगी. .
वास्तुशास्त्र , पतंजलि- चरक चिकित्सा पद्धति , खगोल विज्ञान , नक्षत्र विज्ञान , आर्युवेद , योगशास्त्र जैसी सैकड़ो अमूल्य वैज्ञानिक पद्धतियाँ भला कहा देखने को मिलेगी ..होली, धुलेटी, दिवाली, उत्तरायण , शिवरात्रि,नवरात्रि रक्षाबन्धन , जन्माष्टमी , तीज जैसे उत्सव और कहाँ ??
पर्यूषण, श्रावण माज़ जैसे पर्व सिर्फ प्रभु भक्ति के लिये,ऐसा कही कहाँ ??
सुबह की रोटी गाय की और रात की एक रोटी कुत्ते के लिये - ऐसा कही कहाँ ??
अपनी वैभवशाली संस्कृति का कोई मोल नही है.. किस्मत वालो को ही सनातनी संस्कृति मिलती है. .!
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।
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