पाप और पुण्य का भेद कभी कभी बड़ा मुश्किल हो जाता है | समझ में नहीं आता
कि सही कौन सा है और गलत कौन सा ! लोक व्यवहार में हिन्दुओं के लिए इसका
एक आसान सा उपाय सिखाया जाता है | एक है सासू माँ जांच और दूसरा है माँ |
आप बस इतना सोच लीजिये की अगर आपकी माँ को पता हो कि आप क्या कर रहे हैं और
क्यों कर रहे हैं तो भी क्या आप ये हरकत करते ? या फिर आपकी सास को पता हो
तो उन्हें गर्व होगा या फिर शर्मिंदगी होगी ? इतने पर आपका फैसला किसी
ज्ञानी, विद्वान, दार्शनिक से पूछे बिना ही हो जायेगा |
यही कारण है कि जब हिन्दुओं को भगवान् का स्वरुप समझाया जाता है तो किसी बाहर की अलौकिक शक्ति की तरह नहीं किसी अपने की तरह ही उसे दर्शाते हैं | अपनी स्वेच्छानुसार आप उसे जिस भी रूप में लें ये फिर आपकी मर्ज़ी है |
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।
यही कारण है कि जब हिन्दुओं को भगवान् का स्वरुप समझाया जाता है तो किसी बाहर की अलौकिक शक्ति की तरह नहीं किसी अपने की तरह ही उसे दर्शाते हैं | अपनी स्वेच्छानुसार आप उसे जिस भी रूप में लें ये फिर आपकी मर्ज़ी है |
जैसे गंगा जब शुरू होती है तब वो भागीरथ की बेटी जैसी है, इसलिए नाम भी
भागीरथी है | बाकि सभी लड़कियों की तरह चंचल है उद्दात है | इसे रोकने के
लिए शिव की मदद की जरुरत पड़ जाती है | शिव भी मुस्कुराते हुए उसे अपनी
जटाओं में उलझा कर छोड़ देते हैं | गंगा भी बालिकाओं की तरह बालों से खेलती
रह जाती है |
थोड़े ही समय बाद ये गंगा युवती भी है | ये शान्तनु से प्रेम भी करती है | अपनी खुद कि शर्तों पर शांतनु से विवाह भी करती है | बाद में जब परिस्थितियां बदलती हैं और शर्तें टूट जाती हैं तो ये शांतनु को छोड़ के चली भी जाती है |
यही गंगा फिर देवव्रत भीष्म की माता है | अपने पुत्र की यथोचित शिक्षा का प्रबंध करती पाई जाती है | समय समय पर सलाह देती है | मार्गदर्शन करती है लेकिन कभी अपने फैसले भीष्म पर थोपती हुई नहीं पाई जाती | पास रहे या दूर रहे, नजर रखती है, फ़िक्र करती है |
यहाँ से गंगा माँ हो जाती है | एक नदी और इतने स्वरुप ! ऐसा ही कुछ गंगा के गंगोत्री से निकलने से लेकर, हिमालय से कोसों दूर समुद्र से मिलने तक में भी महसूस किया जा सकता है | पल पल प्रकृति का अनिवार्य परिवर्तन है | बचपन की चंचलता है, सखा का साथ है, युवती का प्रेम है, माता का स्नेह है !
मगर समस्या ये है कि भारत को एक सांस्कृतिक उपनिवेश बनाने में जुटे हिन्दुफोबिया के मरीजों को बूढ़ी हो चली माता की सेवा करना कभी रास नहीं आता | खुद तो नहीं ही करते, कोई और करे तो उसका भी मजाक उड़ाने की कोशिश करेंगे ही करेंगे !
ध्यान रहे बन्धु, ज्यादातर भारतीय आपको इसी माता और सास वाली जांच से जांचेंगे | अपने लिए घृणा उपजा रहे हैं आप |
थोड़े ही समय बाद ये गंगा युवती भी है | ये शान्तनु से प्रेम भी करती है | अपनी खुद कि शर्तों पर शांतनु से विवाह भी करती है | बाद में जब परिस्थितियां बदलती हैं और शर्तें टूट जाती हैं तो ये शांतनु को छोड़ के चली भी जाती है |
यही गंगा फिर देवव्रत भीष्म की माता है | अपने पुत्र की यथोचित शिक्षा का प्रबंध करती पाई जाती है | समय समय पर सलाह देती है | मार्गदर्शन करती है लेकिन कभी अपने फैसले भीष्म पर थोपती हुई नहीं पाई जाती | पास रहे या दूर रहे, नजर रखती है, फ़िक्र करती है |
यहाँ से गंगा माँ हो जाती है | एक नदी और इतने स्वरुप ! ऐसा ही कुछ गंगा के गंगोत्री से निकलने से लेकर, हिमालय से कोसों दूर समुद्र से मिलने तक में भी महसूस किया जा सकता है | पल पल प्रकृति का अनिवार्य परिवर्तन है | बचपन की चंचलता है, सखा का साथ है, युवती का प्रेम है, माता का स्नेह है !
मगर समस्या ये है कि भारत को एक सांस्कृतिक उपनिवेश बनाने में जुटे हिन्दुफोबिया के मरीजों को बूढ़ी हो चली माता की सेवा करना कभी रास नहीं आता | खुद तो नहीं ही करते, कोई और करे तो उसका भी मजाक उड़ाने की कोशिश करेंगे ही करेंगे !
ध्यान रहे बन्धु, ज्यादातर भारतीय आपको इसी माता और सास वाली जांच से जांचेंगे | अपने लिए घृणा उपजा रहे हैं आप |
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।
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