ब्रह्माजी के पुत्र पुलस्त्य ऋषि हुए। उनका पुत्र विश्रवा हुआ। विश्रवा की पहली पत्नी भारद्वाज की पुत्री देवांगना थी जिसका पुत्र कुबेर था। विश्रवा की दूसरी पत्नी दैत्यराज सुमाली की पुत्री कैकसी थी जिसकी संतानें रावण, कुंभकर्ण और विभीषण थीं।
बहुविद्याओं का ज्ञाता था। महर्षि वाल्मीकि ने रावण को एक महात्मा कहा है। सुबह लंका में पूजा, अर्चना, शंख और वेद ध्वनियों द्वारा होती थी। रावण महान शिवभक्त था। उसने वैदिक ऋचाओं का संकलन किया। साथ ही वह अंक प्रकाश, इंद्रजाल, कुमारतंत्र, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर, ऋगवेद भात्य, रावणीयम, नाड़ी परीक्षा आदि पुस्तकों का रचनाकार भी था।
राज्य विस्तार के लिए उसने अंगद्वीप, मलयद्वीप, वराहद्वीप, यवद्वीप और आंध्रलय को जीतकर अपने अधीन कर लिया था। रावण दशरथ और उनके पिता अज से भी युद्ध कर चुका था। रावण एक त्रिकालदर्शी था। उसे मालूम हुआ कि प्रभु ने राम के रूप में अवतार लिया है और वे पृथ्वी को राक्षसविहीन करना चाहते हैं, तब रावण ने राम से बैर लेने की सोची।
रावण स्वयं ने शूर्पणखा को राम के पास भेजा था, किंतु शूर्पणखा की नासिका छेदन और खरदूषण के मारे जाने से एक बहाना मिल गया और उसने अपने तथा अपने कुल के उद्धार के लिए माता सीता का हरण किया। साथ ही सीता माता को महल में न रखकर अशोक वाटिका में रखा।
रावण ने मंदोदरी से कहा- 'मैंने प्रभु राम का प्रण पूरा करने के लिए सीता को अशोक वाटिका में रखा है। यदि उसे नगर में लाता तो प्रभु का प्रण टूट जाता, क्योंकि उन्होंने 14 वर्ष वन में रहने का प्रण किया है और माता सीता उनका आधा अंग हैं।'
वह मंदोदरी से कहता है- 'यदि मैं प्रभु राम की शरण में जाकर क्षमा-याचना करूं तो प्रभु मुझे तो क्षमा कर देंगे, मगर मेरे बाद जो राक्षस हैं, वे पृथ्वी पर खूब अत्याचार करेंगे इसलिए मैं कुटुम्ब सहित प्रभु से युद्ध करूंगा ताकि मेरे प्रभु का प्रण पूरा हो सके।'
कहा जाता है कि जब राम वानरों की सेना लेकर समुद्र तट पर पहुंचे, तब राम रामेश्वरम के पास गए और वहां उन्होंने विजय यज्ञ की तैयारी की। उसकी पूर्णाहुति के लिए देवताओं के गुरु बृहस्पति को बुलावा भेजा गया, मगर उन्होंने आने में अपनी असमर्थता व्यक्त की।
अब सोच-विचार होने लगा कि किस पंडित को बुलाया जाए ताकि विजय यज्ञ पूर्ण हो सके। तब प्रभु राम ने सुग्रीव से कहा- 'तुम लंकापति रावण के पास जाओ।' सभी आश्चर्यचकित थे किंतु सुग्रीव प्रभु राम के आदेश से लंकापति रावण के पास गए। रावण यज्ञ पूर्ण करने लिए आने के लिए तैयार हो गया और कहा- 'तुम तैयारी करो, मैं समय पर आ जाऊंगा।'
रावण पुष्पक विमान में माता सीता को साथ लेकर आया और सीता को राम के पास बैठने को कहा, फिर रावण ने यज्ञ पूर्ण किया और राम को विजय का आशीर्वाद दिया। फिर रावण सीता को लेकर लंका चला गया। लोगों ने रावण से पूछा- 'आपने राम को विजय होने का आशीर्वाद क्यों दिया?' तब रावण ने कहा- 'महापंडित रावण ने यह आशीर्वाद दिया है, राजा रावण ने नहीं।'
जब राम द्वारा लंका पर युद्ध शुरू हुआ तो रावण ने पहले अपने पुत्रों को भेजा। जब वे मारे गए तब कुंभकर्ण को जगाकर भेजा गया। कुंभकर्ण महाभयंकर दैत्य था। उसके मारे जाने के बाद अन्य भाइयों और रिश्तेदारों को भेजा। बाद में स्वयं रावण युद्ध के लिए गया और वीरगति को प्राप्त हुआ।
विभीषण एक महात्मा था इसलिए उसे डांट-फटकार कर भगा दिया।
जब रावण मृत्यु शैया पर पड़ा था तब राम ने लक्ष्मण को राजनीति का ज्ञान लेने रावण के पास भेजा। जब लक्ष्मण रावण के सिर की ओर बैठ गए, तब रावण ने कहा- 'सीखने के लिए सिर की तरफ नहीं, पैरों की ओर बैठना चाहिए, यह पहली सीख है।' रावण ने राजनीति के कई गूढ़ रहस्य बताए।
रावण तो अपने श्राप से मुक्ति चाहता था इसलिए उसने राम से युद्ध किया। दशहरे पर रावण का पुतला जलाने के पहले सोचें कि उसके साथ क्या हम वे सब बुराइयां खत्म कर रहे हैं, जो हमारे अंदर हैं और हम उन्हें रावण में देख रहे हैं?
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