भारत देश का सत्य इतिहास अत्यंत महान और प्रेरणादायक हैं। विडंबना यह हैं
की 1200 वर्ष की गुलामी के पश्चात भारत वर्ष का जो इतिहास लिखा गया उसमे
मुस्लिम और ईसाई लेखकों ने इतिहास को निष्पक्षता से लिखने के स्थान पर अपने
धार्मिक पूर्वाग्रह के कारण उन तथ्यों को ज्यादा प्राथमिकता दी हैं जिनसे
यह प्रतीत हो को भारत पराजितों की भूमि रही हैं। यहाँ के लोग असभ्य और
गँवार थे।हमें यह तो बताया जाता हैं की चंद घुड़सवारों के साथ गोरी, गजनी
यहाँ हमला करते थे और यहाँ के हिन्दू राजा ताश के पत्तों के समान गिरते
जाते थे पर यह नहीं बताया जाता की पश्चिम का विजेता सिकंदर के सैनिक साढ़े छ
फुट कद के बलशाली पोरस राजा और उनकी सेना से एक युद्ध करने के बाद ही अपना
मनोबल खो बैठे थे और सिकन्दर को अपना विश्व विजेता बनने का सपना छोड़कर
वापिस अपने देश जाना पड़ा था। हमें यह भी नहीं पढ़ाया जाता की सिकंदर के
पश्चात उसके सेनापति सेलुकस ने भारत पर फिर से हमला किया तो उसे महान
चन्द्रगुप्त मौर्य से मुँह की खानी पड़ी थी और अपनी बेटी , अपना भू भाग देकर
उसने भारत से पीछा छुड़वाया था।भारत के वीरों ने ग्रीक,हुण,शक,कम्बोज,मंगोल
आदि अनेक विदेशी जातियों को भारत पर आक्रमण करने की सजा दी थी। अधिकतर को
सम्बन्ध स्थापित करके भारतीय संस्कृति और सभ्यता का अंग बना लिया था।भारत
वासियों के विषय में विदेशी इतिहास सर रोबर्ट लेथ ब्रिज अपनी पुस्तक “थी
हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया” में लिखते है कीGreek Accounts of the Ancient
Hindus-The most striking points about the Greek Accounts of the state of
India at this time are1. Their General agreement with the accounts in
Manu2. The little change that has since occurred during two thousand
years.3. The favorable impression which the manners and condition of the
Hindus made on the Greeks. The men are described as brave than any
Asiatics whom the Greek have yet met and singularly truthful. They are
said to be sober, temperate and peaceable; remarkable for simplicity and
integrity; honest and averse to litigation.Reference- page 25The
History of India by Sir Roper Let bridge London, 1896ग्रीक लोगों के
अनुसार भारतीय लोग मनु स्मृति को मानते थे, पिछले दो हजार वर्षों से वे
उनमें किसी भी परकार का कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। वे संयमी,नियमित
,शांतिप्रिय स्वाभाव के हैं, निष्कपटता और सत्यनिष्ठा के लिए जाने जाते है,
वे ईमानदार हैं और लड़ाई-झगड़ों से कोसो दूर है।कहाँ पश्चिमी इतिहासकारों
द्वारा भारतीयों को असभ्य कहना और वेदों को गड़रियों के गीत कहना कहाँ ग्रीक
लेखकों द्वारा यहाँ के चरित्र और बल की उन्मुक्त कंठ से प्रशंसा
करना।मैगस्थनीज ने लिखा हैं “सम्पूर्ण भारत स्वतंत्र है। उसमें कोई दास
नहीं। भारतियों के मित्र पड़ोसी लैकिडिमोनियन (Lacedaemonian) हेलट (helet)
जाति वालों को दास बनाकर उनसे नीच दर्जे का काम करते हैं परन्तु भारतीय लोग
अपने शत्रुओं से भी दास का व्यवहार नहीं करते। “- सन्दर्भ- Fragments of
India,Magasthenese. Frag 26Lacedaemonia पुराने समय में ग्रीस को कहा जाता
था।इस सन्दर्भ से हम जान सकते हैं की प्राचीन भारत में हमारे महान
आर्यव्रत देश में मानव अधिकारों को कितनी प्राथमिकता दी जाती थी जबकि
इस्लामिक देशों में दास प्रथा थी।आवश्यकता हैं इतिहास को दोबारा से लिखने
की जिससे पराजय का मानसिक बोध सदा सदा के लिए हमारे मस्तिष्क से मिट जाये।
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