Tuesday, June 23, 2015

तिलक किस-किस बात कि निशानी है ??

▶जानने की कोशिश करते है।

🌷1.
खुशी के अवसर की तिलक देने की परम्परा चली आती है।

🌷2.
भक्त पन की निशानी है। भक्ति में भक्त मन्दिर में जाता है तो उस को चन्दन का तिलक देते है।

🌷3.
भाग्य की निशानी है। सौभाग्यशाली
कि निशानी है।

🌷4.
संकट को दूर करने कि निशानी है।
संकट के समय पूजारी लोग तिलक लगाते है।

🌷5.
सफलता प्राप्त करने के लिए तिलक देने की परम्परा है। चाहे किसी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करे। घर से रवाना होने से पहले तिलक देते है।

🌷6.
पवित्रता की निशानी है।
किसी की बुरी नजर नहीं लगे।
इसलिए ही शादी के बाद बहनें तिलक अर्थात बिन्दी लगाती है।

🌷7.
नजर नहीं लगे इस के लिए मातायें छोटे बच्चों को मस्तक पर काला तिलक लगा देती है। ताकि कोई टोक नहीं हो जाये।

🌷8.
कोई विजय प्राप्त करके आता है। तो उस को तिलक देते है।

🌷9.
युद्ध के मैदान में जाते समय बहन अपने भाई को तथा माँ अपने बच्चे को विजयी होने का तिलक देकर घर से रवाना करती है।

🌷10.
तीसरे नैत्र की निशानी भी तिलक देते है। भृकुटी के मध्य में आज्ञा चक्र होता है। योगी लोग अपना ध्यान यहाँ पर केद्रित करते है।

11.
 शादी में एक टीका देने की परम्परा भी होती है।

12.
किसी शुभ कार्य की शुरूआत भी तिलक देने कि परम्परा से ही होती है।

13.
 तिलक देना हिन्दू संस्कृति अर्थात देवी देवता धर्म की मुख्य तथा
सर्वोच्च परम्परा है।
तिलक लगाना ही हिन्दू धर्म की मुख्य पहचान है।

14.
 सुहाग की निशानी की तिलक देना है
सुहागिन मातायें बहनें अपने सुहागिन होने की निशानी भी तिलक देती है।

15.
लाल तिलक शरीर की सुन्दरता का तथा चन्दन का तिलक आत्मा की सुन्दरता का प्रतिक है।

16.
 आत्म स्मृति की निशानी भी चन्दन का तिलक मन्दिर में देते है।
हम आत्मा भाई -भाई है इस की निशानी भी तिलक देते है।

17.
नारी के 16 श्रृंगार में से  तिलक लगाना भी एक मुख्य श्रृंगार है।
तिलक के बिना नर व नारी का श्रृंगार अधूरा माना जाता है।

18.
शुभ अवसर अर्थात जन्म दिन के अवसर पर लम्बी आयु की कामना के लिए तिलक लगाया जाता है।

19.
आध्यात्मिक या धार्मिक व्यक्ति होने कि निशानी भी तिलक  लगाना है।

20.
जब किसी को तख्त पर बठाया जाता है।तो तिलक लगाकर  सिंहासन पर बिठाया जाता है।
तिलक देना राज तिलक की निशानी है। स्वराज्य की निशानी भी तिलक है।
राजाई की निशानी भी तिलक है।

21.
Master gland पिनियल ग्रंथी भी मस्तक के मध्य में स्थित होती है।
मुख्य controller की निशानी भी तिलक देते है।

22.
अपनी चेतना की जागृति के लिए,
मन की एकाग्रता को बढ़ाने के लिए
भक्ति मार्ग में तिलक लगाते है।

23.
शरीर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यहीं पर हमारे शरीर की प्रमुख तीन नाड़ियाँ- इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती हैं. इसलिए इसे त्रिवेणी या संगम भी कहा जाता है.

हमारे माथे के बीच का यह
स्थान ‘गुरु स्थान’ भी कहलाता है. यहीं से पूरे शरीर का संचालन होता है. इस स्थान की महत्ता को देखते हुए ही यहां तिलक लगाया जाता है ताकि शरीर को लाभ पहुंच सके. इस स्थान पर तिलक लगाने से एक तो स्वभाव में सुधार आता हैं और साथ देखने वाले पर सात्विक प्रभाव भी पड़ता है।

24.
हिन्दु परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शूभ माना जाता है इसे सात्विकता का प्रतीक माना जाता है विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य से तिलक लगाया जाता है| इसी प्रकार शुभकामनाओं के रुप में हमारे तीर्थस्थानों पर, विभिन्न पर्वो-त्यौहारों, विशेष अतिथि आगमन पर लगाया जाता है । दरअसल, हमारे शरीर में सात सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं, जो अपार शक्ति के भंडार हैं। इन्हें चक्र कहा जाता है। माथे के बीच में जहां तिलक लगाते हैं, वहां आज्ञाचक्र होता है।  यही हमारी चेतना का मुख्य स्थान भी है। इसी को मन का घर भी कहा जाता है। इसी कारण यह स्थान शरीर में सबसे ज्यादा पूजनीय है। योग में ध्यान के समय इसी स्थान पर मन को एकाग्र किया जाता है।इसे प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है हमारे ऋषिगण इस बात को भलीभाँति जानते थे पीनियल ग्रन्थि के उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन होगा । इसी वजह से धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-उपासना व शूभकार्यो में टीका लगाने का प्रचलन अत्यधिक होने लगा ताकि उस के उद्दीपन से हमारे शरीर में स्थूल-सूक्ष्म अवयन जागृत हो सकें । इस आसान तरीके से सर्वसाधारण की रुचि धार्मिकता की ओर, आत्मिकता की ओर अग्रसर हुई | तत्व दर्शन के अनुसार चन्दन का तिलक या त्रिपूंड उसकी प्रकृति प्रायः शीतल होने की वजह से इसे मस्तिष्क पर लगाया जाता है ताकि हमारे विचार-भाव शीतलता, प्रसन्नता, और शान्ति प्रदान करने वाले हों । तिलक भिन्नता सजोये होने की वजह से श्वेत और रक्तचन्दन भक्ति का प्रतीक, इसका प्रयोग भजनामंदी किस्म के लोग करते है । केसर व गोरोचन ज्ञान-वैराग्य का प्रतीक, ज्ञानी तत्वचिन्तक इसका उपयोग करते है । हमारी संस्कृति में किसी भी पूजा, पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान आदि का शुभारंभ श्रीगणेश पूजा से आरंभ होता है। उसी प्रकार बिना तिलक धारण किए कोई भी पूजा-प्रार्थना आरंभ नहीं होती। धर्म मान्यतानुसार सूने मस्तक को अशुभ और असुरक्षित माना जाता है। इसीलिए तिलक लगाने की मान्यता है यह तिलक चंदन, रोली, कुंकुम, सिंदूर तथा भस्म का लगाया जाता है। तंत्रशास्त्र में तिलक की अनेक क्रिया-विधियां विभिन्न कार्यों की सफलता के लिए बताई गई हैं। तंत्र शास्त्र में शरीर के तेरह भागों पर तिलक करने की बात कही गई है, लेकिन समस्त शरीर का संचालन मस्तिष्क करता है, इसलिए इस पर तिलक करने की परंपरा अधिक प्रचलित है। तिलक लगाने में सहायक हाथ की अलग-अलग अंगुलियों का भी अपना महत्व है।



25.

तिलक धारण करने में अनामिका अंगुली मानसिक शांति प्रदान करती है।
मध्यमा अंगुली मनुष्य की आयु वृद्धि करती है।
अंगूठा प्रभाव, ख्याति और आरोग्य प्रदान करता है, इसलिए विजय तिलक अंगूठे से ही करने की परम्परा है।

तर्जनी मोक्ष देने वाली अंगुली है। इसलिए मृतक को तर्जनी से तिलक लगाते हैं।सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार, अनामिका और अंगूठा तिलक करने में सदा शुभ माने गए हैं। अनामिका अंगुली सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है। इसका अर्थ यह है कि साधक सूर्य के समान दृढ, तेजस्वी, निष्ठा-प्रतिष्ठा और सम्मान वाला बने। दूसरा अंगूठा है, जो हाथ में शुक्र क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र ग्रह जीवनी शक्ति का प्रतीक है। इससे साधक के जीवन में शुक्र के समान ही नव जीवन का संचार होने की मान्यता है।तिलक का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है शुभघटना से लेकर अन्य कई धार्मिक अनुष्ठानों, संस्कारों, युद्ध लडने जाने वाले को शुभकामनाँ के तौर पर तिलक लगाया जाता है।

26.
भारतीय संस्कृति में तिलक का बहुत महत्व हैं। हमारी संस्कृति व समाज में तिलक को बहुत शुभ भी माना जाता हैं। किसी भी तरह का पूजन- पाठ या शुभारंभ करने पर तिलक लगाने को हमारी संस्कृति बनाया गया। तिलक विशेषकर मस्तक का ललाट का सिंगार है। यही कारण है कि पारंपरिक रूप से सिंगार प्रिय भारतीयों ने ललाट के सिंगार पर जोर दिया। इसके लिए तिलक के कई प्रकार अपनाए। स्त्रियों के लिए बिंदी रूप में पुरुषों के लिए अलग-अलग तरह के तिलक के रूप में। दरअसल तिलक आध्यात्म शांति के लिए किए गए प्रयास का प्रतीक है।
ललाट के ठीक बीच स्थान या दोनों भौहों के बीच तिलक लगाने का विधान है, क्योंकि हिंदू मान्यता के अनुसार दोनों नेत्रों के ठीक बीच में आज्ञा चक्र या ब्रह्मरंध्र होता है। यह जगह भगवान शिव की तीसरी आंख के समान है।
यह ज्ञान और एकाग्रता से परिपूर्ण है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यह शरीर का केंद्र स्थान है। आज्ञा चक्र के बीच से ही हमें किसी भी काम को करने का विचार मिलता है। इस के कारण हम सारे कामों को करने में सक्षम होते हैं। इसलिए ललाट के बीच तिलक लगाना हमारी संस्कृति का एक अहम् हिस्सा है।

27.
मस्तिष्क में सेराटोनिन व बीटाएंडोरफिन नामक रसायनों का संतुलन होता है। इनसे मेघाशक्ति बढ़ती है तथा मानसिक थकावट के विकार नहीं होते हैं। मस्तक पर चंदन का तिलक सुगंध के साथ-साथ शीतलता देता है। ईश्वर को चंदन अर्पण करने का भाव यह है कि हमारा जीवन आपकी कृपा रूपी सुगंध से भर जाए एवं हम व्यवहार से शीतल रहें अर्थात् ठंडे दिमाग से कार्य करें। अधिकतर उत्तेजना में कार्य बिगड़ता है और चंदन लगाने से उत्तेजना नियंत्रित होती है। चंदन का तिलक लगाने से दिमाग में शांति, तरावट एवं शीतलता बनी रहती है।

28.
ललाट पर दोनों भौंहों के बीच विचारशक्ति का केन्द्र है। योगी इसे आज्ञाचक्र कहते हैं। इसे शिवनेत्र अर्थात् कल्याणकारी विचारों का केन्द्र भी कहा जाता है।वैज्ञानिकों ने इसे पीनियल ग्रंथि नाम दिया है। प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि प्रकाश से इसका गहरा संबंध है। ध्यान-धारणा के माध्यम से साधक में जो प्रकाश का अवतरण आज्ञाचक्र में होता है, उसका कोई-न-कोई संबंध इस स्थूल अवयव से अवश्य है।हमारे ऋषियों को यह तथ्य भलीभाँति पता था, अतः उन्होंने तिलक करने की प्रथा को पूजा-उपासना के साथ-साथ हर शुभ कार्य से जोड़कर इसे धर्म-कर्म का एक अभिन्न अंग बना दिया, ताकि नियमित रूप से उस स्थान के स्पर्श से उसे उद्दीपन मिलता रहेऔर वहाँ से सम्बद्ध स्थूल-सूक्ष्म अवयव जागरण की प्रक्रिया से जुड़ सकें।ऋषि तो करूणा और संवेदना की प्रतिमूर्ति होते हैं अतः उन्होंने तिलक के माध्यम से जहाँ सर्वसाधारण की रूचि को धार्मिकता की ओर मोड़ना चाहा, वहीं उनकी आत्मिक प्रगति की दिशा में प्रथम चरण का द्वार भी खोल दिया।तिलक-धारण वस्तुतः तीसरा नेत्र जागृत करने की दिशा में एक आध्यात्मिक कदम है। आज्ञाचक्र (भ्रूमध्य) में किया गया चंदन या सिंदूर आदि का तिलक विचारशक्ति व आज्ञाशक्ति को विकसित करता है। इसलिए हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ कार्य करते समय ललाट पर तिलक किया जाता है। इससे कठिन परिस्थितियों में सही निर्णय करने कीक्षमता विकसित होती है। हमारे शास्त्रों में तिलक लगाने की बड़ी महिमा गायी गयीहै।

29.
यह सूक्ष्म तथा स्थूल दोनों का संगम स्थान है।

सभी पाठको को धन्यवाद्

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।

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