1. हे भगवन ! हम सत्य का पालन करे, झूठ के पास भी न जावे। (ऋ० ८।६२।१२)
2. उत्तम मति, उत्तम कृति और उत्तम उक्ति का सदा मानव में स्थान होना चाहिए। (ऋ० १०।१९१।१-४)
3. सभा और समिति राजा की पुत्री के सामान हैं। इनमे बैठने पर सत्य और उचित ही सम्मति देनी चाहिए। (अथर्व० ७।१२।१)
4. ऋत की प्रकाशरश्मियाँ पूर्ण हैं। ऋत का ज्ञान बुरे कर्मो से बचाता है। (ऋ० ४।२३।८)
5. इन्द्रियां परमेश्वर को नहीं प्राप्त कर सकती हैं। (यजु० ४०।४)
6. प्रजा के पालक परमेश्वर ने सत्य और असत्य के स्वरुप का व्याकरण कर सत्य में श्रद्धा और असत्य में अश्रद्धा धारण करने का उपदेश किया है। (यजु० १९।७७)
7. अपने ज्ञान और कर्म से मनुष्य परमेश्वर का भक्त बनता है और इन्ही से दुर्गणों से भी दूर रहता है। (ऋ० ५।४५।११)
8. कुटिल कर्म अथवा उलटे कर्म का नाम ही पाप है। (ऋ० १।१८९।१)
9. हमारा मन सदा उत्तम विचारो वाला ही हो। (यजु० ३४।१)
10. अतपस्वी मनुष्य कच्ची बुद्धि का होता है अतः वह उस परमेश्वर को नहीं प्राप्त कर सकता है। (ऋ० ९।८३।१)
11. यह शरीर अंत में भस्म हो जाने वाला है। हे जीवात्मन ! तू अपना, अपने कर्म और ओ३म का स्मरण कर। (यजु० ४०।१५)
12. सत्य, बृहत, ऋत, उग्र, तपस, दीक्षा, ब्रह्म और यज्ञ पृथ्वी का धारण करते हैं।
13. मनुष्य बनो और उत्तम संतानो को उत्पन्न करो। (ऋ० १०।११४।१०)
14. बहुत संतानो वाला दुःख को प्राप्त होता है। (ऋ० १।१६४।३२)
15. आत्मघाती अंधकारमय लोको को प्राप्त होता है। (यजु० ४०।३)
16. सब दिशाए हमारे लिए मित्रवत होवे। (अथर्व० १९।५।६)
17. ब्रह्मचर्य और तप से विद्वान लोग मृत्यु को पार करते हैं।
18. हम सदा ज्ञान के अनुसार चले कभी भी इसका विरोध न करे। (अथर्व० १।९।४)
19. अपने कानो से हम सदा अच्छी वस्तु सुने, आँखों से अच्छी ही वस्तु को देखे, सदा हष्ट पुष्ट शरीर से स्तुति करे और समस्त आयु उत्तम कर्म के लिए ही हो। (यजु० २५।२१)
20. उत्तम कर्म करने वालो का किया हुआ उत्तम कर्म हमारे लिए कल्याणकारी हो। (ऋ० ७।९५।४)
हमारा ऋग्वेद हमे बाटकर खाने को कहता है !
हम जो अनाज खेतो मे पैदा करते है उसका बटवारा तो देखीए !
1, जमीन से चार अंगूल भूमी का,
2, गहू के बाली के नीचे का पशूओ का,
3, पहले पेड़ की पहली बाली अग्नी का,
4, बाली से गहू अलग करने पर मूठ्ठी भर दाना पंछीयो का,
5, गहू का आटा बनाने पर मूठ्ठी भर आटा चीटीयो का फीर आटा गूथने के बात
6, चुटकी भर गूथा आटा मछलीयो का,
7, फिर उस आटे की पहली रोटी गौमाता की और
8, पहली थाली घर के बूजूर्गो की और फिर हमारी और
9, आखरी रोटी कूत्ते की ये हमे सीखाता है हमारा धर्म और मूझे गर्व है कि इस धर्म का पालन करने वाला मै हिंदू हुँ।
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।
2. उत्तम मति, उत्तम कृति और उत्तम उक्ति का सदा मानव में स्थान होना चाहिए। (ऋ० १०।१९१।१-४)
3. सभा और समिति राजा की पुत्री के सामान हैं। इनमे बैठने पर सत्य और उचित ही सम्मति देनी चाहिए। (अथर्व० ७।१२।१)
4. ऋत की प्रकाशरश्मियाँ पूर्ण हैं। ऋत का ज्ञान बुरे कर्मो से बचाता है। (ऋ० ४।२३।८)
5. इन्द्रियां परमेश्वर को नहीं प्राप्त कर सकती हैं। (यजु० ४०।४)
6. प्रजा के पालक परमेश्वर ने सत्य और असत्य के स्वरुप का व्याकरण कर सत्य में श्रद्धा और असत्य में अश्रद्धा धारण करने का उपदेश किया है। (यजु० १९।७७)
7. अपने ज्ञान और कर्म से मनुष्य परमेश्वर का भक्त बनता है और इन्ही से दुर्गणों से भी दूर रहता है। (ऋ० ५।४५।११)
8. कुटिल कर्म अथवा उलटे कर्म का नाम ही पाप है। (ऋ० १।१८९।१)
9. हमारा मन सदा उत्तम विचारो वाला ही हो। (यजु० ३४।१)
10. अतपस्वी मनुष्य कच्ची बुद्धि का होता है अतः वह उस परमेश्वर को नहीं प्राप्त कर सकता है। (ऋ० ९।८३।१)
11. यह शरीर अंत में भस्म हो जाने वाला है। हे जीवात्मन ! तू अपना, अपने कर्म और ओ३म का स्मरण कर। (यजु० ४०।१५)
12. सत्य, बृहत, ऋत, उग्र, तपस, दीक्षा, ब्रह्म और यज्ञ पृथ्वी का धारण करते हैं।
13. मनुष्य बनो और उत्तम संतानो को उत्पन्न करो। (ऋ० १०।११४।१०)
14. बहुत संतानो वाला दुःख को प्राप्त होता है। (ऋ० १।१६४।३२)
15. आत्मघाती अंधकारमय लोको को प्राप्त होता है। (यजु० ४०।३)
16. सब दिशाए हमारे लिए मित्रवत होवे। (अथर्व० १९।५।६)
17. ब्रह्मचर्य और तप से विद्वान लोग मृत्यु को पार करते हैं।
18. हम सदा ज्ञान के अनुसार चले कभी भी इसका विरोध न करे। (अथर्व० १।९।४)
19. अपने कानो से हम सदा अच्छी वस्तु सुने, आँखों से अच्छी ही वस्तु को देखे, सदा हष्ट पुष्ट शरीर से स्तुति करे और समस्त आयु उत्तम कर्म के लिए ही हो। (यजु० २५।२१)
20. उत्तम कर्म करने वालो का किया हुआ उत्तम कर्म हमारे लिए कल्याणकारी हो। (ऋ० ७।९५।४)
हमारा ऋग्वेद हमे बाटकर खाने को कहता है !
हम जो अनाज खेतो मे पैदा करते है उसका बटवारा तो देखीए !
1, जमीन से चार अंगूल भूमी का,
2, गहू के बाली के नीचे का पशूओ का,
3, पहले पेड़ की पहली बाली अग्नी का,
4, बाली से गहू अलग करने पर मूठ्ठी भर दाना पंछीयो का,
5, गहू का आटा बनाने पर मूठ्ठी भर आटा चीटीयो का फीर आटा गूथने के बात
6, चुटकी भर गूथा आटा मछलीयो का,
7, फिर उस आटे की पहली रोटी गौमाता की और
8, पहली थाली घर के बूजूर्गो की और फिर हमारी और
9, आखरी रोटी कूत्ते की ये हमे सीखाता है हमारा धर्म और मूझे गर्व है कि इस धर्म का पालन करने वाला मै हिंदू हुँ।
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।
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