क्या आप जानते हैं कि..... हमारे हिन्दू सनातन धर्म के ..... हर एक मंदिर
में ... भगवान की मूर्तियाँ क्यों स्थापित की जाती है.... और मूर्ति पूजा
का इतना महत्व क्यों हैं...?????अक्सर मूर्ख मुस्लिम और सेक्यूलर
किस्म के प्राणियों का कहना है कि..... मूर्तियाँ तो पत्थर की होती है और
पत्थर को पूजने से भला क्या लाभ है...???उनकी ऐसी मूर्खता भरी बातें सुनकर.... सिर्फ उनकी कमअक्ली पर तरस ही खाया जा सकता है......!दरअसल.... हर हिन्दू सनातन धर्म में..... हर चीज की तरह.... मूर्तियों को पूजे जाने का भी एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक आधार है....!हकीकत में..... मंदिर अथवा घर में रखी मूर्तियाँ ... भगवान नहीं होती हैं .... बल्कि वे भगवान का प्रतीक चिन्ह होती है....!
अर्थात.... मूर्तियाँ सिर्फ एक प्रतीक होती हैं..... जिस से साधक को......
साधना करने और एकाग्रचित्त होने में मदद मिल सके........ ताकि,
मंत्रोच्चार का समुचित प्रभाव हो सके....!इसे और भी अच्छी तरह समझने के लिए.... ऐसे समझ सकते हैं कि....
जब हम कोई सिनेमा देखते हैं तो..... वो हकीकत में हमारे सामने घटित नहीं
हो रहा होता है..... बल्कि सिर्फ सामने परदे .... पर दृश्य आते-जाते रहते
हैं...... फिर भी, हम फिल्म देखते हुए ...... कभी ख़ुशी, तो कभी दुःख, और
कभी आवेशित महसूस करते हैं.....!दरअसल वो.... हमारे एकाग्रचित्त होकर उस फिल्म के चरित्र में डूब जाने का नतीजा है....!
अगर.... इसी बात को कूल डूड की भाषा में बताया जाए तो...... जब प्रेमी और
प्रेमिका पास में नहींरहते हैं .... उस समय, कूल डूड ..... अपनी प्रेमिका
के फोटो को ही अपनी प्रेमिका समझ कर उसे निहारते रहते हैं..... और, उसी से
उन्हें ऐसा लगता है कि..... उसकी प्रेमिका उसके समीप ही बैठी हुई है......
तथा.... उस फोटो में मानसिक रूप से डूब जाने के बाद तो..... वो अपनी
प्रेमिका को महसूस तक करने लगता है....!असल में.... ये शुद्ध रूप से
विज्ञान है ...... जिसकी नक़ल ..... लोगों को कृत्रिम रूप से सम्मोहित करने
के लिए भी किया जाता है..... और, सम्मोहित करने हेतु भी.... उस व्यक्ति को
सम्मोहनकर्ता किसी एक वस्तु को ध्यान लगा कर देखने को बोलता है... ताकि,
उसका मन एकाग्रचित्त हो सके...!मंदिर में भगवान के मूर्तियों की पूजा का यहीरहस्य है.... जो पूर्णतया विज्ञान पर आधारित है....!
हालाँकि... भगवान कण-कण में विराजमान हैं.... परन्तु .... किसी प्रतीक
चिन्ह के अभाव में..... इन अनंत ब्रह्माण्ड में ..... लोगों को एकाग्रचित्त
होना और भगवान का ध्यान करना काफी मुश्किल हो जाएगा... क्योंकि, उस हालत
मेंलोगों में मन में भगवान की कोई छवि बन ही नहींपाएगी....!इसका सबसे
बड़ा प्रमाण यह है कि.... मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी यह नहीं कहता है
कि..... फलानेमंदिर में भगवान की स्थापना हुई है.... अथवा... फलाने मंदिर
के भगवान बहुत ही खूबसूरत हैं ....!हमेशा यह ही कहा जाता है कि.....
फलाने मंदिर में .... भगवान की प्रतिमा स्थापित हुई है.... अथवा... फलाने
मंदिर की मूर्ति बहुत ही खूबसूरत है...!इस तरह .... एक सामान्य
बोल-चाल में भी हम यही कहते हैं कि..... मूर्तियाँ भगवान नहीं है....
बल्कि, भगवान का प्रतीकात्मक चिन्ह है...!इस प्रकार ... हम यह कह सकते हैं कि...... मूर्ति पूजा ही.... साधना करने का सर्वोतम और एक पूर्णतया वैज्ञानिक तरीका है.....!अतः.... पूजा करने में शर्म नहीं बल्कि.... गर्व का अनुभव करें कि.... हम हिन्दुओं की पूजा पद्धति सर्वश्रेष्ठ पूजा पद्धति है...!एक बात हमेशा याद रखें कि .... जानकारी ही बचाव है....
इसीलिए यदि.... हम हिन्दुओं को दुनिया में अपनाअस्तित्व बनाये रखना है
तो..... अपना किसी के बहकावे में ना जाएँ .. बल्कि अपनी अक्ल लगायें ...!हम गौरवशाली हिन्दू हैं .... और, पहले भी विश्वगुरु थे..... तथा , आज भी हम में विश्वगुरु बनने की क्षमता है....!जय महाकाल...!!!
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