प्राचीन हिंदू इतिहास और पुराणों
के अनुसार ऐसे सात व्यक्ति हैं, जो चिरंजीवी हैं। यह सब किसी न किसी वचन,
नियम या शाप से बंधे हुए हैं और यह सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न है। योग
में जिन अष्ट सिद्धियों की बात कही गई है वे सारी शक्तियाँ इनमें विद्यमान
है। हिंदू धर्म अनुसार इन्हें सात जीवित महामानव कहा जाता है। प्राचीन
ग्रंथों के अनुसार इनका प्रात: स्मरण करने से मनुष्य दीर्घायु और निरोग
रहता है।
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
अर्थात इन आठ लोगों (अश्वथामा, दैत्यराज
बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि) का
स्मरण सुबह-सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त होती हैं और मनुष्य 100
वर्ष की आयु को प्राप्त करता है।
प्राचीन मान्यताओं के आधार पर यदि कोई व्यक्ति हर रोज इन आठ अमर लोगों (अष्ट चिरंजीवी) के नाम भी लेता है तो उसकी उम्र लंबी होती है।
जानिए इन सात अद्भुत और अजर-अमर चिरंजीवियों के बारे में
हनुमान जी: - कलियुग में हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता माने गए हैं और हनुमानजी भी इन अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं।
सीता माता ने हनुमान को लंका की अशोक
वाटिका में राम का संदेश सुनने के बाद आशीर्वाद दिया था कि वे अजर-अमर
रहेंगे। उन्हें वरदान मिला है कि उन्हें ना कभी मौत आएगी और ना ही कभी
बुढ़ापा। इस कारण भगवान हनुमान को हमेशा अक्षय शक्ति का स्रोत माना गया है
क्योंकि वे चिरयुवा हैं।
कृपाचार्य :- महाभारत
के अनुसार कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के कुलगुरु थे। कृपाचार्य गौतम ऋषि
पुत्र हैं और इनकी बहन का नाम है कृपी। कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ
था। कृपाचार्य, अश्वथामा के मामा हैं। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य ने भी
पांडवों के विरुद्ध कौरवों का साथ दिया था।
अश्वथामा:- ग्रंथों में
भगवान शंकर के अनेक अवतारों का वर्णन भी मिलता है। उनमें से एक अवतार ऐसा
भी है, जो आज भी पृथ्वी पर अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा है। ये अवतार हैं
गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का। द्वापरयुग में जब कौरव व पांडवों
में युद्ध हुआ था, तब अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया था।
महाभारत के अनुसार अश्वत्थामा काल, क्रोध,
यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार थे। अश्वत्थामा अत्यंत शूरवीर,
प्रचंड क्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान
श्रीकृष्ण ने ही अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप
दिया था।
ऋषि मार्कण्डेय- भगवान
शिव के परम भक्त हैं ऋषि मार्कण्डेय। इन्होंने शिवजी को तप कर प्रसन्न किया
और महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि के कारण चिरंजीवी बन गए।
विभीषण:- राक्षस
राज रावण के छोटे भाई हैं विभीषण। विभीषण श्रीराम के अनन्य भक्त हैं। जब
रावण ने माता सीता हरण किया था, तब विभीषण ने रावण को श्रीराम से शत्रुता न
करने के लिए बहुत समझाया था। इस बात पर रावण ने विभीषण को लंका से निकाल
दिया था। विभीषण श्रीराम की सेवा में चले गए और रावण के अधर्म को मिटाने
में धर्म का साथ दिया। तब श्रीराम ने उन्हे अमरत्व का वरदान दिया था।
राजा बलि:- शास्त्रों के
अनुसार राजा बलि भक्त प्रहलाद के वंशज हैं। बलि ने भगवान विष्णु के वामन
अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया था। इसी कारण इन्हें महादानी के रूप में
जाना जाता है। राजा बलि से श्रीहरि अतिप्रसन्न थे। इसी वजह से श्री विष्णु
राजा बलि के द्वारपाल भी बन गए थे। नियम से बंधे होने की वजह से राजा बलि
को अमरता प्राप्त है।
ऋषि व्यास:- ऋषि भी अष्ट
चिरंजीवी हैँ और इन्होंने चारों वेद (ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और
यजुर्वेद) का सम्पादन किया था। साथ ही, इन्होंने ही सभी 18 पुराणों की रचना
भी की थी। महाभारत और श्रीमद्भागवत् गीता की रचना भी वेद व्यास द्वारा ही
की गई है। इन्हें वेद व्यास के नाम से भी जाना जाता है। वेद व्यास, ऋषि
पाराशर और सत्यवती के पुत्र थे। इनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था
और इनका रंग सांवला था। इसी कारण ये कृष्ण द्वैपायन कहलाए।
परशुराम:- भगवान
विष्णु के छठें अवतार हैं परशुराम। परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि और माता
रेणुका थीं। इनका जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की
तृतीया को हुआ था। इसलिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया को
अक्षय तृतीया कहा जाता है। परशुराम का जन्म समय सतयुग और त्रेता के संधिकाल
में माना जाता है। परशुराम का प्रारंभिक नाम राम था। राम ने शिवजी को
प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। इन्हें भी अमर होने का वरदान मिला
है।
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।
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