Friday, July 31, 2015

गुरु पू्र्णिमा के संदर्भ में..

मनुष्य और परमात्मा के बीच सेतु की तरह है गुरु। वह सिर्फ सेतु ही नहीं है बल्कि पथ को आलोकित करने वाले सूरज की तरह भी है। लेकिन सूरज का प्रकाश अगर जलाने लगे तो वह चांदनी की तरह शीतल भी है। गुरु के विविध रूप है, और कुल मिलाकर वह मनुष्य के भीतर सोए हुए परमात्मा की अभिव्यक्ति है।
जो अंधेरे से ज्ञान की और ले जाए वह गुरु है। अदि गुरु महादेव हैं। जीवन में गुरु का होना बहुत जरुरी है। जिन्होंने गुरु का चुनाव नहीं किया गया, उनके लिए निगुरा शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। निगुरा अर्थात जिसका कोई गुरु न हो। यह संबोधन एक अपशब्द समझा जाता है।
आत्मिक क्षेत्र में गुरु को माता पिता से भी श्रेष्ठ समझा जाता है। माता पिता के संबंध में मानते हैं कि वे ब्रह्मा विष्णु की भूमिका में होते हैं। उनके साथ गुरु शिव के रूप में माने जाते हैं। उन्हीं की तरह असंग और निरपेक्ष, अपने शिष्य को अविद्या के अंधकार से दूर रखने वाली, अनुग्रह करने वाली शक्ति की तरह। तभी तो गुरु को भगवन से ऊपर माना गया है दर्ज़ा मिला है।
आषाढ़ मास की पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा के साथ व्यास पूर्णिमा के रूप में भी विख्यात है। व्यास अर्थात ज्ञान को विस्तार देने वाली अभिभावक स्तर का व्यक्तित्व। अपने यहां शुरू में जिस तापस और सिद्ध स्तर की प्रतिभा ने मनुष्य को बेहतर और संस्कारी बनाने के लिए काम किया, उसे व्यास कहा गया। निजी स्तर पर ध्यान देने और विकास की कमान संभालने के कारण उस संबंध को गुरु भी कहा गया।
उन वेदव्यास की जन्म जयंती भी आषाढ़ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। व्यास अथवा गुरू पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर सत्संग स्वाध्याय का क्रम ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं।
जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, ऐसे ही गुरुचरण में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है। अविद्या अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने के कारण इस सान्निध्य संबंध को गुरु कहा जाता है।
गुरु वह है जो अज्ञान का निराकरण करता है अथवा गुरु वह है जो धर्म का मार्ग दिखाता है। गुरु के बारे में रहस्यदर्शी चेतना के स्तर तक पहुंचे मनीषियों का यह भी कहना है कि गुरु का अर्थ है- बुद्ध और कृष्ण जैसी मुक्त हो गई चेतनाएं।
गुरु का स्वरूप सचमुच सिद्ध और समर्थ श्रेणी में माना गया है। वे ठीकअअवतारों जैसे हैं, लेकिन शिष्य या साधक के साथ उससे थोड़े ही आगे खड़े हैं। गुरु साधक या शिष्य के पास मौजूद है।
कुछ थोड़ा सा नियति का विधान है, शरीर का कुछ ऋण बाकी है, उसके चुका दिए जाने की प्रतीक्षा है। वह गुरु एक अजीब विरोधाभास है, जो मनुष्य और चैतन्य के बीच खड़ा है, अपने साथ जुड़े साधकों के लिए ठीक उनके पास और उनसे बहुत दूर है।
उसके सान्निध्य का उपयोग कर लेना चाहिए। उससे दूर होने के बाद पछताने और परेशान होने के सिवा कुछ नहीं बचता। गुरु ने जो नियम बताए हैं, अनुशासन नियत किया है, उन नियमों और मर्यादाओं पर श्रद्धा से चलना शिष्य का कर्तव्य है।

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

Thursday, July 30, 2015

आपको भी जानना जरूरी है पूजन के 8 खास नियम... 


 
धार्मिक शास्त्रों एवं ज्योतिष के अनुसार पूजा का एक निश्चित समय होना चाहिए। हमें जीवन को सुखी और समृद्धिशाली बनाने के लिए देवी-देवताओं की पूजा करते समय कुछ खास बातें अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए। तभी हमारी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। 
आगे पढ़े पूजन करने के खास नियम क्या है? 

 आइए जानते हैं पूजन के खास नियम :-  


 










 

* ईशान कोण में मंदिर सर्वश्रेष्ठ होता है। 






 
 
 
 
* कम से कम देवी-देवता पूजा स्थान में स्थापित करें। 
 
* एकल रूप में स्थापित करें। 
 


 
 
 
 
 
 
* पूजन के कार्य के लिए- सवेरे 3 बजे से, दोपहर 12 बजे तक के पूर्व का समय निश्चित करें। 
 
 


 
 
 
 
 
 
* पूजा के समय हमारा मुंह ईशान, पूर्व या उत्तर में होना चाहिए, जिससे हमें सूर्य की ऊर्जा एवं चुंबकीय ऊर्जा मिल सके। इससे हमारा दिनभर शुभ रहे। 
 
 


 
 
 
 
 
 
 
* अपने मन को हमेशा पवित्र रखें।  दूसरों के प्रति सद्भावना रखें, तभी आपकी पूजा सात्विक होगी एवं ईश्वर आपको हजार गुना देगा। 
 

 


 






* मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ दिखाकर नहीं बैठना चाहिए।

 



 






* इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि कभी भी दीपक से दीपक नहीं जलाएं। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति दीपक से दीपक जलते हैं, वे रोगग्रस्त होते हैं। 

 




 







* कभी भी सूर्यदेव को शंख के जल से अर्घ्य अर्पित करना चाहिए।


इस तरह प्रतिदिन भगवान का पूजन-अर्चन करने से आपके समस्त दुख दूर होंगे। ईश्वर पर पूर्ण भरोसा रखने से ही आपके समस्त कार्य निर्विघ्न पूर्ण होंगे। 
 
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

जानिए गुरु पूर्णिमा व्रत का विधान


जानिए गुरु पूर्णिमा के दिन क्या करें : -



 
गुरु पूर्णिमा का पर्व अध्यात्म, संत-महागुरु और शिक्षकों के लिए समर्पित एक भारतीय त्योहार है। इस वर्ष यह महोत्सव 31 जुलाई 2015 को मनाया जाएगा। यह पर्व पारंपरिक रूप से गुरुओं के प्रति, संतों का सानिध्य प्राप्त करने, अच्छी शिक्षा ग्रहण तथा संस्कार करने, शिक्षकों को सम्मान देने और उनके प्रति आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। 

 

 



* प्रातः घर की सफाई, स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करके तैयार हो जाएं।
 
* घर के किसी पवित्र स्थान पर पटिए पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाना चाहिए।
 
* फिर हमें 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये' मंत्र से पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
 
* तत्पश्चात दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ना चाहिए।
 
* फिर व्यासजी, ब्रह्माजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम, मंत्र से पूजा का आवाहन करना चाहिए।
 
* अब अपने गुरु अथवा उनके चित्र की पूजा करके उन्हें यथा योग्य दक्षिणा देना चाहिए।

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

ईरान आर्यों का देश

 ईरान और भारत सांस्‍कृतिक दृष्टि से भी एक-दूसरे के बहुत निकट हैं। ईरान मूलत: आर्यान अर्थात् आर्यों का देश माना जाता है। ईरान का इतिहास बड़ा गौरवशाली है, जिसमें दारूस द ग्रेट (700 ई.पू.) जैसे सम्राट हुए जिन्‍होंने विश्‍व का पहला मानवाधिकार दस्‍तावेज जारी किया था। आज ईरान अंतरर्विरोधी स्थितियों में है। देश पर धर्म का गहरा प्रभाव है। यहाँ मध्‍य और उच्‍च वर्ग अत्‍यधिक संपन्‍न हो गया है। जिसका झुकाव पश्चिमी संस्‍‍कृति की ओर है।

मैं ईरान के लगभग दस शहरों में गया और इस बीच ईरान के चारों कोने देखने का मौका मिला। पूरे देश में ऐतिहासिक इमारतों को बहुत अच्‍छे ढंग से सुरक्षित रखा गया है। ईरान की स्‍थापत्‍य कला और विशेष रूप से ईरानी टाईल्‍स वर्क पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इसमें रंगों और आकारों का संयोजन बहुत ही कलात्‍मक ढंग से किया जाता है। 

पूरे ईरान में भारत और भारतवासियों के प्रति प्रेम और सम्‍मान का भाव है। हिन्‍दी फिल्‍में ईरान में बहुत लोकप्रिय हैं और शहरों में फटपाथो पर हिन्‍दी फिल्‍मों के सुपरस्‍टार्स के पोस्‍टर बिकते दिखाई देते हैं। 





ईरानी समाज अपने कवियों को बहुत महत्‍व देता है। प्रसिद्ध कवियों जैसे- हाफिज शिवाजी और फिरदौसी आदि के न केवल शानदार मकबरे बने हुए हैं, बल्कि संग्रहालय और शोध संस्‍थान भी बनाए गए हैं।

ईरान की आय का मुख्‍य साधन तेल है। जिसके कारण देश में संपन्‍नता दिखाई देती है। राजनीतिक स्‍तर पर ईरान विवादास्‍पद देश है, लेकिन उसके कई कारण हैं। ईरान को देखना और समझना प्राचीन और आधुनिक संस्‍कृतियों को देखने जैसा है।
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

दुनिया के 10 रहस्यमय ऐतिहासिक शहर, जानिए



जब धार्मिक स्थलों की बात होती है तो भारत की ओर बरबस ही नजर ठहर जाती है। निश्चित ही भारत धार्मिक स्थलों के मामले में अमीर है। लेकिन हम बात कर रहे हैं दुनिया के उन प्रमुख स्थलों की कि जो जितने प्रसिद्ध हैं उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण और विवादित भी।

धर्मों के इतिहास की बात करें तो आज से 13 हजार वर्ष पूर्व आर्यों ने वेदों के धर्म का प्रचार कर एक अलग आर्यावर्त की स्थापना की थी। इसकी सीमा अयोध्या-आगरा से लेकर हिन्दूकुश पर्वत और पारस (ईरान) तक फैली थी। इसमें उत्तर ईरान भी शामिल था। दूसरी ओर इसकी सीमा तिब्बत-कश्मीर से लेकर नर्मदा-कावेरी के किनारे तक फैली थी। हालांकि बाद में इस सीमा का ययाति के काल में विस्तार हुआ। ययाति और उसके पुत्रों की कहानी सभी धर्मों में मिल जाएगी।

हम आपको दुनिया के उन ऐतिहासिक और धार्मिक शहरों के बारे में बताएंगे, जो प्राचीनकाल में धर्म, राजनीति, समाज और व्यापार के केंद्र में रहे और जिनके लिए भयंकर युद्ध भी हुए। ये ऐसे शहर हैं जिनका रहस्य आज भी बरकरार है।

हालांकि उससे पहले इन शहरों का नाम भी जान लें। यह भी प्राचीन और ऐतिहासिक शहर रहे हैं:- स्पेन के लोर्का और केदिज, साइप्रस का लोर्नाका, अफगानिस्तान का बल्ख, इराक का तिर्कुक और अर्बिल, लेबनान का बेयरूत, सिडान और त्रिपोली, तुर्की का गाजियांतेप, बुल्गारिया का प्लोवदीव, मिश्र का फाइयान, ईरान का सुसा, सीरिया का दमश्क और एलेप्पो, फिलिस्तीन का जेरिका आदि भी प्राचीन शहरों की लिस्ट में शुमार हैं, लेकिन हम यहां इन्हें छोड़कर अन्य शहरों की बात कर रहे हैं।

पहला शहर...
काशी : वैसे तो भारत में कई प्राचीन शहर हैं, जैसे मथुरा, अयोध्या, द्वारिका, कांची, उज्जैन, रामेश्वरम, प्रयाग (इलाहाबाद), पुष्कर, नासिक, श्रावस्ती, पेशावर (पुरुषपुर), बामियान, सारनाथ, लुम्बिनी, राजगिर, कुशीनगर, त्रिपुरा, गोवा, महाबलीपुरम, कन्याकुमारी, श्रीनगर आदि। लेकिन काशी का स्थान इन सबमें सबसे ऊंचा है। काशी को वाराणसी और बनारस भी कहा जाता है। हालांकि प्राचीन भारत में 16 जनपद थे जिनके नाम इस प्रकार हैं- अवंतिका, अश्मक, कम्बोज, अंग, काशी, कुरु, कौशल, गांधार, चे‍दि, वज्जि, वत्स, पांचाल, मगध, मत्स्य, मल्ल और सुरसेन।

हिन्दू धर्म के सात पवित्र शहर

काशी की प्राचीनता : शहरों और नगरों में बसाहट के अब तक प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर एशिया का सबसे प्राचीन शहर वाराणसी को ही माना जाता है। इसमें लोगों के निवास के प्रमाण 3,000 साल से अधिक पुराने हैं। हालांकि कुछ विद्वान इसे करीब 5,000 साल पुराना मानते हैं। लेकिन हिन्दू धर्मग्रंथों में मिलने वाले उल्लेख के अनुसार यह और भी पुराना शहर है।

विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है। इसका मतलब यह कि 1800+2014= 3814 वर्ष पुरानी है काशी। वेद का वजूद इससे भी पुराना है। विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल की शुरुआत 4500 ई.पू. से मानी है या‍नी आज से 6500 वर्ष पूर्व। हालांकि हिन्दू इतिहास के अनुसार 10 हजार वर्ष पूर्व हुए कश्यप ऋषि के काल से ही काशी का अस्तित्व रहा है।

काशी : भारत के उत्तरप्रदेश में स्‍थित काशी नगर भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसा है। काशी संसार की सबसे पुरानी नगरी है। यह नगरी वर्तमान वाराणसी शहर में स्थित है।

पुराणों के अनुसार पहले यह भगवान विष्णु की पुरी थी, जहां श्रीहरि के आनंदाश्रु गिरे थे, वहां बिंदुसरोवर बन गया और प्रभु यहां बिंधुमाधव के नाम से प्रतिष्ठित हुए। महादेव को काशी इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने इस पावन पुरी को विष्णुजी से अपने नित्य आवास के लिए मांग लिया। तब से काशी उनका निवास स्थान बन गई। काशी में हिन्दुओं का पवित्र स्थान है 'काशी विश्वनाथ'।

भगवान बुद्ध और शंकराचार्य के अलावा रामानुज, वल्लभाचार्य, संत कबीर, गुरु नानक, तुलसीदास, चैतन्य महाप्रभु, रैदास आदि अनेक संत इस नगरी में आए। एक काल में यह हिन्दू धर्म का प्रमुख सत्संग और शास्त्रार्थ का स्थान बन गया था।

दो नदियों वरुणा और असि के मध्य बसा होने के कारण इसका नाम वाराणसी पड़ा। संस्कृत पढ़ने के लिए प्राचीनकाल से ही लोग वाराणसी आया करते थे। वाराणसी के घरानों की हिन्दुस्तानी संगीत में अपनी ही शैली है। सन् 1194 में शहाबुद्दीन गौरी ने इस नगर को लूटा और क्षति पहुंचाई। मुगलकाल में इसका नाम बदलकर मुहम्मदाबाद रखा गया। बाद में इसे अवध दरबार के प्रत्यक्ष नियंत्रण में रखा गया। 


दूसरा शहर...

 गांधार : गांधार प्राचीन भारत के 16 जनपदों में से एक था जिसके प्रमुख दो नगर थे- पुरुषपुर (पेशावर) और तक्षशिला। पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफगानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र। महाभारतकाल में यहां के राजा शकुनि के पिता सुबल थे। गांधार की होने के कारण धृतराष्ट्र की पत्नी को गांधारी कहा जाता था। प्राचीनकाल में अफगानिस्तान आर्यों का प्रमुख केंद्र था। हिन्दूकुश पर्वत ऐसा क्षेत्र था, जहां के दर्रे से निकलकर अन्य जातियों के लोग आए और उन्होंने अफगानिस्तान (आर्याना) और यहां के हिन्दुओं को बर्बाद कर दिया। बामियान, जलालाबाद, बगराम, काबुल और कंदहार यहां के प्रमुख प्राचीन स्थल थे, लेकिन इस्लाम के आगमन के बाद ये सभी नष्ट कर दिए गए।

तीसरा शहर...

तेहरान : तेहरान बहुत प्राचीन शहर है।  ईरान में इस्लाम से पहले पारसी धर्म था। आज जितने भी ईरानी हैं उन सभी के पूर्वज पारसी थे। उसी तरह जैसे कि अफगानिस्तानियों के पूर्वज हिन्दू थे। पारसी धर्म ईरान का राजधर्म हुआ करता था। पैगंबर जरथुष्ट्र ने इस धर्म की स्थापना की थी इसीलिए इसे जरथुष्ट्री धर्म भी कहते हैं। हालांकि ईरान का यज्द प्रांत सबसे प्राचीन रहा है।

ईरान आर्यों का देश:- असगर वजाहत

पारसियों का प्रमुख धार्मिक स्थल पश्चिमी ईरान के सिस्तान प्रांत की हमुन झील के पास खाजेह पर्वत पर था। इसकी खोज में यहां से 250 ईसापूर्व बने मंदिर के अवशेष मिले हैं। ईरान का प्राचीन नाम है पारस्य (फारस)। पारस्य देश पारसियों की मूल जन्मभूमि है। आतिश बेहराम ही नहीं, संपूर्ण ईरान ही यूरोप, मिस्री, अरब, रशिया, चीन, भारत आदि के सभी लोगों का मिलन स्थल था।

उल्लेखनीय है कि ईरान (या एरान) शब्द आर्य मूल के लोगों के लिए प्रयुक्त शब्द एर्यनम से आया है, जो असल में आर्यमन था।

ईरान पर इस्‍लामी विजय के पश्‍चात पारसियों को इस्लाम कबूल करना पड़ा तो कुछ पारसी धर्म के लोगों ने अपना गृहदेश छोड़कर भारत में शरण ली। कहा जाता है कि इस्लामिक अत्याचार से त्रस्त होकर पारसियों का पहला समूह लगभग 766 ईसा पूर्व दीव (दमण और दीव) पहुंचा। दीव से वह गुजरात में बस गया।

अब पूरी दुनिया में पारसियों की कुल आबादी संभवत: 1,00,000 से अधिक नहीं है। ईरान में कुछ हजार पारसियों को छोड़कर लगभग सभी पारसी अब भारत में ही रहते हैं और उनमें से भी अधिकांश अब मुंबई में हैं।
 

चौथा शहर...

बगदाद : इराक की दलजा नदी के किनारे बसा बगदाद शहर 4,000 वर्ष पुराना है। यह नगर 4,000 वर्ष पहले पश्चिमी यूरोप और सुदूर पूर्व के देशों के बीच समुद्री मार्ग के आविष्कार के पहले कारवां मार्ग का प्रसिद्ध केंद्र था तथा नदी के किनारे इसकी स्थिति व्यापारिक महत्व रखती थी।

मेसोपोटेमिया के उपजाऊ भाग में स्थित बगदाद वास्तव में शांति और समृद्धि का केंद्र था। इराक का इतिहास मेसोपोटेमिया की अनेक प्राचीन सभ्यताओं का इतिहास रहा है। यहा बाबूली और सुमेर नाम की प्राचीन सभ्यताएं थीं। मान्यता है कि यहीं के एक बाग में आदम और हव्वा रहते थे। इराकी प्राचीन सभ्यता और भारत की सिंधु सभ्यता में‍ मिले अवशेष से पता चलता है कि दोनों सभ्यताएं एक-दूसरे के संपर्क में थीं। यहां की दलजा? नदी के किनारे बसे बहुत से शहर बहुत प्राचीन हैं।
 
पांचवां शहर...

मोसुल शहर : मोसुल दलजा नदी के किनारा बसा यह उत्तरी इराक का एक प्राचीन शहर है। मोसुल में अरब, कुर्द, यजीदी, आशूरी (असीरियाई) और इराकी, तुर्कमान आदि लोगों का मिश्रण रहता है। मोसुल व्यापार का प्राचीन केंद्र था।

छठा शहर...

यरुशलम : भूमध्य सागर और मृत सागर के बीच इसराइल की सीमा पर बसा यरुशलम एक शानदार शहर है। शहर की सीमा के पास दुनिया का सबसे ज्यादा नमक वाला डेड-सी यानी मृत सागर है। कहते हैं यहां के पानी में इतना नमक है कि इसमें किसी भी प्रकार का जीवन नहीं पनप सकता और इसके पानी में मौजूद नमक के कारण इसमें कोई डूबता भी नहीं है।

विस्तार से जानने के लिए :
जानिए यहूदी धर्म को
जानिए यरुशलम को

मध्यपूर्व का यह प्राचीन नगर यहूदी, ईसाई और मुसलमान का संगम स्थल है। उक्त तीनों धर्म के लोगों के लिए इसका महत्व है इसीलिए यहां पर सभी अपना कब्जा बनाए रखना चाहते हैं। जेहाद और क्रूसेड के दौर में सलाउद्दीन और रिचर्ड ने इस शहर पर कब्जे के लिए बहुत सारी लड़ाइयां लड़ीं। ईसाई तीर्थयात्रियों की रक्षा के लिए इसी दौरान नाइट टेम्पलर्स का गठन भी किया गया था।

इसराइल का एक हिस्सा है गाजा पट्टी और रामल्लाह। जहां फिलिस्तीनी मुस्लिम लोग रहते हैं और उन्होंने इसराइल से अलग होने के लिए विद्रोह छेड़ रखा है। ये लोग यरुशलम को इसराइल के कब्जे से मुक्त कराना चाहते हैं। अंतत: इस शहर के बारे में जितना लिखा जाए कम है। काबा, काशी, मथुरा, अयोध्या, ग्रीस, बाली, श्रीनगर, जाफना, रोम, कंधहार आदि प्राचीन शहरों की तरह ही इस शहर का इतिहास भी बहुत महत्व रखता है।

हिब्रू में लिखी बाइबिल में इस शहर का नाम 700 बार आता है। यहूदी और ईसाई मानते हैं कि यही धरती का केंद्र है। राजा दाऊद और सुलेमान के बाद इस स्थान पर बेबीलोनियों तथा ईरानियों का कब्जा रहा फिर इस्लाम के उदय के बाद बहुत काल तक मुसलमानों ने यहां पर राज्य किया। इस दौरान यहूदियों को इस क्षेत्र से कई दफे खदेड़ दिया गया।

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इसराइल फिर से यहूदी राष्ट्र बन गया तो यरुशलम को उसकी राजधानी बनाया गया और दुनियाभर के यहूदियों को पुन: यहां बसाया गया। यहूदी दुनिया में कहीं भी हों, यरुशलम की तरफ मुंह करके ही उपासना करते हैं।

पवित्र परिसर : किलेनुमा चहारदीवारी से घिरे पवित्र परिसर में यहूदी प्रार्थना के लिए इकट्ठे होते हैं। इस परिसर की दीवार बहुत ही प्राचीन और भव्य है। यह पवित्र परिसर ओल्ड सिटी का हिस्सा है। पहाड़ी पर से इस परिसर की भव्यता देखते ही बनती है। इस परिसर के ऊपरी हिस्से में तीनों धर्मों के पवित्र स्थल है। उक्त पवित्र स्थल के बीच भी एक परिसर है।

यरुशलम में लगभग 1204 सिनेगॉग, 158 गिरजें, 73 मस्जिदें, बहुत-सी प्राचीन कब्रें, 2 म्‍यूजियम और एक अभयारण्य है। इसके अलावा भी पुराने और नए शहर में देखने के लिए बहुत से दर्शनीय स्थल हैं। यरुशलम में जो भी धार्मिक स्थल हैं, वे सभी एक बहुत बड़ी-सी चौकोर ‍दीवार के आसपास और पहाड़ पर स्थित है।

दीवार के पास तीनों ही धर्म के स्थल हैं। यहां एक प्राचीन पर्वत है जिसका नाम जैतून है। इस पर्वत से यरुशलम का खूबसूरत नजारा देखा जा सकता है। इस पर्वत की ढलानों पर बहुत-सी प्राचीन कब्रें हैं। यरुशलम चारों तरफ से पर्वतों और घाटियों वाला इलाका नजर आता है।
 

छठा शहर...

 मक्का : मक्का सऊदी अरब के हेजाज प्रांत की राजधानी एवं 'पैगम्बर मुहम्मद साहब' का जन्म स्थान होने के कारण मुस्लिम जनता का विश्वविख्यात तीर्थ काबा है। मक्का प्राचीन अरब संस्कृति का केंद्र था। अरब में यहूदी धर्म की शुरुआत पैगंबर अब्राहम (अबराहम या इब्राहीम) से मानी जाती है, जो ईसा से 2000 वर्ष पूर्व हुए थे। उन्होंने ही सबसे पहले काबा को फिर से निर्मित किया था।

पैगंबर अलै. अब्राहम के पहले बेटे का नाम हजरत इसहाक अलै. और दूसरे का नाम हजरत इस्माइल अलै. था। दोनों के पिता एक थे, किंतु मां अलग-अलग थीं। हजरत इसहाक की मां का नाम सराह था और हजरत इस्माइल की मां हाजरा थीं।

पैगंबर अलै. अब्राहम के पोते का नाम हजरत अलै. याकूब था। याकूब का ही दूसरा नाम इसराइल था। याकूब ने ही यहूदियों की 12 जातियों को मिलाकर एक सम्मिलित राष्ट्र इसराइल बनाया था। मक्का में हजरत इस्माइल की कब्र है और सीरिया में हजरत इब्राहीम की।

सातवां शहर...

 ईजिप्ट : मिश्र बहुत ही प्राचीन देश है। यहां के पिरामिडों की प्रसिद्धि और प्राचीनता के बारे में सभी जानते हैं। प्राचीन मिश्र नील नदी के किनारे बसा है। यह उत्तर में भूमध्य सागर, उत्तर पूर्व में गाजा पट्टी और इसराइल, पूर्व में लाल सागर, पश्चिम में लीबिया एवं दक्षिण में सूडान से घिरा हुआ है।

यहां का शहर ईजिप्ट प्राचीन सभ्यताओं और अफ्रीका, अरब, रोमन आदि लोगों का मिलन स्थल है। यह प्राचीन विश्‍व का प्रमुख व्यापारिक और धार्मिक केंद्र रहा है। मिश्र के भारत से गहरे संबंध रहे हैं।

यहां पर फराओं राजाओं का बहुत काल तक शासन रहा है। माना जाता है कि इससे पहले यादवों के गजपत, भूपद, अधिपद नाम के तीन भाइयों का राज था। गजपद के अपने भाइयों से झगड़े के चलते उसने मिश्र छोड़कर अफगानिस्तान के पास एक गजपद नगर बसाया था। गजपद बहुत शक्तिशाली था।

फराओं के राज में हजरत मूसा थे। हजरत मूसा ही यहूदी जाति के प्रमुख व्यवस्थाकार हैं। यहूदियों के कुल 12 कबिले थे, जिसमें से एक कबिला कश्मीर में आकर बस गया था। मूसा को ही पहले से चली आ रही एक परंपरा को स्थापित करने के कारण यहूदी धर्म का संस्थापक माना जाता है।

मूसा मिस्र के फराओ के जमाने में हुए थे। ऐसा माना जाता है कि उनको उनकी मां ने नील नदी में बहा दिया था। उनको फिर फराओ की पत्नी ने पाला था। बड़े होकर वे मिस्री राजकुमार बने। बाद में मूसा को मालूम हुआ कि वे तो यहूदी हैं और उनका यहूदी राष्ट्र अत्याचार सह रहा है और यहां यहूदी गुलाम है, तो उन्होंने यहूदियों को इकट्ठा कर उनमें नई जागृती लाईं।

मूसा को ईश्वर द्वारा दस आदेश मिले थे। मूसा का एक पहाड़ पर परमेश्वर से साक्षात्कार हुआ और परमेश्वर की मदद से उन्होंने फराओ को हरा कर यहूदियों को आजाद कराया और मिस्र से पुन: उनकी भूमि इसराइल में यहूदियों को पहुंचाया।

इसके बाद मूसा ने इसराइल में इसराइलियों को ईश्वर द्वारा मिले 'दस आदेश' दिए जो आज भी यहूदी धर्म के प्रमुख सैद्धांतिक है। मिश्र का इतिहास बहुत ही विस्तृत है यह और किसी लेख में लिखेंगे।

आठवां शहर...

: इटली की राजधानी रोम प्राचीनकाल से ही धर्म, समाज और व्यापार का केंद्र रहा है। महान सभ्यताओं का यह शहर इतिहास में बहुत ही महत्व रखता है। मिश्र और मक्का पर अधिकार की प्रतियोगिता के चलते रोम के राजा को एक बार महान सम्राट विक्रमादित्य के पकड़कर उज्जैन में प्रजा के सामने घुमाया था।

माना जाता है कि नकुल के भाई सहदेव ने रोम, अंतियोकस तथा यवनपुर (मिस्र देश में स्थित एलेग्जेंड्रिया) नगरों को अपनी दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में जीत कर इन पर कर लगाया था। रोम अवश्य ही रोमा का रूपान्तर है। रोम-निवासियों का वर्णन महाभारत में युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में उपहार लेकर आने वाले विदेशियों के रूप में भी मिलता है।
 
नौंवा शहर..

: ईटली और भारत की तरह यूनान एक प्राचीन देश है। इसे ग्रीक भी कहा जाता है। यहां हजारों महान दार्शनिक और वैज्ञानिक हुए हैं। यूनान पर भारतीय धर्म और संस्कृति का गहरा असर था और रोमन साम्राज्य पर प्राचीन यूनान का गहरा असर था। अरस्तू, प्लूटो, सुकरात, डायोनीस, होमर, आर्कमेडिस आदि यूनान के प्रसिद्ध नाम है।

यूनान का प्राचीन शहर है एथेंस। यह विश्व के प्राचीनतम शहरों में शुमार होता है। इसका इतिहास तीन हजार वर्ष से भी पुराना है।

प्राचीन यूनान में कुछ स्थलों के नाम 'शिव' से संबन्धित पाए जाते हैं। वहां 'त्रिशूल' उसी रूप का एक भूखंड है, वहीं 'सलोनिका' नगर है। कहते हैं, यहां शिव-पूजक रहते थे, जो कभी एशिया से यूरोप जाने वाले राजमार्ग में व्यापारियों से कर वसूलते थे। कभी अरब प्रायद्वीप से यूनान तक शिव के उपासक निवास करते थे। शिव सर्वसाधारण के आराध्य देवता सहज रूप में थे। इसके स्मृति चिन्ह सारे क्षेत्र में फैले हैं।
 
10वां शहर...

प्राचीन लोनान नगर : चीन एक महान देश है। हिन्दू पुराणों अनुसार इसके समुद्री हिस्से को हरिवर्ष कहा जाता था। भारत की तरह चीन में कई प्राचीन शहर है उनमें से एक हुनान प्रांत का फंगक्वांग शहर है। चीन में हान और जिन राजवंश का शासन ज्यादा रहा है। जहां तक सवाल प्राचीन शहर का है तो चीन के जियांगसु राज्य यांग्त्से नदी के पास बसी राजधानी नानजिंग भी चीन के इतिहास और संस्कृति में एक बहुत महत्वपूर्ण किरदार निभाता रहा है। इसके अलावा लीच्यांग का प्राचीन नगर दक्षिण पश्चिम चीन के युन्नान प्रांत की लीच्यांग नासी जातीय स्वायत्त काऊंटी में स्थित है।

प्राचीन लोनान नगर सिन्चांग प्रांत के दक्षिणी भाग में स्थित लोबुपो झील के उत्तर पश्चिम छोर पर आबाद था, जो कभी रेशम मार्ग के मुख्य स्थान पर रहा था। आज यह नगर रेगिस्तान, यातान भू- स्थिति तथा कड़ी नमक परत से दबा हुआ है, जो एक निर्जन, बंजर और खतरनाक स्थल बन गया है। लोलान नगर के प्राचीन कब्र की खुदाई में आज से 3800 वर्ष पहले का सुखा हुआ मानव शव प्राप्त हुआ है, जो लोलान की सुन्दरी के नाम से मशहूर है । लोलान नगर में मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े, कंबल के टुकड़े, प्राचीन कांस्य सिक्के , प्राचीन शस्त्र तथा रेशमी कपड़े के टुकड़े उपलब्ध हो गए हैं।

सिन्चांग प्रांत वेवूर, कजाख, ह्वी, उज्जबेक, कर्गजी, ताजिक, तातार, तिब्बती, हान, च्येन अदि जातियों का यह मिलन स्थाल था। व्यापार करने आए अरब के लोगों ने यहां पर इस्लाम का प्रचार किया और अब यह मुस्लिम बहुल प्रांत बन चुका है।

 


 
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।