बहुत कम लोगो को पता है की # खेतड़ी , # झुंझुनू के
# महाराज # अजीत सिंह जीशेखावत ने "स्वामी विवेकानंद
"जी को अपने खर्चे पर #USA में हुयी धर्म संसद के लिए
# शिकागो भेजा था। स्वामी विवेकानंद जी ने भारत
का मानं बढ़ाया।
1891 में स्वामी विवेकानंद का # राजस्थान आना हुआ। उस
दौरान राजपुताना ही ऐसा प्रदेश था, जहां उन्होंने व्यापक
स्तर पर बौद्धिक चर्चाएं शुरू कीं। उस समय तत्कालीन
राजा मंगल सिंह मूर्तिपूजा के विरोधी थे। स्वामी जी ने
ही राजा को अध्यात्म की सही परिभाषा बताई। अलवर से
स्वामी # जयपुर गए और वहां से #माउंट आबू।
वहां उनकी मुलाकात मुंशी फैज अली से हुई।
मुंशी स्वामी जी से मिलकर बेहद प्रभावित हुए। वे समझ गए
थे कि स्वामी जी का व्यक्तित्व अद्भुत है। उस दौरान आबू
पर्वत पर राजपूत राजाओं की कोठियां हुआ करती थीं।
मुंशी उन्हें खेतड़ी के राजा अजित सिंह के पास ले गए।
अजीत सिंह खुद धार्मिक इंसान थे। वे स्वामी जी से मिलकर
खुश हुए। अजीत सिंह उन्हें अपने साथ खेतड़ी ले गए। इस
बीच काफी वक्त स्वामी जी ने खेतड़ी में ही गुजारा।
1893 में अमेरिका के शिकागो में धर्म संसद होने वाली थी।
स्वामी जी के अनुयायी चाहते थे कि वे इसमें जाएं और हिंदू
धर्म व वेदांत के बारे में अपना पक्ष रखें। अजित सिंह ने
स्वामी जी से अनुरोध किया कि आप अमेरिका खेतड़ी दरबार
के गुरु के रूप में जाएंगे। स्वामी जी का # नाम उस समय तक
# विविदिशानंद था। यह नाम उ'चारण में मुश्किल होने के
कारण अजित सिंह ने ही उन्हें विवेकानंद नाम रखने
का निवेदन किया, वहीं अजित सिंह ने
स्वामी जी की अमेरिका यात्रा का बंदोबस्त भी करवाया।
उस दौरान खेतड़ी दरबार की ओर से स्वामी जी की मां व
भाई के लिए 100 रुपए की धनराशि भी कोलकाता भिजवाई
जाती थी,जो स्वामी जी के देहावसान के बाद
भी जारी रही।
शेखावत अजीत सिंह जी ऑफ़ khetri is known for
providing financial support to Vivekananda, and
encouraging him to speak at the Parliament of the
World's Religions at Chicago in 1893.
From 1891 Ajit Singh started sending monthly
stipend of INR 100 to Vivekanada's family in
Kolkata. On 1 December 1898 Vivekananda wrote a
letter to Ajit Singh from Belur in which he
requested him to make the donation permanent so
that even after Vivekananda's death his mother
(Bhuvaneswari Devi 1841—1911) gets the financial
assistance on regular basis. The letter archive of
Khetri reveals he had frequent communication with
the family members of विवेकानन्द.
नोट :- भारत के उत्थान में जितना सहयोग हम ने
दिया उतना तो कोई सोच भी नहीं सकता। भारत को अखंड
बनाने के लिए अपने राज त्याग दिए।
अब राजपूत एक हो रहे हैं ये ख़ुशी की बात हैं। और अन्य
जातिया भी पूरा सहयोग दे रही हैं
क्यों की उनको भी पता हैं के राजपूत देश और धर्म
की रक्षा करने में समर्थ हैं।
अगर आप अपने स्वर्णिम इतिहास को लोगो तक
पहुँचाना चाहते हैं तो हर इतिहासिक पोस्ट को शेयर
कीजिये।
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।
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