भारतीय संस्कृति की धर्म प्रधानता युगों-युगों से प्रसिद्ध है। उपासना में कहा गया है- 'कलौ चण्ड विनायकौ' अर्थात कलयुग में गणेशजी व दुर्गाजी की उपासना शीघ्र फलदायी है, क्योंकि गणेशजी विघ्न दूर कर कार्य को पूरा करवाते हैं व दुर्गाजी शक्ति प्रदान करती है जिससे कि उत्साह, कामना व लक्ष्य की प्राप्ति होती है।
मां दुर्गा की उपासना का आषाढ़ मास का 'गुप्त नवरात्रि पर्व' इस बार 17 जुलाई से 25 जुलाई तक मनाया जाएगा। वर्ष की उपासना के लिए नवरात्रि को ही माना गया है, जैसे कि 'शरद् काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी।' किंतु उपासकों की इच्छा बढ़ी तो उन्होंने वर्ष चक्र में 2 नवरात्रि की व्यवस्था की। प्रथम संवत् प्रारंभ होते ही बसंत नवरात्रि व दूसरा शरद नवरात्रि, जो कि आपस में 6 माह की दूरी पर है।
अब भक्तों ने 2 गुप्त नवरात्रि की व्यवस्था की जिसमें कि आषाढ़ सुदी प्रतिपदा (एकम) से नवमी तक दूसरा पौष सुदी प्रतिप्रदा (एकम) से नवमी तक। ये दोनों नवरात्रि युक्त संगत है, क्योंकि ये दोनों नवरात्रि अयन के पूर्व संख्या संक्रांति के हैं।
अब भक्तों ने 2 गुप्त नवरात्रि की व्यवस्था की जिसमें कि आषाढ़ सुदी प्रतिपदा (एकम) से नवमी तक दूसरा पौष सुदी प्रतिप्रदा (एकम) से नवमी तक। ये दोनों नवरात्रि युक्त संगत है, क्योंकि ये दोनों नवरात्रि अयन के पूर्व संख्या संक्रांति के हैं।
यही नवरात्रि अपने आगामी नवरात्रि की संक्रांति के साथ-साथ मित्रता वाले भी हैं, जैसे आषाढ़ संक्रांति मिथुन व आश्विन की कन्या संक्रांति का स्वामी बुध हुआ और पौष संक्रांति धनु और चैत्र संक्रांति मीन का स्वामी गुरु है।
अत: ये चारों नवरात्रि वर्ष में 3-3 माह की दूरी पर हैं। कुछ विद्वान पौष माह को अशुद्ध माह नहीं गिनते हैं और माघ में नवरात्रि की कल्पना करते हैं। किंतु चैत्र की तरह ही पौष का महीना भी विधि व निषेध वाला है अत: प्रत्यक्ष चैत्र गुप्त आषाढ़ प्रत्यक्ष आश्विन गुप्त पौष माघ में श्री दुर्गा माता की उपासना करने से हर व्यक्ति को मन इच्छित फल प्राप्त होते हैं।
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।
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