बंगलूरु के स्पिरिचुअल साइंस रिसर्च फाउंडेशन मौत और पुनर्जन्म के बीच के दिनों समय पर भी रिसर्च हो रही है। शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने इस बात को माना कि मरने के बाद इंसान का पुनर्जन्म होता है।
वहीं, अभी तक की शोध के मुताबिक अगर 100 लोगों की मौत होती है तो उनमें से करीब 85 लोग तुरंत (मतलब 35-44 हफ्तेे में) जन्म ले लेते हैं।
वहीं, 15 फीसदी लोगों में से 11 फीसदी लोगों को 1-3 साल के भीतर नया जन्म मिल जाता है। लेकिन 4 फीसदी आत्माओं को लंबा इंतजार करना पड़ता है और ये इंतजार 400-1000 साल या फिर हजारों साल का भी हो सकता है।
रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक ज्यादातर आत्माएं सामान्य शरीरधारी होती हैं और उन्हें नया जन्म लेने में ना ही इंतजार करना पड़ता है और ना ही कोई ज्यादा कठिनाई होती है।
लेकिन विलक्षण और प्रतिभाशाली व्यक्तियों की आत्माओं को नए गर्भ के लिए रुकना पड़ता है। क्योंकि विलक्षण या आसाधारण आत्माएं दोबारा उसी तरह के व्यक्तियों को माध्यम बनाती है, जिनमें विलक्षण या आसाधारण गुण हों।
रिसर्च की रिपोर्ट में पिछले 100 साल में जन्में व्यक्तियों के जीवन, स्वभाव, परिवेश और माता-पिता की स्थिति का ब्यौरा जुटाया गया। करीब डेढ़ हजार दंपतियों के जुटाए इस ब्यौरे में करीब सभी वर्गों के साधारण लोगों के अलावा अपराधिक और साधु स्वभाव के व्यक्तियों पर भी अध्ययन किया गया है।
रिसर्च फाउंडेशन के अध्ययन में मैडम ब्लैवट्स्की और लेड बीटर की स्थापित की हुई थियोसोफिकल सोसाइटी ने भी मदद की। रिसर्च के लिए करीब 800 लोगों को पिछले जन्म की स्मृतियों में ले जाया गया।
रिसर्ज के दौरान पता चला कि उनमें से 2 फीसदी लोग या तो खूंखार अपराधी थे या संत-महात्मा। इन्हें नया जन्म लेने के लिए रुकना पड़ता है। इस तरह के व्यक्तियों को नए शरीर के माध्यम से नया जन्म पाने के पहले जैसी स्थिति और वैसे ही माता- पिता चाहिए होते हैं।
उहाहरण के तौर पर देखा जाए तो जहां राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, नानक जैसे अवतारी या संत-महात्मा व्यक्तियों की आत्माओं को जन्म लेने में काफी वक्त का इंतजार करना पड़ता है। वहीं, रावण, कंस, अंगुलिमाल, चंगेज खान, औरंगजेब जैसे क्रूर व्यक्ति की आत्माओं को जन्म लेने में काफी वक्त का इंतजार करना पड़ता है।
एक और उदाहरण ओशो का भी है। उन्होंने भी एक बार अपने प्रवचन में कहा था कि उनका पिछला जन्म 700 साल पहले हुआ था। उनके मुताबिक 700 साल पहले वे कोई अनुष्ठान कर रहे थे, अनुष्ठान पूरा होने के 3 दिन पहले उनकी हत्या हो गई थी और जन्म के लिए उनकी आत्मा उपयुक्त गर्भ तलाशती रही। उनका कहना था कि अनुष्ठान के 3 दिन पूरे करने के लिए उन्हें इस जीवन में 21 साल तक रुकना पड़ा।
अध्ययन के दौरान ये भी पता चला है कि आत्मा के शरीर छोड़ते वक्त ही नया जन्म नहीं मिल जाता तो कर्मों के अनुसार अलग-अलग लोकों में समय बीताना होता है। सभी लोकों में कई बार आत्माओं को अपनी गलतियां सुधारने का अवसर मिलता है
वहीं, अभी तक की शोध के मुताबिक अगर 100 लोगों की मौत होती है तो उनमें से करीब 85 लोग तुरंत (मतलब 35-44 हफ्तेे में) जन्म ले लेते हैं।
वहीं, 15 फीसदी लोगों में से 11 फीसदी लोगों को 1-3 साल के भीतर नया जन्म मिल जाता है। लेकिन 4 फीसदी आत्माओं को लंबा इंतजार करना पड़ता है और ये इंतजार 400-1000 साल या फिर हजारों साल का भी हो सकता है।
रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक ज्यादातर आत्माएं सामान्य शरीरधारी होती हैं और उन्हें नया जन्म लेने में ना ही इंतजार करना पड़ता है और ना ही कोई ज्यादा कठिनाई होती है।
लेकिन विलक्षण और प्रतिभाशाली व्यक्तियों की आत्माओं को नए गर्भ के लिए रुकना पड़ता है। क्योंकि विलक्षण या आसाधारण आत्माएं दोबारा उसी तरह के व्यक्तियों को माध्यम बनाती है, जिनमें विलक्षण या आसाधारण गुण हों।
रिसर्च की रिपोर्ट में पिछले 100 साल में जन्में व्यक्तियों के जीवन, स्वभाव, परिवेश और माता-पिता की स्थिति का ब्यौरा जुटाया गया। करीब डेढ़ हजार दंपतियों के जुटाए इस ब्यौरे में करीब सभी वर्गों के साधारण लोगों के अलावा अपराधिक और साधु स्वभाव के व्यक्तियों पर भी अध्ययन किया गया है।
रिसर्च फाउंडेशन के अध्ययन में मैडम ब्लैवट्स्की और लेड बीटर की स्थापित की हुई थियोसोफिकल सोसाइटी ने भी मदद की। रिसर्च के लिए करीब 800 लोगों को पिछले जन्म की स्मृतियों में ले जाया गया।
रिसर्ज के दौरान पता चला कि उनमें से 2 फीसदी लोग या तो खूंखार अपराधी थे या संत-महात्मा। इन्हें नया जन्म लेने के लिए रुकना पड़ता है। इस तरह के व्यक्तियों को नए शरीर के माध्यम से नया जन्म पाने के पहले जैसी स्थिति और वैसे ही माता- पिता चाहिए होते हैं।
उहाहरण के तौर पर देखा जाए तो जहां राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, नानक जैसे अवतारी या संत-महात्मा व्यक्तियों की आत्माओं को जन्म लेने में काफी वक्त का इंतजार करना पड़ता है। वहीं, रावण, कंस, अंगुलिमाल, चंगेज खान, औरंगजेब जैसे क्रूर व्यक्ति की आत्माओं को जन्म लेने में काफी वक्त का इंतजार करना पड़ता है।
एक और उदाहरण ओशो का भी है। उन्होंने भी एक बार अपने प्रवचन में कहा था कि उनका पिछला जन्म 700 साल पहले हुआ था। उनके मुताबिक 700 साल पहले वे कोई अनुष्ठान कर रहे थे, अनुष्ठान पूरा होने के 3 दिन पहले उनकी हत्या हो गई थी और जन्म के लिए उनकी आत्मा उपयुक्त गर्भ तलाशती रही। उनका कहना था कि अनुष्ठान के 3 दिन पूरे करने के लिए उन्हें इस जीवन में 21 साल तक रुकना पड़ा।
अध्ययन के दौरान ये भी पता चला है कि आत्मा के शरीर छोड़ते वक्त ही नया जन्म नहीं मिल जाता तो कर्मों के अनुसार अलग-अलग लोकों में समय बीताना होता है। सभी लोकों में कई बार आत्माओं को अपनी गलतियां सुधारने का अवसर मिलता है
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।
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