वेद केवल ज्ञान का ही नहीं अपितु विज्ञान का भी खजाना है। नहीं मानते हैं ना आप तो आइये हम अपने चारों वेदों के बारे में जानें कि किस वेद में किस विज्ञान के बारे में बताया गया है या यूं कहें कि किस वेद से हमने ज्ञान की कौन सी धारा का सृजन किया है। किस क्षेत्र में इससे ज्ञान अर्जित कर हमने कौन-कौन से नए-नए आविष्कार किए हैं। इससे पहले आइए हम वेदों के बारे में जान लें। ‘वेद’ शब्द संस्कृत भाषा के विद् धातु से बना है, इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ ज्ञान के ग्रंथ हैं।
वेदों को जानने वाले स्वामी दयानन्द सरस्वती के विचार में ज्ञान, कर्म, उपासना और विज्ञान वेदों के विषय हैं। जीव, ईश्वर, प्रकृति इन तीन अनादि नित्य सत्ताओं का निज स्वरूप का ज्ञान केवल वेद से ही उपलब्ध होता है।
यूरोप के कई विद्वानों ने संस्कृत और आर्यभाषाओं और जाति के बारे में जानने के लिए वेदों का अध्ययान किया है। मैक्समूलर जैसे विद्वानों ने इनके अध्ययन के बाद संस्कृत भाषा और यूरोपीय शब्दों और व्याकरण का विश्लेषण किया था। इनके अनुसार लैटिन, ग्रीक, जर्मन आदि सहित कई यूरोपीय, फ़ारसी और संस्कृत का मूल एक रहा होगा। इस सिद्धांत के प्रमाण लिए कई शब्दों का उल्लेख किया जाता है
वेद प्राचीन भारत में रचित साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में सनातन धर्म के मूल और सब से प्राचीन ग्रन्थ हैं जिन्हें ईश्वर की वाणी के समान समझा जाता है। वेदों को हमेशा ईश्वर कृत या ईश्वर रचित माना जाता है तथा भगवान ब्रह्मा को इनका रचियेता माना जाता है। इन चारों वेदों को इन्हें श्रुति भी कहते हैं जिसका अर्थ है ‘सुना हुआ’। अन्य हिन्दू ग्रंथों को स्मृति कहते हैं यानि मनुष्यों की बुद्धि या स्मृति के आधार पर इनका सृजन किया गया है।
किस वेद में क्या तथ्य समाहित हैं ??
हमारे पास मूल रूप से चार वेद हैं जिनकी अपनी-अपनी प्रकृति है, अपने-अपने तरह के विषय इनमें निहित हैं। सबसे पहला वेद ऋग्वेद है इसमें देवताओं का आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं। इसे ही हम सर्वप्रथम वेद मानते है। दूसरा वेद सामवेद है इसमें यज्ञ में गाने के लिये संगीतमय मन्त्र हैं यानि इस वेद में गीत-संगीत लय-ताल रस-छंद आदि के बारे में ज्ञान दिया गया है। तीसरा वेद यजुर्वेद यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य मन्त्र के रूप में है। यानि यह क्षत्रियों में सभी तरह के संस्कार देने और युद्ध के क्षेत्र में सभी तरह के ज्ञान के लिए जरूरी है। चौथा और अंतिम वेद अथर्ववेद है इसमें जादू, चमत्कार, आरोग्य, यज्ञ के लिये मन्त्र हैं। जो मूलतः व्यापारियों के लिए उपयोगी है।
प्राचीन काल से ही हमारे देश में वेदों के अध्ययन और व्याख्या की परम्परा रही है। वेदों को जानने वाले स्वामी दयानन्द सरस्वती के विचार में ज्ञान, कर्म, उपासना और विज्ञान वेदों के विषय हैं। जीव, ईश्वर, प्रकृति इन तीन अनादि नित्य सत्ताओं का निज स्वरूप का ज्ञान केवल वेद से ही उपलब्ध होता है।
न केवल धार्मिक किन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से भी वेदों का असाधारण महत्त्व है। वैदिक युग के आर्यों की संस्कृति और सभ्यता जानने का एक साधन है। मानव-जाति और विशेषतः आर्यों ने अपने उदय के समय में धर्म और समाज का किस प्रकार विकास किया इसका ज्ञान वेदों से मिलता है।
यूरोप के कई विद्वानों ने संस्कृत और आर्यभाषाओं और जाति के बारे में जानने के लिए वेदों का अध्ययान किया है। मैक्समूलर जैसे विद्वानों ने इनके अध्ययन के बाद संस्कृत भाषा और यूरोपीय शब्दों और व्याकरण का विश्लेषण किया था। इनके अनुसार लैटिन, ग्रीक, जर्मन आदि सहित कई यूरोपीय, फ़ारसी और संस्कृत का मूल एक रहा होगा। इस सिद्धांत के प्रमाण लिए कई शब्दों का उल्लेख किया जाता रहा है।
वेदों से सीखकर कौन-कौन से हुए आविष्कार ??
हमारे वेदों को तीन भागों में बांटा जा सकता है, ये मूलतः इस प्रकार हैं- ज्ञानकाण्ड, उपासनाकाण्ड और कर्मकाण्ड।
यानि इन चार वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद की भी अनेक शाखाएं बतायी गयी हैं। जैसे ऋग्वेद की 21, यजुर्वेद की 101, सामवेद की 1001, अर्थववेद की 91 इस प्रकार 1131 शाखाएं हैं परन्तु 12 शाखाएं ही मूल ग्रन्थों में उपलब्ध हैं। वेद की प्रत्येक शाखा की वैदिक शब्द राशि चार भागों में उपलब्ध है।
ऋग्वेद
ऋग्वेद को चारों वेदों में सबसे प्राचीन माना जाता है। इसको दो प्रकार से बांटा गया है। प्रथम प्रकार में इसे 10 मण्डलों में विभाजित किया गया है। दूसरे प्रकार से ऋग्वेद में 64 अध्याय हैं। आठ-आठ अध्यायों को मिलाकर एक अष्टक बनाया गया है। ऐसे कुल आठ अष्टक हैं। फिर प्रत्येक अध्याय को वर्गों में विभाजित किया गया है। वर्गों की संख्या भिन्न-भिन्न अध्यायों में भिन्न-भिन्न हैं। कुल वर्गों की संख्या 2024 है। प्रत्येक वर्ग में कुछ मंत्र होते हैं। सृष्टि के अनेक रहस्यों का इनमें उद्घाटन किया गया है। पहले इसकी 21 शाखाएं थीं परन्तु वर्तमान में इसकी शाकल शाखा का ही प्रचार है।
यजुर्वेद
इसमें गद्य और पद्य दोनों ही हैं। इसमें यज्ञ कर्म की प्रधानता है। इस वेद के दो भेद हैं – कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद। कृष्ण यजुर्वेद का संकलन महर्षि वेद व्यास ने किया है। इसका दूसरा नाम तैत्तिरीय संहिता भी है। इसमें मंत्र और ब्राह्मण भाग मिश्रित हैं। शुक्ल यजुर्वेद – इसे सूर्य ने याज्ञवल्क्य को उपदेश के रूप में दिया था।
सामवेद
यह गानेवाला ग्रन्थ है। इसमें गान विद्या का भण्डार है, यह भारतीय संगीत का मूल है। ऋचाओं के गायन को ही साम कहते हैं। इसमें अधिकतर मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं। इसे उपासना का प्रवर्तक भी कहा जा सकता है।
अथर्ववेद
इसमें गणित, विज्ञान, आयुर्वेद, समाज शास्त्र, कृषि विज्ञान, आदि अनेक विषय वर्णित हैं। कुछ लोग इसमें मंत्र-तंत्र भी खोजते हैं। यह वेद जहां ब्रह्म ज्ञान का उपदेश करता है, वहीं मोक्ष का उपाय भी बताता है। इसे ब्रह्म वेद भी कहते हैं। इसमें मुख्य रूप में अथर्वण और आंगिरस ऋषियों के मंत्र होने के कारण अथर्व आंगिरस भी कहते हैं। अथर्ववेद का विद्वान् चारों वेदों का ज्ञाता होता है।
यानि विज्ञान और ज्ञान दोनों की उत्पति का एक और केवल एक मूल प्रमाण हमारे वेदों के पास है। दुनियां में कहीं भी विकास या विज्ञान का विकास कर नए आविष्कार और सृजन किए गए तो इसमें हमारे वेद सबसे आगे रहे जिनसे सीखकर ही ऐसा संभव हो पाया।
यानि इन चार वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद की भी अनेक शाखाएं बतायी गयी हैं। जैसे ऋग्वेद की 21, यजुर्वेद की 101, सामवेद की 1001, अर्थववेद की 91 इस प्रकार 1131 शाखाएं हैं परन्तु 12 शाखाएं ही मूल ग्रन्थों में उपलब्ध हैं। वेद की प्रत्येक शाखा की वैदिक शब्द राशि चार भागों में उपलब्ध है।
ऋग्वेद
ऋग्वेद को चारों वेदों में सबसे प्राचीन माना जाता है। इसको दो प्रकार से बांटा गया है। प्रथम प्रकार में इसे 10 मण्डलों में विभाजित किया गया है। दूसरे प्रकार से ऋग्वेद में 64 अध्याय हैं। आठ-आठ अध्यायों को मिलाकर एक अष्टक बनाया गया है। ऐसे कुल आठ अष्टक हैं। फिर प्रत्येक अध्याय को वर्गों में विभाजित किया गया है। वर्गों की संख्या भिन्न-भिन्न अध्यायों में भिन्न-भिन्न हैं। कुल वर्गों की संख्या 2024 है। प्रत्येक वर्ग में कुछ मंत्र होते हैं। सृष्टि के अनेक रहस्यों का इनमें उद्घाटन किया गया है। पहले इसकी 21 शाखाएं थीं परन्तु वर्तमान में इसकी शाकल शाखा का ही प्रचार है।
यजुर्वेद
इसमें गद्य और पद्य दोनों ही हैं। इसमें यज्ञ कर्म की प्रधानता है। इस वेद के दो भेद हैं – कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद। कृष्ण यजुर्वेद का संकलन महर्षि वेद व्यास ने किया है। इसका दूसरा नाम तैत्तिरीय संहिता भी है। इसमें मंत्र और ब्राह्मण भाग मिश्रित हैं। शुक्ल यजुर्वेद – इसे सूर्य ने याज्ञवल्क्य को उपदेश के रूप में दिया था।
सामवेद
यह गानेवाला ग्रन्थ है। इसमें गान विद्या का भण्डार है, यह भारतीय संगीत का मूल है। ऋचाओं के गायन को ही साम कहते हैं। इसमें अधिकतर मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं। इसे उपासना का प्रवर्तक भी कहा जा सकता है।
अथर्ववेद
इसमें गणित, विज्ञान, आयुर्वेद, समाज शास्त्र, कृषि विज्ञान, आदि अनेक विषय वर्णित हैं। कुछ लोग इसमें मंत्र-तंत्र भी खोजते हैं। यह वेद जहां ब्रह्म ज्ञान का उपदेश करता है, वहीं मोक्ष का उपाय भी बताता है। इसे ब्रह्म वेद भी कहते हैं। इसमें मुख्य रूप में अथर्वण और आंगिरस ऋषियों के मंत्र होने के कारण अथर्व आंगिरस भी कहते हैं। अथर्ववेद का विद्वान् चारों वेदों का ज्ञाता होता है।
यानि विज्ञान और ज्ञान दोनों की उत्पति का एक और केवल एक मूल प्रमाण हमारे वेदों के पास है। दुनियां में कहीं भी विकास या विज्ञान का विकास कर नए आविष्कार और सृजन किए गए तो इसमें हमारे वेद सबसे आगे रहे जिनसे सीखकर ही ऐसा संभव हो पाया।
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।
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