Wednesday, July 1, 2015

अग्नि से आदित्य..


"यज्ञ-कुण्ड के चारो ओर बनी तीन-तीन सीढियाँ वामन-व्यक्ति के विष्णु बनने के निमित्त, तीन डग भरने की परिचायक हैं । वैदिक आश्रम-व्यवस्था में ब्रह्मचर्य से संन्यस्त होने की, वैदिकी लोक-व्यवस्था में भू-लोक से स्वर्लोक प्राप्ति की, और वैदिकी यज्ञ-व्यवस्था में अग्नि से आदित्य बनने की परिचायिका है । जैसे ब्रह्मचर्य से संन्यासी होने के लिए क्रमशः तीन पग (चरण) ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ के उठाने होते हैं, जिस प्रकार भूलोक से स्वर्लोक की प्राप्ति के लिए तीन चरण भू, अन्तरिक्ष और द्यु के उठाने होते हैं, वैसे ही अग्नि से आदित्य बनने के लिए भी क्रमशः तीन चरण अग्नि, वसु, रुद्र के उठाने होते हैं, जिसकी सूचना कुण्ड पर बनी तीन सीढियाँ दे रही हैं। व्यक्ति ने प्रथम चरण ब्रह्मचर्याश्रम का क्या उठाया कि वह अग्नि बन गया । उसने दूसरा चरण गृहस्थाश्रम का क्या उठाया कि वह "वसु" बन गया और तीसरा चरण "वानप्रस्थाश्रम" का क्या उठाया कि वह "रुद्र" बन गया । बस, अब उसने आदित्य बनने के लिए कुणअड के बीच बैठने का निश्चय किया और कहा---

"इदमग्नये स्वाहा, इदमग्नये । इदं न मम।"

लो, वह लालोलाल हो गया । आदित्यवर्ण संन्यासी ने विश्वतोधार यज्ञ आरम्भ कर दिया है ।

मानव-जीवन का लक्ष्य जहाँ आश्रम-परिभाषानुसार क्रमशः ब्रह्मचर्य से संन्यास में प्रविष्ट होना है, वैदिकी लोक-व्यवस्था में पृथिवी-लोक से स्वर्लोक को अधिगत करना है, वहाँ याज्ञिकों की परिभाषा में मानव का चरम ध्येय अग्नि से आदित्य बनना है ।


।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

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