आचार्य चाणक्य ऐसी
महान विभूति थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय
इतिहास की धारा को बदल दिया। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चाणक्य कुशल
राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में भी
विश्वविख्यात हुए।
इतनी सदियां गुजरने के बाद आज भी
यदि चाणक्य के द्वारा बताए गए सिद्धांत और नीतियां प्रासंगिक हैं, तो मात्र
इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने गहन अध्ययन, चिंतन और जीवानानुभवों से
अर्जित अमूल्य ज्ञान को, पूरी तरह नि:स्वार्थ होकर मानवीय कल्याण के
उद्देश्य से अभिव्यक्त किया।
* ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वैश्यों का बल
उनका धन है और शूद्रों का बल दूसरों की सेवा करना है। ब्राह्मणों का
कर्तव्य है कि वे विद्या ग्रहण करें। राजा का कर्तव्य है कि वे सैनिकों
द्वारा अपने बल को बढ़ाते रहें। वैश्यों का कर्तव्य है कि वे व्यापार
द्वारा धन बढ़ाएं, शूद्रों का कर्तव्य श्रेष्ठ लोगों की सेवा करना है।
* जिस प्रकार सभी पर्वतों पर मणि नहीं मिलती, सभी हाथियों के
मस्तक में मोती उत्पन्न नहीं होता, सभी वनों में चंदन का वृक्ष नहीं होता,
उसी प्रकार सज्जन पुरुष सभी जगहों पर नहीं मिलते हैं।
* भोजन के लिए अच्छे पदार्थों का उपलब्ध होना, उन्हें पचाने की
शक्ति का होना, सुंदर स्त्री के साथ संसर्ग के लिए कामशक्ति का होना,
प्रचुर धन के साथ-साथ धन देने की इच्छा होना। ये सभी सुख मनुष्य को बहुत
कठिनता से प्राप्त होते हैं।
* चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति का पुत्र उसके नियंत्रण में
रहता है, जिसकी पत्नी आज्ञा के अनुसार आचरण करती है और जो व्यक्ति अपने
कमाए धन से पूरी तरह संतुष्ट रहता है। ऐसे मनुष्य के लिए यह संसार ही
स्वर्ग के समान है।
* चाणक्य का मानना है कि वही गृहस्थी सुखी है, जिसकी संतान उनकी
आज्ञा का पालन करती है। पिता का भी कर्तव्य है कि वह पुत्रों का पालन-पोषण
अच्छी तरह से करें। इसी प्रकार ऐसे व्यक्ति को मित्र नहीं कहा जा सकता है,
जिस पर विश्वास नहीं किया जा सके और ऐसी पत्नी व्यर्थ है जिससे किसी प्रकार
का सुख प्राप्त न हो।
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।
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