Friday, July 3, 2015

श्रीराधा और श्रीकृष्ण का अलौकिक प्रेम..



श्री श्री राधा श्री कृष्ण के जीवन में अलौकिक प्रेम की मूर्ति बनकर आईं। जिस प्रेम को कोई नाप नहीं सका, उसकी आधारशिला राधा ने ही रखी थी। राधा जी वृंदावन की अधीश्वरी हैं। राधा जी अनादि सनातन तथा शाश्वत हैं। वृंदावन में यमुना पार भांडीर वन में स्वयं ब्रह्माजी के पुरोहितत्व में श्रीकृष्ण-राधा विवाह भी संपन्न हुआ था। श्री राधा कृष्ण का संबंध निस्वार्थ प्रेम की अदृश्य बेड़ी से बंधा हुआ है।

श्री राधा और श्री कृष्ण के प्रेम की गहराई को दर्शाते कई प्रसंग हमारे धर्म ग्रंथों में दिए गए हैं। उन्हीं के अनुसार राधा श्री कृष्ण कि ह्लादिनी शक्ति थी। वे साक्षात् लक्ष्मी थी जिन्होंने राधा रूप में अवतार लिया मगर ब्रज में कुछ स्त्रियां राधा जी के चरित्र पर लांछन लगाती थी। किंतु उन में दो प्रधान थी। एक थी वृद्धा और एक थी युवती। दोनों ही परपुरूष की ओर कभी नहीं देखती थी। किंतु देखना ही तो कोई पाप नहीं पाप तो होता है मन से कभी-कभी तो यह सदाचार का मिथ्या अभिमान साधना में बड़ा भारी विध्न उत्पन्न करता है। जब तक यह अभिमान चूर नहीं होता तब तक मनुष्य की बुद्धि ठिकाने नहीं आती। इन दोनों को अपने अस्तित्व पर बड़ा अभिमान था। इसी अभिमान में भर कर वे सब को असत्ती मानती थीं और ऊपरी बातें देख निन्दा करती थी।

एक दिन कृष्ण कुछ बीमार हो गए। मंत्र-तंत्र, जादू-टोना, झाड़-फूंक जड़ी-बूटियों सभी से उपचार किया गया। किंतु किसी से कुछ लाभ नहीं हुआ। यशोदा जी के धैर्य का बांध टूट गया। वे ढाढ़ मार कर रोने लगीं। उसी समय सहसा एक वैद्य एक हाथ में झोली तथा डंडा लेकर नंद बाबा के द्वार पर आए। झोली डंडा रख उन्होंने कहा," मैं मधुपुरी से आया हूं। मैंने सुना कि नंद के कुमार कुछ अस्वस्थ हैं, मैं अभी इन्हें अच्छा कर सकता हूं।"

यशोदा मईया पर तो मानों किसी ने अमृत छिड़क दिया हो। वे बोली," वैद्यराज! मेरे लाला को तुम शीघ्र अच्छा कर दो। तुम जो मांगोगे वही दूंगी।"

वैद्य ने गंभीरता से कहा," मेरे गुरू की आज्ञा है कि मैं जिस की चिकित्सा करता हूं। उसके घर का जल भी नहीं पीता। यदि मैं रोगी से कुछ लेने लगूं तो मेरी विद्या विफल हो जाएगी।"

यशोदा मईया बोली," आप जैसे भी चाहें मेरे बच्चे को अच्छा कर दें। कोई वस्तु चाहिए तो मैं एकत्रित कर दूं।"

वैद्य ने कहा," मुझे एक घड़ा यमुना जल चाहिए।"

यशोदा मईया बोली," आप जितना जल कहें मैं स्वयं जाकर यमुना से लाकर दे सकती हूं।"

वैद्य ने कहा," आप यह कार्य नहीं कर सकती। आपके अतिरिक्त जो भी पतिव्रता स्त्री हो जिसे अपने पतिव्रत पर पूर्ण विश्वास हो। केवल वही स्त्री इस कार्य को पूरा कर सकती है।"

सभी का मन धड़कने लगा। मन से भी कभी जिस ने पर पुरूष का चिन्तन न किया हो ऐसी स्त्री सर्वत्र नहीं मिल सकती। सब सहम गई।

यशोदा मईया बोली," वैद्यराज यह प्रतित कैसे हो कि यह जल सती का ही लाया हुआ है। सभी अपने मन में तो अपने को सती समझती हैं।"

हंस कर वैद्य बोले,"मन में समझने से क्या होता है? सती की एक परिक्षा है। उस परीक्षा में उर्तीण होकर जो कलश को यमुना जी से भर कर लाए वही सती है जो न ला पाए वही असती है।"

मिट्टी का घड़ा मंगवाया गया। वैद्यराज ने अपनी झोली से एक सोने की कील निकाली। उस से घड़े में सौ छिद्र कर दिए। फिर बालों की एक लम्बी डोरी बनवाई उस बाल तन्तू को यमुना के उस पार से इस पार तक बांध दिया और कहा जो घड़े को लेकर जो इस बाल पर चल कर बीच धारा से जल भर ले आए और जल की एक बूंद भी न गीरे, वही स्त्री सती समझी जाएगी। उसी के लाए हुए जल से कृष्ण ठीक हो जाएंगे।

यह सुन कर सभी स्त्रियों का साहस छूट गया अब सब मिल कर उन दोनों को उकसाने लगी। दोनों ही बारी-बारी से घड़ा लेकर उस बाल पर चढ़ी किंतु पैर रखते ही तन्तू टूट गया। अब अन्य स्त्रियों को साहस छूट गया। जब कोई भी स्त्री घड़ा उठाने को तैयार न हुई तो यशोदा मईया रोने लगी बोली वैद्यराज," असंभव बात क्यों कर रहे हैं ?"

वैद्य ने कहा," संसार में असंभव कुछ नहीं है। पतिव्रता स्त्री सब कुछ कर सकती है।"

यशोदा मईया बोली," तो आप ही बताओ कौन है ऐसी पतिव्रता स्त्री?"

वैद्य ने कहा," मैं ज्योतिष से गणना करके बताता हूं।"

काफी समय तक वैद्य गणना करते रहे। अंत में बोले,"यहां कोई राधा है?"

राधा का नाम सुनते ही यशोदा मईया की आंखों में चमक आ गई और बोली," हां! है उसे कृष्ण के रोगी होने की बात मालुम नहीं होगी। नहीं तो वह सबसे पहले आती।"

यशोदा मईया ने एक सखी को भेजा और वह राधा रानी को बुला लाई। वैद्य ने राधा रानी को दूर से ही आते देख कर उनकी वंदना की और कहा," देखो राधा! यह घड़ा यमुना जी से भरकर बाल पर चल कर लाना होगा।"

राधा रानी ने पूछा,"इससे क्या होगा वैद्य जी?"

वैद्य ने कहा," इससे कृष्ण जल्दी अच्छे हो जाएंगे।"

राधा रानी बोली," अच्छा मेरे लाए जल से कृष्ण अच्छे हो जाएंगे।"

ऐसा कह कर उन्होंने तुरंत घड़े को उठा लिया। कोलाहाल मच गया। सभी का ह्रदय धड़क रहा था। कुछ स्त्रियां मन ही मन हंस रही थी। कुछ परिणाम देखने को उत्कंठित हो रही थी। श्री राधे ने केश सूत्र को प्रणाम किया और फिर सरलता से उसके ऊपर चढ़ गई। वह बाल नहीं टूटा। धीरे-धीरे उस बाल पर चलती ही गई। सरलता से घड़ा भर कर वापिस आ गई और उस सौ छिद्रों वाले घड़े से एक बूंद भी पानी न टपका। जल लाकर वे वैद्य के समीप आ कर खड़ी हो गई।

वैद्य ने कहा,"आप ही कृष्ण के ऊपर तीन चुल्लु जल डाल दें। अभी इनका सारा रोग
खत्म हो जाएगा और यह स्वस्थ हो जाएंगे।"

राधा जी ने वैद्य जी के कहे अनुसार ही किया तुरंत श्री श्याम सुंदर का रोग अच्छा हो गया।

राधा जी का नाम कृष्ण से पहले लिया जाता है। राधा नाम के जाप से श्री कृष्ण प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर दया करते हैं। राधा जी का श्री कृष्ण के लिए प्रेम नि:स्वार्थ था। श्री राधा जी भगवान श्री कृष्ण की परम प्रिया हैं तथा उनकी अभिन्न मूर्ति भी। राधा जी भगवान श्री कृष्ण के प्राणों की अघिष्ठात्री देवी हैं। अत: भगवान इनके अधीन रहते हैं।


।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

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