मूर्ति पूजा आज कई लोग मूर्ति पूजा पर सवाल उठाते हैं और कहते हैं की यह तो अन्धविश्वास है या मंदिर क्यों बनाये हैं , इश्वर तो एक है, हिन्दू इतने इश्वर को क्यों मानते हैं | इसका जवाब है सभी हिन्दू भी एक ही ईश्वर को मानते हैं | मंदिर जाना पहला क्रम है इश्वर को जानने का क्योंकि सभी अचानक से सभी वेद पुराण एवं उनके रहस्य उनका विज्ञान नहीं समझ सकते इसलिए शुरुआत यहाँ से होती है जिससे धीरे धीरे जिज्ञासा बढती जाती है और व्यक्ति इश्वर जो की सत्य है उन तक पंहुचा जाता है | यह ठीक वैसा ही है जैसा की एक पहली कक्षा के छात्र को सिखाया जाता है की अ से अनार , या अंग्रेजी में ए से एप्पल उस वक़्त छात्र ‘अ’ या ‘ए’ नहीं जानता इसलिए उसे एक तस्वीर दिखाई जाती है अनार या एप्पल की जिसके द्वारा वह ‘अ’ या ‘ए’ शब्द को सीखता है , यदि उस बच्चे को पहली कक्षा में ही पूरा वाक्य शब्दों और अक्षरों को मिलाकर बनाने को दे दिया जाए या एक पूरा निबंध लिखने को दे दिया जाए तो सोचिये क्या होगा , वह स्कुल छोड़ देगा क्योंकि उसे कुछ समझ ही नहीं आएगा | इसी तरह बचपन से बच्चे पहले मंदिर देखते हैं फिर सवाल पूछते हैं यह कौन है फिर उनकी पुस्तक पढ़ते हैं रामायण , गीता , फिर आगे बढ़ते हैं तब पुराण फिर उपनिषद और फिर जो सबसे अधिक जिज्ञासु होते हैं वही वेद तक पहुच पाते हैं तथा उसे समझ कर ब्रम्ह ज्ञान को प्राप्त करते हैं इस तरह वे मूर्ति को मूर्ति के रूप में नहीं बल्कि इश्वर के रूप में देखते हैं, जैसे मुस्लिम काबा के पत्थर में और इसाई क्रॉस में , भले ही सामने मूर्ति हो पर हिन्दू पूजा उसी एक शक्ति की करते हैं जो सर्वव्यापी है | इसी लिए सिर्फ हिन्दू धर्म में ऐसा कहा गया है के इश्वर सबमे है हर जगह है , जबकि दुसरे धर्मो में कहा गया है इश्वर ने सब बनाया है | यह वाक्य सुनने में साधारण लगते हैं पर बहुत बड़ा अंतर है इनमे हम इश्वर को शक्ति मानते है जो हर जगह है जिसे न बनाया जा सकता है ना ख़त्म किया जा सकता है जो एक से दुसरे रूप में परिवर्तित होती रहती है जैसे आत्मा शरीर बदलती है | आज विज्ञान भी यही कहता है “शक्ति का सिद्धांत , इसे न बनाया जा सकता है जा ख़त्म किया जा सकता यह एक रूप से दुसरे में परिवर्तित होती है “| हम उसी को भगवान कहते हैं हो सकता है विज्ञान कॉस्मिक एनर्जी कहे या कुछ भी और यदि इश्वर सभी में है तो कुछ भी पूजे मूर्ति या पत्थर पूजा इश्वर की ही होगी |
अब रही बात मंदिर की तो मंदिर के पीछे एक बहुत
बड़ा विज्ञान है मंदिर कोई साधारण ईमारत नहीं होता, इसमें हर जगह का एक मतलब है
संक्षेप में बताऊंगा मंदिर में इश्वर को शक्ति की तरह माना जाता है | गर्भगृह को
शरीर के सर (चेहरा) की तरह माना गया है , गोपुरा ( मुख्य द्वार ) इसे शरीर के चरण
या पैर माने गए हैं , शुकनासी को नाक , अंतराला ( निकलने की जगह ) इसे गर्दन माना
गया है , प्राकरा: ( ऊँची दीवारें) इन्हें शरीर के हाथ माना गया है इसी तरह सारा
मंदिर और उसमे हर जगह एक शरीर के अंग की तरह निर्धारित है और ह्रदय या दिल में
इश्वर की मूर्ति रखी हुयी रहती है | इसका अभिप्राय यह है के हर मनुष्य के शरीर में
इश्वर है जो उसके ह्रदय में निवास करता है उसे कही और खोजने की आवश्यकता नहीं अपने
दिल की बात सुनो और सत्कर्म करो आपको मोक्ष जरुर मिलेगा | इसका ( मंदिर के
वास्तुशास्त्र का ) एक पहलू यह है के शरीर तो बन गया दिल भी पर उसे चलाने के लिए
शक्ति या आत्मा कहाँ से आएगी उसी के आगे हम ध्यान लगाते हैं तो मूर्ति में प्राण
प्रतिष्ठा होती है जिससे उस शक्ति से हम और हमारी शक्ति से वो दोनों जुड़ जाते हैं
| यही हिन्दू धर्म में इश्वर का स्वरुप है , जिसे कई व्यक्ति जो अपने आपको विज्ञान
का छात्र कहते हैं वे मूर्ति पूजा और मंदिर का ढोंग कहते हैं अंधविश्वास कहते हैं
|
जबकि
असल में देखा जाए तो आज का विज्ञान और साइंस तथा उसके सिद्धांत इनसे बड़ा
अंधविश्वास कोई नहीं जो एक व्यक्ति ने किताब में लिख दिया उसे मान लेना बिना सवाल
उठाये करोडो बच्चों को पड़ा देना | मेडिकल में कुछ भी दवाइयां दे देना | किसी ने कहा पृथ्वी चपटी है तो वेसी मान ली
सदियों तक और सब लोगों को वही सिखाया भी गया अब कहा गोल हे तो वेसी मान ली कभी
कहते हैं ब्लैक होल है कभी कहते हैं नहीं | कभी डार्विन का सिद्धांत नकार दिया
जाता है कभी मान लिया जाता है | अभी तक यह भी पता नहीं लगा पाए के ब्रम्हाण कैंसे
बना था | यह 1500 साल पुराना पाश्चात्य विज्ञान उन वेदों और उपनिषदों के ज्ञान को
नकारता और अंधविश्वास कहता है जो करोडो सालों के अनुभव के बाद ऋषियों ने लिखे हैं
| आगे आपकी मर्जी आप चाहें जिसे सच माने |
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।
say right, i am agree with u
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