Monday, September 21, 2015

रहस्य बना हुआ है इस झील का पानी, साइंटिस्ट नहीं खोज पा रहे राज

बुलढ़ाणा जिले में स्थित लोनार लेक- फाइल फोटो
बुलढ़ाणा जिले में स्थित लोनार लेक- फाइल फोटो
बुलढ़ाणा. 27 सितंबर को पूरे दुनिया में वर्ल्ड टूरिस्ट डे मनाया जाएगा। इस मौके पर dainikbhaskar.com आपको सिलसिलेवार देश के ऐसे टूरिस्ट स्पॉट के बारे में बताएगा है, जो दुनिया भर में अपने इतिहास और खूबसूरती के लिए मशहूर है। इस कड़ी में आज हम आपको महाराष्ट्र के बुलढ़ाणा ज़िले में स्थित 'Lonar Lake' के बारे में बता रहे हैं, जिसके पानी में हो रहा बदलाव आज भी रहस्य बना हुआ है।
उल्का पिंड की टक्कर से बनी थी झील
लोनार झील खारे पानी की झील है। साइंटिस्टों का मानना है कि यह झील उल्का पिंड की टक्कर से बनी है। इसका खारा पानी इस बात को दर्शाता है कि कभी यहां समुद्र था। इसके बनते वक्त करीब दस लाख टन के उल्का पिंड की टकराहट हुई। करीब 1.8 किलोमीटर डायमीटर की इस उल्कीय झील की गहराई लगभग पांच सौ मीटर है। इस झील के पानी पर आज भी देश-विदेश के कई साइंटिस्ट रिसर्च कर रहे हैं। कहा जाता है कि झील के पानी में समय-समय पर बदलाव होते हैं। यह बदलाव क्यों होते हैं इस बात पर आज भी रहस्य कायम है और कई साइंटिस्ट इस राज को जानने में जुटे हुए हैं।
तीन हिस्सों में टूटा था उल्कापिंड
पृथ्वी से टकराने के बाद उल्कापिंड तीन हिस्सों में टूट चुका था और उसने लोनार के अलावा अन्य दो जगहों पर भी झील बना दी। हालांकि अब अन्य दो झीलें पूरी तरह सूख चुकी है पर लोनार में आज भी पानी मौजूद है।
2006 में हुई अजीब हलचल
लगभग वर्ष 2006 के आसपास लोनर झील में अजीब-सी हलचल हुई थी, झील का पानी अचानक भाप बनकर खत्म हो गया। गांव वालों ने पानी की जगह झील में नमक और अन्य खनिजों (मिनरल्स) के छोटे-बड़े चमकते हुए क्रिस्टल देखे।

लोनार लेक के किनारे बने प्राचीन मंदिर के सामने इस तरह के बड़े-बड़े गड्ढे बने हुए हैं - फाइल फोटो
लोनार लेक के किनारे बने प्राचीन मंदिर के सामने इस तरह के बड़े-बड़े गड्ढे बने हुए हैं - फाइल फोटो
लोनार झील में मिले उल्कापिंड के अवशेष - फाइल फोटो
लोनार झील में मिले उल्कापिंड के अवशेष - फाइल फोटो
लोनार लेक के आस - पास खूबसूरत जंगल बना हुआ है, यहां अकसर विदेशी पक्षी देखे जाते हैं-फाइल फोटो
लोनार लेक के आस - पास खूबसूरत जंगल बना हुआ है, यहां अकसर विदेशी पक्षी देखे जाते हैं-फाइल फोटो
लोनर लेक के किनारे मौजूद जंगल - फाइल फोटो
लोनर लेक के किनारे मौजूद जंगल - फाइल फोटो
लोनार लेक के पास स्थित मंदिर - फाइल फोटो
लोनार लेक के पास स्थित मंदिर - फाइल फोटो
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

Saturday, September 19, 2015

1990 में अमेरिका में निकला एक श्रीयंत्र और अभीतक नहीं सुलझा उसका रहस्य …

दुनिया के सबसे सभ्य और विकसित देश कहे जाने वाले अमेरिका में आज भी एक पहली अनसुलझी हैं, अमेरिका के सभी वैज्ञानिक, प्रकृति के जानकार, यू.एफ.ओ. से सम्बंधित जानकारी रखने वाले सभी हैरान हैं कि आखिर यह हिन्दुओं का श्री यंत्र बना तो कैसे बना …
इडाहो एयर नेशनल गार्ड का पायलट बिल मिलर 10 अगस्त 1990 को अपनी नियमित प्रशिक्षण उड़ान पर था. अचानक उसने ओरेगॉन प्रांत की एक सूखी हुई झील की रेत पर कोई विचित्र आकृति देखी. यह आकृति लगभग चौथाई मील लंबी-चौड़ी और सतह में लगभग तीन इंच गहरे धंसी हुई थी. बिल मिलर चौंका, क्योंकि लगभग तीस मिनट पहले ही उसने इस मार्ग से उड़ान भरी थी तब उसे ऐसी कोई आकृति नहीं दिखाई दी थी. उसके अलावा कई अन्य पायलट भी इसी मार्ग से लगातार उड़ान भरते थे, उन्होंने भी कभी इस विशाल आकृति के निर्माण की प्रक्रिया अथवा इसे बनाने वालों को कभी नहीं देखा था. आकृति का आकार इतना बड़ा था, कि ऐसा संभव ही नहीं कि पायलटों की निगाह से चूक जाए.


सेना में लेफ्टिनेंट पद पर कार्यरत बिल मिलर ने तत्काल इसकी रिपोर्ट अपने उच्चाधिकारियों को दी, कि ओरेगॉन प्रांत की सिटी ऑफ बर्न्स से सत्तर मील दूर सूखी हुई झील की चट्टानों पर कोई रहस्यमयी आकृति दिखाई दे रही है. मिलर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि यह आकृति अपने आकार और लकीरों की बनावट से किसी मशीन की आकृति प्रतीत होती है. इस खबर को लगभग तीस दिनों तक आम जनता से छिपाकर रखा गया, कि कहीं उस स्थान पर भीडभाड ना हो जाए. लेकिन फिर भी 12 सितम्बर 1990 को प्रेस को इसके बारे में पता चल ही गया. सबसे पहले बोईस टीवी स्टेशन ने इसकी ब्रेकिंग न्यूज़ दर्शकों को दी. जैसे ही लोगों ने उस आकृति को देखा तो तत्काल ही समझ गए कि यह हिन्दू धर्म का पवित्र चिन्ह “श्रीयंत्र” है. परन्तु किसी के पास इस बात का जवाब नहीं था कि हिन्दू आध्यात्मिक यन्त्र की विशाल आकृति ओरेगॉन के उस वीरान स्थल पर कैसे और क्यों आई?
14 सितम्बर को अमेरिका असोसिएटेड प्रेस तथा ओरेगॉन की बैण्ड बुलेटिन ने भी प्रमुखता से दिखाया और इस पर चर्चाएं होने लगीं. समाचार पत्रों ने शहर के विख्यात वास्तुविदों एवं इंजीनियरों से संपर्क किया तो उन्होंने भी इस आकृति पर जबरदस्त आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि इतनी बड़ी आकृति को बनाने के लिए यदि जमीन का सिर्फ सर्वे भर किया जाए तब भी कम से कम एक लाख डॉलर का खर्च आएगा. श्रीयंत्र की बेहद जटिल संरचना और उसकी कठिन डिजाइन को देखते हुए जब इसे सादे कागज़ पर बनाना ही मुश्किल होता है तो सूखी झील में आधे मील की लम्बाई-चौड़ाई में जमीन पर इस डिजाइन को बनाना तो बेहद ही मुश्किल और लंबा काम है, यह विशाल आकृति रातोंरात नहीं बनाई जा सकती. इस व्यावहारिक निष्कर्ष से अंदाजा लगाया गया कि निश्चित ही यह मनुष्य की कृति नहीं है.

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तमाम माथापच्ची के बाद यह निष्कर्ष इसलिए भी निकाला गया, क्योंकि जितनी विशाल यह आकृति थी, और इसकी रचना एवं निश्चित पंक्तियों की लम्बाई-चौड़ाई को देखते हुए इसे जमीन पर खड़े रहकर बनाना संभव ही नहीं था. बल्कि यह आकृति को जमीन पर खड़े होकर पूरी देखी भी नहीं जा सकती थी, इसे पूरा देखने के लिए सैकड़ों फुट की ऊँचाई चाहिए थी. अंततः तमाम विद्वान, प्रोफ़ेसर, आस्तिक-नास्तिक, अन्य धर्मों के प्रतिनिधि इस बात पर सहमत हुए कि निश्चित ही यह आकृति किसी रहस्यमयी घटना का नतीजा है. फिर भी वैज्ञानिकों की शंका दूर नहीं हुई तो UFO पर रिसर्च करने वाले दो वैज्ञानिक डोन न्यूमन और एलेन डेकर ने 15 सितम्बर को इस आकृति वाले स्थान का दौरा किया और अपनी रिपोर्ट में लिखा कि इस आकृति के आसपास उन्हें किसी मशीन अथवा टायरों के निशान आदि दिखाई नहीं दिए, बल्कि उनकी खुद की बड़ी स्टेशन वैगन के पहियों के निशान उन चट्टानों और रेत पर तुरंत आ गए थे.

ओरेगॉन विश्वविद्यालय के डॉक्टर जेम्स देदरोफ़ ने इस अदभुत घटना पर UFO तथा परावैज्ञानिक शक्तियों से सम्बन्धित एक रिसर्च पेपर भी लिखा जो “ए सिम्बल ऑन द ओरेगॉन डेज़र्ट” के नाम से 1991 में प्रकाशित हुआ. अपने रिसर्च पेपर में वे लिखते हैं कि अमेरिकी सरकार अंत तक अपने नागरिकों को इस दैवीय घटना के बारे कोई ठोस जानकारी नहीं दे सकी, क्योंकि किसी को नहीं पता था कि श्रीयंत्र की वह विशाल आकृति वहाँ बनी कैसे? कई नास्तिकतावादी इस कहानी को झूठा और श्रीयंत्र की आकृति को मानव द्वारा बनाया हुआ सिद्ध करने की कोशिश करने वहाँ जुटे. लेकिन अपने तमाम संसाधनों, ट्रैक्टर, हल, रस्सी, मीटर, नापने के लिए बड़े-बड़े स्केल आदि के बावजूद उस श्रीयंत्र की आकृति से आधी आकृति भी ठीक से और सीधी नहीं बना सके.

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

Friday, September 18, 2015

रामायण कोई काल्पनिक घटना नहीं, सच साबित करते हैं ये 21 तथ्य

रामायण और भगवान राम से हिन्दुओं की आस्था जुड़ी हुई है, लेकिन अकसर ये सवाल उठते रहे हैं कि क्या सच में भगवान राम का इस धरती पर जन्म हुआ था? क्या रावण और हनुमान थे? हम उनको तो किसी के सामने नहीं ला सकते लेकिन उनके अस्तित्व के प्रमाण को आपके सामने ला सकते हैं. भारत और श्रीलंका में कुछ ऐसी जगहें हैं जो इस बात का प्रमाण देती हैं कि रामायण में लिखी हर बात सच है.


1. Cobra Hood cave, Sri Lanka
कहा जाता है कि रावण जब सीता का अपहरण कर के श्रीलंका पहुंचा तो सबसे पहले सीता जी को इसी जगह रखा था. इस गुफ़ा पर हुई नक्काशी इस बात का प्रमाण देती है.


2. Existence of Hanuman Garhi
यह वही जगह है जहां हनुमान जी ने भगवान राम का इंतज़ार किया था. रामायण में इस जगह के बारे में लिखा है, अयोध्या के पास इस जगह पर आज एक हनुमान मंदिर भी है.

3. भगवान हनुमान के पद चिन्ह
जब हनुमान जी ने सीता जी को खोजने के लिए समुद्र पार किया था तो उन्होंने भव्य रूप धारण किया था. इसीलिए जब वो श्रीलंका पहुंचे तो उनके पैर के निशान वहां बन गए थे, जो आज भी वहां मौजूद हैं.

4. राम सेतु
रामायण और भगवान राम के होने का ये सबसे बड़ा सबूत है. समुद्र के ऊपर श्रीलंका तक बने इस सेतु के बारे में रामायण में लिखा है और इसकी खोज भी की जा चुकी है. ये सेतु पत्थरों से बना है और ये पत्थर पानी पर तैरते हैं.

5. पुरातत्व विभाग ने भी माना
भगवान राम के होने की बात खुद पुरातत्व विभाग भी मानता है. पुरातत्व विभाग के अनुसार 1,750,000 साल पहले श्रीलंका में ही सबसे पहले इंसानों के घर होने की बात कही गई है और राम सेतु भी उसी काल का है.

6. पानी में तैरने वाले पत्थर
राम सेतु एक ऐसा पुल था जिसके पत्थर पानी पर तैरते थे. सुनामी के बाद रामेश्वरम में उन पत्थरों में से कुछ अलग हो कर जमीन पर आ गए थे. शोधकर्ताओं नें जब उसे दोबारा पानी में फेंका तो वो तैर रहे थे, जबकि वहां के किसी और आम पत्थर को पानी में डालने से वो डूब जाते थे.

7. द्रोणागिरी पर्वत
युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण को मेघनाथ ने मूर्छित कर दिया था और उनकी जान जा रही थी, तब हनुमान जी संजीवनी लेने द्रोणागिरी पर्वत गए थे. उन्हें संजीवनी की पहचान नहीं थी तो उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का निर्णय लिया. युद्ध के बाद उन्होंने द्रोणागिरी को यथास्थान पहुंचा दिया. उस पर्वत पर आज भी वो निशान मौजूद हैं जहां से हनुमान जी ने उसे तोड़ा था.

8. श्रीलंका में हिमालय की जड़ी-बूटी
श्रीलंका के उस स्थान पर जहां लक्ष्मण को संजीवनी दी गई थी, वहां हिमालय की दुर्लभ जड़ी-बूटियों के अंश मिले हैं. जबकि पूरे श्रीलंका में ऐसा नहीं होता और हिमालय की जड़ी-बूटियों का श्रीलंका में पाया जाना इस बात का बहुत बड़ा प्रमाण है.

9. अशोक वाटिका
हरण के पश्चात सीता माता को अशोक वाटिका में रखा गया था, क्योंकि सीता जी ने रावण के महल में रहने से मना कर दिया था. आज उस जगह को Hakgala Botanical Garden कहते हैं और जहां सीता जी को रखा गया था उस स्थान को 'सीता एल्या' कहा जाता है.

10. लेपाक्षी मंदिर
सीता हरण के बाद जब रावण उन्हें आकाश मार्ग से लंका ले जा रहा था तब उसे रोकने के लिए जटायू आए थे. रावण ने उनका वध कर दिया था. आकाश से जटायू इसी जगह गिरे थे. यहां आज एक मंदिर है जिसे लेपाक्षी मंदिर के नाम से जाना जाता है.

11. टस्क हाथी
रामायण के एक अध्याय, सुंदर कांड में श्रीलंका की रखवाली के लिए विशालकाय हाथी का विवरण है, जिन्हें हनुमान जी ने धराशाही किया था. पुरातत्व विभाग को श्रीलंका में ऐसे ही हाथियों के अवशेष मिले हैं जिनका आकार आम हाथियों से बहुत ज़्यादा है.

12. कोंडा कट्टू गाला
हनुमान जी के लंका जलाने के बाद रावण भयभीत हो गया था कि हनुमान जी दोबारा हमला न कर दें, इसलिए रावण ने सीता जी को अशोक वाटिका से हटा कर कोंडा कट्टू गाला में रखा था. यहां पुरातत्व विभाग को कई गुफ़ाएं मिली हैं जो रावण के महल तक जाती हैं.

13. रावण का महल
पुरातत्व विभाग को श्रीलंका में एक महल मिला है जिसे रामायण काल का ही बताया जाता है. यहां से कई गुप्त रास्ते निकलते हैं जो उस शहर के मुख्य केंद्रो तक जाते हैं. ध्यान से देखने पर ये पता चलता है कि ये रास्ते इंसानों द्वारा बनाए गए हैं.

14. कालानियां
रावण के मरने के बाद विभीषण को लंका का राजा बनाया गया था. विभीषण ने अपना महल कालानियां में बनाया था जो कैलानी नदी के किनारे था. पुरातत्व विभाग को इस नदी के किनारे उस महल के कुछ अवशेष भी मिले हैं.

15. लंका जलने के अवशेष
रामायण के अनुसार हनुमान जी ने पूरे लंका को आग लगा दी थी, जिसके प्रमाण उस जगह से मिलते हैं. जलने के बाद उस जगह की मिट्टी काली हो गई है जबकि उसके आस-पास की मिट्टी का रंग आज भी वही है.

16. दिवूरमपोला, श्रीलंका
रावण से सीता को बचाने के बाद भगवान राम ने उन्हें अपनी पवित्रता साबित करने को कहा था, जिसके लिए सीता जी ने अग्नि परीक्षा दी थी. आज भी उस जगह पर वो पेड़ मौजूद है जिसके नीचे सीता जी ने इस परीक्षा को दिया था. उस पेड़ के नीचे वहां के लोग आज भी अहम फ़ैसले लेते हैं.

17. रामलिंगम
रावण को मारने के बाद भगवान राम को पश्चाताप करना था क्योंकि उनके हाथ से एक ब्राहमण का कत्ल हुआ था. इसके लिए उन्होंने शिव की आराधना की थी. भगवान शिव ने उन्हें चार शिवलिंग बनाने के लिए कहा. एक शिवलिंग सीता जी ने बनाया जो रेत का था. दो शिवलिंग हनुमान जी कैलाश से लेकर आए थे और एक शिवलिंग भगवान राम ने अपने हाथ से बनाया था, जो आज भी उस मंदिर में हैं और इसलिए ही इस जगह को रामलिंगम कहते हैं.

18. जानकी मंदिर
नेपाल के जनकपुर शहर में जानकी मंदिर है. रामायण के अनुसार सीता माता के पिता का नाम जनक था और इस शहर का नाम उन्हीं के नाम पर जनकपुर रखा गया था. साथ ही सीता माता को जानकी के नाम से भी जाना जाता है और उसी नाम पर इस मंदिर का नाम पड़ा है जानकी मंदिर. यहां सीता माता के दर्शन के लिए हर रोज़ हज़ारो श्रद्धालु आते हैं.

19. पंचवटी
नासिक के पास आज भी पंचवटी तपोवन है, जहां अयोध्या से वनवास काटने के लिए निकले भगवान राम, सीता माता और लक्ष्मण रुके थे. यहीं लक्ष्मण ने सूपनखा की नाक काटी थी.

20. कोणेश्वरम मंदिर
रावण भगवान शिव की अराधना करता था और उसने भगवान शिव के लिए इस मंदिर की भी स्थापना करवाई. यह दुनिया का इकलौता मंदिर है जहां भगवान से ज़्यादा उनके भक्त रावण की आकृति बनी हुई है. इस मंदिर में बनी एक आकृति में रावण के दस सिरों को दिखाया गया है. कहा जाता है कि रावण के दस सिर थे और उसके दस सिर पर रखे दस मुकुट उसके दस जगहों के अधिपत्य को दर्शाता है.

21. गर्म पानी के कुएं
रावण ने कोणेश्वरम मंदिर के पास गर्म पानी के कुएं बनवाए थे, जो आज भी वहां मौजूद हैं.


।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

Wednesday, September 16, 2015

ॐकार, शिवलिंग और सृष्टी की उत्त्पति

#ॐकार_बिगबेंग#शिवलिंग और #सृष्टी की उत्त्पति


आज बिग-बेंग के बारे में जो पढ़ने को मिलता हैं। इससे पहले हमारे #वेदों में इसकी ब्याख्या की हुयी हैं।

बिग बेंग (महाविस्फोट) का सिधांत सर्वप्रथम Georges Lemaître ने 1920 में दिया | इसके पश्चात आधुनिक वैज्ञानिक Stephen Hawking ने इसी सिधांत पर गहन कार्य किया और बहुत सही व्याख्या भी की जो काफी प्रसिद्ध हुई | यह सिद्धांत कहता है कि कैसे आज से लगभग १३.७ खरब वर्ष पूर्व एक अत्यंत गर्म और घनी अवस्था से ब्रह्मांड का जन्म हुआ। इसके अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बिन्दु से हुयी थी जिसकी उर्जा अनंत थी | उस समय मानव, समय और स्थान जैसी कोई वस्तु अस्तित्व में नहीं थी अर्थात कुछ नही था ! इस धमाके में अत्यधिक ऊर्जा का उत्सजर्न हुआ। यह ऊर्जा इतनी अधिक थी जिसके प्रभाव से आज तक ब्रह्मांड फैलता ही जा रहा है। सारी भौतिक मान्यताएं इस एक ही घटना से परिभाषित होती हैं जिसे महाविस्फोट सिद्धांत कहा जाता है। महाविस्फोट नामक इस महाविस्फोट के धमाके के मात्र १.४३ सेकेंड अंतराल के बाद समय, अंतरिक्ष की वर्तमान मान्यताएं अस्तित्व में आ चुकी थीं। भौतिकी के नियम लागू होने लग गये थे। १.३४वें सेकेंड में ब्रह्मांड १०३० गुणा फैल चुका था हाइड्रोजन, हीलियम आदि के अस्तित्त्व का आरंभ होने लगा था और अन्य भौतिक तत्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी ) बनने लगे थे | ये बेचारे लुड्कते पुड्कते धीरे धीरे हमारे ग्रंथों में कही बातो पर ही आ रहे है | वो भी स्वतंत्र रूप से नही अपितु हमारे ग्रंथों को पढ़ कर ।
जबकि ये सारी थ्योरी सविस्तार वेदों, उपनिषदों, पुराणों आदि में वर्णित है । इन्होने सन 1700 के आस पास बताया पृथ्वी गोल है इससे पहले सपाट थी । पर संस्कृत और हिंदी में तो भू(गोल) सदा से ही कहते रहे है | क्या अपने कभी भूसपाट सुना?? इन्होने सन 1950 के आस पास बताया universe अंडाकार (egg-shaped) है । पर संस्कृत और हिंदी में तो ब्रह्माण्ड (ब्रह्म +अण्ड) सदा से ही कहते रहे है | हमारे इन दो शब्दों ने ही उनके नाक में दम कर दिया था भाइयों !
इसीलिए तो लुच्चे मेकाले को 1835 में ब्रिटिश संसद में कहना पड़ा की हम ठहरे हाफ पेंट पहन कर गलियों में खेलने वाले बच्चे, हम भारतियों की कमर कैसे तोड़ेंगे ? फिर एक खड़ा होकर जोर से बोला उनकी संस्कृती पर चोट करके !!! (यहाँ देखें)
वेद इस संसार के प्राचीनतम ग्रन्थ तथा ज्ञान के स्रोत्र है इसमें कोई संदेह नही। अब वेदों में ब्रह्माण्ड की उत्पति की जो व्याख्या है वो देखते है | नासदीय सूक्त ऋग्वेद के 10 वें मंडल कर 129 वां सूक्त है. इसका सम्बन्ध ब्रह्माण्ड विज्ञान और ब्रह्मांड की उत्पत्ति के साथ है। माना जाता है की यह सूक्त ब्रह्माण्ड के निर्माण के बारे में काफी सटीक तथ्य बताता है. इसी कारण दुनिया में काफी प्रसिद्ध हुआ |

नासदासींनॊसदासीत्तदानीं नासीद्रजॊ नॊ व्यॊमापरॊ यत् । किमावरीव: कुहकस्यशर्मन्नभ: किमासीद्गहनं गभीरम् ॥१॥ उस समय अर्थात् सृष्टि की उत्पत्ति से पहले प्रलय दशा में असत् अर्थात् अभावात्मक तत्त्व नहीं था. सत्= भाव तत्त्व भी नहीं था, रजः=स्वर्गलोक मृत्युलोक और पाताल लोक नहीं थे, अन्तरिक्ष नहीं था, और उससे परे जो कुछ है वह भी नहीं था, वह आवरण करने वाला तत्त्व कहाँ था और किसके संरक्षण में था। उस समय गहन= कठिनाई से प्रवेश करने योग्य गहरा क्या था, अर्थात् वे सब नहीं थे। न मृत्युरासीदमृतं न तर्हि न रात्र्या।आन्ह।आसीत् प्रकॆत: । आनीदवातं स्वधया तदॆकं तस्माद्धान्यन्नपर: किंचनास ॥२॥ उस समय में मृत्यु नहीं थी और अमृत = मृत्यु का अभाव भी नहीं था। रात्री और दिन का ज्ञान भी नहीं था उस समय वह ब्रह्म तत्व ही केवल प्राण युक्त, क्रिया से शून्य और माया (स्रष्टि उत्पत्ति की ईछा ) के साथ जुड़ा हुआ एक रूप में विद्यमान था, उस माया सहित ब्रह्म से कुछ भी नहीं था और उस से परे भी कुछ नहीं था। आत्मा वा इदमेक एवाग्र आसीन्नान्यत्किञ्चचन । स ईक्षत लोकान्नु सृजा इति ॥ १ ॥ - ऐतरेय उपनिषद् 1.1.1 प्रारंभ में एक अकेला ही परमात्मा (तेज पुंज) विधमान था इसके अतिरिक्त किसी का कोई अस्तित्व नही था इसके पश्चात परमात्मा की ईछा से स्रष्टि हुई | ॐ तस्माद्वा एतस्मादात्मन आकाशः संभूतः । ॐ रूपी प्रस्फुटित नाद (ध्वनी) से पञ्च तत्वों की उत्पति हुई जिसमे सर्वप्रथम था आकाश |
आकाशाद्वायुः । आकाश से वायु | वायोरग्निः । वायु से अग्नि | अग्नेरापः । अग्नि से जल | अद्भ्यः पृथिवी । जल से पृथ्वी | पृथिव्या ओषधयः | पृथ्वी से औषधियाँ | ओषधीभ्योऽन्नम् | औषधियों से अन्न | अन्नात्पुरुषः | - तैत्तिरीय उपनिषद् 2.1.2 और अन्न से पुरुष उत्पन्न हुआ |

Explanation in English
http://www.youtube.com/watch?feature
player_embedded&v=r8guP5et4yw

इसलिए पृथ्वी को माता तुल्य कहा गया है परन्तु आजकल के लोग 1 नंबर के मुरख है प्रकृति को नष्ट करने पर तुले हुए है जबकि इसकी रक्षा उतनी अनिवार्य है जितनी हमारी माता की । दोस्तों उपरोक्त बताया गया वर्णन पूर्णता तर्क संगत तथा विज्ञान संगत है देखें कैसे? ओंमकार से महाविस्फोट जिसके फलस्वरूप निकली उर्जा सर्वत्र फेलने लगी और आकाश तत्व की उत्पति हुई जितने भी तारे, पिंड आदि हम देखते है वे सभी उसी महाविस्फोट के पश्चात अस्तित्व में आये । उनमे से अधिकतर गेसीय पिंड है सतह किसी किसी में बहुत अल्प है, किसी में तो बिलकुल नही इसप्रकार वायु तत्व अस्तित्व में आया ।vedicbharat.comवायु तत्व के बाद अग्नि की उत्त्पत्ति वायु के घर्षण से हुई . जितने भी तारे है वो सब वायु के गोले है और उनके घर्षण से ही अग्नि की उत्पत्ति हुई । इसका उदहारण आज भी हम प्रथ्वी के वायु मंडल में किसी उल्का के प्रवेश करने पर अग्नि की उत्पति होती है, देखते है। जिसे हम टूटता तारा कहते है | अतः वायु की उपस्थति में घर्षण से अग्नि प्रकट हुई | अग्नि से जल का निर्माण हुआ | इसे हम विज्ञान के द्वारा समझ सकते है : एक बीकर में हाईड्रोजन और एक बीकर में आक्सीजन ले कर उन्हें एक नली से जोड़े . अब हम जैसे ही बेक्ट्री के द्वारा स्पार्क करेंगे हईड्रोजन के दो अणु आक्सीजन के एक अणु से मिल कर जल के एक अणु (H2O) का निर्माण कर देते है . जल का निर्माण तब तक नही होता जब तक की अग्नि/ऊष्मा न हो | अंत में इन सभी तत्वों से पृथ्वी (ठोस/चट्टान आदि) की उत्पति हुई जब अत्यंत गर्म द्रव्य वायु की उपस्थिति में ठंडा होने लगता है तब वह ठोस रूप लेता है ठीक उसी प्रकार जैसे ज्वालामुखी से निकला लावा धीरे धीरे ठंडा होकर ठोस चट्टान बनता है | 


।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

Wednesday, August 26, 2015

फ्रिज में न रखें ये सामान

  • 1

    फ्रिज में न रखें ये सामान

    रेफ्रिजरेटर में चीजों को इसलिए रखते हैं ताकि वे खराब न हों। लेकिन, कुछ चीजों को फ्रिज में नहीं रखना चाहिये। वे बाहर ही ज्‍यादा सुरक्षित रहती हैं। इनमें से कुछ के बारे में आपको पहले से ही पता होगा, लेकिन कुछ आपको हैरान कर देंगी। 
  • 2

    कॉफी

    फ्रिज में रखने पर कॉफी अपना सारा स्‍वाद खो देती है। तो बेहतर है कि आप इसे एयरटाइट जार में बाहर ही रखें। फ्रिज में रखने पर यह अपनी कुदरती गंध भी खो देती है। इसलिए इसे बाहर ही रखना चाहिये। 
  • 3

    तेल

    तेल को कभी फ्रिज में नहीं रखना चाहिये। फ्रिज में रखने से यह गाढ़ा हो जाता है और कुछ हद तक मक्‍खन की तरह हो जाता है। कुछ तेल जैसे नारियल और ऑलिव ऑयल को खासतौर पर‍ फ्रिज में नहीं रखना चाहिये। और जब आप इन्‍हें फ्रिज से निकालते हैं तो इन्‍हें सामान्‍य तापमान तक आने में काफी समय लगता है। 
  • 4

    प्‍याज

    प्‍याज को तो कभी भी फ्रिज में न रखें। फ्रिज में रखने पर ये न सिर्फ पिलपिले हो जाते हैं बल्कि इससे फ्रिज के अंदर भी अजीब सी गंध भर जाती है। इससे फ्रिज में रखे अन्‍य सामान पर भी इसका असर आता है। तो बेहतर है कि प्‍याज को बाहर ही रखा जाए।
  • 5

    आलू

    आलू स्‍टार्च से भरा होता है, जो ठंड में बुरा असर डालती हैं। ठंड में स्‍टार्च शुगर के रूप में टूटने लगता है। इससे यह ग्रीटी और एक प्रकार से मीठा हो जाता है। इससे इसका स्‍वाद और आकार दोनों खराब हो जाते हैं। आलू वास्‍तव में ठंडे और अंधेरे में ही रखने चाहिये। अच्‍छा है अगर आप इन्‍हें कागज में लपेटकर रखें। और प्‍याज से दूर क्‍योंकि दोनों को साथ रखने पर दोनों जल्‍दी खराब हो सकते हैं। 
  • 6

    टमाटर

    टमाटर पकने पर ज्‍यादा स्‍वाद देते हैं। लेकिन फ्रिज में रखने से टमाटर के पकने की कुदरती प्रक्रिया रुक जाती है। फ्रिज में रखने पर वे मुलायम हो जाते हैं और उनके भीतर बर्फ के कण जमने लगते हैं। इसके बजाय आपको चाहिये कि आप ताजा टमाटर खरीदें और उन्‍हें फ्रिज में न रखें। 
    • 7

      शहद

      शहद कुदरती प्र‍िजरवेटिव है, तो अगर आप इसे बरसों तक जार में ऐसे ही रखा रहने दें तो भी यह खराब नहीं होता। शहद को फ्रिज में रखने से उसमें चीनी के कण जमा हो जाते हैं और शहद सख्‍त हो जाता है। ऐसे में इसे जार से निकालना मुश्किल हो जाता है।
      • 8

        खरबूजा

        फ्रिज में रखने से खरबूजा अपने एंटीऑक्‍सीडेंट गुण खो देता है। खासतौर पर अगर आप उन्‍हें बिना काटे फ्रिज में रखें तो इसके एंटीऑक्‍सीडेंट गुणों पर विपरीत असर पड़ता है। हालांकि काटकर आप इसे फ्रिज में रख सकते हैं। 
        • 9

          ब्रेड

          फ्रिज में रखने से ब्रेड जल्‍दी खराब होती है। फ्रिज में रखने पर यह जल्‍दी सख्‍त हो जाती है और आसानी से चूरा हो जाती है। अगर ब्रेड सैं‍डविच के रूप में हो, तो आप उसे फ्रिज में रख सकते हैं। अन्‍यथा आप उसे फ्रिज में न रखें और सीधा फ्रिजर में रख दें। 
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            लहसुन

            लहसुन फ्रिज के बाहर भी सुरक्षित रहता है। बल्कि अगर आप इसे फ्रिज में रखेंगे तो यह ज्‍यादा जल्‍दी खराब होगा। तो लहसुन को फ्रिज के बाहर ही रखना चाहिए। 
          • ।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।