हमारे हिन्दू धर्म के किसी भी शुभ कार्य, पूजा , अथवा अध्यात्मिक व्यक्ति के नाम के पूर्व ""श्री श्री 108 "" लगाया जाता है...!
लेकिन क्या सच में आप जानते हैं कि.... हमारे हिन्दू धर्म तथा ब्रह्माण्ड में 108 अंक का क्या महत्व है....?????
दरअसल.... वेदान्त में एक ""मात्रकविहीन सार्वभौमिक ध्रुवांक 108 "" का
उल्लेख मिलता है.... जिसका अविष्कार हजारों वर्षों पूर्व हमारे
ऋषि-मुनियों (वैज्ञानिकों) ने किया था l
आपको समझाने में सुविधा के लिए मैं मान लेता हूँ कि............ 108 = ॐ (जो पूर्णता का द्योतक है).
अब आप देखें .........प्रकृति में 108 की विविध अभिव्यंजना किस प्रकार की है :
1. सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी/सूर्य का व्यास = 108 = 1 ॐ
150,000,000 km/1,391,000 km = 108 (पृथ्वी और सूर्य के बीच 108 सूर्य सजाये जा सकते हैं)
2. सूर्य का व्यास/ पृथ्वी का व्यास = 108 = 1 ॐ
1,391,000 km/12,742 km = 108 = 1 ॐ
सूर्य के व्यास पर 108 पृथ्वियां सजाई सा सकती हैं .
3. पृथ्वी और चन्द्र के बीच की दूरी/चन्द्र का व्यास = 108 = 1 ॐ
384403 km/3474.20 km = 108 = 1 ॐ
पृथ्वी और चन्द्र के बीच 108 चन्द्रमा आ सकते हैं .
4. मनुष्य की उम्र 108 वर्षों (1ॐ वर्ष) में पूर्णता प्राप्त करती है .
क्योंकि... वैदिक ज्योतिष के अनुसार.... मनुष्य को अपने जीवन काल में
विभिन्न ग्रहों की 108 वर्षों की अष्टोत्तरी महादशा से गुजरना पड़ता है .
5. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति 200 ॐ श्वास लेकर एक दिन पूरा करता है .
1 मिनट में 15 श्वास >> 12 घंटों में 10800 श्वास >> दिनभर में 100 ॐ श्वास, वैसे ही रातभर में 100 ॐ श्वास
6. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति एक मुहुर्त में 4 ॐ ह्रदय की धड़कन पूरी करता है .
1 मिनट में 72 धड़कन >> 6 मिनट में 432 धडकनें >> 1 मुहूर्त में 4 ॐ धडकनें ( 6 मिनट = 1 मुहूर्त)
7. सभी 9 ग्रह (वैदिक ज्योतिष में परिभाषित) भचक्र एक चक्र पूरा करते समय 12 राशियों से होकर गुजरते हैं और 12 x 9 = 108 = 1 ॐ
8. सभी 9 ग्रह भचक्र का एक चक्कर पूरा करते समय 27 नक्षत्रों को पार करते हैं... और, प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं और 27 x 4 = 108 = 1 ॐ
9. एक सौर दिन 200 ॐ विपल समय में पूरा होता है. (1 विपल = 2.5 सेकेण्ड)
1 सौर दिन (24 घंटे) = 1 अहोरात्र = 60 घटी = 3600 पल = 21600 विपल = 200 x 108 = 200 ॐ विपल
उसी तरह ..... 108 का आध्यात्मिक अर्थ भी काफी गूढ़ है..... और,
1 ..... सूचित करता है ब्रह्म की अद्वितीयता/एकत्व/पूर्णता को
0 ......... सूचित करता है वह शून्य की अवस्था को जो विश्व की अनुपस्थिति में उत्पन्न हुई होती
8 ......... सूचित करता है उस विश्व की अनंतता को जिसका अविर्भाव उस शून्य में ब्रह्म की अनंत अभिव्यक्तियों से हुआ है .
अतः ब्रह्म, शून्यता और अनंत विश्व के संयोग को ही 108 द्वारा सूचित किया गया है .
इस तरह हम कह सकते हैं कि.....जिस प्रकार ब्रह्म की शाब्दिक अभिव्यंजना
प्रणव ( अ + उ + म् ) है...... और, नादीय अभिव्यंजना ॐ की ध्वनि है.....
ठीक उसी उसी प्रकार ब्रह्म की ""गाणितिक अभिव्यंजना 108 "" है.
लेकिन क्या सच में आप जानते हैं कि.... हमारे हिन्दू धर्म तथा ब्रह्माण्ड में 108 अंक का क्या महत्व है....?????
दरअसल.... वेदान्त में एक ""मात्रकविहीन सार्वभौमिक ध्रुवांक 108 "" का
उल्लेख मिलता है.... जिसका अविष्कार हजारों वर्षों पूर्व हमारे
ऋषि-मुनियों (वैज्ञानिकों) ने किया था l
आपको समझाने में सुविधा के लिए मैं मान लेता हूँ कि............ 108 = ॐ (जो पूर्णता का द्योतक है).
अब आप देखें .........प्रकृति में 108 की विविध अभिव्यंजना किस प्रकार की है :
1. सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी/सूर्य का व्यास = 108 = 1 ॐ
150,000,000 km/1,391,000 km = 108 (पृथ्वी और सूर्य के बीच 108 सूर्य सजाये जा सकते हैं)
2. सूर्य का व्यास/ पृथ्वी का व्यास = 108 = 1 ॐ
1,391,000 km/12,742 km = 108 = 1 ॐ
सूर्य के व्यास पर 108 पृथ्वियां सजाई सा सकती हैं .
3. पृथ्वी और चन्द्र के बीच की दूरी/चन्द्र का व्यास = 108 = 1 ॐ
384403 km/3474.20 km = 108 = 1 ॐ
पृथ्वी और चन्द्र के बीच 108 चन्द्रमा आ सकते हैं .
4. मनुष्य की उम्र 108 वर्षों (1ॐ वर्ष) में पूर्णता प्राप्त करती है .
क्योंकि... वैदिक ज्योतिष के अनुसार.... मनुष्य को अपने जीवन काल में
विभिन्न ग्रहों की 108 वर्षों की अष्टोत्तरी महादशा से गुजरना पड़ता है .
5. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति 200 ॐ श्वास लेकर एक दिन पूरा करता है .
1 मिनट में 15 श्वास >> 12 घंटों में 10800 श्वास >> दिनभर में 100 ॐ श्वास, वैसे ही रातभर में 100 ॐ श्वास
6. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति एक मुहुर्त में 4 ॐ ह्रदय की धड़कन पूरी करता है .
1 मिनट में 72 धड़कन >> 6 मिनट में 432 धडकनें >> 1 मुहूर्त में 4 ॐ धडकनें ( 6 मिनट = 1 मुहूर्त)
7. सभी 9 ग्रह (वैदिक ज्योतिष में परिभाषित) भचक्र एक चक्र पूरा करते समय 12 राशियों से होकर गुजरते हैं और 12 x 9 = 108 = 1 ॐ
8. सभी 9 ग्रह भचक्र का एक चक्कर पूरा करते समय 27 नक्षत्रों को पार करते हैं... और, प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं और 27 x 4 = 108 = 1 ॐ
9. एक सौर दिन 200 ॐ विपल समय में पूरा होता है. (1 विपल = 2.5 सेकेण्ड)
1 सौर दिन (24 घंटे) = 1 अहोरात्र = 60 घटी = 3600 पल = 21600 विपल = 200 x 108 = 200 ॐ विपल
उसी तरह ..... 108 का आध्यात्मिक अर्थ भी काफी गूढ़ है..... और,
1 ..... सूचित करता है ब्रह्म की अद्वितीयता/एकत्व/पूर्णता को
0 ......... सूचित करता है वह शून्य की अवस्था को जो विश्व की अनुपस्थिति में उत्पन्न हुई होती
8 ......... सूचित करता है उस विश्व की अनंतता को जिसका अविर्भाव उस शून्य में ब्रह्म की अनंत अभिव्यक्तियों से हुआ है .
अतः ब्रह्म, शून्यता और अनंत विश्व के संयोग को ही 108 द्वारा सूचित किया गया है .
इस तरह हम कह सकते हैं कि.....जिस प्रकार ब्रह्म की शाब्दिक अभिव्यंजना
प्रणव ( अ + उ + म् ) है...... और, नादीय अभिव्यंजना ॐ की ध्वनि है.....
ठीक उसी उसी प्रकार ब्रह्म की ""गाणितिक अभिव्यंजना 108 "" है.
Bohat hi badiya likha he aisa hi gyan dete rahna ekdam tatasth hokar jo sachchai he vo👍🙏
ReplyDeleteGood
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