Tuesday, June 23, 2015

सौर ऊर्जा चलित ट्रेन







यदि सब कुछ ठीक रहा तो आने वाले समय में भारत दुनिया का ऐसा पहला देश बन जाएगा, जहां सौर ऊर्जा चलित ट्रेन का परिचालन संभव हो पाएगा। भारतीय रेलवे ने सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करने की योजना के तहत रेवाड़ी-सीतापुर पैसेंजर ट्रेन के कोच की छतों पर सोलर पैनल्स लगा दिए हैं। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो न केवल ईंधन के खर्च में कटौती होगी, बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा। योजना के तहत रेलवे ने अगले पांच साल में 1000 मेगावाट सौर ऊर्जा संग्रह का लक्ष्य रखा है। उत्तर रेलवे के एक अधिकारी के मुताबिक, शान-ए-पंजाब और ताज एक्सप्रेस जैसी विशेष ट्रेनों की बोगियों की छतों पर भी जल्द ही सोलर पावर सिस्टम इन्स्टॉल किए जाएंगे।
रेलवे ने खर्च किए 3.90 लाख रुपए
रेवाड़ी-सीतापुर पैसेंजर ट्रेन की नॉन-एसी बोगियों पर सोलर पैनल्स लगाने में 3.90 लाख रुपए का खर्च आया। लेकिन अब रेलवे को इससे हर साल 1.24 लाख रुपए की बचत होगी। ट्रायल बेसिस पर दो नैरो गेज ट्रेनों की बोगियों पर भी सोलर पैनल लगाए जा चुके हैं। ये ट्रेनें कांगड़ा घाटी सेक्शन पर पठानकोट-जोगिंदरनगर रूट में और कालका-शिमला सेक्शन पर चल रही हैं।
17 यूनिट्स पावर करता है जेनरेट
सोलर पैनल्स एक दिन में करीब 17 यूनिट्स पावर जेनरेट करते हैं, जिससे बोगियों में लाइटिंग सिस्टम के लिए ऊर्जा की जरूरत पूरी हो जाती है। रेलवे अभी नॉन-एसी कोचों में ही सोलर पैनल लगाएगा।
अपनी जमीन पर सोलर पैनल लगाएगा रेलवे
स्टेशनों और अपनी दूसरी बिल्डिंग्स की छतों के साथ-साथ रेलवे अपनी जमीन पर भी सोलर पैनल लगाकर सौर ऊर्जा संग्रह करेगी। इस पर काम चल रहा है। योजना के तहत पूरे देश के रेलवे स्टेशनों, रेलवे ऑफिस बिल्डिंग्स और रेलवे फाटकों पर 8.8 मेगावाट की क्षमता वाले सोलर पावर प्लांट्स लगाए जाएंगे। ‘इंटीग्रल कोच फैक्टरी’ और आईआईटी मद्रास के साथ सौर ट्रेन परियोजना पर काम कर रहा है।
ये है पूरा लेखा-जोखा
> सौर ऊर्जा का इस्तेमाल होने से रेलवे को हर साल एक कोच पर 1.24 लाख रुपए की बचत होगी।
> इसके इस्तेमाल होने से डीजल की खपत कम होगी।
> एक अध्ययन के अनुसार, सौर ऊर्जा का उपयोग करने से एक ट्रेन पर हर साल 90,000 लीटर डीजल की खपत कम कर सकते हैं।
> साल 2013-2014 में रेलवे के 1.27 लाख करोड़ रुपए के खर्चे में से 28,500 करोड़ रुपए तेल पर ही खर्च हो गए थे।
पहले दिन की ट्रेन, फिर रात के लिए ढूंढेंगे विकल्प
रेलवे पायलट प्रोजेक्ट के तहत फिलहाल दिन में चलने वाली ट्रेनों पर यह प्रयोग कर रहा है। बाद में इसे दिन के साथ रात में भी दौड़ने वाली ट्रेनों पर भी इस्तेमाल किया जाएगा। फिलहाल इस पर रेलवे काम कर रहा है कि रात की ट्रेनों को बैटरी के माध्यम से कैसे पावर सप्लाई दी जा सकती है।
तीन साल में पैनल का खर्च होगा वसूल
पिछले साल आईआईटी बेंगलुरु ने ट्रेनों में सोलर एनर्जी के उपयोग को लेकर एक रिसर्च की थी। इसके लिए एक ट्रेन चुनी गई जिसमें पांच एसी कोच, 12 अन्य श्रेणी के कोच और एक पेंट्री दो पावर कार सहित कुल 20 कोच माने गए। इन कोच की छत पर सोलर पैनल लगाकर उनसे उत्पन्न होने वाली ऊर्जा का आकलन किया गया। रिसर्च में बताया गया है कि एक साल में 20 कोच की ट्रेन अौसतन 188 फेरे करती है। इनमें ऊर्जा की खपत को पूरा करने के लिए करीब 90 हजार लीटर डीजल खर्च होता है। साथ ही, करीब 240 टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन भी कम होगा। तीन साल में सोलर पैनल का खर्च भी निकल जाएगा।

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।

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