छिन्नोSपि चन्दनतरुर्न जहाति गन्धम्।
वृद्धोSपि वारणपतिर्न जहाति लोलाम् ।।
यन्त्रार्पितो मधुरतां न जहाति चेक्षुः ।
क्षीणोSपि न त्यजति शीलगुणान्कुलीनः।।"
(चाणक्यनीतिः--15.19)
अर्थः--ये चार अपनी विशेषता नहीं छोडतेः--
(1.) कटा हुआ चन्दन का वृक्ष भी अपनी गन्ध को नहीं छोडता ।
(2.) बूढा हो जाने पर भी हाथी गजपति क्रीडा (खेल) नहीं छोडता ।
(3.) कोल्हू में पेरी जाने के बाद भी ईख अपनी मधुरता नहीं छोडती ।
(4.) कुलीन दरिद्र (शूद्र या गरीब) भी अपनी सुशीलता आदि गुण गरीबी में भी नहीं छोडता।
जब ये सब विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी विशेषता नहीं छोडते तो हम क्या किसी से कम है, हमें अपनी विशेषता नहीं छोडनी चाहिए।
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।
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