हमारे शास्त्र, वेद, पुराण, ग्रंथ सभी की माने तो सनातन धर्म की उत्पति
सृष्टि के सृजन के साथ ही हुआ यानि हिंदू धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म
है और विद्वान ऐसा मानते भी हैं। हिंदू धर्म में पवित्र कहानियों और ईश्वर
का उल्लेख मिलता है। हिंदू धर्म के पवित्र ‘ऊँ’ शब्द में ईश्वर के एक लाख
से भी अधिक अर्थ समाए हुए हैं। कुछ हिंदू अनुयायियों का मानना है कि
मुस्लिम धर्म की पवित्र संख्य ‘786’ ओम का ही एक रूप है। क्योंकि इन दो
अलग-अलग धर्मों के पथ अलग हो सकते हैं, लेकिन हम सब एक हैं और हमारे ऊपर
केवल एक ही सर्वशक्तिमान की छाया है। फर्क बस इतना है कि हमारी भाषा और
रीती रिवाज बदल गए हैं।
आइये जानें ‘ऊँ’ के बारे में
कहा जाता है कि सृष्टि के निर्माण से भी पहले जो ध्वनि निरंतर अस्तित्व में थी उसका नाम ‘ऊँ’ है। ओंकार का सीधा सा अर्थ है जो सर्वशक्तिमान और सभी जगह स्थित हो। उपनिषद के अनुसार ‘ऊँ’ में ही समस्त ब्रह्मांड समाया है। इसी से जगत की उत्पत्ति हुई और यह इसी में समा जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो ‘ऊँ’ ही जन्म तथा यही मोक्ष का मूल है। यह एक अक्षर मात्र नहीं है। यह ऊर्जा का प्रतीक भी है। जिसके साथ ‘ऊँ’ जुड़ जाता है, उसकी शक्ति में वृद्धि हो जाती है। यह शरीर व ब्रह्मांड की चेतना का प्रतीक है। इसके उच्चारण से ब्रह्मांड की सकारात्मक ऊर्जा का तन-मन में संचार होता है।
यह तीन अक्षरों अ, ऊ और म के योग से बनता है। ये तीनों ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक हैं। ‘ऊँ’ का जाप करने से मनुष्य को भूतकाल के पापों से छुटकारा मिलता है, वर्तमान बेहतर हो जाता है और विवेकपूर्ण ढंग से निर्णय लेने के कारण भविष्य सुनहरा होता है।
‘ऊँ’ का उच्चारण शरीर में कंपन पैदा करता है। इसकी ध्वनि नाभि से उत्पन्न होती है। नाभि शरीर का ऊर्जा बिंदु माना जाता है। यहां से इस पवित्र ध्वनि का उदय होना शरीर को कई रोगों से मुक्त रखता है।
‘ऊँ’ के उच्चारण का सबसे अच्छा असर मस्तिष्क पर होता है। मस्तिष्क संबंधी कई परेशानियों, जैसे तनाव, थकान, क्रोध, निराशा आदि में ‘ऊँ’ के जाप से लाभ होता है। इससे जीवन में सकारात्मकता का संचार करता है। यह मनोबल को उच्च रखता है और निराशा के स्थान पर आशा का उदय करता है।
आगे जानें इस्लाम में क्यों मानते हैं ‘786’ को पवित्र अंक
जानिए इस्लाम धर्म में 786 का महत्व
आइये जानें ‘ऊँ’ के बारे में
कहा जाता है कि सृष्टि के निर्माण से भी पहले जो ध्वनि निरंतर अस्तित्व में थी उसका नाम ‘ऊँ’ है। ओंकार का सीधा सा अर्थ है जो सर्वशक्तिमान और सभी जगह स्थित हो। उपनिषद के अनुसार ‘ऊँ’ में ही समस्त ब्रह्मांड समाया है। इसी से जगत की उत्पत्ति हुई और यह इसी में समा जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो ‘ऊँ’ ही जन्म तथा यही मोक्ष का मूल है। यह एक अक्षर मात्र नहीं है। यह ऊर्जा का प्रतीक भी है। जिसके साथ ‘ऊँ’ जुड़ जाता है, उसकी शक्ति में वृद्धि हो जाती है। यह शरीर व ब्रह्मांड की चेतना का प्रतीक है। इसके उच्चारण से ब्रह्मांड की सकारात्मक ऊर्जा का तन-मन में संचार होता है।
यह तीन अक्षरों अ, ऊ और म के योग से बनता है। ये तीनों ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक हैं। ‘ऊँ’ का जाप करने से मनुष्य को भूतकाल के पापों से छुटकारा मिलता है, वर्तमान बेहतर हो जाता है और विवेकपूर्ण ढंग से निर्णय लेने के कारण भविष्य सुनहरा होता है।
‘ऊँ’ का उच्चारण शरीर में कंपन पैदा करता है। इसकी ध्वनि नाभि से उत्पन्न होती है। नाभि शरीर का ऊर्जा बिंदु माना जाता है। यहां से इस पवित्र ध्वनि का उदय होना शरीर को कई रोगों से मुक्त रखता है।
‘ऊँ’ के उच्चारण का सबसे अच्छा असर मस्तिष्क पर होता है। मस्तिष्क संबंधी कई परेशानियों, जैसे तनाव, थकान, क्रोध, निराशा आदि में ‘ऊँ’ के जाप से लाभ होता है। इससे जीवन में सकारात्मकता का संचार करता है। यह मनोबल को उच्च रखता है और निराशा के स्थान पर आशा का उदय करता है।
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