Tuesday, July 14, 2015

जानिए कैसे समान हैं ‘ऊँ’ और ‘786’

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हमारे शास्त्र, वेद, पुराण, ग्रंथ सभी की माने तो सनातन धर्म की उत्पति सृष्टि के सृजन के साथ ही हुआ यानि हिंदू धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म है और विद्वान ऐसा मानते भी हैं। हिंदू धर्म में पवित्र कहानियों और ईश्वर का उल्‍लेख मिलता है। हिंदू धर्म के पवित्र ‘ऊँ’ शब्द में ईश्वर के एक लाख से भी अधिक अर्थ समाए हुए हैं। कुछ हिंदू अनुयायियों का मानना है कि मुस्लिम धर्म की पवित्र संख्य ‘786’ ओम का ही एक रूप है। क्योंकि इन दो अलग-अलग धर्मों के पथ अलग हो सकते हैं, लेकिन हम सब एक हैं और हमारे ऊपर केवल एक ही सर्वशक्तिमान की छाया है। फर्क बस इतना है कि हमारी भाषा और रीती रिवाज बदल गए हैं।

आइये जानें ‘ऊँ’ के बारे में
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कहा जाता है कि सृष्टि के निर्माण से भी पहले जो ध्वनि निरंतर अस्तित्व में थी उसका नाम ‘ऊँ’ है। ओंकार का सीधा सा अर्थ है जो सर्वशक्तिमान और सभी जगह स्थित हो। उपनिषद के अनुसार ‘ऊँ’ में ही समस्त ब्रह्मांड समाया है। इसी से जगत की उत्पत्ति हुई और यह इसी में समा जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो ‘ऊँ’ ही जन्म तथा यही मोक्ष का मूल है। यह एक अक्षर मात्र नहीं है। यह ऊर्जा का प्रतीक भी है। जिसके साथ ‘ऊँ’ जुड़ जाता है, उसकी शक्ति में वृद्धि हो जाती है। यह शरीर व ब्रह्मांड की चेतना का प्रतीक है। इसके उच्चारण से ब्रह्मांड की सकारात्मक ऊर्जा का तन-मन में संचार होता है।
यह तीन अक्षरों अ, ऊ और म के योग से बनता है। ये तीनों ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक हैं। ‘ऊँ’ का जाप करने से मनुष्य को भूतकाल के पापों से छुटकारा मिलता है, वर्तमान बेहतर हो जाता है और विवेकपूर्ण ढंग से निर्णय लेने के कारण भविष्य सुनहरा होता है।
‘ऊँ’ का उच्चारण शरीर में कंपन पैदा करता है। इसकी ध्वनि नाभि से उत्पन्न होती है। नाभि शरीर का ऊर्जा बिंदु माना जाता है। यहां से इस पवित्र ध्वनि का उदय होना शरीर को कई रोगों से मुक्त रखता है।
‘ऊँ’ के उच्चारण का सबसे अच्छा असर मस्तिष्क पर होता है। मस्तिष्क संबंधी कई परेशानियों, जैसे तनाव, थकान, क्रोध, निराशा आदि में ‘ऊँ’ के जाप से लाभ होता है। इससे जीवन में सकारात्मकता का संचार करता है। यह मनोबल को उच्च रखता है और निराशा के स्थान पर आशा का उदय करता है।

आगे जानें इस्लाम में क्यों मानते हैं ‘786’ को पवित्र अंक 

जानिए इस्लाम धर्म में 786 का महत्व
मुस्लिम धर्म को मानने वाले लोगों का मानना है कि ‘786’ अंक बहुत पवित्र है। यह उनके लिए भाग्यशाली अंक है। दूसरे अर्थों में कहें, तो इस अंक को वह सबसे ज्यादा बेहतरीन और पाक मानते हैं। 786 अंक को सांकेतिक प्रतिनिधित्व के रूप में माना जाता है। मुस्लिम धर्म के लोगों का मानना है कि इस अंक की उत्पत्ति इस्लाम धर्म में हुई है।
इस्लाम में पवित्र अंक 786 की उत्पत्ति और महत्व का कोई उल्लेख नहीं है। इस्लाम में ‘बिस्मिल्ला’ (अल्लाह के नाम को) के स्थान पर इस अंक का उपयोग करने की शुरुआत हुई है। विद्वानों की माने तो इस अंक का प्रचलन मोहम्मद पैगंबर के समय से नहीं हो रहा है।
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एक मत के अनुसार कहते हैं कि यदि बिस्मिल्ला अल रहमान अल रहीम को अरबी या उर्दू भाषा में लिखा जाए और उन शब्दों को जोड़ा जाए तो उनका योग 786 आता है। इसलिए लोगों को अल्लाह के नाम का संबोधन देने के लिए एक विकल्प के रूप में 786 का पवित्र अंक उपयोग करने की सलाह दी गई। इस्लाम धर्म विज्ञान को नहीं मानता इसलिए कुछ मुस्लिम धर्म के अनुयाइयों की मानें, तो लोगों को अल्लाह की इबादत करने के लिए इस अंक को संलग्न किया गया।

जानिए कैसे समान हैं ‘ऊँ’ और ‘786’

 अब जानें क्या है ‘ऊँ’ और ‘786’ में संबंध

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सनातन धर्म के मुताबिक ‘786’ का मतलब ‘ऊँ’ होता है। कई विद्वानों ने लिखा है कि अगर इस जादुई संख्या 786 को संस्कृत में लिखा जाए तो ‘ऊँ’ दिखेगा। यानि ‘ऊँ’ का एक स्वरूप ही जादुई संख्या ‘786’ होगा।
हिंदू धर्म के अनुसार भगवान कृष्ण के अलग-अलग स्वरूपों से 786 की संख्या को बताया गया है। विद्वानों की माने तो श्रीकृष्ण ने बांसूरी के सात छिद्रों से सात स्वरों के साथ हाथों की तीन-तीन अंगुलियों से यानी छ: अंगुलियों से बांसुरी बजाकर गांवों को मुग्ध कर दिया करते रहे। (7) सात छिद्रों और सात स्वरों वाली बांसुरी को देवकी के आठवें (8) पुत्र प्रिय श्रीकृष्ण ने अपनी (6) अंगुलियों से बजाकर समस्त चराचर को मंत्रमुग्ध कर दिया था। इस तरह श्रीकृष्ण और 786 अंक का महत्व जितना मुस्लिम धर्म में है, उतनी ही हिन्दू धर्म में भी है।
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अंक ज्योतिष के अनुसार 786 को परस्पर में जोड़ते है तो 7+8+6=21 होता है। 21 को भी परस्पर जोड़ा जाए तो 2+1=3 अंक हुआ, जो कि लगभग सभी धर्मों में अत्यंत शुभ एवं पवित्र अंक माना जाता है। तीन उच्च महाशक्तियां ब्रह्मा, विष्णु और महेश। अल्लाह, पैगम्बर और नुमाइंदे की संख्या भी तीन तथा सारी सृष्टि के मूल में समाए प्रमुख गुण सत, रज व तम भी तीन ही हैं। अर्थात हिन्दू धर्म एवं मुस्लिम धर्म दोनों में ये दोनों धार्मिक प्रतीक मिलते-जुलते हैं।

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

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