राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित किराडू स्थित मंदिर अपनी शिल्प
कला के लिये विख्यात है। इन मंदिरों का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था।
किराडू को राजस्थान का खजुराहों भी कहा जाता है। लेकिन किराडू को खजुराहो
जैसी ख्याति नहीं मिल पाई क्योकि यह जगह पिछले 900 सालों से वीरान है और आज
भी यहाँ पर दिन में कुछ चहल-पहल रहती है। परन्तु शाम होते ही यह जगह वीरान
हो जाती है,सूर्यास्त के बाद यहाँ पर कोई नहीं रुकता है। क्या है इसके
पीछे का कारण ये desilutyens आज आपको बतायेंगे किराडू के मंदिरों का
निर्माण किसने कराया इसकी भी कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है।
हालाकि यहाँ पर 12 वीं शताब्दी के तीन शिलालेख उपलब्ध है पर
उन पर भी इनके निर्माण से सम्बंधित कोई जानकारी नहीं है। पहला शिलालेख
विक्रम संवत 1209 माघ चतुर्दशी तदनुसार 24 जनवरी 1153 का है। जो कि गुजरात
के चालुक्य कुमार पाल के समय का है।
दूसरा विक्रम संवत 1218, ईसवी 1161 का है जिसमें परमार सिंधुराज से
लेकर सोमेश्वर तक की वंशावली दी गई है और तीसरा यह विक्रम संवत 1235 का है।
जो गुजरात के चालुक्य राजा भीमदेव द्वितीय के सामन्त चौहान ‘मदन
ब्रह्मदेव’ का है। इतिहासकारों का मत है कि किराडू के मंदिरों का निर्माण
11वीं शताब्दी में हुआ था तथा इनका निर्माण परमार वंश के राजा दुलशालराज और
उनके वंशजो ने किया था।
एक साधू द्वारा श्रापित है यह क्षेत्र :-
किवदंतियों के अनुसार इस शहर पर एक साधु का श्राप लगा हुआ है। करीब
900 वर्ष पूर्व परमार राजवंश यहां राज करता था । उन दिनों इस शहर में एक
ज्ञानी साधु भी रहने आए थे। यहाँ पर कुछ दिन बिताने के बाद साधु देश भ्रमण
पर निकले तो उन्होंने अपने साथियों को स्थानीय लोगों के सहारे छोड़ दिया।
एक दिन सारे शिष्य बीमार पड़ गए और बस एक कुम्हारिन को छोड़कर अन्य किसी भी
व्यक्ति ने उनकी देखभाल नहीं की। साधु जब वापिस आए तो उन्हें यह सब देखकर
बहुत क्रोध आया।
साधु ने कहा कि जिस स्थान पर दया भाव ही नहीं है वहां मानवजाति को भी नहीं होना चाहिए। उन्होंने संपूर्ण नगरवासियों को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। जिस कुम्हारिन ने उनके शिष्यों की सेवा की थी, साधु ने उसे शाम होने से पहले यहां से चले जाने को कहा और यह भी सचेत किया कि पीछे मुड़कर न देखे। लेकिन कुछ दूर चलने के बाद कुम्हारिन ने पीछे मुड़कर देखा और वह भी पत्थर की बन गई। इस श्राप के बाद अगर शहर में शाम ढलने के पश्चात कोई रहता था तो वह पत्थर का बन जाता था। और यही कारण है कि यह शहर सूरज ढलने के साथ ही वीरान हो जाता है।
खजुराहो की भाँति हैं ‘किराडू’ के मंदिर-
- किराडू में किसी समय पांच भव्य मंदिरों कि एक श्रंखला थी। पर 19 वीं शताब्दी के सोमेश्वर मंदिर भगवान् शिव को समर्पित है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर की बनावट दर्शनीय है।
- अनेक खम्भों पर टिका यह मंदिर भीतर से दक्षिण के मीनाक्षी मंदिर की याद दिलाता है, तो इसका बाहरी आवरण खजुराहो के मंदिर का अहसास कराता है। काले व नीले पत्थर पर हाथी- घोड़े व अन्य आकृतियों की नक्काशी मंदिर की सुन्दरता में चार चांद लगाती है। मंदिर के भीतरी भाग में बना भगवान शिव का मंडप भी बेहतरीन है।
- किराडू श्रृंखला का दूसरा मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। यह मंदिर सोमेश्वर मंदिर से छोटा है किन्तु स्थापत्य व कलात्मक दृष्टिï से काफी समृद्ध है। इसके अतिरिक्त किराडू के अन्य 3 मंदिर हालांकि खंडहर में तब्दील हो चुके हैं, लेकिन इनके दर्शन करना भी एक सुखद अनुभव है।
- पूर्वार्ध में आये भूकम्प से इन मंदिरों को बहुत नुकसान पहुंचा और सदियों से वीरान रहने के कारण इनका ठीक से रख रखाव भी नहीं हो पाया। आज इन पांच मंदिरों में से केवल विष्णु मंदिर और सोमेश्वर मंदिर ही ठीक हालत में है।
- सोमेश्वर मंदिर यहाँ का सबसे बड़ा मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि विष्णु मंदिर से ही यहां के स्थापत्य कला की शुरुआत हुई थी और सोमेश्वर मंदिर को इस कला के उत्कर्ष का अंत माना जाता है।
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