भारत सदैव ही 'विश्व-गुरु' रहा है... फिर हम अपनी 'सर्वश्रेष्ठता का गर्व' क्यों ना करें.??
अंग्रेजी नववर्ष और पश्चिमी 'असभ्यता' का अन्धानुकरण करने वालो...
अपने अन्दर की छुपी हुई मानसिक कायरता की पीठ समय समय पर दिखाने वालो...
अंग्रेजो के मानसिक गुलामो... काले अंग्रेजो...
विश्व की सवश्रेष्ठ सभ्यता भारतीय सभ्यता के बारे में भी जानो--
विक्रम संवत अथवा बिक्रम सम्बत कैलेण्डर भारत में सर्वाधिक प्रयोग होने वाला है जबकि यह नेपाल का आधिकारिक कैलेण्डर है...
विक्रम सम्वत की स्थापना उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने 56 ईसा पूर्व शकों पर अपनी विजय के बाद की थी...
इस विषय में समकालीन राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का नाम आता है जो गलत है...
यह चन्द्र पंचांग पर आधारित है और प्राचीन हिन्दू पंचांग और वैदिक समय के पंचांग का अनुसरण करता है... यह सौर गणना पर आधारित ग्रेगोरियन कैलेण्डर से 56.7 वर्ष वरिष्ठ है... और वरिष्ठता क्या होती है ये ओलम्पिक में सौ मीटर दौड़ स्पर्धा के द्वितीय स्थान पर आये धावक से पूछना.??
भारत में आधिकारिक रूप से शक संवत को मान्यता प्राप्त है... मगर भारतीय संविधान की 'प्रस्तावना' के हिंदी संस्करण में संविधान को अपनाने की तिथि 26 नवम्बर 1949 विक्रम संवत के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत 2006 है....
हिन्दू पंचांग हिन्दू समाज द्वारा माने जाने वाला कैलेंडर है.. इसके भिन्न-भिन्न रूप मे यह लगभग पूरे भारत मे माना जाता है... पंचांग नाम पांच प्रमुख भागों से बने होने के कारण है, यह है: पक्ष, तिथी, वार, योग और कर्ण... एक साल मे 12 महीने होते है... हर महिने मे 15 दिन के दो पक्ष होते है, शुक्ल और कृष्ण... पंचांग (पंच + अंग = पांच अंग) हिन्दू काल-गणना की रीति से निर्मित पारम्परिक कैलेण्डर या कालदर्शक को कहते हैं... पंचांग नाम पाँच प्रमुख भागों से बने होने के कारण है, यह है- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण... इसकी गणना के आधार पर हिंदू पंचांग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति... भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे भारत में माना जाता है...
एक साल में 12 महीने होते हैं... प्रत्येक महीने में 15 दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल और कृष्ण... प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं... इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं... 12 मास का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से शुरू हुआ... महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पैर रखा जाता है... यह 12 राशियाँ बारह सौर मास हैं... जिस दिन सूर्य जिस राशि मे प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है... पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र मे होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है... चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घड़ी 48 पल छोटा है... इसीलिए हर 3 वर्ष मे इसमे एक महीना जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास कहते हैं...
जिस तरह जनवरी अंग्रेज़ी का पहला महीना है उसी तरह हिन्दी महीनों में चैत वर्ष का पहला महीना होता है...
हम इसे कुछ इस तरह से समझ सकते हैं-
मार्च-अप्रैल -चैत्र (चैत)
अप्रैल-मई -वैशाख (वैसाख)
मई-जून -ज्येष्ठ (जेठ)
जून-जुलाई -आषाढ़ (आसाढ़)
जुलाई-अगस्त -श्रावण (सावन)
अगस्त-सितम्बर -भाद्रपद (भादो)
सितम्बर-अक्टूबर -अश्विन (क्वार)
अक्टूबर-नवम्बर -कार्तिक (कातिक)
नवम्बर-दिसम्बर -मार्गशीर्ष (अगहन)
दिसम्बर-जनवरी -पौष (पूस)
जनवरी-फरवरी -माघ (माह)
फरवरी-मार्च -फाल्गुन (फागुन)
नववर्ष ज़रूर मनाऐं परन्तु इस बार 22 मार्च को हर्षोल्लास के साथ...
ताकि दुनिया को भी पता चले कि हमें अपनी संस्कृति जान से प्यारी है...
हमारा तो नया साल होगा.....
शुभ संवत 2069 जो की प्रभात वेला में, दिए जला कर, मंगल ध्वनियों के साथ,
22 मार्च 2012 को शुभारम्भ होगा... तब हम कहेंगे...
****आपको नव वर्ष की शुभ कामनाएं... *****
आप सबसे अनुरोध है कि भारतीय नव वर्ष का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार और समर्थन करे...
शुभकामनाएं मध्य रात्रि में क्यों नहीं देनी चाहिए.??
संध्या काल के आरम्भ होते ही रज तम का प्रभाव वातावरण में बढ़ने लगता है अतः इस काल में आरती करते हैं और संध्या काल में किये गए धर्माचरण हमें उस रज तम के आवरण से बचाता है... परन्तु आजकल पाश्चात्य संस्कृति के अँधानुकरण करने के चक्रव्यूह में फंसे हिन्दू इन बातों का महत्व नहीं समझते... मूलतः हमारी भारतीय संस्कृति में कोई भी शुभ कार्य मध्य रात्रि नहीं किया जाता है परन्तु वर्तमान समय में एक पैशाचिक कुप्रथा आरम्भ हो गयी है और वह की लोग मध्य रात्रि में ही शुभकामनाएं देते हैं और और फलस्वरूप उन शुभकामनाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता... जैसे पाश्चात्य संस्कृति के अनुसार नववर्ष मनाते हैं और सभी लोग मध्य रात्रि में ही नए वर्ष की शुभकामनाएं देने लगते हैं... कारण है समाज में धर्म शिक्षण का अभाव है और ऊपर से मीडिया ने सर्व सत्यानाश कर रखा है आजकल गाँव में भी शहरों की तरह सब कुछ होने लगा है... हमारी भारतीय संस्कृति तम से रज और रज से सत्व और ततपश्चात त्रिगुणातीत होने का प्रवास सिखाती है परन्तु आज सात्विकता क्या है यह भी अधिकांश हिन्दुओं को पता नहीं है.??
हिन्दू पर्व मानव के मन में सात्विकता जगाते हैं, चाहे वे रात में हों या दिन में... जबकि अंग्रेजी पर्व नशे और विदेशी संगीत में डुबोकर चरित्रहीनता और अपराध की दिशा में ढकेलते हैं... इसलिए जिन "मानसिक गुलामों" को इस अंग्रेजी और ईसाई नववर्ष को मनाने की मजबूरी हो, वे इसका भारतीयकरण कर मनाएं व एक जनवरी को निर्धनों को भोजन कराएं, बच्चों के साथ कुष्ठ आश्रम, गोशाला या मंदिर में जाकर दान-पुण्य करें, 31 दिसम्बर की रात में अपने गांव या मोहल्ले में भगवती जागरण करें, जिसकी समाप्ति एक जनवरी को प्रातः हो, अपने घर, मोहल्ले या मंदिर में 31 दिसम्बर प्रातः से श्रीरामचरितमानस का अखंड पारायण प्रारम्भ कर एक जनवरी को प्रातः समाप्त करें, एक जनवरी को प्रातः सामूहिक यज्ञ का आयोजन करें, एक जनवरी को प्रातः बस और रेलवे स्टेशन पर जाकर लोगों के माथे पर तिलक लगाएं...
भारतीय संस्कृति के हित में इस कविता को भी याद रखना चाहिए-
अँग्रेजी सन को अपनाया,
विक्रम संवत भुला दिया है...
अपनी संस्कृति, अपना गौरव
हमने सब कुछ लुटा दिया है...
जनवरी-फरवरी अक्षर-अक्षर
बच्चों को हम रटवाते हैं...
मास कौन से हैं संवत के,
किस क्रम से आते-जाते हैं...
व्रत, त्यौहार सभी अपने हम
संवत के अनुसार मनाते हैं...
पर जब संवतसर आता है,
घर-आँगन क्यों नहीं सजाते...
माना तन की पराधीनता
की बेड़ी तो टूट गई है...
भारत के मन की आज़ादी
लेकिन पीछे छूट गई है...
सत्य सनातन पुरखों वाला
वैज्ञानिक संवत अपना है...
क्यों ढोते हम अँग्रेजी को
जो दुष्फलदाई सपना है...
अपने आँगन की तुलसी को,
अपने हाथों जला दिया है...
अपनी संस्कृति, अपना गौरव,
हमने सब कुछ लुटा दिया है...
सर्वश्रेष्ठ है संवत अपना
हमको इसका ज्ञान नहीं हैं...
वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत...
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।
अंग्रेजी नववर्ष और पश्चिमी 'असभ्यता' का अन्धानुकरण करने वालो...
अपने अन्दर की छुपी हुई मानसिक कायरता की पीठ समय समय पर दिखाने वालो...
अंग्रेजो के मानसिक गुलामो... काले अंग्रेजो...
विश्व की सवश्रेष्ठ सभ्यता भारतीय सभ्यता के बारे में भी जानो--
विक्रम संवत अथवा बिक्रम सम्बत कैलेण्डर भारत में सर्वाधिक प्रयोग होने वाला है जबकि यह नेपाल का आधिकारिक कैलेण्डर है...
विक्रम सम्वत की स्थापना उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने 56 ईसा पूर्व शकों पर अपनी विजय के बाद की थी...
इस विषय में समकालीन राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का नाम आता है जो गलत है...
यह चन्द्र पंचांग पर आधारित है और प्राचीन हिन्दू पंचांग और वैदिक समय के पंचांग का अनुसरण करता है... यह सौर गणना पर आधारित ग्रेगोरियन कैलेण्डर से 56.7 वर्ष वरिष्ठ है... और वरिष्ठता क्या होती है ये ओलम्पिक में सौ मीटर दौड़ स्पर्धा के द्वितीय स्थान पर आये धावक से पूछना.??
भारत में आधिकारिक रूप से शक संवत को मान्यता प्राप्त है... मगर भारतीय संविधान की 'प्रस्तावना' के हिंदी संस्करण में संविधान को अपनाने की तिथि 26 नवम्बर 1949 विक्रम संवत के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत 2006 है....
हिन्दू पंचांग हिन्दू समाज द्वारा माने जाने वाला कैलेंडर है.. इसके भिन्न-भिन्न रूप मे यह लगभग पूरे भारत मे माना जाता है... पंचांग नाम पांच प्रमुख भागों से बने होने के कारण है, यह है: पक्ष, तिथी, वार, योग और कर्ण... एक साल मे 12 महीने होते है... हर महिने मे 15 दिन के दो पक्ष होते है, शुक्ल और कृष्ण... पंचांग (पंच + अंग = पांच अंग) हिन्दू काल-गणना की रीति से निर्मित पारम्परिक कैलेण्डर या कालदर्शक को कहते हैं... पंचांग नाम पाँच प्रमुख भागों से बने होने के कारण है, यह है- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण... इसकी गणना के आधार पर हिंदू पंचांग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति... भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे भारत में माना जाता है...
एक साल में 12 महीने होते हैं... प्रत्येक महीने में 15 दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल और कृष्ण... प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं... इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं... 12 मास का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से शुरू हुआ... महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पैर रखा जाता है... यह 12 राशियाँ बारह सौर मास हैं... जिस दिन सूर्य जिस राशि मे प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है... पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र मे होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है... चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घड़ी 48 पल छोटा है... इसीलिए हर 3 वर्ष मे इसमे एक महीना जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास कहते हैं...
जिस तरह जनवरी अंग्रेज़ी का पहला महीना है उसी तरह हिन्दी महीनों में चैत वर्ष का पहला महीना होता है...
हम इसे कुछ इस तरह से समझ सकते हैं-
मार्च-अप्रैल -चैत्र (चैत)
अप्रैल-मई -वैशाख (वैसाख)
मई-जून -ज्येष्ठ (जेठ)
जून-जुलाई -आषाढ़ (आसाढ़)
जुलाई-अगस्त -श्रावण (सावन)
अगस्त-सितम्बर -भाद्रपद (भादो)
सितम्बर-अक्टूबर -अश्विन (क्वार)
अक्टूबर-नवम्बर -कार्तिक (कातिक)
नवम्बर-दिसम्बर -मार्गशीर्ष (अगहन)
दिसम्बर-जनवरी -पौष (पूस)
जनवरी-फरवरी -माघ (माह)
फरवरी-मार्च -फाल्गुन (फागुन)
नववर्ष ज़रूर मनाऐं परन्तु इस बार 22 मार्च को हर्षोल्लास के साथ...
ताकि दुनिया को भी पता चले कि हमें अपनी संस्कृति जान से प्यारी है...
हमारा तो नया साल होगा.....
शुभ संवत 2069 जो की प्रभात वेला में, दिए जला कर, मंगल ध्वनियों के साथ,
22 मार्च 2012 को शुभारम्भ होगा... तब हम कहेंगे...
****आपको नव वर्ष की शुभ कामनाएं... *****
आप सबसे अनुरोध है कि भारतीय नव वर्ष का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार और समर्थन करे...
शुभकामनाएं मध्य रात्रि में क्यों नहीं देनी चाहिए.??
संध्या काल के आरम्भ होते ही रज तम का प्रभाव वातावरण में बढ़ने लगता है अतः इस काल में आरती करते हैं और संध्या काल में किये गए धर्माचरण हमें उस रज तम के आवरण से बचाता है... परन्तु आजकल पाश्चात्य संस्कृति के अँधानुकरण करने के चक्रव्यूह में फंसे हिन्दू इन बातों का महत्व नहीं समझते... मूलतः हमारी भारतीय संस्कृति में कोई भी शुभ कार्य मध्य रात्रि नहीं किया जाता है परन्तु वर्तमान समय में एक पैशाचिक कुप्रथा आरम्भ हो गयी है और वह की लोग मध्य रात्रि में ही शुभकामनाएं देते हैं और और फलस्वरूप उन शुभकामनाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता... जैसे पाश्चात्य संस्कृति के अनुसार नववर्ष मनाते हैं और सभी लोग मध्य रात्रि में ही नए वर्ष की शुभकामनाएं देने लगते हैं... कारण है समाज में धर्म शिक्षण का अभाव है और ऊपर से मीडिया ने सर्व सत्यानाश कर रखा है आजकल गाँव में भी शहरों की तरह सब कुछ होने लगा है... हमारी भारतीय संस्कृति तम से रज और रज से सत्व और ततपश्चात त्रिगुणातीत होने का प्रवास सिखाती है परन्तु आज सात्विकता क्या है यह भी अधिकांश हिन्दुओं को पता नहीं है.??
हिन्दू पर्व मानव के मन में सात्विकता जगाते हैं, चाहे वे रात में हों या दिन में... जबकि अंग्रेजी पर्व नशे और विदेशी संगीत में डुबोकर चरित्रहीनता और अपराध की दिशा में ढकेलते हैं... इसलिए जिन "मानसिक गुलामों" को इस अंग्रेजी और ईसाई नववर्ष को मनाने की मजबूरी हो, वे इसका भारतीयकरण कर मनाएं व एक जनवरी को निर्धनों को भोजन कराएं, बच्चों के साथ कुष्ठ आश्रम, गोशाला या मंदिर में जाकर दान-पुण्य करें, 31 दिसम्बर की रात में अपने गांव या मोहल्ले में भगवती जागरण करें, जिसकी समाप्ति एक जनवरी को प्रातः हो, अपने घर, मोहल्ले या मंदिर में 31 दिसम्बर प्रातः से श्रीरामचरितमानस का अखंड पारायण प्रारम्भ कर एक जनवरी को प्रातः समाप्त करें, एक जनवरी को प्रातः सामूहिक यज्ञ का आयोजन करें, एक जनवरी को प्रातः बस और रेलवे स्टेशन पर जाकर लोगों के माथे पर तिलक लगाएं...
भारतीय संस्कृति के हित में इस कविता को भी याद रखना चाहिए-
अँग्रेजी सन को अपनाया,
विक्रम संवत भुला दिया है...
अपनी संस्कृति, अपना गौरव
हमने सब कुछ लुटा दिया है...
जनवरी-फरवरी अक्षर-अक्षर
बच्चों को हम रटवाते हैं...
मास कौन से हैं संवत के,
किस क्रम से आते-जाते हैं...
व्रत, त्यौहार सभी अपने हम
संवत के अनुसार मनाते हैं...
पर जब संवतसर आता है,
घर-आँगन क्यों नहीं सजाते...
माना तन की पराधीनता
की बेड़ी तो टूट गई है...
भारत के मन की आज़ादी
लेकिन पीछे छूट गई है...
सत्य सनातन पुरखों वाला
वैज्ञानिक संवत अपना है...
क्यों ढोते हम अँग्रेजी को
जो दुष्फलदाई सपना है...
अपने आँगन की तुलसी को,
अपने हाथों जला दिया है...
अपनी संस्कृति, अपना गौरव,
हमने सब कुछ लुटा दिया है...
सर्वश्रेष्ठ है संवत अपना
हमको इसका ज्ञान नहीं हैं...
वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत...
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।
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