''हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थान प्रचक्षते॥''- (बृहस्पति आगम)
अर्थात : हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।
पहले हम जान लेते हैं कि हिमालय कितना विशाल- भारत के राज्य जम्मू और
कश्मीर, सियाचिन, उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम, असम, अरुणाचल तक हिमालय का
विस्तार है। ये सभी राज्य हिमालय की गोद में ही हैं। इसके अलावा उत्तरी
पाकिस्तान, उत्तरी अफगानिस्तान, तिब्बत, नेपाल और भूटान देश हिमालय के ही
हिस्से हैं।
भारतीय हिमालय के 4 भाग : जम्मू-कश्मीर हिमालय (सिन्धु
नदी से सतलुज नदी के बीच का भाग), गढ़वाल-कुमाऊं हिमालय (सतलुज से काली नदी
(सरयू) के बीच का भाग), नेपाल हिमालय (सरयू नदी से तीस्ता नदी के बीच का
भाग), असम-अरुणाचल हिमालय (तीस्ता नदी से ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक का
भाग)
जैन ग्रंथ 'जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति' में हिमवान की जंबूद्वीप के 6 वर्ष
पर्वतों में गणना की गई है और इस पर्वतमाला के 'महाहिमवंत' और
'चुल्लहिमवंत' नाम के दो भाग बताए गए हैं। महाहिमवंत पूर्व समुद्र (बंगाल
की खाड़ी) तक फैला हुआ है और चुल्लहिमवंत पश्चिम और दक्षिण की ओर वर्षधर
पर्वत के नीचे वाले सागर (अरब सागर) तक फैला है। इस ग्रंथ में गंगा और
सिन्धु नदियों का उद्गम चुल्लहिमालय में स्थित सरोवरों से माना गया है।
महाहिमवंत के 8 और चुल्ल के 11 शिखरों का उल्लेख 'जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति' में
है।
हिमालय के पर्वत : हिमालय के बीचोबीच सुमेरू पर्वत है।
सुमेरू के दक्षिण में हिमवान, हेमकूट तथा निषध नामक पर्वत हैं, जो अलग-अलग
देश की भूमि का प्रतिनिधित्व करते हैं। सुमेरू के उत्तर में नील, श्वेत और
श्रृंगी पर्वत हैं, वे भी भिन्न-भिन्न देश में स्थित हैं। इस सुमेरू पर्वत
को प्रमुख रूप से बहुत दूर तक फैले 4 पर्वतों ने घेर रखा है। 1. पूर्व में
मंदराचल, 2. दक्षिण में गंधमादन, 3. पश्चिम में विपुल और 4. उत्तर में
सुपार्श्व। इन पर्वतों की सीमा इलावृत के बाहर तक है।
सुमेरू के पूर्व में शीताम्भ, कुमुद, कुररी, माल्यवान, वैवंक नाम से आदि
पर्वत हैं। सुमेरू के दक्षिण में त्रिकूट, शिशिर, पतंग, रुचक और निषाद आदि
पर्वत हैं। सुमेरू के उत्तर में शंखकूट, ऋषभ, हंस, नाग और कालंज आदि पर्वत
हैं।
अन्य पर्वत : माल्यवान तथा गंधमादन पर्वत उत्तर तथा
दक्षिण की ओर नीलांचल तथा निषध पर्वत तक फैले हुए हैं। उन दोनों के बीच
कर्णिकाकार मेरू पर्वत स्थित है। मर्यादा पर्वतों के बाहरी भाग में भारत,
केतुमाल, भद्राश्व और कुरुवर्ष नामक देश सुमेरू के पत्तों के समान हैं। जठर
और देवकूट दोनों मर्यादा पर्वत हैं, जो उत्तर और दक्षिण की ओर नील तथा
निषध पर्वत तक फैले हुए हैं। पूर्व तथा पश्चिम की ओर गंधमादन तथा कैलाश
पर्वत फैला है। इसी समान सुमेरू के पश्चिम में भी निषध और पारियात्र- दो
मर्यादा पर्वत स्थित हैं। उत्तर की ओर निश्रृंग और जारुधि नामक वर्ष पर्वत
हैं। ये दोनों पश्चिम तथा पूर्व की ओर समुद्र के गर्भ में स्थित हैं
हिमालय के शिखर : हिमालय के कुछ प्रमुख शिखरों में सबसे
महत्वपूर्ण सागरमाथा हिमालय, अन्नपूर्णा, गणेय, लांगतंग, मानसलू,
रोलवालिंग, जुगल, गौरीशंकर, कुंभू, धौलागिरी और कंचनजंघा हैं।
हिमालय की कुछ प्रमुख नदियां हैं- सिंधु, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और यांगतेज।
पहला रहस्य...
सबसे बेहतर वातावरण : हिमालय की वादियों में रहने वालों
को कभी दमा, टीबी, गठिया, संधिवात, कुष्ठ, चर्मरोग, आमवात, अस्थिरोग और
नेत्र रोग जैसी बीमारी नहीं होती। हिमालय क्षेत्र के राज्य जम्मू-कश्मीर,
सिक्किम, हिमाचल, उत्तराखंड, असम, अरुणाचय आदि क्षेत्रों के लोगों का
स्वास्थ्य अन्य प्रांतों के लोगों की अपेक्षा बेहतर होता है।
इसे ध्यान और योग के माध्यम से और बेहतर करके यहां की औसत आयु सीमा बढ़ाई जा सकती है। तिब्बत के लोग निरोगी रहकर कम से कम 100 वर्ष तो जीवित रहते ही हैं।
इसे ध्यान और योग के माध्यम से और बेहतर करके यहां की औसत आयु सीमा बढ़ाई जा सकती है। तिब्बत के लोग निरोगी रहकर कम से कम 100 वर्ष तो जीवित रहते ही हैं।
पहला रहस्य...
देव स्थान : प्राचीन काल में हिमालय में ही देवता रहते
थे। यहीं पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्थान था और यहीं पर नंदनकानन वन
में इंद्र का राज्य था। इंद्र के राज्य के पास ही गंधर्वों और यक्षों का भी
राज्य था। स्वर्ग की स्थिति दो जगह बताई गई है: पहली हिमालय में और दूसरी
कैलाश पर्वत के कई योजन ऊपर।
मुण्डकोपनिषद् के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का एक संघ है। इनका
केंद्र हिमालय की वादियों में उत्तराखंड में स्थित है। इसे देवात्मा हिमालय
कहा जाता है। इन दुर्गम क्षेत्रों में स्थूल-शरीरधारी व्यक्ति सामान्यतया
नहीं पहुंच पाते हैं।
अपने श्रेष्ठ कर्मों के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माएं यहां प्रवेश कर
जाती हैं। जब भी पृथ्वी पर संकट आता है, नेक और श्रेष्ठ व्यक्तियों की
सहायता करने के लिए वे पृथ्वी पर भी आती हैं।
भौगोलिक दृष्टि से उसे उत्तराखंड से लेकर कैलाश पर्वत तक बिखरा हुआ माना
जा सकता है। इसका प्रमाण यह है कि देवताओं, यक्षों, गंधर्वों, सिद्ध
पुरुषों का निवास इसी क्षेत्र में पाया जाता रहा है। इतिहास पुराणों के
अवलोकन से प्रतीत होता है कि इस क्षेत्र को देवभूमि कहा और स्वर्गवत माना
जाता रहा है। आध्यात्मिक शोधों के लिए, साधनाओं सूक्ष्म शरीरों को विशिष्ट
स्थिति में बनाए रखने के लिए वह विशेष रूप से उपयुक्त है।
तीसरा रहस्य...
हिमालय के तीर्थ : हिमालय में कुछ हजारों ऐसे स्थान हैं
जिनको देवी-देवताओं और तपस्वियों के रहने का स्थान माना गया है, लेकिन मानव
आबादी के विस्फोट और तीर्थों के बाजारीकरण के चलते अब हिमालय में सामान्य
मानवों की उपस्थिति घातक सिद्ध हो रही है।
हिमालय के कुछ तीर्थ स्थान : कैलाश, मानसरोवर, अमरनाथ,
कौसरनाग, वैष्णोदेवी, पशुपतिनाथ, हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गोमुख,
देवप्रयाग, ऋषिकेश तथा अमरनाथ जैसे और भी स्थान हैं, जहां तीर्थ की दृष्टि
से जाना उचित है लेकिन इनमें से कुछ जगहों पर अब लोगों ने होटल, लॉज,
दुकानें आदि खोल ली हैं जिसके दुष्परिणाम भी उन्हें भुगतने पड़ रहे हैं।
।।हिमश्रृंग एवं प्रमुख स्थल।।
चौखम्बा, संतोपथ, नीलकंठ, सुमेरु पर्वत, कुनाली, त्रिशूल, भारतखूण्टा,
नंदादेवी, कामेत, द्रोणागिरी, कैलास मानसरोवर एवं प्रमुख स्थानों में
पंचप्रयाग, पंच केदार, पंच बद्री, गंगोत्री, यमुनोत्री, गोमुख, तुंगनाथ,
मध्महेश्वर, गोपेश्वर, श्रीनगर, उत्तरकाशी, ऊखीमठ, त्रिजुगीनाराण, जोशीमठ,
टिहरी, पौड़ी, हेमकुण्ड, फूलों की घाटी, रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा, रानीखेत,
नैनीताल, मनुस्यारी, वागेस्यारी, वागेश्वर, जागेश्वर, धारचूला, पिथौरागढ़,
लोहाघाट, चम्पावत, देहरादून, मसूरी, ऋषिकेश, हरिद्वार आदि स्थान हैं। इसी
केदारखंड में अलकापुरी तपोवन, गोमुख, ब्रह्मपुरी, नंदनवन, गन्धमादन,
वासुकीताल, वसुधारा आदि दर्शनीय देवस्थल हैं।
शास्त्रों के अनुसार इन तीर्थस्थलों में किसी भी प्रकार की मानव आबादी का
रहना वर्जित है। यह स्थान सिर्फ तपस्वियों के लिए ही है। हिमालय ने निकलने
वाली हजारों नदियों में से कुछ गंगा, यमुना, सिंधु, ब्रह्मपुत्र और यांगतेज
पर बांध बनाए जाने के बाद हिमालय की प्रकृति बिगड़ चुकी है। ये ऐसी नदियां
हैं जिनके दम पर हजारों दूसरी नदियां जीवित हैं। सभी की प्रकृति बिगड़
चुकी है। केदारनाथ और कश्मीर में आई भयानक बाढ़ से भी भारतीय यदि सबक नहीं
लेते हैं तो एक दिन भारत को हिमालय प्रलय की भूमि में बदल देगा और भारतीयों
को छुपने की जगह नहीं मिलेगी। ऐसा एक बार हो चुका है, तब मालवा के पठार के
कुछ हिस्से ही जल के प्रलय से अछूते थे, बाकी संपूर्ण भारत डूब चुका था।
चौथा रहस्य...
मानव की उत्पत्ति हिमालय क्षेत्र में हुई : तमाम शोध के
बाद यह ज्ञात हुआ है कि मानव की उत्पत्ति हिमालय में हुई थी। पुराणों के
अनुसार विवस्ता नदी के किनारे। विज्ञानियों एवं इतिहासवेत्ताओं के अनुसार
हिमालय पर फल, अन्न और शाक आदि सभी खाद्य पदार्थ पर्याप्त मात्रा में
उपलब्ध होते हैं। स्वभावतः मानव का मूल आहार यही है।
प्रसिद्ध समाज विज्ञानी कालचेंटर के अनुसार मनुष्य प्राकृतिक रूप से फल और
अनाज पर निर्भर करता है अतः हिमालय का क्षेत्र ही मानव की स्वाभाविक
जन्मस्थली है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है यहां जीवाश्म का पाया जाना, जो
विश्व में अन्य जगहों पर पाए गए दूसरे सभी जीवाश्मों की अपेक्षा कहीं
ज्यादा पुराना है।
विज्ञानियों का मानना है कि विश्वभर में मानव की 4 मुख्य जातियां पाई जाती
हैं। ये जातियां- 1. श्वेत- काकेशस, 2. पीले- मंगोलियन, 3. काले- नाग्रो,
4. लाल, रेड इंडियन-अमेरिकन। इन चारों के अलावा एक 5वीं जाति हैं, जो
भारतीयों की है। इस जाति में उपर्युक्त चारों जातियों का मिश्रण है। ये
भारतीय संकर नहीं हैं, अपितु यह इनकी मौलिकता है। इन भारतीयों में
उपर्युक्त सभी विशेषताएं पाई जाती हैं। भारत की संरचना एवं बनावट ऐसी है,
जहां नित्य छहों ऋतुएं विद्यमान रहती हैं। इसी भूमि में सब रंग-रूप के आदमी
निवास करते हैं। ये सारे लक्षण भारतवर्ष में स्थित हिमालय के निवासियों
में पाए जाते हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि मानव ने हिमालय में जन्म लिया
और समूचे देश में अपना विस्तार किया।
पांचवां रहस्य...
सिद्धाश्रम, मठ और गुफाओं का रहस्य : हिमालय में जैन,
बौद्ध और हिन्दू संतों के कई प्राचीन मठ और गुफाएं हैं। मान्यता है कि
गुफाओं में आज भी कई ऐसे तपस्वी हैं, जो हजारों वर्षों से तपस्या कर रहे
हैं। इस संबंध में हिन्दुओं के दसनामी अखाड़े, नाथ संप्रदाय के सिद्धि
योगियों के इतिहास का अध्ययन किया जा सकता है। उनके इतिहास में आज भी यह
दर्ज है कि हिमालय में कौन-सा मठ कहां पर है और कितनी गुफाओं में कितने संत
विराजमान हैं।
ज्ञानगंज मठ, जोशीमठ, हेमिस मठ आदि। केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ आदि जगहों
पर हजारों ऐसी चमत्कारिक गुफाएं हैं, जहां आम मनुष्य नहीं जा पाता है।
हिमालय के सिद्धाश्रमों में रहने वाले संन्यासियों की उम्र रुक जाती है।
संपूर्ण क्षेत्र का वातावरण ही ऐसा रहता है कि यहां मठों में समय को रोकने
वाले महात्मा तपस्या लीन रहते हैं। इसके अलावा अरुणाचल, सिक्किम, असम में
भी सैकड़ों तीर्थ हैं।
प्राचीनकाल में यहां अनेक शिक्षण केंद्र भी थे। बद्रीकाश्रम में सरस्वती
के तट पर व्यास एवं जैमिन का आश्रम था। यहीं पर महर्षि वेदव्यास ने 18
पुराणों की रचना की। काश्यप एवं अरुंधती का हिमदाश्रय, जगदग्नि का
उत्तरकाशी के पास, गर्ग का द्रोणगिरि में, मनु का बद्रीनाथ के पास, अगत्स्य
एवं गौतम का मंदाकिनी के तट पर, केदारनाथ मार्ग पर अगस्त्य मुनि का,
पाराशर मुनि का यमुनोत्री के पास, परशुराम का उत्तरकाशी, भृगु का
केदारकांठ, अत्री एवं अनुसूईया का गोपेश्वर पर विद्यापीठ था। इसी तरह जम्मू
और कश्मीर के अनंतनाग, पहलगाम, अमरनाथ, शिवखेड़ी गुफा, सुरिंसर और मानसर
झील, श्रीनगर, कौसरनाग आदि ऐसे स्थान हैं, जहां मठ और आश्रम होते थे।
सातवां रहस्य...
जड़ी-बूटियों का भंडार : हनुमानजी हिमालय के एक
क्षेत्र से ही संजीवनी का पर्वत उखाड़कर ले गए थे। हिमालय ही एकमात्र ऐसा
क्षेत्र है, जहां दुनियाभर की जड़ी-बूटियों का भंडार है। हिमालय की वनसंपदा
अतुलनीय है।
हिमालय में लाखों जड़ी-बूटियां हैं जिससे व्यक्ति के हर तरह के रोग को दूर
ही नहीं किया जा सकता बल्कि उसकी उम्र को दोगुना किया जा सकता है। इसके
अलावा ऐसी भी कई चमत्कारिक जड़ी-बूटियां हैं जिनका वर्णन अथर्ववेद,
आयुर्वेद और जड़ी-बूटियों के ग्रंथों में मिलता है। सोमवल्ली, संजीवनी
बूटी, अरुंधती, ब्रह्मकमल जैसी वनस्पतियां हिमालय के एक विशेष क्षेत्र में
पाई जाती हैं।
भारतीय चिकित्सा पद्धति में आदिकाल से ही जड़ी-बूटियों को विशेष महत्व दिया
गया है। अनेक प्राकृतिक फूलों, जड़ी-बूटियों और वनस्पतियों की इस सुरम्य
स्थली का महत्व जानना जरूरी है। महर्षि चरक ने अपनी चरक संहिता में उल्लेख
किया कि हिमालय दिव्य औषधि भूमि में श्रेष्ठ है। इस हिमालय में अनेक प्रकार
की दिव्यौषधियां, 24 प्रकार के सोम एवं अष्टवर्ग की जड़ी-बूटियां विद्यमान
हैं।
आठवां रहस्य...
येति : मान्यता है कि कस्तूरी मृग और येति का निवास
हिमालय में ही है। येति या यति एक विशालकाय हिम मानव है जिसे देखे जाने की
घटना का जिक्र हिमालय के स्थानीय निवासी करते आए हैं। येति आज भी एक रहस्य
है। कोई इसे भूरा भालू कहता है, कोई जंगली मानव तो कोई हिम मानव। कुछ
वैज्ञानिक इसे निंडरथल मानव मानते हैं। यह आमतौर पर तिब्बत के हिमालय वाले
क्षेत्र में पाया जाता है। विश्वभर में करीब 30 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने
दावा किया है कि हिमालय के बर्फीले इलाकों में हिममानव मौजूद हैं।
कस्तूरी मृग : हिमालय में ऐसे कई जीव-जंतु हैं, जो बहुत ही दुर्लभ है।
उनमें से एक दुनिया का सबसे दुर्लभ मृग है कस्तूरी मृग। यह हिरण उत्तर
पाकिस्तान, उत्तर भारत, चीन, तिब्बत, साइबेरिया, मंगोलिया में ही पाया जाता
है। इस मृग की कस्तूरी बहुत ही सुगंधित और औषधीय गुणों से युक्त होती है।
कस्तूरी मृग की कस्तूरी दुनिया में सबसे महंगे पशु उत्पादों में से एक है।
यह कस्तूरी उसके शरीर के पिछले हिस्से की ग्रंथि में एक पदार्थ के रूप में
होती है।
कस्तूरी चॉकलेटी रंग की होती है, जो एक थैली के अंदर द्रव रूप में पाई
जाती है। इसे निकालकर व सुखाकर इस्तेमाल किया जाता है। कस्तूरी मृग से
मिलने वाली कस्तूरी की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत अनुमानित 30 लाख रुपए
प्रति किलो है जिसके कारण इसका शिकार किया जाता रहा है। आयुर्वेद में
कस्तूरी से टीबी, मिर्गी, हृदय संबंधी बीमारियां, आर्थराइटिस जैसी कई
बीमारियों का इलाज किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल इत्र बनाने में भी किया
जाता है। माना जाता है कि यह कस्तूरी कई चमत्कारिक धार्मिक और सांसारिक लाभ
देने वाली औषधि है।
नौवां रहस्य...
हिमालय की रहस्यमय दुनिया : हिमालय क्षेत्र में प्रकृति
के सैकड़ों चमत्कार देखने को मिलेंगे। एक ओर जहां सुंदर और अद्भुत झीलें
हैं तो दूसरी ओर हजारों फुट ऊंचे हिमखंड। हजारों किलोमीटर क्षेत्र में फैला
हिमालय चमत्कारों की खान है। कुछ उदाहण यहां प्रस्तुत हैं-
* हिमालय में मोलेब्का गांव में सेलफोन केवल कुछ ऊंची पहाड़ियों पर ही काम
करता है। लोग केवल स्थानीय ऑपरेटर के माध्यम से ही फोन कर सकते हैं, परंतु
वहां एक छोटा-सा बस खड़े भर रहने का एक ऐसा स्थान है, जहां खड़े होने पर
मोबाइल फोन का नेटवर्क बेहतरीन ढंग से काम करता है।
* इस क्षेत्र में कई प्रयोगों के दौरान पाया गया कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरण
अचानक काम करना बंद कर देते हैं। कई पर्यटकों की इलेक्ट्रॉनिक घड़ियां
अचानक बंद हो जाती हैं। कई बार तो घड़ियों के समय में बदलाव की घटनाएं भी
सामने आईं। इलाके के रहस्यों में शोध कार्यों के लिए गए वैज्ञानिकों में से
कई ने स्वीकार किया कि उनको हर समय लगता था कि कोई उन पर हर समय निगाह रखे
हुए है।
* जम्मू-कश्मीर की लेह सीमा में स्थित एक चमत्कारिक पहाड़ी है जिसे लोग
मैग्नेटिक हिल कहते हैं। सामान्यतौर पर पहाड़ी के फिसलन पर वाहन को गियर
में डालकर खड़ा किया जाता है। यदि ऐसा नहीं किया जाए तो वाहन नीचे की ओर
लुढ़ककर खाई में गिर सकता है लेकिन इस मैग्नेटिक हिल पर वाहन को न्यूट्रल
करके खड़ा कर दिया जाए तब भी यह नीचे की ओर नहीं जाता, बल्कि ऊपर की ओर ही
खींचा चला जाता है। यही तो इस पहाड़ी का चमत्कार है कि वाहन लगभग 20
किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से स्वत: ही ऊपर की ओर चढ़ने लगता है।
* नारीलता नामक पौधे भारत में हिमालय क्षेत्र में पाया जाता है। इसका फूल
20 साल में एक बार खिलता है। यह फूल एक निर्वस्त्र स्त्री के आकार का होता
है। यह एक बहुत ही आश्चर्यजनक और दुर्लभ घटना है। इसी तरह एक फूल हनुमानजी
के मुख के समान होता है। हिमालय में ऐसे कई पेड़-पौधे हैं, जो एक स्थान से
दूसरे स्थान पर पहुंच जाते हैं।
दसवां रहस्य...
एलियंस रहते हैं हिमालय में?: विश्वभर के वैज्ञानिक
मानते हैं कि धरती पर कुछ जगहों पर छुपकर रहते हैं दूसरे ग्रह के लोग। उन
जगहों में से एक हिमालय है। भारतीय सेना और वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार
नहीं करते लेकिन वे अस्विकार भी नहीं करते हैं।
भारतीय सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) की यूनिटों ने सन् 2010
में जम्मू और कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में उडऩे वाली अनजान वस्तुओं
(यूएफओ) के देखे जाने की खबर दी थी। लेकिन बाद में इस खबर को दबा दिया गया।
पहली घटना: 20 अक्टूबर, 2011, सुबह 4.15 बजे, रात की
ड्यूटी कर रहे भारतीय सेना के एक जवान ने तश्तरी के आकार वाला उज्जवल चमकती
रोशनी से आच्छादित एक अंतरिक्ष यान सीमा रेखा के नजदीक एक सीमांत बस्ती
में उतरते देखा।
दो प्रकाश उत्सर्जक करीब तीन फुट ऊंचे जीव, जिनमें प्रत्येक के छह पैर और
चार आंखें थीं, यान के किनारे से एक ट्यूब से उभरे, वो जवान के पास पहुंचे
और अंग्रेजी के भारी-भरकम उच्चारण के साथ ज़ोर्ग ग्रह का रास्ता पूछा।
दूसरी घटना: एक अन्य सूचित घटना में, 15 फरवरी दोपहर तकरीबन 2.18 पर,
भारत-चीन सीमा से करीब 0.25 किलोमीटर दूर, एक छोटे से क्षेत्र में मैदान से
करीब 500 मीटर ऊपर चमकदार सफेद रोशनी नजर आई और आठ भारतीय कमांडो, एक
कुत्ते, तीन पहाड़ी बकरियों और एक बर्फीले तेंदुए को भारी बादलों में ले
जाने से पहले गायब हो गई। बाद में छह कमांडो को गोवा के एक स्वीमिंग पूल से
बचाया गया। दो लापता हैं। बचे हुए लोगों को ये घटना याद नहीं। इस घटना का
गवाह एक स्थानीय किसान बना, जो सीमा रेखा के नज़दीक भेड़ चरा रहा था।
तीसरी घटना : 22 जून को शाम 5.42 बजे, एक बड़ा अंडाकार
अंतरिक्ष यान उच्च हिमालय में गायब होने से पहले अस्थायी रूप से चीन की तरफ
एक सैन्य पड़ाव के ऊपर मंडराता नज़र आया, ऐसा कई प्रत्यक्षदर्शियों ने
कहा। रिपोर्टों में उर्द्धत किया गया कि वो करीब एक बड़े वायुयान के माप का
था, जो चमकते चक्रों और पीछे घसीटते कपड़ों से आच्छादित था।
आइटीबीपी की धुंधली तस्वीरों के अध्ययन के बाद भारतीय
सैन्य अधिकारियों का मानना है कि ये गोले न तो मानवरहित हवाई उपकरण (यूएवी)
हैं और न ही ड्रोन या कोई छोटे उपग्रह हैं। ड्रोन पहचान में आ जाता है और
इनका अलग रिकॉर्ड रखा जाता है। यह वह नहीं था। सेना ने 2011 जनवरी से अगस्त
के बीच 99 चीनी ड्रोन देखे जाने की रिपोर्ट दी है। इनमें 62 पूर्वी सेक्टर
के लद्दाख में देखे गए थे और 37 पूर्वी सेक्टर के अरुणाचल प्रदेश में।
इनमें से तीन ड्रोन लद्दाख में चीन से लगी 365 किमी लंबी भारतीय सीमा में
प्रवेश कर गए थे जहां आइटीबीपी की तैनाती है।
पहले भी लद्दाख में ऐसे प्रकाश पुंज देखे गए हैं। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर
और चीन अधिकृत अक्साइ चिन के बीच 86,000 वर्ग किमी में फैले लद्दाख में
सेना की भारी तैनाती है। इस साल लगातार आइटीबीपी के ऐसे प्रकाश पुंज देखे
जाने की खबर से सेना की लेह स्थित 14वीं कोर में हलचल मच गई थी।
जो प्रकाश पुंज आंखों से देखे जा सकते थे, वे रडार की जद में नहीं आ सके.
इससे यह साबित हुआ कि इन पुंजों में धातु नहीं है. स्पेक्ट्रम एनलाइजर भी
इससे निकलने वाली किसी तरंग को नहीं पकड़ सका. इस उड़ती हुई वस्तु की दिशा
में सेना ने एक ड्रोन भी छोड़ा, लेकिन उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ. इसे
पहचानने में कोई मदद नहीं मिली. ड्रोन अपनी अधिकतम ऊंचाई तक तो पहुंच गया
लेकिन उड़ते हुए प्रकाश पुंज का पता नहीं लगा सका।
भारतीय वायु सेना के पूर्व प्रमुख एयर चीफ मार्शल (सेवानिवृत्त) पी.वी.
नाइक कहते हैं, ‘हम इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते। हमें पता लगाना होगा कि
उन्होंने कौन-सी नई तकनीक अपनाई है।’
भारतीय वायु सेना ने 2010 में सेना के ऐसी वस्तुओं के देखे जाने के बाद
जांच में इन्हें ‘चीनी लालटेन’ करार दिया था। पिछले एक दशक के दौरान लद्दाख
में यूएफओ का दिखना बढ़ा है। 2003 के अंत में 14वीं कोर ने इस बारे में
सेना मुख्यालय को विस्तृत रिपोर्ट भेजी थी। सियाचिन पर तैनात सैन्य
टुकडिय़ों ने भी चीन की तरफ तैरते हुए प्रकाश पुंज देखे हैं, लेकिन ऐसी
चीजों के बारे में रिपोर्ट करने पर हंसी उडऩे का खतरा रहता है। (एजेंसियां)
1 comment :
कैलाश पर्वत चार नदियों से घिरा हुआ है ब्रहमपुत्र, सिंधु, सतलुज और क्रनाली| इस पर्वत के आसपास दो महान झील हैं – मानसरोवर झील और राक्षस झील है|
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