हनुमान जी वानर ही थे!
मलेच्छों, और विधर्मियों तथा आर्य समाजियों, ओशोवादियों एवं अम्बेडकरवादियों (जय भीम वालों) द्वारा फैलायी गयी कुत्सित बातों, सनातन धर्म को दूषित करने वाले कुत्सित कार्य कलापों का अंत करेगा कलियुग नाशक!
हनुमान जी वानर ही थे! (आर्य समाजियों के अनर्गल प्रलाप का जवाब)
स्वामी विद्यानंद सरस्वती नामक एक आर्यसमाजी की माने तो पशुपक्षी वेदो के ज्ञाता नहीं हो सकते, क्यों भाई जिन चीजों में जीवन भगवान ने डाला है क्या वो उसे सिखा नहीं सकता क्या, आर्य समाजियों की मुख्य दिक्कत ये है की ये कुछ ज्यादा ही "प्रेक्टिकल" है, क्या वानर, भालू और गिद्ध वेदो के ज्ञाता नहीं हो सकते?
अब ज्यादा ना लपेटते हुए निम्न लेख लिखने का कारण बताता हूँ! आर्यसमाजियों के अनुसार हनुमान जी ना वानर थे, जामवंत जी ना भालू और ना जटायु गिद्ध थे, बस एक आर्यसमाजी ही थे जो चतुर थे, ये मुख्यतः वाल्मीकि रामायण का उदाहरण देते हैं, और तुलसीदासकृत रामचरितमानस को मूर्खों का ग्रन्थ बताते हैं, खैर उस बारे में इनकी पोल बाद में खोलूंगा, अभी बात करते है की आर्य समाजियों को क्यों इस बात से इतनी लगी पड़ी रहती है!
आर्य समाजियों का कहना है की हनुमान को वानर कहना उनका अपमान करना है, और हनुमान जी वेदों के ज्ञाता थे तो एक वानर वेदो का ज्ञाता नहीं हो सकता, क्यों भाई? इसमें अपमान की बात कहाँ से आ गयी या फिर आप भी वामपंथियों जैसे सोचने लग गए, ये तो अटल सत्य है, एक सनातनी ने हनुमान जी को वानर कहने में उनका अपमान नहीं माना तो आपको इतना दर्द क्यों हो रहा है? और रही बात वेदो का ज्ञाता होने की तो ये आप आर्यसमाजियों की संकीर्ण सोच दर्शाता है,
रामचरितमानस के साथ तो ये पुराणो को भी काल्पनिक मानते हैं, अब अगर हम इन्हे समझाना भी चाहे तो किसका उदाहरण दें? खैर दूसरे पाठकगणों से ये कहना है की वे पहले हनुमान जी के जन्म को जान लें की उनका अवतार कैसे हुआ! फिर आर्य समाजियों के अनर्गल प्रलाप की तरफ बढ़ेंगे!
"हनुमान जी का जन्म त्रेता युग मे अंजना (एक नारी वानर) के पुत्र के रूप मे हुआ था। अंजना असल मे पुन्जिकस्थला नाम की एक अप्सरा थीं, मगर एक शाप के कारण उन्हें नारी वानर के रूप मे धरती पे जन्म लेना पडा। उस शाप का प्रभाव शिव के अन्श को जन्म देने के बाद ही समाप्त होना था। अंजना केसरी की पत्नी थीं। केसरी एक शक्तिशाली वानर थे जिन्होने एक बार एक भयंकर हाथी को मारा था। उस हाथी ने कई बार असहाय साधु-संतों को विभिन्न प्रकार से कष्ट पँहुचाया था। तभी से उनका नाम केसरी पड गया, "केसरी" का अर्थ होता है सिंह। उन्हे "कुंजर सुदान" (हाथी को मारने वाला) के नाम से भी जाना जाता है।
केसरी के संग मे अंजना ने भगवान शिव कि बहुत कठोर तपस्या की
जिसके फ़लस्वरूप अंजना ने हनुमान (शिव के अन्श) को जन्म दिया।
जिस समय अंजना शिव की आराधना कर रहीं थीं उसी समय अयोध्या-नरेश दशरथ, पुत्र प्राप्ति के लिये पुत्र कामना यज्ञ करवा रहे थे। फ़लस्वरूप उन्हे एक दिव्य फल प्राप्त हुआ जिसे उनकी रानियों ने बराबर हिस्सों मे बाँटकर ग्रहण किया। इसी के फ़लस्वरूप उन्हे राम, लषन, भरत और शत्रुघन पुत्र रूप मे प्राप्त हुए।
उस दिव्य फ़ल का छोटा सा टुकडा एक चील काट के ले गई और उसी वन के ऊपर से उडते हुए(जहाँ अंजना और केसरी तपस्या कर रहे थे) चील के मुँह से वो टुकडा नीचे गिर गया। उस टुकडे को पवन देव ने अपने प्रभाव से याचक बनी हुई अंजना के हाथों मे गिरा दिया। ईश्वर का वरदान समझकर अंजना ने उसे ग्रहण कर लिया जिसके फ़लस्वरूप उन्होंने पुत्र के रूप मे हनुमान को जन्म दिया।"
तो सैद्धांतिक रूप से हनुमान जी वानर हुए, और इस पर आर्य समाजी क्या प्रलाप करते है जरा देखिये इन्हे ये साबित करने का कीड़ा काटा है की वेदों के ज्ञाता परम ज्ञानी कोई वानर नहीं हो सकता, जबकि पवनदेव ने अंजना माता के कर्णरन्ध्र में प्रवेश कर आते समय आश्वासन दिया कि तेरे यहाँ सूर्य, अग्नि एवं सुवर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का मर्मज्ञ, विश्वन्द्य महाबली पुत्र होगा। और ऐसा ही हुआ भी।
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अब आर्यसमाजी अपने तर्क क्या देते हैं ये सुनिये-
१. आर्य समाजी - वानर शब्द से किसी योनि विशेष, जाति , प्रजाति अथवा उपजाति का बोध नहीं होता।
कलियुग नाशक - भाई हम भी तो यही मानते है, हमने कब सिर्फ शब्द के आधार पर ये प्रमाणित किया, हम भी मानते हैं की वानर के पर्यायवाची होते है, पर इससे क्या ये सिद्ध कर दिया की हनुमान जी वानर नहीं थे!
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२. आर्य समाजी - सुग्रीव, बालि आदि का जो चित्र हम देखते हैं उसमें उनकी पूंछ दिखाई देती हैं, परन्तु उनकी स्त्रियों के कोई पूंछ नहीं होती? नर-मादा का ऐसा भेद संसार में किसी भी वर्ग में देखने को नहीं मिलता।
कलियुग नाशक - कभी पुराण पढ़े होते तो ये ना कहते पर क्या करे पुराणो को काल्पनिक ही मान बैठे हो अनर्गल प्रलाप तो करोगे ही, अंजना माता एक नारी वानर थी, और सिर्फ सीरियल और चित्रों पर क्यों जाते हो, उनकी स्त्रियां वानर भी थी और मनुष्य भी जिससे वानर सेना का निर्माण हुआ जिसने श्रीराम की युद्ध में सहायता की, अब ये कह देने से की ऐसा भेद संसार में किसी भी वर्ग में देखने को नहीं मिलता।
ये आर्य समाजी सोचते है, वो त्रेता था ये कलियुग है जिसमे आपके माई बाप दयानंद पैदा हुए! थोडा तत्त्व ज्ञान पर ध्यान दो!
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३. आर्य समाजी - किष्किन्धा कांड (3/28-32) में जब श्री रामचंद्र जी महाराज की पहली बार ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान से भेंट हुई तब दोनों में परस्पर बातचीत के पश्चात रामचंद्र जी लक्ष्मण से बोले न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ यजुर्वेद धारिणः ! न अ-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम् || ४-३-२८
“ऋग्वेद के अध्ययन से अनभिज्ञ और यजुर्वेद का जिसको बोध नहीं हैं तथा जिसने सामवेद का अध्ययन नहीं किया है, वह व्यक्ति इस प्रकार परिष्कृत बातें नहीं कर सकता। निश्चय ही इन्होनें सम्पूर्ण व्याकरण का अनेक बार अभ्यास किया हैं, क्यूंकि इतने समय तक बोलने में इन्होनें किसी भी अशुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं किया हैं। संस्कार संपन्न, शास्त्रीय पद्यति से उच्चारण की हुई इनकी वाणी ह्रदय को हर्षित कर देती हैं”। सुंदर कांड (30/18,20) में जब हनुमान अशोक वाटिका में राक्षसियों के बीच में बैठी हुई सीता जी को अपना परिचय देने से पहले हनुमान जी सोचते हैं “यदि द्विजाति (ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य) के समान परिमार्जित संस्कृत भाषा का प्रयोग करूँगा तो सीता मुझे रावण समझकर भय से संत्रस्त हो जाएगी। मेरे इस वनवासी रूप को देखकर तथा नागरिक संस्कृत को सुनकर पहले ही राक्षसों से डरी हुई यह सीता और भयभीत हो जाएगी। मुझको कामरूपी रावण समझकर भयातुर विशालाक्षी सीता कोलाहल आरंभ कर देगी। इसलिए मैं सामान्य नागरिक के समान परिमार्जित भाषा का प्रयोग करूँगा।”
इस प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की हनुमान जी चारों वेद ,व्याकरण और संस्कृत सहित अनेक भाषायों के ज्ञाता भी थे। हनुमान जी के अतिरिक्त अन्य वानर जैसे की बालि पुत्र अंगद का भी वर्णन वाल्मीकि रामायण में संसार के श्रेष्ठ महापुरुष के रूप में किष्किन्धा कांड 54/2 में हुआ हैं हनुमान बालि पुत्र अंगद को अष्टांग बुद्धि से सम्पन्न, चार प्रकार के बल से युक्त और राजनीति के चौदह गुणों से युक्त मानते थे।
बुद्धि के यह आठ अंग हैं- सुनने की इच्छा, सुनना, सुनकर धारण करना, ऊहापोह करना, अर्थ या तात्पर्य को ठीक ठीक समझना, विज्ञान व तत्वज्ञान। चार प्रकार के बल हैं- साम , दाम, दंड और भेद राजनीति के चौदह गुण हैं- देशकाल का ज्ञान, दृढ़ता, कष्टसहिष्णुता, सर्वविज्ञानता, दक्षता, उत्साह, मंत्रगुप्ति, एकवाक्यता, शूरता, भक्तिज्ञान, कृतज्ञता, शरणागत वत्सलता, अधर्म के प्रति क्रोध और गंभीरता।
भला इतने गुणों से सुशोभित अंगद बन्दर कहाँ से हो सकता हैं?
कलियुग नाशक - अरे भाई जो साक्षात शिव का अवतार हो वो वेदों का ज्ञाता नहीं होगा तो क्या सत्यार्थ प्रकाश का ज्ञाता होगा? हनुमान जी अंगद जी स्वयं भगवान के अंश है, भगवान ने वेद लिखे शास्त्र लिखे उन्ही के श्री मुख के वचन है ये, उनके अंश में तो रहेंगे ही ये गुण, "भगवान की लीला और बानी, आर्यसमाजियों ने कभी ना जानी", ये कह कौन रहा है की पशु पक्षी ज्ञाता नहीं हो सकते शास्त्रो के, त्रेता की छोड़ो कलियुग की बात बताता हूँ, मंडन मिश्र का नाम तो सुना ही होगा उनके पास एक तोता था जिसे वेद कंठस्थ थे, बड़े बड़ों को हारता था वो तोता शास्त्रार्थ में, गूगल बाबा और अच्छी जानकारी देंगे, आर्य समाजियों से निवेदन है की जरा सर्च उधर भी मार लें!
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४. आर्य समाजी - वाल्मीकि रामायण में इसका कोई प्रमाण नहीं कि हनुमान बन्दर थे
कलियुग नाशक -
दृश्यते च महाज्वालः करोति च न मे रुजम् || ५-५३-३५
शिशिरस्य इव सम्पातो लान्गूल अग्रे प्रतिष्ठितः |
"It is conspicuous with large flames. But it is not creating any paoin to me, as if a snow-ball is kept at the tip of my tail."
तत् इदम् व्यक्तम् यत् दृष्टम् प्लवता मया || ५-५३-३६
राम प्रभावात् आश्चर्यम् पर्वतः सरिताम् पतौ |
"Or, while I was jumping over the ocean, a surprise-alliance was formed with Mount Mainaka and through the mountain, with the ocean, because of Rama's power. By this, the reason of the coolness is clear."
तो ये क्या है भाई, किसी ने एडिट तो नहीं कर दी वाल्मीकि रामायण
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५. आर्य समाजी - नहीं, वो तो हनुमान जी एक विमान में बैठकर संजीवनी लेने गए थे, वो उनकी नहीं विमान की पूँछ थी, और लंका भी उन्होंने विमान की मिसाइलों से जलायी!
कलियुग नाशक - अभी कह रहे थे की वाल्मीकि रामायण में कुछ नहीं हनुमान जी के वानर होने के सम्बन्ध में, जब सबूत दिया तो कह रहे हो की वो हनुमान जी की नहीं विमान की पूँछ थी, बबुआ एक बात बताओ रामायण में रावण के पुष्पक विमान का उल्लेख है, तो वाल्मीकि जी क्या हनुमान जी के विमान का उल्लेख नहीं कर सकते थे? उन्होंने स्पष्ट रूप से पूँछ लिखा है, रामचरितमानस को तो मानते नहीं, वर्ना उसमे तो आर्य समाजियों को ठंडा करने के लिए बहुत सारी चौपाइयां हैं!
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६. आर्य समाजी - जटायु गिद्ध नहीं था, सन्दर्भ-अरण्यक ४९ /३८
जटायो पश्य मम आर्य ह्रियमाणम् अनाथ वत् |
अनेन राक्षसेद्रेण करुणम् पाप कर्मणा || ४९-३८
कथम् तत् चन्द्र संकाशम् मुखम् आसीत् मनोहरम् |
सीतया कानि च उक्तानि तस्मिन् काले द्विजोत्तम || ६८-६
यहाँ जटायु को आर्य और द्विज कहा गया हैं। यह शब्द किसी पशु-पक्षी के सम्बोधन में नहीं कहे जाते। रावण को अपना परिचय देते हुए जटायु ने कहा -मैं गृध कूट का भूतपूर्व राजा हूँ और मेरा नाम जटायु हैं सन्दर्भ -अरण्यक 50/4
कलियुग नाशक - किसने कह दिया महोदय की आर्य शब्द किसी पशु-पक्षी के सम्बोधन में नहीं कहे जाते। लगता है ये भी दयानंदी नियम है, वो ज्ञाता हो वो आर्य है, जो सिर्फ मनुष्य हो वही आर्य है ऐसा नहीं है, जटायु राजा थे, और पक्षीराज थे! अरण्यकाण्ड में ही वर्णन है, जब राम जटायु का अंतिम संस्कार करते है!
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७. आर्य समाजी - जामवंत भालू नहीं थे? आपत काल में बुद्धिमान और विद्वान जनों से संकट का हल पूछा जाता हैं और युद्ध जैसे काल में ऐसा निर्णय किसी अत्यंत बुद्धिवान और विचारवान व्यक्ति से पूछा जाता हैं। पशु-पक्षी आदि से ऐसे संकट काल में उपाय पूछना सर्वप्रथम तो संभव ही नहीं हैं दूसरे बुद्धि से परे की बात हैं।
कलियुग नाशक - अच्छा हुआ आर्य समाजी त्रेता युग में नहीं थे अन्यथा बेहोश ही हो जाते सब देख कर, अगर राम जी भी आर्य समाजियों की तरह सब को अल्पबुद्धि मान लेते तो पता नहीं क्या होता, आपके कहने का अर्थ या कह सकते है पूर्वाग्रह ही है की आप पशुओं को (त्रेता के) कलियुग जैसा मान रहे हो, भाई वो त्रेता था फिर द्वापर आया ये कलियुग है! ये कलियुग का प्रभाव है उस ज़माने में जीव जंतु बोलते थे तथा निर्णय भी करते थे, तत्त्व ज्ञान की बात है आर्य समाजियों के बूते से बाहर!
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८. आर्यसमाजी - हनुमान जी की माता जी का नाम 'अंजनी' था. और पिता जी का नाम 'पवन' था. ये दोनों मनुष्य थे या बन्दर ? यदि ये दोनों मनुष्य थे. तो क्या मनुष्यों के मनुष्य पैदा होते हैं या बन्दर ? यदि बन्दर पैदा नहीं होते, तो विचार करें, कि जब हनुमान जी के माता पिता मनुष्य थे, तो उनका बेटा श्री हनुमान जी भी तो मनुष्य सिद्ध हुआ.
कलियुग नाशक - हनुमान जी की माता जी का नाम 'अंजनी' (नारी वानर) था, और उनके पिता का नाम केसरी था (नर वानर), पवन देव मनुष्य नहीं देवता थे, उन्होंने हनुमान जी को उड़ना सिखाया था, इसीलिए उन्हें पवन पुत्र कहते है, और आर्य समाजियों के लिय एक ज्ञान वर्धन वाली बात - "देवताओं के नियम मनुष्यों पर लागू नहीं होते"
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९. आर्यसमाजी - यदि कोई छोटा बच्चा कहीं पर भीड़ में खो जाये, तो एक बन्दर से कहो, कि वह उस बच्चे का फोटो देख कर भीड़ में से उस बच्चे को पहचान कर ले आये. अब सोचिये क्या वह बन्दर भीड़ में से बच्चे को पहचान कर ले आयेगा. यदि नहीं. तो क्या हनुमान जी सीता जी को लंका से ढूंढ कर उनकी खबर ले आये या नहीं. यदि उनकी खबर ढूंढ लाये, तो अब बताइये, बन्दर तो यह काम नहीं कर सकता.
कलियुग नाशक - तो भाई बन्दर के रूप में क्यों देख रहे हो, उन्हें महाज्ञानी के रूप में देखो ना, "वानराणामधीशं रघुपतिप्रियां भक्तं वातजातं नमामि"
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१०. आर्य समाजी - आपने रामायण सीरिअल में बाली, सुग्रीव और उनकी पत्नियाँ तो देखी ही होंगी. उस सीरिअल में बाली और सुग्रीव तो बन्दर दिखाए गए.परन्तु उनकी पत्नियाँ मनुष्यों वाली स्त्रियाँ दिखाई गईं या बंदरियां दिखाईं. यदि उनकी पत्नियाँ मनुष्य जाति की थी. तो उनके पति भी मनुष्य होने चाहियें.
अर्थात बाली और सुग्रीव भी मनुष्य दिखने चाहिए थे. परन्तु वे दोनों बन्दर दिखाए गए.यदि वे बन्दर थे, तो सोचिये क्या मनुष्यों की स्त्रियों की शादी बंदरों के साथ होती है ? या आजकल भी कोई मनुष्य स्त्रियाँ बंदरों के साथ शादी करने को तैयार हैं ? यदि उनकी पत्नियाँ मनुष्य थीं, तो उनके पति = बाली और सुग्रीव भी मनुष्य ही सिद्ध हुए. और श्री हनुमान जी उनके महामंत्री थे. वे भी उसी जाति के थे. तो श्री हनुमान जी भी मनुष्य सिद्ध हुए.
कलियुग नाशक - ज्ञानियों से सब तैयार हो जाते है सम्बन्ध बनाने को, कलियुग जैसी सोच नहीं जहाँ रूप देखा जाता है गुण नहीं, और इन कपिराजों की पत्नियां मनुष्य तथा वानरी दोनों थी!
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११. आर्य समाजी - वाल्मीकि रामायण में श्री हनुमान जी की योग्यता लिखी है, कि वे ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के विद्वान थे. तथा संस्कृत व्याकरण शास्त्र में बहुत कुशल थे. सोचिये, क्या बन्दर ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद तथा संस्कृत व्याकरण पढ़ सकता है ? यदि नहीं, तो बताइये, श्री हनुमान जी बन्दर कैसे हुए ?
कलियुग नाशक - एक लाइन में उत्तर "शिव का अवतार मतलब वेदों का अधिष्ठाता"
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१२. आर्य समाजी - हनुमान चालीसा के प्रारंभ में चौथे/पांचवें वाक्य में लिखा है, कि " काँधे मूंज जनेऊ साजे, हाथ बज्र और धजा बिराजे " अर्थात श्री हनुमान जी के कंधे पर मूंज की जनेऊ अर्थात यज्ञोपवीत सुशोभित होता था. उनके एक हाथ में वज्र (गदा) और दूसरे हाथ में ध्वज रहता था. अब सोचिये हनुमान चालीसा बहुत लोग पढ़ते हैं. फिर भी इस बात पर ध्यान नहीं देते, कि क्या बन्दर के कंधे पर मूंज की जनेऊ हो सकती है. क्या बन्दर के एक हाथ में गदा और दूसरे हाथ में ध्वज होता है. यदि नहीं, तो श्री हनुमान जी बन्दर कैसे हुए ?
कलियुग नाशक - हनुमान चालीसा को अनार्ष रचना कहते हो फिर कुछ मिलता नहीं तो उदाहरण भी इसी का देते हो अरे मान लो भाई एक ही तरह के सवाल ना करो, ये कलियुग है वो त्रेता था, पहले के गुण अलग थे, कलियुगी परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखकर ना सोचो, सब प्रभु की लीला है, प्रभु ही निर्धारित करते है की कौन क्या होगा, प्रभु के कार्य को तुम ना आंको, एक मान लो की वानर रूप में भी हनुमान जी के गुण देव समान हैं!
अरे मूर्ख आर्य समाजियों प्रभु की लीला पहचानो और अनर्गल प्रलाप ना करो! वैसे तुम्हारा विनाश तो तुम्हारे भाग्य में लिख चुका है
जय वीर हनुमान
मलेच्छों, और विधर्मियों तथा आर्य समाजियों, ओशोवादियों एवं अम्बेडकरवादियों (जय भीम वालों) द्वारा फैलायी गयी कुत्सित बातों, सनातन धर्म को दूषित करने वाले कुत्सित कार्य कलापों का अंत करेगा कलियुग नाशक!
हनुमान जी वानर ही थे! (आर्य समाजियों के अनर्गल प्रलाप का जवाब)
स्वामी विद्यानंद सरस्वती नामक एक आर्यसमाजी की माने तो पशुपक्षी वेदो के ज्ञाता नहीं हो सकते, क्यों भाई जिन चीजों में जीवन भगवान ने डाला है क्या वो उसे सिखा नहीं सकता क्या, आर्य समाजियों की मुख्य दिक्कत ये है की ये कुछ ज्यादा ही "प्रेक्टिकल" है, क्या वानर, भालू और गिद्ध वेदो के ज्ञाता नहीं हो सकते?
अब ज्यादा ना लपेटते हुए निम्न लेख लिखने का कारण बताता हूँ! आर्यसमाजियों के अनुसार हनुमान जी ना वानर थे, जामवंत जी ना भालू और ना जटायु गिद्ध थे, बस एक आर्यसमाजी ही थे जो चतुर थे, ये मुख्यतः वाल्मीकि रामायण का उदाहरण देते हैं, और तुलसीदासकृत रामचरितमानस को मूर्खों का ग्रन्थ बताते हैं, खैर उस बारे में इनकी पोल बाद में खोलूंगा, अभी बात करते है की आर्य समाजियों को क्यों इस बात से इतनी लगी पड़ी रहती है!
आर्य समाजियों का कहना है की हनुमान को वानर कहना उनका अपमान करना है, और हनुमान जी वेदों के ज्ञाता थे तो एक वानर वेदो का ज्ञाता नहीं हो सकता, क्यों भाई? इसमें अपमान की बात कहाँ से आ गयी या फिर आप भी वामपंथियों जैसे सोचने लग गए, ये तो अटल सत्य है, एक सनातनी ने हनुमान जी को वानर कहने में उनका अपमान नहीं माना तो आपको इतना दर्द क्यों हो रहा है? और रही बात वेदो का ज्ञाता होने की तो ये आप आर्यसमाजियों की संकीर्ण सोच दर्शाता है,
रामचरितमानस के साथ तो ये पुराणो को भी काल्पनिक मानते हैं, अब अगर हम इन्हे समझाना भी चाहे तो किसका उदाहरण दें? खैर दूसरे पाठकगणों से ये कहना है की वे पहले हनुमान जी के जन्म को जान लें की उनका अवतार कैसे हुआ! फिर आर्य समाजियों के अनर्गल प्रलाप की तरफ बढ़ेंगे!
"हनुमान जी का जन्म त्रेता युग मे अंजना (एक नारी वानर) के पुत्र के रूप मे हुआ था। अंजना असल मे पुन्जिकस्थला नाम की एक अप्सरा थीं, मगर एक शाप के कारण उन्हें नारी वानर के रूप मे धरती पे जन्म लेना पडा। उस शाप का प्रभाव शिव के अन्श को जन्म देने के बाद ही समाप्त होना था। अंजना केसरी की पत्नी थीं। केसरी एक शक्तिशाली वानर थे जिन्होने एक बार एक भयंकर हाथी को मारा था। उस हाथी ने कई बार असहाय साधु-संतों को विभिन्न प्रकार से कष्ट पँहुचाया था। तभी से उनका नाम केसरी पड गया, "केसरी" का अर्थ होता है सिंह। उन्हे "कुंजर सुदान" (हाथी को मारने वाला) के नाम से भी जाना जाता है।
केसरी के संग मे अंजना ने भगवान शिव कि बहुत कठोर तपस्या की
जिसके फ़लस्वरूप अंजना ने हनुमान (शिव के अन्श) को जन्म दिया।
जिस समय अंजना शिव की आराधना कर रहीं थीं उसी समय अयोध्या-नरेश दशरथ, पुत्र प्राप्ति के लिये पुत्र कामना यज्ञ करवा रहे थे। फ़लस्वरूप उन्हे एक दिव्य फल प्राप्त हुआ जिसे उनकी रानियों ने बराबर हिस्सों मे बाँटकर ग्रहण किया। इसी के फ़लस्वरूप उन्हे राम, लषन, भरत और शत्रुघन पुत्र रूप मे प्राप्त हुए।
उस दिव्य फ़ल का छोटा सा टुकडा एक चील काट के ले गई और उसी वन के ऊपर से उडते हुए(जहाँ अंजना और केसरी तपस्या कर रहे थे) चील के मुँह से वो टुकडा नीचे गिर गया। उस टुकडे को पवन देव ने अपने प्रभाव से याचक बनी हुई अंजना के हाथों मे गिरा दिया। ईश्वर का वरदान समझकर अंजना ने उसे ग्रहण कर लिया जिसके फ़लस्वरूप उन्होंने पुत्र के रूप मे हनुमान को जन्म दिया।"
तो सैद्धांतिक रूप से हनुमान जी वानर हुए, और इस पर आर्य समाजी क्या प्रलाप करते है जरा देखिये इन्हे ये साबित करने का कीड़ा काटा है की वेदों के ज्ञाता परम ज्ञानी कोई वानर नहीं हो सकता, जबकि पवनदेव ने अंजना माता के कर्णरन्ध्र में प्रवेश कर आते समय आश्वासन दिया कि तेरे यहाँ सूर्य, अग्नि एवं सुवर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का मर्मज्ञ, विश्वन्द्य महाबली पुत्र होगा। और ऐसा ही हुआ भी।
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अब आर्यसमाजी अपने तर्क क्या देते हैं ये सुनिये-
१. आर्य समाजी - वानर शब्द से किसी योनि विशेष, जाति , प्रजाति अथवा उपजाति का बोध नहीं होता।
कलियुग नाशक - भाई हम भी तो यही मानते है, हमने कब सिर्फ शब्द के आधार पर ये प्रमाणित किया, हम भी मानते हैं की वानर के पर्यायवाची होते है, पर इससे क्या ये सिद्ध कर दिया की हनुमान जी वानर नहीं थे!
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२. आर्य समाजी - सुग्रीव, बालि आदि का जो चित्र हम देखते हैं उसमें उनकी पूंछ दिखाई देती हैं, परन्तु उनकी स्त्रियों के कोई पूंछ नहीं होती? नर-मादा का ऐसा भेद संसार में किसी भी वर्ग में देखने को नहीं मिलता।
कलियुग नाशक - कभी पुराण पढ़े होते तो ये ना कहते पर क्या करे पुराणो को काल्पनिक ही मान बैठे हो अनर्गल प्रलाप तो करोगे ही, अंजना माता एक नारी वानर थी, और सिर्फ सीरियल और चित्रों पर क्यों जाते हो, उनकी स्त्रियां वानर भी थी और मनुष्य भी जिससे वानर सेना का निर्माण हुआ जिसने श्रीराम की युद्ध में सहायता की, अब ये कह देने से की ऐसा भेद संसार में किसी भी वर्ग में देखने को नहीं मिलता।
ये आर्य समाजी सोचते है, वो त्रेता था ये कलियुग है जिसमे आपके माई बाप दयानंद पैदा हुए! थोडा तत्त्व ज्ञान पर ध्यान दो!
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३. आर्य समाजी - किष्किन्धा कांड (3/28-32) में जब श्री रामचंद्र जी महाराज की पहली बार ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान से भेंट हुई तब दोनों में परस्पर बातचीत के पश्चात रामचंद्र जी लक्ष्मण से बोले न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ यजुर्वेद धारिणः ! न अ-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम् || ४-३-२८
“ऋग्वेद के अध्ययन से अनभिज्ञ और यजुर्वेद का जिसको बोध नहीं हैं तथा जिसने सामवेद का अध्ययन नहीं किया है, वह व्यक्ति इस प्रकार परिष्कृत बातें नहीं कर सकता। निश्चय ही इन्होनें सम्पूर्ण व्याकरण का अनेक बार अभ्यास किया हैं, क्यूंकि इतने समय तक बोलने में इन्होनें किसी भी अशुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं किया हैं। संस्कार संपन्न, शास्त्रीय पद्यति से उच्चारण की हुई इनकी वाणी ह्रदय को हर्षित कर देती हैं”। सुंदर कांड (30/18,20) में जब हनुमान अशोक वाटिका में राक्षसियों के बीच में बैठी हुई सीता जी को अपना परिचय देने से पहले हनुमान जी सोचते हैं “यदि द्विजाति (ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य) के समान परिमार्जित संस्कृत भाषा का प्रयोग करूँगा तो सीता मुझे रावण समझकर भय से संत्रस्त हो जाएगी। मेरे इस वनवासी रूप को देखकर तथा नागरिक संस्कृत को सुनकर पहले ही राक्षसों से डरी हुई यह सीता और भयभीत हो जाएगी। मुझको कामरूपी रावण समझकर भयातुर विशालाक्षी सीता कोलाहल आरंभ कर देगी। इसलिए मैं सामान्य नागरिक के समान परिमार्जित भाषा का प्रयोग करूँगा।”
इस प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की हनुमान जी चारों वेद ,व्याकरण और संस्कृत सहित अनेक भाषायों के ज्ञाता भी थे। हनुमान जी के अतिरिक्त अन्य वानर जैसे की बालि पुत्र अंगद का भी वर्णन वाल्मीकि रामायण में संसार के श्रेष्ठ महापुरुष के रूप में किष्किन्धा कांड 54/2 में हुआ हैं हनुमान बालि पुत्र अंगद को अष्टांग बुद्धि से सम्पन्न, चार प्रकार के बल से युक्त और राजनीति के चौदह गुणों से युक्त मानते थे।
बुद्धि के यह आठ अंग हैं- सुनने की इच्छा, सुनना, सुनकर धारण करना, ऊहापोह करना, अर्थ या तात्पर्य को ठीक ठीक समझना, विज्ञान व तत्वज्ञान। चार प्रकार के बल हैं- साम , दाम, दंड और भेद राजनीति के चौदह गुण हैं- देशकाल का ज्ञान, दृढ़ता, कष्टसहिष्णुता, सर्वविज्ञानता, दक्षता, उत्साह, मंत्रगुप्ति, एकवाक्यता, शूरता, भक्तिज्ञान, कृतज्ञता, शरणागत वत्सलता, अधर्म के प्रति क्रोध और गंभीरता।
भला इतने गुणों से सुशोभित अंगद बन्दर कहाँ से हो सकता हैं?
कलियुग नाशक - अरे भाई जो साक्षात शिव का अवतार हो वो वेदों का ज्ञाता नहीं होगा तो क्या सत्यार्थ प्रकाश का ज्ञाता होगा? हनुमान जी अंगद जी स्वयं भगवान के अंश है, भगवान ने वेद लिखे शास्त्र लिखे उन्ही के श्री मुख के वचन है ये, उनके अंश में तो रहेंगे ही ये गुण, "भगवान की लीला और बानी, आर्यसमाजियों ने कभी ना जानी", ये कह कौन रहा है की पशु पक्षी ज्ञाता नहीं हो सकते शास्त्रो के, त्रेता की छोड़ो कलियुग की बात बताता हूँ, मंडन मिश्र का नाम तो सुना ही होगा उनके पास एक तोता था जिसे वेद कंठस्थ थे, बड़े बड़ों को हारता था वो तोता शास्त्रार्थ में, गूगल बाबा और अच्छी जानकारी देंगे, आर्य समाजियों से निवेदन है की जरा सर्च उधर भी मार लें!
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४. आर्य समाजी - वाल्मीकि रामायण में इसका कोई प्रमाण नहीं कि हनुमान बन्दर थे
कलियुग नाशक -
दृश्यते च महाज्वालः करोति च न मे रुजम् || ५-५३-३५
शिशिरस्य इव सम्पातो लान्गूल अग्रे प्रतिष्ठितः |
"It is conspicuous with large flames. But it is not creating any paoin to me, as if a snow-ball is kept at the tip of my tail."
तत् इदम् व्यक्तम् यत् दृष्टम् प्लवता मया || ५-५३-३६
राम प्रभावात् आश्चर्यम् पर्वतः सरिताम् पतौ |
"Or, while I was jumping over the ocean, a surprise-alliance was formed with Mount Mainaka and through the mountain, with the ocean, because of Rama's power. By this, the reason of the coolness is clear."
तो ये क्या है भाई, किसी ने एडिट तो नहीं कर दी वाल्मीकि रामायण
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५. आर्य समाजी - नहीं, वो तो हनुमान जी एक विमान में बैठकर संजीवनी लेने गए थे, वो उनकी नहीं विमान की पूँछ थी, और लंका भी उन्होंने विमान की मिसाइलों से जलायी!
कलियुग नाशक - अभी कह रहे थे की वाल्मीकि रामायण में कुछ नहीं हनुमान जी के वानर होने के सम्बन्ध में, जब सबूत दिया तो कह रहे हो की वो हनुमान जी की नहीं विमान की पूँछ थी, बबुआ एक बात बताओ रामायण में रावण के पुष्पक विमान का उल्लेख है, तो वाल्मीकि जी क्या हनुमान जी के विमान का उल्लेख नहीं कर सकते थे? उन्होंने स्पष्ट रूप से पूँछ लिखा है, रामचरितमानस को तो मानते नहीं, वर्ना उसमे तो आर्य समाजियों को ठंडा करने के लिए बहुत सारी चौपाइयां हैं!
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६. आर्य समाजी - जटायु गिद्ध नहीं था, सन्दर्भ-अरण्यक ४९ /३८
जटायो पश्य मम आर्य ह्रियमाणम् अनाथ वत् |
अनेन राक्षसेद्रेण करुणम् पाप कर्मणा || ४९-३८
कथम् तत् चन्द्र संकाशम् मुखम् आसीत् मनोहरम् |
सीतया कानि च उक्तानि तस्मिन् काले द्विजोत्तम || ६८-६
यहाँ जटायु को आर्य और द्विज कहा गया हैं। यह शब्द किसी पशु-पक्षी के सम्बोधन में नहीं कहे जाते। रावण को अपना परिचय देते हुए जटायु ने कहा -मैं गृध कूट का भूतपूर्व राजा हूँ और मेरा नाम जटायु हैं सन्दर्भ -अरण्यक 50/4
कलियुग नाशक - किसने कह दिया महोदय की आर्य शब्द किसी पशु-पक्षी के सम्बोधन में नहीं कहे जाते। लगता है ये भी दयानंदी नियम है, वो ज्ञाता हो वो आर्य है, जो सिर्फ मनुष्य हो वही आर्य है ऐसा नहीं है, जटायु राजा थे, और पक्षीराज थे! अरण्यकाण्ड में ही वर्णन है, जब राम जटायु का अंतिम संस्कार करते है!
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७. आर्य समाजी - जामवंत भालू नहीं थे? आपत काल में बुद्धिमान और विद्वान जनों से संकट का हल पूछा जाता हैं और युद्ध जैसे काल में ऐसा निर्णय किसी अत्यंत बुद्धिवान और विचारवान व्यक्ति से पूछा जाता हैं। पशु-पक्षी आदि से ऐसे संकट काल में उपाय पूछना सर्वप्रथम तो संभव ही नहीं हैं दूसरे बुद्धि से परे की बात हैं।
कलियुग नाशक - अच्छा हुआ आर्य समाजी त्रेता युग में नहीं थे अन्यथा बेहोश ही हो जाते सब देख कर, अगर राम जी भी आर्य समाजियों की तरह सब को अल्पबुद्धि मान लेते तो पता नहीं क्या होता, आपके कहने का अर्थ या कह सकते है पूर्वाग्रह ही है की आप पशुओं को (त्रेता के) कलियुग जैसा मान रहे हो, भाई वो त्रेता था फिर द्वापर आया ये कलियुग है! ये कलियुग का प्रभाव है उस ज़माने में जीव जंतु बोलते थे तथा निर्णय भी करते थे, तत्त्व ज्ञान की बात है आर्य समाजियों के बूते से बाहर!
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८. आर्यसमाजी - हनुमान जी की माता जी का नाम 'अंजनी' था. और पिता जी का नाम 'पवन' था. ये दोनों मनुष्य थे या बन्दर ? यदि ये दोनों मनुष्य थे. तो क्या मनुष्यों के मनुष्य पैदा होते हैं या बन्दर ? यदि बन्दर पैदा नहीं होते, तो विचार करें, कि जब हनुमान जी के माता पिता मनुष्य थे, तो उनका बेटा श्री हनुमान जी भी तो मनुष्य सिद्ध हुआ.
कलियुग नाशक - हनुमान जी की माता जी का नाम 'अंजनी' (नारी वानर) था, और उनके पिता का नाम केसरी था (नर वानर), पवन देव मनुष्य नहीं देवता थे, उन्होंने हनुमान जी को उड़ना सिखाया था, इसीलिए उन्हें पवन पुत्र कहते है, और आर्य समाजियों के लिय एक ज्ञान वर्धन वाली बात - "देवताओं के नियम मनुष्यों पर लागू नहीं होते"
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९. आर्यसमाजी - यदि कोई छोटा बच्चा कहीं पर भीड़ में खो जाये, तो एक बन्दर से कहो, कि वह उस बच्चे का फोटो देख कर भीड़ में से उस बच्चे को पहचान कर ले आये. अब सोचिये क्या वह बन्दर भीड़ में से बच्चे को पहचान कर ले आयेगा. यदि नहीं. तो क्या हनुमान जी सीता जी को लंका से ढूंढ कर उनकी खबर ले आये या नहीं. यदि उनकी खबर ढूंढ लाये, तो अब बताइये, बन्दर तो यह काम नहीं कर सकता.
कलियुग नाशक - तो भाई बन्दर के रूप में क्यों देख रहे हो, उन्हें महाज्ञानी के रूप में देखो ना, "वानराणामधीशं रघुपतिप्रियां भक्तं वातजातं नमामि"
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१०. आर्य समाजी - आपने रामायण सीरिअल में बाली, सुग्रीव और उनकी पत्नियाँ तो देखी ही होंगी. उस सीरिअल में बाली और सुग्रीव तो बन्दर दिखाए गए.परन्तु उनकी पत्नियाँ मनुष्यों वाली स्त्रियाँ दिखाई गईं या बंदरियां दिखाईं. यदि उनकी पत्नियाँ मनुष्य जाति की थी. तो उनके पति भी मनुष्य होने चाहियें.
अर्थात बाली और सुग्रीव भी मनुष्य दिखने चाहिए थे. परन्तु वे दोनों बन्दर दिखाए गए.यदि वे बन्दर थे, तो सोचिये क्या मनुष्यों की स्त्रियों की शादी बंदरों के साथ होती है ? या आजकल भी कोई मनुष्य स्त्रियाँ बंदरों के साथ शादी करने को तैयार हैं ? यदि उनकी पत्नियाँ मनुष्य थीं, तो उनके पति = बाली और सुग्रीव भी मनुष्य ही सिद्ध हुए. और श्री हनुमान जी उनके महामंत्री थे. वे भी उसी जाति के थे. तो श्री हनुमान जी भी मनुष्य सिद्ध हुए.
कलियुग नाशक - ज्ञानियों से सब तैयार हो जाते है सम्बन्ध बनाने को, कलियुग जैसी सोच नहीं जहाँ रूप देखा जाता है गुण नहीं, और इन कपिराजों की पत्नियां मनुष्य तथा वानरी दोनों थी!
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११. आर्य समाजी - वाल्मीकि रामायण में श्री हनुमान जी की योग्यता लिखी है, कि वे ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के विद्वान थे. तथा संस्कृत व्याकरण शास्त्र में बहुत कुशल थे. सोचिये, क्या बन्दर ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद तथा संस्कृत व्याकरण पढ़ सकता है ? यदि नहीं, तो बताइये, श्री हनुमान जी बन्दर कैसे हुए ?
कलियुग नाशक - एक लाइन में उत्तर "शिव का अवतार मतलब वेदों का अधिष्ठाता"
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१२. आर्य समाजी - हनुमान चालीसा के प्रारंभ में चौथे/पांचवें वाक्य में लिखा है, कि " काँधे मूंज जनेऊ साजे, हाथ बज्र और धजा बिराजे " अर्थात श्री हनुमान जी के कंधे पर मूंज की जनेऊ अर्थात यज्ञोपवीत सुशोभित होता था. उनके एक हाथ में वज्र (गदा) और दूसरे हाथ में ध्वज रहता था. अब सोचिये हनुमान चालीसा बहुत लोग पढ़ते हैं. फिर भी इस बात पर ध्यान नहीं देते, कि क्या बन्दर के कंधे पर मूंज की जनेऊ हो सकती है. क्या बन्दर के एक हाथ में गदा और दूसरे हाथ में ध्वज होता है. यदि नहीं, तो श्री हनुमान जी बन्दर कैसे हुए ?
कलियुग नाशक - हनुमान चालीसा को अनार्ष रचना कहते हो फिर कुछ मिलता नहीं तो उदाहरण भी इसी का देते हो अरे मान लो भाई एक ही तरह के सवाल ना करो, ये कलियुग है वो त्रेता था, पहले के गुण अलग थे, कलियुगी परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखकर ना सोचो, सब प्रभु की लीला है, प्रभु ही निर्धारित करते है की कौन क्या होगा, प्रभु के कार्य को तुम ना आंको, एक मान लो की वानर रूप में भी हनुमान जी के गुण देव समान हैं!
अरे मूर्ख आर्य समाजियों प्रभु की लीला पहचानो और अनर्गल प्रलाप ना करो! वैसे तुम्हारा विनाश तो तुम्हारे भाग्य में लिख चुका है
जय वीर हनुमान
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।
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