Sunday, September 17, 2017

महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई?


शिवजी के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे. विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था.

मृकण्ड ने सोचा कि महादेव संसार के सारे विधान बदल सकते हैं. इसलिए क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्नकर यह विधान बदलवाया जाए.

मृकण्ड ने घोर तप किया. भोलेनाथ मृकण्ड के तप का कारण जानते थे इसलिए उन्होंने शीघ्र दर्शन न दिया लेकिन भक्त की भक्ति के आगे भोले झुक ही जाते हैं.

महादेव प्रसन्न हुए. उन्होंने ऋषि को कहा कि मैं विधान को बदलकर तुम्हें पुत्र का वरदान दे रहा हूं लेकिन इस वरदान के साथ हर्ष के साथ विषाद भी होगा.

भोलेनाथ के वरदान से मृकण्ड को पुत्र हुआ जिसका नाम मार्कण्डेय पड़ा. ज्योतिषियों ने मृकण्ड को बताया कि यह विलक्ष्ण बालक अल्पायु है. इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है.

ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया. मृकण्ड ने अपनी पत्नी को आश्वत किया- जिस ईश्वर की कृपा से संतान हुई है वही भोले इसकी रक्षा करेंगे. भाग्य को बदल देना उनके लिए सरल कार्य है.

मार्कण्डेय बड़े होने लगे तो पिता ने उन्हें शिवमंत्र की दीक्षा दी. मार्कण्डेय की माता बालक के उम्र बढ़ने से चिंतित रहती थी. उन्होंने मार्कण्डेय को अल्पायु होने की बात बता दी.

मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता के सुख के लिए उसी सदाशिव भगवान से दीर्घायु होने का वरदान लेंगे जिन्होंने जीवन दिया है. बारह वर्ष पूरे होने को आए थे.

मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे.

“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”

समय पूरा होने पर यमदूत उन्हें लेने आए. यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की आराधना कर रहा है तो उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की. मार्केण्डेय ने अखंड जप का संकल्प लिया था.

यमदूतों का मार्केण्डेय को छूने का साहस न हुआ और लौट गए. उन्होंने यमराज को बताया कि वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए.

इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लेकर आऊंगा. यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंच गए.

बालक मार्कण्डेय ने यमराज को देखा तो जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया.

यमराज ने बालक को शिवलिंग से खींचकर ले जाने की चेष्टा की तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा. एक प्रचण्ड प्रकाश से यमराज की आंखें चुंधिया गईं.

शिवलिंग से स्वयं महाकाल प्रकट हो गए. उन्होंने हाथों में त्रिशूल लेकर यमराज को सावधान किया और पूछा तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस कैसे किया?

यमराज महाकाल के प्रचंड रूप से कांपने लगे. उन्होंने कहा- प्रभु मैं आप का सेवक हूं. आपने ही जीवों से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है.

भगवान चंद्रशेखर का क्रोध कुछ शांत हुआ तो बोले- मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया है. तुम इसे नहीं ले जा सकते.

यम ने कहा- प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है. मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले को त्रास नहीं दूंगा.

महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए. उवके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त करता है. सोमवार को महामृत्युंजय का पाठ करने से शिवजी की कृपा होती है और कई असाध्य रोगों, मानसिक वेदना से राहत मिलती है.:!
हर हर महादेव
ॐ नमः शिवाय

Saturday, September 2, 2017

ये हैं भगवदगीता के 10 सबसे लोकप्रिय श्लोक, जिनमें समाहित हैं गूढ़ जीवन-दर्शन...

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ये हैं भगवदगीता के 10 सबसे लोकप्रिय श्लोक, जिनमें समाहित हैं गूढ़ जीवन-दर्शन
श्रीमद्भगवद्गीता दुनिया के वैसे श्रेष्ठ ग्रंथों में है, जो न केवल सबसे ज्यादा पढ़ी जाती है, बल्कि कही और सुनी भी जाती है. कहते हैं जीवन के हर पहलू को गीता से जोड़कर व्याख्या की जा सकती है. भारत की सनातन संस्कृति में श्रीमद्भगवद्गीता न केवल पूज्य बल्कि अनुकरणीय भी है. कहते हैं, इस ग्रंथ में उल्लिखित उपदेश इसके 18 अध्यायों में लगभग 720 श्लोकों में हैं. प्रस्तुत है इस महान दार्शनिक ग्रंथ के कुछ चुनींदा श्लोक:

(1)
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)

इस श्लोक का अर्थ है: आत्मा को न शस्त्र  काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा के अजर-अमर और शाश्वत होने की बात की है।)

(2)
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 37)

इस श्लोक का अर्थ है: यदि तुम (अर्जुन) युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख को भोगोगे... इसलिए उठो, हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने वर्तमान कर्म के परिणाम की चर्चा की है, तात्पर्य यह कि वर्तमान कर्म से श्रेयस्कर और कुछ नहीं है।)

(3)
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7)

इस श्लोक का अर्थ है: हे भारत (अर्जुन), जब-जब धर्म ग्लानि यानी उसका लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।

(4)
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 8)

इस श्लोक का अर्थ है: सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए... और धर्म की स्थापना के लिए मैं (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।

इस प्रसिद्ध शक्तिपीठ में नहीं है देवी की कोई मूर्ति, होती है श्रीयंत्र की पूजा

(5)
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)

इस श्लोक का अर्थ है: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों में कभी नहीं... इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो और न ही काम करने में तुम्हारी आसक्ति हो। (यह श्रीमद्भवद्गीता के सर्वाधिक महत्वपूर्ण श्लोकों में से एक है, जो कर्मयोग दर्शन का मूल आधार है।)

(6)
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 62)

इस श्लोक का अर्थ है: विषयों (वस्तुओं) के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे आसक्ति हो जाती है। इससे उनमें कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में विघ्न आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने विषयासक्ति के दुष्परिणाम के बारे में बताया है।)

(7)
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 63)

इस श्लोक का अर्थ है: क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।

इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन से पहले नंदी का दर्शन करना है मना, जानिए क्यों

(8)
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
(तृतीय अध्याय, श्लोक 21)

इस श्लोक का अर्थ है: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। वह (श्रेष्ठ पुरुष) जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करता है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।

(9)
श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 39)

इस श्लोक का अर्थ है: श्रद्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, साधनपारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त कते हैं, फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति (भगवत्प्राप्तिरूप परम शान्ति) को प्राप्त होते हैं।

(10)
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥
(अठारहवां अध्याय, श्लोक 66)

इस श्लोक का अर्थ है: (हे अर्जुन) सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं (श्रीकृष्ण) तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसलिए शोक मत करो....!!

Friday, August 25, 2017

🔥🔥हवन का महत्व 🔥🔥


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     फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। जिसमे उन्हें पता चला की हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है जो की खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओ को मारती है तथा वातावरण को शुद्द करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला। गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।

(२) टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया की यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।

(३) हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च की क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्द होता है और जीवाणु नाश होता है अथवा नही. उन्होंने ग्रंथो. में वर्णित हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया की ये विषाणु नाश करती है। फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा की सिर्फ आम की लकड़ी १ किलो जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलायी गयी एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बॅक्टेरिया का स्तर ९४ % कम हो गया। यही नही. उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओ का परीक्षण किया और पाया की कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के २४ घंटे बाद भी जीवाणुओ का स्तर सामान्य से ९६ प्रतिशत कम था। बार बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ की इस एक बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था।
यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र (resarch journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर २००७ में छप चुकी है।
रिपोर्ट में लिखा गया की हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का नाश होता है। जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है।

क्या हो हवन की समिधा (जलने वाली लकड़ी):-👇

समिधा के रूप में आम की लकड़ी सर्वमान्य है परन्तु अन्य समिधाएँ भी विभिन्न कार्यों हेतु प्रयुक्त होती हैं। सूर्य की समिधा मदार की, चन्द्रमा की पलाश की, मङ्गल की खैर की, बुध की चिड़चिडा की, बृहस्पति की पीपल की, शुक्र की गूलर की, शनि की शमी की, राहु दूर्वा की और केतु की कुशा की समिधा कही गई है।
मदार की समिधा रोग को नाश करती है, पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली, पीपल की प्रजा (सन्तति) काम कराने वाली, गूलर की स्वर्ग देने वाली, शमी की पाप नाश करने वाली, दूर्वा की दीर्घायु देने वाली और कुशा की समिधा सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है।
हव्य (आहुति देने योग्य द्रव्यों) के प्रकार
प्रत्येक ऋतु में आकाश में भिन्न-भिन्न प्रकार के वायुमण्डल रहते हैं। सर्दी, गर्मी, नमी, वायु का भारीपन, हलकापन, धूल, धुँआ, बर्फ आदि का भरा होना। विभिन्न प्रकार के कीटणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है। इसलिए कई बार वायुमण्डल स्वास्थ्यकर होता है। कई बार अस्वास्थ्यकर हो जाता है। इस प्रकार की विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिए हवन में ऐसी औषधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं, जो इस उद्देश्य को भली प्रकार पूरा कर सकती हैं।

होम द्रव्य -

होम-द्रव्य अथवा हवन सामग्री वह जल सकने वाला पदार्थ है जिसे यज्ञ (हवन/होम) की अग्नि में मन्त्रों के साथ डाला जाता है।

(१) सुगन्धित : केशर, अगर, तगर, चन्दन, इलायची, जायफल, जावित्री छड़ीला कपूर कचरी बालछड़ पानड़ी आदि

(२) पुष्टिकारक : घृत, गुग्गुल ,सूखे फल, जौ, तिल, चावल शहद नारियल आदि

(३) मिष्ट - शक्कर, छूहारा, दाख आदि

(४) रोग नाशक -गिलोय, जायफल, सोमवल्ली ब्राह्मी तुलसी अगर तगर तिल इंद्रा जव आमला मालकांगनी हरताल तेजपत्र प्रियंगु केसर सफ़ेद चन्दन जटामांसी आदि

उपरोक्त चारों प्रकार की वस्तुएँ हवन में प्रयोग होनी चाहिए। अन्नों के हवन से मेघ-मालाएँ अधिक अन्न उपजाने वाली वर्षा करती हैं। सुगन्धित द्रव्यों से विचारों शुद्ध होते हैं, मिष्ट पदार्थ स्वास्थ्य को पुष्ट एवं शरीर को आरोग्य प्रदान करते हैं, इसलिए चारों प्रकार के पदार्थों को समान महत्व दिया जाना चाहिए। यदि अन्य वस्तुएँ उपलब्ध न हों, तो जो मिले उसी से अथवा केवल तिल, जौ, चावल से भी काम चल सकता है।

सामान्य हवन सामग्री -

तिल, जौं, सफेद चन्दन का चूरा , अगर , तगर , गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र , पानड़ी , लौंग , बड़ी इलायची , गोला , छुहारे नागर मौथा , इन्द्र जौ , कपूर कचरी , आँवला ,गिलोय, जायफल, ब्राह्मी.
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चंद्रमा :: वैदिक ज्योतिष का आधार MOON transit through 27 constellation

पाराशर होरा शास्त्र में चंद्रमा गोचर को #ज्योतिष_की_आत्मा कहा गया है। सूर्य के बाद धरती के उपग्रह चन्द्र का प्रभाव धरती पर पूर्णिमा के दिन सबसे ज्यादा रहता है। जिस तरह मंगल के प्रभाव से समुद्र में मूंगे की पहाड़ियां बन जाती हैं और लोगों का खून दौड़ने लगता है उसी तरह चन्द्र से समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पत्न होने लगता है। जितने भी दूध वाले वृक्ष हैं सभी चन्द्र के कारण उत्पन्न हैं। चन्द्रमा बीज, औषधि, जल, मोती, दूध, अश्व और मन पर राज करता है। लोगों की बेचैनी और शांति का कारण भी चन्द्रमा है।

"मानव योनि में कर्म रूपी वृछ निर्माण हेतु #विचार_रूपी_बीज का जनक होने का श्रेय चन्द्रउर्जा को ही प्राप्त है।"
चन्द्रमा माता का सूचक और मन का कारक है। कुंडली में चन्द्र के अशुभ होने पर मन और माता पर प्रभाव पड़ता है। ज्योतिष शाश्त्र "फलदीपिका" के अनुसार कुंडली में चन्द्र के दोषपूर्ण या खराब होने की स्थिति के बारे में विस्तार से बताया गया है।

👉 कैसे होता है चन्द्र खराब ?
* घर का वायव्य कोण दूषित होने पर भी चन्द्र खराब हो जाता है।
* घर में जल का स्थान-दिशा यदि दूषित है तो भी चन्द्र अशुभ फल देता है।
* पूर्वजों का अपमान करने और श्राद्ध कर्म नहीं करने से भी चन्द्र दूषित हो जाता है।
* माता या मातातुल्य का अपमान करने या उससे विवाद करने पर चन्द्र अशुभ प्रभाव देने लगता है।
* शरीर में जल यदि दूषित हो गया है तो भी चन्द्र का अशुभ प्रभाव पड़ने लगता है।
* गृह कलह करने और पारिवारिक सदस्य को धोखा देने से भी चन्द्र प्रतिकूल फल देता है।
* राहु, केतु या शनि के साथ होने से तथा उनकी दृष्टि चन्द्र पर पड़ने से चन्द्र खराब फल देने लगता है।
* सूर्यअस्त के पश्चात् दूध या दूध निर्मित चीजो का लगातार सेवन करने से।

शुभ चन्द्र व्यक्ति को धनवान और दयालु बनाता है। सुख और शांति देता है। भूमि और भवन के मालिक चन्द्रमा से चतुर्थ में शुभ ग्रह होने पर या लग्न से केंद्र में स्वग्रही चन्द्र द्वारा यामिनिनाथ योग से घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं।

👉 कैसे जानें कि चन्द्र खराब या दूषित है ?..
* दूध देने वाला जानवर मर जाए।
* यदि घोड़ा पाल रखा हो तो उसकी मृत्यु भी तय है, किंतु आमतौर पर अब लोगों के यहां ये जानवर नहीं होते।
* माता का बीमार होना या घर के जलस्रोतों का सूख जाना भी चन्द्र के अशुभ होने की निशानी है।
* महसूस करने की क्षमता क्षीण हो जाती है।
* राहु, केतु या शनि के साथ होने से तथा उनकी दृष्टि चन्द्र पर पड़ने से चन्द्र अशुभ हो जाता है।
* मानसिक रोगों का कारण भी चन्द्र को माना गया है।
* भावनात्मक असंतुलन की स्तिथि को प्राप्त होना।
* अनिर्णय स्तिथि को प्राप्त होना।
* एकाग्रचित होने में कठिनाई का अनुभव हो।

👉 चंद्र ग्रह उर्जा असंतुलन से होती ये बीमारी:
* चन्द्र में मुख्य रूप से दिल, बायां भाग से संबंध रखता है।
* मिर्गी का रोग।
* पागलपन।
* बेहोशी।
* फेफड़े संबंधी रोग।
* मासिक धर्म गड़बड़ाना।
* स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है।
* मानसिक तनाव और मन में घबराहट।
* तरह-तरह की शंका और अनिश्चित भय।
* सर्दी-जुकाम बना रहता है।
* व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार बार-बार आते रहते हैं।
* किसी विशेष कर्म को करने में असहजता।

👉 चंद्र ग्रह के उपाय:
* प्रतिदिन माता के पैर छूना। (#भूलना_मत)
* शिव की भक्ति।
* सोमवार का व्रत।
* पानी या दूध को साफ चांदी पात्र में सिरहाने रखकर सोएं और सुबह कीकर के वृक्ष की जड़ में डाल दें।
* चावल, सफेद वस्त्र, शंख, वंशपात्र, सफेद चंदन, श्वेत पुष्प, चीनी, बैल, दही और मोती दान करना चाहिए।
* मोती युक्त चांदी निर्मित #प्रतिष्ठित एवं अभिमंत्रित "चंद्रयंत्र" गले में धारण करना।
* कुंडली के छठे भाव में चन्द्र हो तो दूध या पानी का दान करना मना है।
* सोमवार को सफेद वस्तु जैसे दही, चीनी, चावल, सफेद वस्त्र,1 जोड़ा जनेऊ, दक्षिणा के साथ दान करना।
* "ॐ सोम सोमाय नमः'' का 108 बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है।
* "चन्द्र अष्टोत्तर शतनामावली" का जप या पलाश समिधा द्वारा हवन करना।
* यदि चन्द्र 12वां हो तो धर्मात्मा या साधु को भोजन न कराएं और न ही दूध पिलाएं।
* नवरात्र में नौ दिन तक गोधुली बेला में घी का दीपक जला कर निहारना।
* #हस्त_रोहिणी_श्रवण नक्षत्र विचार कर सूर्योदय से सूर्यास्त तक नमक एवं जलसेवन वर्जित रखना।
* गंगाजल रुद्राभिषेक विधि विधान द्वारा।

👉 नोट :
इनमें से कुछ उपाय चंद्रमा की विशेष स्तिथि वश #विपरीत_फल देने वाले भी हो सकते हैं। अपनी जन्म कुंडली, हस्तरेखा की पूरी जांच किए बगैर उपाय नहीं करना चाहिए। किसी जानकार, विशेषज्ञ या ज्योतिष विचारक को कुंडली दिखाकर ही ये उपाय करें।

Thursday, August 24, 2017

बौद्ध धर्म के बारेमे जाने..

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लगभग 2500 साल पहले बौद्ध धर्म का उत्थान हुआ। बौद्ध धर्म का ज्ञान नास्तिकता और शून्यवाद पर टिका हुआ था। बुद्ध की खास विशेषता अहिंसावाद था । इतना अधिक अहिंसा की लोग अपनी रक्षा तक करना भूल गए। कायर और नपुंसकता उनके भीतर बस गई।
जिसका फायदा एक मलेच्छ मुर्ख मजहब ने उठाया।
बौद्ध कहते है यही एकमात्र मोक्ष है।
बौद्ध धर्म के आस पास ही जैन धर्म का उदय हुआ । अहिंसावाद में ये बौद्धों के भी उस्ताद थे। इनका सिद्धांत था सबकुछ त्याग दो। नंगे हो जाये। मुह पर पट्टी बांध लो । मुँह खोलकर हँसना नहीं। शाम होने से पहले भोजन कर लो। नहीं तो हिंसा हो जायेगी पाप लगेगा।
पाप पूण्य की परिभाषा बदलने वाले जैनियों को हिन्दू देवी देवताओं की बुराई में कोई पाप नहीं लगता । राम और कृष्ण को गाली देने में कोई पाप नहीं लगता। सबसे ज्यादा ईर्ष्यालू धर्म है ये।
जो भगवन से ईर्ष्या करे उन्हें नर्क में डाले। इससे बढ़कर क्या होगा। लेकिन ये कहते है हमारा धर्म स्वीकार करो हमारे नियमो से चलो मोक्ष मिलेगा।
अब बात करते है यहूदी धर्म की इनकी धर्म पुस्तक तौरेत है और संस्थापक मूसा। तौरेत के हिसाब से उनका ईश्वर ईर्ष्यालु है जो लोग उसकी राह पर नहीं चलता उसे वह तड़पता है। बहुत बुरी सजा देता है। लेकिन अगर कोई उसकी बात को मानता है उसके नियमो पर चलता है। उसे वह खुश और आबाद रखता है।
यहूदियो में से ही दो धर्म और बने ईसाई और इस्लाम।
ईसाइयो का ओल्ड टेस्टामेंट लगभग यही तौरेत है। और न्यू टेस्टामेंट में यीशु मसीह के विचार। इसमें भी जो ईसा के बनाये नियमो को नहीं मानता उसे दुनिया के अंत तक नर्क में सड़ाया जायेगा उसकी कभी मुक्ति नहीं होगी। बस आपको इसाई होना होगा बाकी आपके सारे पाप यीशु अपने सर पर लेंगे।
वाह वाह क्या ऑफर है।
अब बात करते है 1400 साल पहले पनपे इस्लाम की। मोहम्मद की बनाई दुनिया में आपको सिर्फ अल्लाह पर ईमान लाना है। बस और कुछ नहीं फिर आप हत्या करे बलात्कार कर किसी को लूट ले किसी को तड़पा तड़पा कर मार दे । आपको कोई पाप नहीं लगेगा बल्कि अल्लाह और भी खुश होगा तुम्हे जन्नत नसीब होगी जहां 72 हूरे बिलकुल नग्न होकर शराब का प्याला थामे आपका इन्तजार कर रही होगी। साथ ही बहुत से गिलमे यानि बिना लिंग के लोंडे मिलेंगे।
ये तो सबसे जबरदस्त ऑफर है।
अब बात करते है सिखों की ।
यह हिन्दू धर्म से निकली एक धारा है जो निकली तो अच्छे कामो के लिए थी ।पर यह रिकॉर्ड है हिन्दू से अलग होकर जो भी पंथ और समुदाय बने सबने हिन्दुओ की ही जड़ काटी।
सिखों के सारे गुरु हरि , गोविन्द और राम भज भज कर मर गए। अंत में अपना धर्म ग्रन्थ तैयार कर गए। और निर्देश दे गए यही पुस्तक तुम्हारा गुरु भी है और भगवान भी। इसका पालन करते रहो मोक्ष मिलेगा। ये भी ठीक ऑफर है।

बहुत से ऐसे महात्मा भी हुए जो नास्तिक दर्शन पर बात करते थे जिनमे सबसे मशहूर चार्वाक है । इनके दर्शन को चार्वाक कहते है। इनका मुख्य उपदेश यह था कि जीवन में चाहे कुछ भी हो जाए चाहे उधार मांग कर घी पीना पड़े तो पियो अर्थात कैसे भी उधार से लूट कर मांग कर या छीन कर बस मजे करो यही जीवन बाँकी कुछ नहीं है ये मोक्ष वोक्ष। वाह क्या बात है।

इनके अलावा बहुत से ऐसे महात्मा आये जो नया धर्म तो नहीं बना पाये । अपना पंथ और समुदाय बना गए जैसे कबीर दास। रविदास ...... इत्यादि
फिर आजादी से पहले साई बाबा । ओशो रजनीश। ब्रह्कुमारी। सत्य साई
फलाना ढिमकाना। सबने धर्म के अखाड़े में खूब हाथ आजमाए।
ऐसे कामो में विवेकानंद और दयानंद भी पीछे नहीं रहे कोई आर्यसमाज बना गया तो को आर के मिशन।

इसके बाद तो राधा स्वामी, SSDN, सच्चा सौदा पक्का सौदा महंगा सौदा। रामपाल, आसाराम, निर्मल थर्मल सबने अपने हाथ आजमाए। ये गुरु जी , जयगुरु जी
सब गुरु घंटाल है। अब तो हद ये है कि
फेसबुक और व्हाट्स अप वाले बाबा भी आ गए है जो सोशल मिडिया से ही आपकी तकलीफ जानकर समाधान कर देंगे। मोक्ष चाहिए वो भी मिलेगा वो भी सस्ते में तो मुझे बताओ इन सबमे से कौन से ग्रुप या गिरोह में हो तुम।

*मुझे गर्व है की मैं केवल सनातनी  हिन्दू हूँ।* 🌼

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