रामायण काल
को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं। ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं होने के कारण कुछ
लोग जहां इसे नकारते हैं, वहीं कुछ इसे सत्य मानते हैं। हालांकि इसे आस्था
का नाम दिया जाता है, लेकिन नासा द्वारा समुद्र में खोजा गया रामसेतु ऐसे
लोगों की मान्यता को और पुष्ट करता है। आइए देखते हैं कुछ ऐसे ही साक्ष्य,
जो रामायण काल के अस्तित्व को स्वीकारते हैं...
रावण का महल
कहा
जाता है कि लंकापति रावण के महल, जिसमें अपनी पटरानी मंदोदरि के साथ निवास
करता था, के अब भी अवशेष मौजूद हैं। यह वही महल है, जिसे पवनपुत्र हनुमान
ने लंका के साथ जला दिया था। लंका दहन को रावण के विरुद्ध राम की पहली बड़ी रणनीतिक जीत माना जा सकता है क्योंकि महाबली हनुमान के इस कौशल से वहां के सभी निवासी भयभीत होकर कहने लगे कि जब सेवक इतना शक्तिशाली है तो स्वामी कितना ताकतवर होगा। ...और जिस राजा की प्रजा भयभीत हो जाए तो वह आधी लड़ाई तो यूं ही हार जाता है।
गुसाईं जी पंक्तियां देखिए- 'चलत महाधुनि गर्जेसि भारी, गर्भ स्रवहि सुनि निसिचर नारी'। अर्थात लंका दहन के पश्चात जब हनुमान पुन: राम के पास जा रहे थे तो उनकी महागर्जना सुनकर राक्षस स्त्रियों का गर्भपात हो गया।
आगे देखें वह गुफा, जहां बाली से छिपकर रहते सुग्रीव...
सुग्रीव गुफा
सुग्रीव
अपने भाई बाली से डरकर जिस कंदरा में रहता था, उसे सुग्रीव गुफा के नाम से
जाना जाता है। यह ऋष्यमूक पर्वत पर स्थित थी। ऐसी मान्यता है कि दक्षिण
भारत में प्राचीन विजयनगर साम्राज्य के विरुपाक्ष मंदिर से कुछ ही दूर पर
स्थित एक पर्वत को ऋष्यमूक कहा जाता था और यही रामायण काल का ऋष्यमूक है। मंदिर के निकट सूर्य और सुग्रीव आदि की मूर्तियां स्थापित हैं।रामायण की एक कहानी के अनुसार वानरराज बाली ने दुंदुभि नामक राक्षस को मारकर उसका शरीर एक योजन दूर फेंक दिया था। हवा में उड़ते हुए दुंदुभि के रक्त की कुछ बूंदें मातंग ऋषि के आश्रम में गिर गईं। ऋषि ने अपने तपोबल से जान लिया कि यह करतूत किसकी है।
क्रुद्ध ऋषि ने बाली को शाप दिया कि यदि वह कभी भी ऋष्यमूक पर्वत के एक योजन क्षेत्र में आएगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। यह बात उसके छोटे भाई सुग्रीव को ज्ञात थी और इसी कारण से जब बाली ने उसे प्रताड़ित कर अपने राज्य से निष्कासित किया तो वह इसी पर्वत पर एक कंदरा में अपने मंत्रियों समेत रहने लगा। यहीं उसकी राम और लक्ष्मण से भेंट हुई और बाद में राम ने बाली का वध किया और सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य मिला।
आगे देखें अशोक वाटिका, जहां सीता माता को रखा गया था....
अशोक वाटिका
अशोक वाटिका लंका में स्थित है, जहां रावण ने
सीता को हरण करने के पश्चात बंधक बनाकर रखा था। ऐसा माना जाता है कि एलिया
पर्वतीय क्षेत्र की एक गुफा में सीता माता को रखा गया था, जिसे 'सीता
एलिया' नाम से जाना जाता है। यहां सीता माता के नाम पर एक मंदिर भी है।यहीं पर आंजनेय हनुमान ने निशानी के रूप में राम की अंगूठी सीता को सौंपी थी। ऐसा माना जाता है कि अशोक वाटिका में नाम अनुरूप अशोक के वृक्ष काफी मात्रा में थे। राम की विरह वेदना से दग्ध सीता अपनी इहलीला समाप्त कर लेना चाहती थीं। वे चाहती थीं कि अग्नि मिल जाए तो वे खुद को अग्नि को समर्पित कर दें। इतना हीं नहीं उन्होंने नूतन कोंपलों से युक्त अशोक के वृक्षों से भी अग्नि की मांग की थी।
तुलसीदास जी ने लिखा भी है- 'नूतन किसलय अनल समाना, देहि अगिनि जन करहि निदाना'। अर्थात तेरे नए पत्ते अग्नि के समान हैं। अत: मुझे अग्नि प्रदान कर और मेरे दुख का शमन कर। ...
और देखिए रामसेतु, जहां से राम सेना समेत लंका पहुंचे और देखें वीडियो भी...
रामसेतु
रामसेतु
जिसे अंग्रेजी में एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है, भारत (तमिलनाडु) के दक्षिण
पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी तट पर
मन्नार द्वीप के मध्य चूना पत्थर से बनी एक श्रृंखला है। भौगोलिक प्रमाणों
से पता चलता है कि किसी समय यह सेतु भारत तथा श्रीलंका को भू-मार्ग से आपस
में जोड़ता था। यह पुल करीब 18 मील (30 किलोमीटर) लंबा है।ऐसा माना जाता है कि 15वीं शताब्दी तक पैदल पार करने योग्य था। एक चक्रवात के कारण यह पुल अपने पूर्व स्वरूप में नहीं रहा। रामसेतु एक बार फिर तब सुर्खियों में आया था, जब नासा के उपग्रह द्वारा लिए गए चित्र मीडिया में सुर्खियां बने थे।
समुद्र पर सेतु के निर्माण को राम दूसरी बड़ी रणनीतिक जीत कहा जा सकता है, क्योंकि समुद्र की तरफ से रावण को कोई खतरा नहीं था और उसे विश्वास था कि इस विराट समुद्र को पार कोई भी उसे चुनौती नहीं दे सकता।
गोस्वामी तुलसीदासजी के मुताबिक जब दशानन रावण ने समुद्र पर पुल बनने की बात सुनी तो उसके दसों मुख एकसाथ बोल पड़े- बांध्यो जलनिधि नीरनिधि जलधि सिंधु बारीस, सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि नदीश'। मानस के इस दोहे में आपको समुद्र के 10 पर्यायवाची भी मिल सकते हैं।
मानस और नासा से इतर महाकवि जयशंकर प्रसाद की पंक्तियों में भी रामसेतु होने के संकेत मिलते हैं-
सिंधु-सा विस्तृत और अथाह, एक निर्वासित का उत्साह,
दे रही अभी दिखाई भग्न, मग्न रत्नाकर में वह राह।
(फोटो और वीडियो यूट्यूब के सौजन्य से)
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।
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