गायत्री मंत्र का प्रारम्भ ओम् से होता है. माण्डूक्योपनिषद् में ओंकार अर्थात् ओम् के महत्व तथा अर्थ दोनों पर प्रकाश डाला गया है. ओम् स्वयं में एक मंत्र है जिसे प्रणव भी कहते हैं. यह अ, उ, म् इन तीन अक्षरों को मिला कर बना है. अ से ब्रह्म का विराट रूप, उ से हिरण्यगर्भ या तैजस रूप, म् से ईश्वर या प्राज्ञ रूप का बोध होता है. यह ब्रह्माण्ड ही ब्रह्म का शरीर या विराट रूप है. अपनी लीला को पूर्ण रूप में व्यक्त करने के कारण वह विराट या विश्व या वैश्वानर कहलाता है. जो आप स्वयंप्रकाश और सूर्यादि लोकों का प्रकाश करने वाला है, इससे परमेश्वर का नाम हिरण्यगर्भ या तैजस है. जिसका सत्य विचारशील ज्ञान और अनन्त ऐश्वर्य है, उससे उस परमात्मा का नाम ईश्वर है और सब चराचर जगत् के व्यवहार को यथावत् जानने के कारण वह ईश्वर ही प्राज्ञ कहलाता है. गायत्री मंत्र का शेष भाग ‛भूर्भुव: स्व:. तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि. धियो यो न: प्रचोदयात्.’ यजुर्वेद के छत्तीसवें अध्याय से लिया गया है जिसमें सविता के साथ सूर्य की अलग से वन्दना है. सविता का मूल शब्द सवितृ है जिसका अर्थ सूर्य के साथ प्रेरक ईश्वर भी होता है. जैसे हरि का अर्थ बन्दर और ईश्वर होता है और सन्दर्भानुसार ही हम उसका अर्थ ग्रहण करते हैं. उसी प्रकार चूँकि यह मंत्र बुद्धि को प्रेरित करने की प्रार्थना करता है अत: सविता का अर्थ प्रेरित करने की क्षमता वाले ईश्वर से ही करना चाहिए.
गायत्री मंत्र में भू: शब्द पदार्थ और ऊर्जा के अर्थ में, भुव: शब्द अन्तरिक्ष के अर्थ में तथा स्व: शब्द आत्मा के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है. शुद्ध स्वरूप और पवित्र करने वाला चेतन ब्रह्म स्वरूप ईश्वर को ही भर्ग कहा जाता है. इस प्रकार गायत्री मंत्र का अर्थ हुआ ‒ पदार्थ और ऊर्जा (भू:), अन्तरिक्ष (भुव:) और आत्मा (स्व:) में विचरण करने वाला सर्वशक्तिमान ईश्वर (ओम्) है. उस प्रेरक (सवितु:) पूज्यतम (वरेण्यं) शुद्ध स्वरूप (भर्ग:) देव का (देवस्य) हमारा मन अथवा हमारी बुद्धि धारण करे (धीमहि). वह जगदीश्वर (य:) हमारी (न:) बुद्धि (धिय:) को अच्छे कामों में प्रवृत्त करे (प्रचोदयात्). इस प्रकार गायत्री मंत्र ब्रह्म के स्वरूप, ईश्वर की महिमा का वर्णन करते हुए प्रार्थना मंत्र का स्वरूप ले लेता है.
गायत्री मंत्र में भू: शब्द पदार्थ और ऊर्जा के अर्थ में, भुव: शब्द अन्तरिक्ष के अर्थ में तथा स्व: शब्द आत्मा के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है. शुद्ध स्वरूप और पवित्र करने वाला चेतन ब्रह्म स्वरूप ईश्वर को ही भर्ग कहा जाता है. इस प्रकार गायत्री मंत्र का अर्थ हुआ ‒ पदार्थ और ऊर्जा (भू:), अन्तरिक्ष (भुव:) और आत्मा (स्व:) में विचरण करने वाला सर्वशक्तिमान ईश्वर (ओम्) है. उस प्रेरक (सवितु:) पूज्यतम (वरेण्यं) शुद्ध स्वरूप (भर्ग:) देव का (देवस्य) हमारा मन अथवा हमारी बुद्धि धारण करे (धीमहि). वह जगदीश्वर (य:) हमारी (न:) बुद्धि (धिय:) को अच्छे कामों में प्रवृत्त करे (प्रचोदयात्). इस प्रकार गायत्री मंत्र ब्रह्म के स्वरूप, ईश्वर की महिमा का वर्णन करते हुए प्रार्थना मंत्र का स्वरूप ले लेता है.
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।
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