एस्परिन से बेहतर उदाहरण क्या होगा, एस्परिन टेबलेट्स में मार्कर कंपाउंड के नाम पर सेलिसिलिक एसिड होता है जिसे सबसे पहले व्हाईट विल्लो ट्री नामक पेड़ से प्राप्त किया गया। सेलिसिलिक एसिड को कृत्रिम तौर पर तैयार किया गया और एस्परिन नामक औषधि बाजार में लायी गयी। दर्द निवारक गुणों के लिए मशहूर इस दवा के सेवन के बाद कई रोगियों को पेट में गड़बड़ी और अनेक को पेट में छालों की समस्याओं से जूझना पड़ा, जबकि व्हाईट विल्लो ट्री की छाल का काढा वनवासी हर्बल जानकार दर्द निवारण के लिए सदियों से देते आएं है और रोगियों को कभी किसी तरह की शिकायत नहीं हुयी। क्या निष्कर्ष निकालेंगे आप? दर असल छाल के काढे में वो रसायन तो हैं ही जो छालों की रोकथाम के लिए कारगर माने गए हैं और कई रसायन ऐसे भी है जो पेट दर्द और दस्त रोकने आदि लिए महत्वपूर्ण हैं। अब आप किसे चुनेंगे, साइड इफेक्ट या नो साइड इफेक्ट?
जब ऐसे परिणाम हमारे समक्ष हैं तो हमे क्यों बाधित किया जाता है कि हम कृत्रिम रसायनों पर आधारित दवाओं का सेवन करें? उसका सीधा जवाब यह है कि पूरी जड़ी- बूटियों को लेकर दवा बनाने से फार्मा कंपनियों का कमाई का एक बडा हिस्सा बिल्कुल कम हो जाता है, और यह भी देखा गया है कि पूर्ण रूप से और सही जड़ी- बूटियों को लेकर बनायी गयी औषधियों से रोगी के एक से ज्यादा रोगों पर एक साथ काबू पाया जा सकता है। अब जब एक ही हर्बल दवा से ढ़ेर भर की बीमारियां खत्म हो जाएंगी तो फार्मा कंपनियों और डॉक्टरी दुकानों का क्या होगा
।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।
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