Friday, August 25, 2017

🔥🔥हवन का महत्व 🔥🔥


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     फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। जिसमे उन्हें पता चला की हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है जो की खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओ को मारती है तथा वातावरण को शुद्द करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला। गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।

(२) टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया की यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।

(३) हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च की क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्द होता है और जीवाणु नाश होता है अथवा नही. उन्होंने ग्रंथो. में वर्णित हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया की ये विषाणु नाश करती है। फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा की सिर्फ आम की लकड़ी १ किलो जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलायी गयी एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बॅक्टेरिया का स्तर ९४ % कम हो गया। यही नही. उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओ का परीक्षण किया और पाया की कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के २४ घंटे बाद भी जीवाणुओ का स्तर सामान्य से ९६ प्रतिशत कम था। बार बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ की इस एक बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था।
यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र (resarch journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर २००७ में छप चुकी है।
रिपोर्ट में लिखा गया की हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का नाश होता है। जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है।

क्या हो हवन की समिधा (जलने वाली लकड़ी):-👇

समिधा के रूप में आम की लकड़ी सर्वमान्य है परन्तु अन्य समिधाएँ भी विभिन्न कार्यों हेतु प्रयुक्त होती हैं। सूर्य की समिधा मदार की, चन्द्रमा की पलाश की, मङ्गल की खैर की, बुध की चिड़चिडा की, बृहस्पति की पीपल की, शुक्र की गूलर की, शनि की शमी की, राहु दूर्वा की और केतु की कुशा की समिधा कही गई है।
मदार की समिधा रोग को नाश करती है, पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली, पीपल की प्रजा (सन्तति) काम कराने वाली, गूलर की स्वर्ग देने वाली, शमी की पाप नाश करने वाली, दूर्वा की दीर्घायु देने वाली और कुशा की समिधा सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है।
हव्य (आहुति देने योग्य द्रव्यों) के प्रकार
प्रत्येक ऋतु में आकाश में भिन्न-भिन्न प्रकार के वायुमण्डल रहते हैं। सर्दी, गर्मी, नमी, वायु का भारीपन, हलकापन, धूल, धुँआ, बर्फ आदि का भरा होना। विभिन्न प्रकार के कीटणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है। इसलिए कई बार वायुमण्डल स्वास्थ्यकर होता है। कई बार अस्वास्थ्यकर हो जाता है। इस प्रकार की विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिए हवन में ऐसी औषधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं, जो इस उद्देश्य को भली प्रकार पूरा कर सकती हैं।

होम द्रव्य -

होम-द्रव्य अथवा हवन सामग्री वह जल सकने वाला पदार्थ है जिसे यज्ञ (हवन/होम) की अग्नि में मन्त्रों के साथ डाला जाता है।

(१) सुगन्धित : केशर, अगर, तगर, चन्दन, इलायची, जायफल, जावित्री छड़ीला कपूर कचरी बालछड़ पानड़ी आदि

(२) पुष्टिकारक : घृत, गुग्गुल ,सूखे फल, जौ, तिल, चावल शहद नारियल आदि

(३) मिष्ट - शक्कर, छूहारा, दाख आदि

(४) रोग नाशक -गिलोय, जायफल, सोमवल्ली ब्राह्मी तुलसी अगर तगर तिल इंद्रा जव आमला मालकांगनी हरताल तेजपत्र प्रियंगु केसर सफ़ेद चन्दन जटामांसी आदि

उपरोक्त चारों प्रकार की वस्तुएँ हवन में प्रयोग होनी चाहिए। अन्नों के हवन से मेघ-मालाएँ अधिक अन्न उपजाने वाली वर्षा करती हैं। सुगन्धित द्रव्यों से विचारों शुद्ध होते हैं, मिष्ट पदार्थ स्वास्थ्य को पुष्ट एवं शरीर को आरोग्य प्रदान करते हैं, इसलिए चारों प्रकार के पदार्थों को समान महत्व दिया जाना चाहिए। यदि अन्य वस्तुएँ उपलब्ध न हों, तो जो मिले उसी से अथवा केवल तिल, जौ, चावल से भी काम चल सकता है।

सामान्य हवन सामग्री -

तिल, जौं, सफेद चन्दन का चूरा , अगर , तगर , गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र , पानड़ी , लौंग , बड़ी इलायची , गोला , छुहारे नागर मौथा , इन्द्र जौ , कपूर कचरी , आँवला ,गिलोय, जायफल, ब्राह्मी.
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चंद्रमा :: वैदिक ज्योतिष का आधार MOON transit through 27 constellation

पाराशर होरा शास्त्र में चंद्रमा गोचर को #ज्योतिष_की_आत्मा कहा गया है। सूर्य के बाद धरती के उपग्रह चन्द्र का प्रभाव धरती पर पूर्णिमा के दिन सबसे ज्यादा रहता है। जिस तरह मंगल के प्रभाव से समुद्र में मूंगे की पहाड़ियां बन जाती हैं और लोगों का खून दौड़ने लगता है उसी तरह चन्द्र से समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पत्न होने लगता है। जितने भी दूध वाले वृक्ष हैं सभी चन्द्र के कारण उत्पन्न हैं। चन्द्रमा बीज, औषधि, जल, मोती, दूध, अश्व और मन पर राज करता है। लोगों की बेचैनी और शांति का कारण भी चन्द्रमा है।

"मानव योनि में कर्म रूपी वृछ निर्माण हेतु #विचार_रूपी_बीज का जनक होने का श्रेय चन्द्रउर्जा को ही प्राप्त है।"
चन्द्रमा माता का सूचक और मन का कारक है। कुंडली में चन्द्र के अशुभ होने पर मन और माता पर प्रभाव पड़ता है। ज्योतिष शाश्त्र "फलदीपिका" के अनुसार कुंडली में चन्द्र के दोषपूर्ण या खराब होने की स्थिति के बारे में विस्तार से बताया गया है।

👉 कैसे होता है चन्द्र खराब ?
* घर का वायव्य कोण दूषित होने पर भी चन्द्र खराब हो जाता है।
* घर में जल का स्थान-दिशा यदि दूषित है तो भी चन्द्र अशुभ फल देता है।
* पूर्वजों का अपमान करने और श्राद्ध कर्म नहीं करने से भी चन्द्र दूषित हो जाता है।
* माता या मातातुल्य का अपमान करने या उससे विवाद करने पर चन्द्र अशुभ प्रभाव देने लगता है।
* शरीर में जल यदि दूषित हो गया है तो भी चन्द्र का अशुभ प्रभाव पड़ने लगता है।
* गृह कलह करने और पारिवारिक सदस्य को धोखा देने से भी चन्द्र प्रतिकूल फल देता है।
* राहु, केतु या शनि के साथ होने से तथा उनकी दृष्टि चन्द्र पर पड़ने से चन्द्र खराब फल देने लगता है।
* सूर्यअस्त के पश्चात् दूध या दूध निर्मित चीजो का लगातार सेवन करने से।

शुभ चन्द्र व्यक्ति को धनवान और दयालु बनाता है। सुख और शांति देता है। भूमि और भवन के मालिक चन्द्रमा से चतुर्थ में शुभ ग्रह होने पर या लग्न से केंद्र में स्वग्रही चन्द्र द्वारा यामिनिनाथ योग से घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं।

👉 कैसे जानें कि चन्द्र खराब या दूषित है ?..
* दूध देने वाला जानवर मर जाए।
* यदि घोड़ा पाल रखा हो तो उसकी मृत्यु भी तय है, किंतु आमतौर पर अब लोगों के यहां ये जानवर नहीं होते।
* माता का बीमार होना या घर के जलस्रोतों का सूख जाना भी चन्द्र के अशुभ होने की निशानी है।
* महसूस करने की क्षमता क्षीण हो जाती है।
* राहु, केतु या शनि के साथ होने से तथा उनकी दृष्टि चन्द्र पर पड़ने से चन्द्र अशुभ हो जाता है।
* मानसिक रोगों का कारण भी चन्द्र को माना गया है।
* भावनात्मक असंतुलन की स्तिथि को प्राप्त होना।
* अनिर्णय स्तिथि को प्राप्त होना।
* एकाग्रचित होने में कठिनाई का अनुभव हो।

👉 चंद्र ग्रह उर्जा असंतुलन से होती ये बीमारी:
* चन्द्र में मुख्य रूप से दिल, बायां भाग से संबंध रखता है।
* मिर्गी का रोग।
* पागलपन।
* बेहोशी।
* फेफड़े संबंधी रोग।
* मासिक धर्म गड़बड़ाना।
* स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है।
* मानसिक तनाव और मन में घबराहट।
* तरह-तरह की शंका और अनिश्चित भय।
* सर्दी-जुकाम बना रहता है।
* व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार बार-बार आते रहते हैं।
* किसी विशेष कर्म को करने में असहजता।

👉 चंद्र ग्रह के उपाय:
* प्रतिदिन माता के पैर छूना। (#भूलना_मत)
* शिव की भक्ति।
* सोमवार का व्रत।
* पानी या दूध को साफ चांदी पात्र में सिरहाने रखकर सोएं और सुबह कीकर के वृक्ष की जड़ में डाल दें।
* चावल, सफेद वस्त्र, शंख, वंशपात्र, सफेद चंदन, श्वेत पुष्प, चीनी, बैल, दही और मोती दान करना चाहिए।
* मोती युक्त चांदी निर्मित #प्रतिष्ठित एवं अभिमंत्रित "चंद्रयंत्र" गले में धारण करना।
* कुंडली के छठे भाव में चन्द्र हो तो दूध या पानी का दान करना मना है।
* सोमवार को सफेद वस्तु जैसे दही, चीनी, चावल, सफेद वस्त्र,1 जोड़ा जनेऊ, दक्षिणा के साथ दान करना।
* "ॐ सोम सोमाय नमः'' का 108 बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है।
* "चन्द्र अष्टोत्तर शतनामावली" का जप या पलाश समिधा द्वारा हवन करना।
* यदि चन्द्र 12वां हो तो धर्मात्मा या साधु को भोजन न कराएं और न ही दूध पिलाएं।
* नवरात्र में नौ दिन तक गोधुली बेला में घी का दीपक जला कर निहारना।
* #हस्त_रोहिणी_श्रवण नक्षत्र विचार कर सूर्योदय से सूर्यास्त तक नमक एवं जलसेवन वर्जित रखना।
* गंगाजल रुद्राभिषेक विधि विधान द्वारा।

👉 नोट :
इनमें से कुछ उपाय चंद्रमा की विशेष स्तिथि वश #विपरीत_फल देने वाले भी हो सकते हैं। अपनी जन्म कुंडली, हस्तरेखा की पूरी जांच किए बगैर उपाय नहीं करना चाहिए। किसी जानकार, विशेषज्ञ या ज्योतिष विचारक को कुंडली दिखाकर ही ये उपाय करें।

Thursday, August 24, 2017

बौद्ध धर्म के बारेमे जाने..

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लगभग 2500 साल पहले बौद्ध धर्म का उत्थान हुआ। बौद्ध धर्म का ज्ञान नास्तिकता और शून्यवाद पर टिका हुआ था। बुद्ध की खास विशेषता अहिंसावाद था । इतना अधिक अहिंसा की लोग अपनी रक्षा तक करना भूल गए। कायर और नपुंसकता उनके भीतर बस गई।
जिसका फायदा एक मलेच्छ मुर्ख मजहब ने उठाया।
बौद्ध कहते है यही एकमात्र मोक्ष है।
बौद्ध धर्म के आस पास ही जैन धर्म का उदय हुआ । अहिंसावाद में ये बौद्धों के भी उस्ताद थे। इनका सिद्धांत था सबकुछ त्याग दो। नंगे हो जाये। मुह पर पट्टी बांध लो । मुँह खोलकर हँसना नहीं। शाम होने से पहले भोजन कर लो। नहीं तो हिंसा हो जायेगी पाप लगेगा।
पाप पूण्य की परिभाषा बदलने वाले जैनियों को हिन्दू देवी देवताओं की बुराई में कोई पाप नहीं लगता । राम और कृष्ण को गाली देने में कोई पाप नहीं लगता। सबसे ज्यादा ईर्ष्यालू धर्म है ये।
जो भगवन से ईर्ष्या करे उन्हें नर्क में डाले। इससे बढ़कर क्या होगा। लेकिन ये कहते है हमारा धर्म स्वीकार करो हमारे नियमो से चलो मोक्ष मिलेगा।
अब बात करते है यहूदी धर्म की इनकी धर्म पुस्तक तौरेत है और संस्थापक मूसा। तौरेत के हिसाब से उनका ईश्वर ईर्ष्यालु है जो लोग उसकी राह पर नहीं चलता उसे वह तड़पता है। बहुत बुरी सजा देता है। लेकिन अगर कोई उसकी बात को मानता है उसके नियमो पर चलता है। उसे वह खुश और आबाद रखता है।
यहूदियो में से ही दो धर्म और बने ईसाई और इस्लाम।
ईसाइयो का ओल्ड टेस्टामेंट लगभग यही तौरेत है। और न्यू टेस्टामेंट में यीशु मसीह के विचार। इसमें भी जो ईसा के बनाये नियमो को नहीं मानता उसे दुनिया के अंत तक नर्क में सड़ाया जायेगा उसकी कभी मुक्ति नहीं होगी। बस आपको इसाई होना होगा बाकी आपके सारे पाप यीशु अपने सर पर लेंगे।
वाह वाह क्या ऑफर है।
अब बात करते है 1400 साल पहले पनपे इस्लाम की। मोहम्मद की बनाई दुनिया में आपको सिर्फ अल्लाह पर ईमान लाना है। बस और कुछ नहीं फिर आप हत्या करे बलात्कार कर किसी को लूट ले किसी को तड़पा तड़पा कर मार दे । आपको कोई पाप नहीं लगेगा बल्कि अल्लाह और भी खुश होगा तुम्हे जन्नत नसीब होगी जहां 72 हूरे बिलकुल नग्न होकर शराब का प्याला थामे आपका इन्तजार कर रही होगी। साथ ही बहुत से गिलमे यानि बिना लिंग के लोंडे मिलेंगे।
ये तो सबसे जबरदस्त ऑफर है।
अब बात करते है सिखों की ।
यह हिन्दू धर्म से निकली एक धारा है जो निकली तो अच्छे कामो के लिए थी ।पर यह रिकॉर्ड है हिन्दू से अलग होकर जो भी पंथ और समुदाय बने सबने हिन्दुओ की ही जड़ काटी।
सिखों के सारे गुरु हरि , गोविन्द और राम भज भज कर मर गए। अंत में अपना धर्म ग्रन्थ तैयार कर गए। और निर्देश दे गए यही पुस्तक तुम्हारा गुरु भी है और भगवान भी। इसका पालन करते रहो मोक्ष मिलेगा। ये भी ठीक ऑफर है।

बहुत से ऐसे महात्मा भी हुए जो नास्तिक दर्शन पर बात करते थे जिनमे सबसे मशहूर चार्वाक है । इनके दर्शन को चार्वाक कहते है। इनका मुख्य उपदेश यह था कि जीवन में चाहे कुछ भी हो जाए चाहे उधार मांग कर घी पीना पड़े तो पियो अर्थात कैसे भी उधार से लूट कर मांग कर या छीन कर बस मजे करो यही जीवन बाँकी कुछ नहीं है ये मोक्ष वोक्ष। वाह क्या बात है।

इनके अलावा बहुत से ऐसे महात्मा आये जो नया धर्म तो नहीं बना पाये । अपना पंथ और समुदाय बना गए जैसे कबीर दास। रविदास ...... इत्यादि
फिर आजादी से पहले साई बाबा । ओशो रजनीश। ब्रह्कुमारी। सत्य साई
फलाना ढिमकाना। सबने धर्म के अखाड़े में खूब हाथ आजमाए।
ऐसे कामो में विवेकानंद और दयानंद भी पीछे नहीं रहे कोई आर्यसमाज बना गया तो को आर के मिशन।

इसके बाद तो राधा स्वामी, SSDN, सच्चा सौदा पक्का सौदा महंगा सौदा। रामपाल, आसाराम, निर्मल थर्मल सबने अपने हाथ आजमाए। ये गुरु जी , जयगुरु जी
सब गुरु घंटाल है। अब तो हद ये है कि
फेसबुक और व्हाट्स अप वाले बाबा भी आ गए है जो सोशल मिडिया से ही आपकी तकलीफ जानकर समाधान कर देंगे। मोक्ष चाहिए वो भी मिलेगा वो भी सस्ते में तो मुझे बताओ इन सबमे से कौन से ग्रुप या गिरोह में हो तुम।

*मुझे गर्व है की मैं केवल सनातनी  हिन्दू हूँ।* 🌼

✊✊🚩

Wednesday, August 23, 2017

भारतीय इतिहास का विकृतिकरण...


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इस सम्बन्ध में भारतीय धर्मग्रन्थों की चर्चा हो रही थी आज बात करते हैं रामायण और महाभारत की

भारत में अंग्रेजों के आगमन से पूर्व सभी भारतीयों को अपने प्राचीन साहित्य में, चाहे वह रामायण हो या महाभारत, पुराण हो या अन्य ग्रन्थ, पूर्ण निष्ठा थी। इसके संदर्भ में ‘मिथ‘ की मिथ्या धारणा अंग्रेज इतिहासकारों द्वारा ही फैलाई गई क्योंकि अपने उद्देश्य की प्राप्ति की दृष्टि से उनके लिए ऐसा करना एक अनिवार्यता थी। बिना ऐसा किए इन ग्रन्थों में उल्लिखित ऐतिहासिक तथ्यों की सच्चाई से बच पाना उनके लिए कठिन था। जबकि भारतीय ग्रन्थ यथा- रामायण, महाभारत, पुराण आदि भारत के सच्चे इतिहास के दर्पण हैं। इनके तथ्यों को यदि मान लिया जाता तो अंग्रेज लोग भारत के इतिहास-लेखन में मनमानी कर ही नहीं सकते थे। अपनी मनमानी करने के लिएही उन लोगों ने भारत के प्राचीन ग्रन्थों के लिए ‘मिथ‘, ‘अप्रामाणिक‘, ‘अतिरंजित‘, ‘अविश्वसनीय‘ जैसे शब्दों का न केवल प्रयोग ही किया वरन अपने अनर्गल वर्णनों को हर स्तर पर मान्यता भी दी और दिलवाई। फलतः आज भारत के ही अनेक विद्वान उक्त ग्रन्थों के लिए ऐसी ही भावना रखने लगे जबकि ये सभी ग्रन्थ ऐतिहासिक तथ्यों से परिपूर्ण हैं।

रामायण

वाल्मीकि ने श्रीराम की कथा के माध्यम से उनसे पूर्व के लाखों-लाखों वर्षों के भारत के इतिहास को सामने रखते हुए भारत के स्वर्णिम अतीतका ज्ञान बड़े ही व्यापक रूप में वर्णित किया है। रामायण की कथा की ऐतिहासिकता के संदर्भ में महर्षिव्यास का महाभारत में यह कथन सबसे बड़ा प्रमाण है, जो उन्होंने वन पर्व में श्रीराम की कथा का उल्लेखकरते हुए कहा है - ‘राजन ! पुरातन काल के इतिहास में जो कुछ घटित हुआ है अब वह सुनो‘। यहाँ‘पुरातन‘ और ‘इतिहास‘, दोनों ही शब्द रामायण की कथा की प्राचीनता और ऐतिहासिकता प्रकट कर रहे हैं। यही नहीं, श्रीराम की कथा की ऐतिहासिकता का सबसे प्रबल आधुनिक युग का वैज्ञानिक प्रमाण अमेरिकाकी ‘नासा‘ संस्था द्वारा 1966 में और भारत द्वारा 1992 में छोड़े गए अन्तरिक्ष उपग्रहों ने श्रीराम द्वारा लंका जाने के लिए निर्मित कराए गए सेतु के समुद्र में डूबे हुए अवशेषों के चित्र खींचकर प्रस्तुतकर दिया है।

इस कथा की ऐतिहासिकता का ज्ञान इस बात से भी हो जाता है कि वाल्मीकि रामायण के सुन्दर काण्ड के नवम् सर्ग के श्लोक 5 में बताया गया है कि जब हनुमान जी सीता जी की खोज के लिए लंका में रावण के भवन के पास से निकले तो उन्होंने वहाँतीन और चार दाँतों वाले हाथी देखे। श्री पी. एन. ओक के अनुसार आधुनिक प्राणी शास्त्रियों का मानना है कि ऐसे हाथी पृथ्वी पर थे तो अवश्य किन्तु उनकी नस्ल को समाप्त हुए 10 लाख वर्ष से अधिक समय हो गया। दूसरे शब्दों में श्रीराम की कथा दस लाख वर्ष से अधिक प्राचीन तो है ही साथ ही ऐतिहासिक भी है।

महाभारत

यह महर्षि वेदव्यास की महाभारत युद्ध के तुरन्त बाद ही लिखी गई एक कालजयी कृति है। इसे उनकी ही आज्ञा से सर्पसत्र के समय उनके शिष्य वैषम्पायन ने राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय को सुनाया था, जिसका राज्यकाल कलि की प्रथम शताब्दी में रहा था अर्थात इसकी रचना को 5000 साल बीत गए हैं। यद्यपि इसकी कथा में एक परिवार के परस्पर संघर्ष का उल्लेख किया गया है परन्तु उसकी चपेट में सम्पूर्ण भारत ही नहीं अन्य अनेक देश भी आए हैं। फिर भी सारी कथा श्रीकृष्ण के चारों ओर ही घूमती रही है। यह ठीक है कि आज अनेकलेखक श्रीकृष्ण के भू-अवतरण को काल्पनिक मान रहे हैं किन्तु वे भारत के एक ऐतिहासिक पुरुष हैं, इसका प्रमाण भारत का साहित्य ही नहीं आधुनिक विज्ञान भी प्रस्तुत कर रहा है।

समुद्र में तेल खोजते समय भारतीय अन्वेषकों को 5000 वर्ष पूर्व समुद्र में डुबी श्रीकृष्ण जी की द्वारिका के कुछ अवशेष दीखे। खोज हुई और खोज में वहाँ मिली सामग्री के संदर्भ में 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री कार्यालय के मंत्री द्वारा लोकसभा में दिए गएएक प्रश्न के उत्तर में बताया गया था कि वहाँ मिली सामग्री में 3 छिद्रित लंगर, मोहरें, उत्कीर्णित जार, मिट्टी के बर्तन, फ्लेग पोस्ट के साथ-साथ एक जेटी (घाट) आदि उल्लेखनीय हैं। महाभारत युद्ध का कालभारतीय पौराणिक कालगणना के अनुसार आज से 5144-45 वर्ष पूर्व का है। द्वारिका की खोज ने भारतीय पुरातन साहित्य में उल्लिखित श्रीकृष्ण और द्वारिका के साथ-साथ महाभारत की कथा को ‘मिथ‘ की कोटि से निकाल कर इसे इतिहास भी सिद्ध कर दिया है।

पुराण

पुराण भारतीय जन-जीवन के ज्ञान के प्राचीनतम स्रोतों में से हैं। इन्हें भारतीय समाज में पूर्ण सम्मान दिया जाता रहा है। पुराणों को श्रुति अर्थात वेदों के समान महत्त्व दिया गया है - ‘‘श्रुति-स्मृति उभेनेत्रे पुराणं हृदयं स्मृतम्‘‘ अर्थातश्रुति और स्मृति दोनों ही नेत्र हैं तथा पुराण हृदय। मनुस्मृति में श्राद्ध के अवसर पर पितरों को वेद और धर्मशास्त्र के साथ-साथ इतिहास और पुराणों को सुनाने के लिए कहा गया है। पुराणों की कथाओं का विस्तार आज से करोड़ों-करोड़ों वर्ष पूर्व तक माना जाता है। इनके अनुसार सृष्टि का निर्माण आज से 197 करोड़ से अधिक वर्ष पूर्व हुआ था। पहले इस बात को कपोल-कल्पित कहकर टाला जाता रहा है किन्तु आज तोविज्ञान भी यह बात स्पष्ट रूप में कह रहा है कि पृथ्वी का निर्माण दो अरब वर्ष से अधिक पूर्व में हुआ था। दूसरे शब्दों में पुराणों में कही गई बात विज्ञान की कसौटी पर सही पाई गई है। अतः इनकी प्रामाणिकता स्वतः सिद्ध हो जाती है। पुराणों से सृष्टि रचना, प्राणी की उत्पत्ति, भारतीय समाज के पूर्व पुरुषों के कार्य की दिशा, प्रयास और मन्तव्य के ज्ञान के साथ-साथ विभिन्न मानव जातियों की उत्पत्ति, ज्ञान-विज्ञान, जगत के भिन्न-भिन्न विभागों के पृथक-पृथक नियमों आदि का भी पता चलता है। इनमें देवताओं और पितरों की नामावली के साथ-साथ अयोध्या, हस्तिनापुर आदि के राजवंशों का महाभारत युद्ध के 1504 वर्ष के बाद तक का वर्णन मिलता है। इसका यह अर्थ कदापि नहीं लगाया जाना चाहिए कि पुराणों की रचना महाभारत के 1500 वर्षों के बाद हुई है। विभिन्न भारतीय विद्वानों का कहना है कि पुराण तो प्राचीन हैं किन्तु उनमें राजवंशों के प्रकरण समय-समय पर संशोधित किए जाते रहे हैं। यही कारण है कि अलग-अलग पुराणों में एक ही वंश के राजाओं की संख्या में अन्तर मिल जाता है, क्योंकि यह वंश के प्रसिद्ध राजाओं की नामावली है वंशावली नहीं। उदाहरण के लिए- सूर्यवंश के राजाओं की संख्याविष्णु पुराण में 92, भविष्य में 91, भागवत में 87 और वायु में 82 दी गई है। लगता है संशोधनों केही समय इनमें कुछ बातें ऐसी भी समाविष्ट हो गई हैं जिनके कारण इनकी कुछ बातों की सत्यता पर ऊँगली उठा दी जाती है।

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