Friday, July 3, 2015

अहम् ब्रह्मास्मि


आप सभी का दिवस बरस मङ्गलमय हो,,,
समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हों,,,

अहं क्रतुरहं यज्ञ: स्वधाहमहमौषधम्।
मंत्रोहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम् ।।

पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामह:।
वेद्यं पवित्रमोंकार ऋक्साम यजुरेव च।।

गतिर्भर्ता प्रभु: साक्षी निवास: शरणं सुहृत्।
प्रभवः प्रलय: स्थानं निधानं बीजमव्ययम्।।

तपाम्यहमहं वर्ष निगृह्राम्युत्सृजामि च।
अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन।।

त्रैविद्या मां सोमपा: पूतपापायग्यैरिष्ठा
स्वर्गतिं प्राथयन्ते।
ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोकमश्नन्ति
दिव्यांदिवि देवभोगान्।।

ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालंक्षीणे
पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति।
एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं
कामकामा लभन्ते।।

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्य हम्।।

येप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विता:।
तेपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम।।

अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च।
न तू मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते।।

भावार्थ -

क्रतु मैं हूँ,यज्ञ मैं हूँ,स्वधा मैं हूँ,औषधि मैं हूँ,
मन्त्र मैं हूँ,घृत मैं हूँ,अग्नि मैं हूँ और हवनरूप
क्रिया भी मैं ही हूँ।

इस सम्पूर्ण जगत का धाता अर्थात धारण करने
वाला एवं कर्म फल देनेवाला,पिता माता,पितामह,
जानने योग्य पवित्र ओंकार तथा ऋग्वेद,सामवेद
और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ।

प्राप्त होने योग्य परम् धाम,भरण पोषण करने
वाला,सबका स्वामी,शुभाशुभ का देखने वाला,
सबका वास स्थान,शरण लेने योग्य,प्रत्युपकार
न चाह कर हित करने वाला,सबकी उत्पत्ति
प्रलय का हेतु,स्थिति का आधार,निधान और
अविनाशी कारण भी मैं ही हूँ।

मैं ही सूर्य रूप से तपता हूँ,वर्षा का आकर्षण
करता हूँ और उसे बरसाता हूँ।
हे अर्जुन ! मैं ही अमृत और मृत्यु भी हूँ और
सत् असत् भी मैं ही हूँ।

तीनो वेदों में विधान किये हुए सकाम कर्मों
को करनेवाले,सोमरस पीने वाले,पाप रहित
पुरुष मुझको यज्ञों के द्वारा पूज कर स्वर्ग की
प्राप्ति चाहते हैं,वे पुरुष अपने पुण्यों के फल
स्वरूप् स्वर्गलोक को प्राप्त होकर स्वर्ग में दिव्य
देवताओं के भोगों को भोगते हैं।

वे उस विशाल स्वर्ग लोक को भोग कर पुण्य
क्षीण होने पर मृत्यु लोक को पुनः प्राप्त होते हैं।
इस प्रकार स्वर्ग के साधन रूप तीनों वेदों में कहे
हुए सकाम कर्म का आश्रय लेने वाले और भोगों
की कामना वाले पुरुष बारम्बार मृत्यु लोक में
आवागमन को प्राप्त होते हैं,अर्थात पुण्य के प्रभाव
से स्वर्ग में जाते हैं तथा पुण्य क्षीण होने पर मृत्यु
लोक में आते हैं।

हे अर्जुन ! यद्यपि श्रद्धा से युक्त जो सकाम भक्त
दुसरे देवताओं को पूजते हैं,वे भी मुझे ही पूजते
हैं,किन्तु उनका वह पूजन अविधि पूर्वक अर्थात
अज्ञान पूर्वक ही है।

क्यों कि सम्पूर्ण यज्ञों का भोक्ता और स्वामी भी
मैं ही हूँ,परन्तु वे मुझ परमेश्वर को तत्व से नही
जानते,इसी से गिरते हैं अर्थात पुनर्जन्म को प्राप्त
होते हैं।

समस्त चराचर प्राणियों एवं सकल विश्व का
कल्याण करो प्रभु श्री मुरारी !

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,,,
हे नाथ नारायण वासुदेव !

जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,,

सदा सुमंगल,,,
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जय भवानी
जय श्रीराम

।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

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