Thursday, March 3, 2016

हवा में झूलते हैं इस मंदिर के स्तंभ – वैज्ञानिक भी हैं हैरान।

भारत मंदिरों का देश है यहां विभिन्न प्रांतो में हमें मंदिर देखने को मिलते हैं। मंदिरों को देवआलय कहा जाता है यानि कि देवताओं का घर। माना जाता है कि लोग मंदिर में अपनी मनोकामना पूर्ण करने आते हैं। भारत जैसे विशाल देश में रोज मंदिर बनते हैं, पर कुछ बहुत पुराने मंदिर हमेशा अनोखे होते हैं। इनके चम्तकार इतने प्रभावित करते हैं कि वैज्ञानिक भी असंजस में पढ़ जाते हैं। आज हम एक ऐसे ही प्राचीन हिन्दू मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके खंभे हवा में झूलते हैं। आईये पढ़ते हैं।
आंध्र प्रदेश की अनंतपुर में एक ऐसा ही मंदिर है, जो कि अपने ऐतिहासिक और चमत्कारी महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यहां की सबसे खास बात यह हैं कि इस मंदिर के स्तंभ बिना किसी सहारे के हवा में झूल रहे हैं। इसके अलावा इस मंदिर का बहुत संबंध रामायण काल से भी जुड़ा हुआ है।
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16वीं शताब्दी में हुआ था मंदिर का निर्माण

यह अनूठा मंदिर बैंगलुरु से लगभग 100 किलोमीटर दूर आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले के एक लेपाक्षी गांव में है। ऐतिहासिक मत के अनुसार, यह मंदिर16वीं शताब्दी बनवाया गया था। इस मंदिर को लेपाक्षी मंदिर या वीरभद्र मंदिर भी कहते हैं। इस मंदिर की विशेषता ये है कि इस मंदिर के स्तम्भ बिना किसी सहारे के हवा में लटके हुए हैं। यहां के झूलते खंभों को लेकर यह मान्यता प्रचलित है कि इन खंभों के नीचे से अपनी साड़ी या कपड़े निकालने पर मनुष्य की मनोकामना पूरी हो जाती है।
Source - gujjupost.com

यह मंदिर अपने झूलते खंभों के रहस्य की वजह से इतना प्रसिद्ध हो गया कि इसका रहस्य जानने के लिए एक ब्रिटिश इंजीनियर तक भारत आया था। इंजीनियर ने बहुत कोशिश की, लेकिन इस चमत्कार का रहस्य जान नहीं पाया और वह भी इस रहस्य को बिना सुलझाए वापिस चला गया।

रामायण काल से जुड़ा है मंदिर

लेपाक्षी गांव के साथ रामायण की एक कथा भी प्रचलित है। कथा के अनुसार, सीता हरण के समय पक्षिराज जटायु ने रावण से युद्ध किया था। उस समय युद्ध में घायल होकर जटायु यहीं गिर थे। जब भगवान राम सीता जी को खोजते हुए यहां पहुंचे तो उन्होंने जटायु से देख कर कहा उठो पक्षी, जिसे तेलुगु ‘ले पक्षी’ कहा जाता है। तभी से इस जगह का नाम लेपाक्षी पड़ गया। मंदिर परिसर के पास ही एक विशाल पैर की आकृति धरती पर अंकित है, जिसे भगवान राम के पैर का निशान मान कर पूजा जाता है।

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मंदिर के प्रवेश द्वार पर नंदी की एक विशाल प्रतिमा बनी हुई है। यह एक ही पत्थर से बनी देश की सबसे विशाल मूर्तियों में से एक मानी जाती है। मंदिर की दीवारों पर कई देवी-देवताओं और महाभारत-रामायण की कहानियां अंकित हैं।

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मंदिर तक कैसे पहुँचे ?


हवाई मार्ग– लेपाक्षी गांव से लगभग 100 कि.मी. की दूरी पर बैंगलुरु एयरपोर्ट है।

रेल मार्ग– लेपाक्षी से सबसे करीब का रेल्वे स्टेशन अनंतपुर है। वहां तक रेल मार्ग से आकर सड़क मार्ग से लेपाक्षी पहुंचा जा सकता है।

सड़क मार्ग– आंध्रप्रदेश के किसी भी शहर तक किसी अन्य साधन से आकर, वहां से निजी वाहन या बस की सहायता से लेपाक्षी पहुंचा जा सकता है।


।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।। ।।जय श्रीकृष्ण।।

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