Thursday, June 25, 2015

आज्ञा चक्र

शिवजी के मस्तक पर दोनों भौंहों के मध्य विराजमान उनका तीसरा नेत्र उनकी एक विशिष्ट पहचान बनाता है। वेदों के अनुसार, यह नेत्र उस स्थान पर स्थित है, जहाँ मानव शरीर में ‘आज्ञा चक्र’ नामक एक महत्वपूर्ण चक्र उपस्थित होता है। ‘आज्ञा चक्र’ का अर्थ है, ‘हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा की शक्ति। इस चक्र को जागृत करने का अर्थ है, मानव शरीर में सम्पूर्ण आध्यात्मिक ऊर्जा का समुचित प्रवाह होना। इसी आज्ञा चक्र के स्थान पर आत्मा का प्रबोधन (ज्ञान) प्रस्तुत और केंद्रित होता है। जो व्यक्ति इस ऊर्जा को जागृत कर लेता है, उसे सभी प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। इस ऊर्जा के ज़रिये व्यक्ति ब्रह्माण्ड में सभी-कुछ देख सकता है।
भगवान् शिव मानव का शुद्धतम स्वरूप हैं। वे ब्रह्माण्ड में सबकुछ देख सकते हैं। वे अतीत में देख सकते हैं, वर्तमान पर नियंत्रण रख सकते हैं, और भविष्य भी देख सकते हैं; वे त्रिकालदर्शी हैं। तीसरे नेत्र के द्वारा आज्ञा चक्र सक्रिय होता है।
माना जाता है कि यदि भगवान् शिव अत्यधिक क्रुद्ध हो जाते हैं, तो उनके तीसरे नेत्र से अत्यधिक शक्तिशाली और विनाशकारी तीक्ष्ण प्रकाश निकलता है। शिवजी के तीसरे नेत्र से निकलने वाली यह ऊर्जा ब्रह्माण्ड में उपस्थित समस्त अचेतन, अंधकार-युक्त एवं द्वैतवादी तत्त्वों का विनाश करती है।
संसार की माया को नष्ट करने के लिये ही वे भगवान् शिव अपना तीसरा नेत्र खोलते हैं


।।जय हिंदुत्व।। ।।जय श्रीराम।। ।।जय महाकाल।।

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