Monday, June 15, 2015

बत्तीस कुरूपताएं

।। ॐ ।।

बुद्ध ने बत्तीस कुरूपताएं शरीर में गिनायी हैं। इन बत्तीस कुरूपताओं का स्मरण रखने का नाम कायगता—स्मृति है।

पहली तो बात, यह शरीर मरेगा। इस शरीर में मौत लगेगी। यह पैदा ही बड़ी गंदगी से हुआ है।

मां के गर्भ में तुम कहां थे, तुम्हें पता है? मल—मूत्र से घिरे पड़े थे। उसी मल—मूत्र में नौ महीने बड़े हुए। उसी मल—मूत्र से तुम्हारा शरीर धीरे—धीरे निर्मित हुआ।

फिर बुद्ध कहते हैं कि अपने शरीर में इन विषयों की स्मृति रखे—केश, रोम, नख, दांत, त्वक्, मांस, स्नायु, अस्थि, अस्थिमज्जा, यकृत, क्लोमक, प्लीहा, फुस्फुस, आत, उदरस्थ मल—मूत्र, पित्त, कफ, रक्त, पसीना, चर्बी, लार आदि। इन सब चीजों से भरा हुआ यह शरीर है, इसमें सौंदर्य हो कैसे सकता है!

सौंदर्य तो सिर्फ चेतना का होता है। देह तो मल—मूत्र का घर है। देह तो धोखा है। देह के धोखे में मत पड़ना, बुद्ध कहते हैं।

इस बात को स्मरण रखना कि इसको तुम कितने ही इत्र से छिडको इस पर, तो भी इसकी दुर्गंध नहीं जाती।

और तुम इसे कितने ही सुंदर वस्त्रों में ढांको, तो भी इसका असौन्दर्य नहीं ढकता है।

और तुम चाहे कितने ही सोने के आभूषण पहनो, हीरे—जवाहरात सजाओ, तो भी तुम्हारे भीतर की मांस—मज्जा वैसी की वैसी है।

जिस दिन चेतना का पक्षी उड़ जाएगा, तुम्हारी देह को कोई दो पैसे में खरीदने को राजी न होगा।

जल्दी से लोग ले जाएंगे, मरघट पर जला आएंगे।

जल्दी समाप्त करेंगे।

घड़ी दो घडी रुक जाएगी देह तो बदबू आएगी।

यह तो रोज नहाओ, धोओ, साफ करो, तब किसी तरह तुम बदबू को छिपा पाते हो।

लेकिन बदबू बह रही है। बुद्ध कहते हैं, शरीर
तो कुरूप है। सौंदर्य तो चेतना का होता है।

और सौंदर्य चेतना का जानना हो तो ध्यान मार्ग है।

और शरीर का सौंदर्य मानना हो, तो ध्यान को भूल जाना मार्ग है। ध्यान करना ही मत कभी, नहीं तो शरीर का असौन्दर्य पता चलेगा।

तुम्हें पता चलेगा, यह शरीर में यही सब तो भरा है। इसमें और तो कुछ भी नहीं है।

कभी जाकर अस्पताल में टंगे अस्थिपंजर को देख आना, कभी जाकर किसी मुर्दे का पोस्टमार्टम होता हो तो जरूर देख आना, देखने योग्य है,

उससे तुम्हें थोड़ी अपनी स्मृति आएगी कि तुम्हारी हालत क्या है। किसी मुर्दे का पेट कटा हुआ देख लेना, तब तुम्हें समझ में आएगा

कि कितना मल—मूत्र भरे हुए हम चल रहे हैं।

यह हमारे शरीर की स्थिति है।

बुद्ध कहते हैं, इस स्थिति का बोध रखो। यह बोध रहे तो धीरे — धीरे शरीर से तादात्म्य टूट जाता है और तुम उसकी तलाश में लग जाते हो जो शरीर के भीतर छिपा है, जो परमसुंदर है।

उसे सुंदर करना नहीं होता, वह सुंदर है। उसे
जानते ही सौंदर्य की वर्षा हो जाती है।

और शरीर को सुंदर करना पड़ता है, क्योंकि शरीर सुंदर नहीं है। कर—करके भी सुंदर होता नहीं है।

कभी नहीं हुआ है। कभी नहीं हो सकेगा।

तृतीय दृश्य— यह बहुत अनूठा सूत्र है। बुद्ध के अनूठे से अनूठे सूत्रों में एक।

इसे खूब ख्याल से समझ लेना॥

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