आधुनिक खोजों के अनुसार गोवंश के दो प्रकार के
वर्गीकरण बारे में प्राप्त जानकारी इस प्रकार है ——-
स्वदेशी, विदेशी गौवंश का अन्तर
विदेशी गौवंश ‘ए-1’
अनेक खोजो से साबित हुआ है कि अधिकांश
विदेशी गौवंश विषाक्त है। आकलैण्ड की ‘ए-2,
कार्पोरेशन तथा प्रसिद्ध खोजी विद्वान ‘डा.
कोरिन लेक् मैकने’ की खोजों के अनुसार ‘ए-1’
प्रकार की गौ के दूध में ‘बीटा कैसीन ए-1,
पाया गया है जिससे हमारे शरीर में ‘आई जी एफ-१
( इन्सुलिन ग्रोथ हार्मोन-१) अधिक निर्माण होने
लगता है। ‘आई जीएफ-1’ से कई प्रकार के कैंसर होने के
प्रमाण मिल चुके हैं।
इसके ईलावा-
‘ हैल्थ जनरल’ न्यूजीलैण्ड के अनुसार ‘ए-1’ दूध से हृदय रोग
मानसिक रोग, मधुमेह, गठिया, आॅटिज्म (शरीर के अंगो पर
नियंत्रण न रहना) आदि रोग होते हैं। सन् 2003 में ‘ए-2’
‘कार्पोरेशन’ द्वारा किए सर्वेक्षण से पता चला है कि इन
गऊओं के दूध् से स्वीडन, यूके, आस्ट्रेलिया, न्यूजिलेंड में हृदय
रोग, मधुमेह रोगों में वृद्धि हुई है। फ्रांस तथा जापान में
‘ए-2’ दूध् से इन रोगों में कमी दर्ज की गई है। प्रशन है
कि हानिकारक ‘ए-1’ तथा लाभदायक ए-2 दूध् किन गऊओं
में है ?
पश्चिमी वैज्ञानिकों के अनुसार ७०% हालिस्टीन, रेड
डैनिश और फ्रिजियन गऊएं हानिकारक ‘ए-1’ प्रोटीन
वाली है। जर्सी की अनेक जातियां भी इसी प्रकार
की है। पर यह स्पष्ट रूप से कोई
नहीं बतला रहा कि लाभदायक ‘ए-2’ प्रोटीन वाली गऊएं
कौन सी है, कहां है स्वयं जरा ढूंढ़ें। विचार करें!!
ब्राजील में लगभग 40 लाख भारतीय गौवंश तैयार
किया गया हैं और पूरे यूरोप में उसका निर्यात हो रहा है।
इनमें अधिकांश गऊएं भारतीय गीर नस्ल और शेष रैड
सिंधी तथा सहिवाल हैं। यह सब जानने के बाद यह कहने
की आवश्यकता नहीं रह जाती कि उपयोगी ‘ए-2’
प्रोटीन वाली गऊएं भारतीय है ? यूरोपीय देश कितने
कपटी हैं जो इस प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारी हमसे
अनेक दशकों तक छुपा कर रखते हैं.
इतना ही नहीं अपनी मुसीबतें हम पर थोंपने का भरपूर
पैसा भी हमसे वसूल करते हैं. क्या ऐसा अन्य अनेक विषयों में
भी नहीं हो रहा होगा ? अनेकों बार इस प्रकार
की जानकारी सामने है जिसे दबा दिया गया.
ऐसे में यदि यह संदेह करना गलत न होगा कि पशुपालन
विभाग का दुरूपयोग करके, करोड़ रु. अनुदान देकर, पशु
कल्याण के नाम पर भारतीय गौवंश को नष्ट करने की गुप्त
योजना पश्चिमी ताकतें चला रही हैं. भोले
भारतीयों को उनका आभास तक नहीं है। दूध् बढ़ाने और
वंश सुधार के नाम पर भारतीय गौवंश का बीज नाश
‘कृत्रिम गर्भाधन’ करके कत्लखानों से कई गुणा अधिक
आपकी सहमति, सहयोग से, आपके अपने द्वारा हो रह है। धन
व्यय करके कृत्रिम गर्भाधन से अपने अमूल्य ‘ए-2’ गौवंश
को हम स्वयं नष्ट कर रहें हैं। गौवंश विनाश यानी भारत
का विनाश। चिकित्सा का अद्भुत साधन व
कृषि का अनुपम आधार समाप्त हो रहा है.
विषाक्त विदेशी गौवंश से बने संकर भारतीय गौवंश से
प्राप्त किया घी, दूध्, दही ही नही, गोबर, गौमुत्र, स्पर्श
और निश्वास भी विषाक्त होगा न ? इन दुग्ध् पदार्थो से
हमारा और हमारी संतानों का स्वास्थ्य बरबाद
नही हो रहा क्या ? इनके गोबर, गौमूत्र से बनी खाद और
पंचगव्य औषधिया भी परम हानिकारक प्रभाव
वाली होगी। हमारी खेती नष्ट होने, पंचगव्य औषधियों के
असफल होने, घी, दूध्, दहीं खाने-पीने पर भी स्वास्थय में
सुधार होने की बजाए बिगाड़ का बड़ा कारण यह संकर
गौवंश है,
वर्गीकरण बारे में प्राप्त जानकारी इस प्रकार है ——-
स्वदेशी, विदेशी गौवंश का अन्तर
विदेशी गौवंश ‘ए-1’
अनेक खोजो से साबित हुआ है कि अधिकांश
विदेशी गौवंश विषाक्त है। आकलैण्ड की ‘ए-2,
कार्पोरेशन तथा प्रसिद्ध खोजी विद्वान ‘डा.
कोरिन लेक् मैकने’ की खोजों के अनुसार ‘ए-1’
प्रकार की गौ के दूध में ‘बीटा कैसीन ए-1,
पाया गया है जिससे हमारे शरीर में ‘आई जी एफ-१
( इन्सुलिन ग्रोथ हार्मोन-१) अधिक निर्माण होने
लगता है। ‘आई जीएफ-1’ से कई प्रकार के कैंसर होने के
प्रमाण मिल चुके हैं।
इसके ईलावा-
‘ हैल्थ जनरल’ न्यूजीलैण्ड के अनुसार ‘ए-1’ दूध से हृदय रोग
मानसिक रोग, मधुमेह, गठिया, आॅटिज्म (शरीर के अंगो पर
नियंत्रण न रहना) आदि रोग होते हैं। सन् 2003 में ‘ए-2’
‘कार्पोरेशन’ द्वारा किए सर्वेक्षण से पता चला है कि इन
गऊओं के दूध् से स्वीडन, यूके, आस्ट्रेलिया, न्यूजिलेंड में हृदय
रोग, मधुमेह रोगों में वृद्धि हुई है। फ्रांस तथा जापान में
‘ए-2’ दूध् से इन रोगों में कमी दर्ज की गई है। प्रशन है
कि हानिकारक ‘ए-1’ तथा लाभदायक ए-2 दूध् किन गऊओं
में है ?
पश्चिमी वैज्ञानिकों के अनुसार ७०% हालिस्टीन, रेड
डैनिश और फ्रिजियन गऊएं हानिकारक ‘ए-1’ प्रोटीन
वाली है। जर्सी की अनेक जातियां भी इसी प्रकार
की है। पर यह स्पष्ट रूप से कोई
नहीं बतला रहा कि लाभदायक ‘ए-2’ प्रोटीन वाली गऊएं
कौन सी है, कहां है स्वयं जरा ढूंढ़ें। विचार करें!!
ब्राजील में लगभग 40 लाख भारतीय गौवंश तैयार
किया गया हैं और पूरे यूरोप में उसका निर्यात हो रहा है।
इनमें अधिकांश गऊएं भारतीय गीर नस्ल और शेष रैड
सिंधी तथा सहिवाल हैं। यह सब जानने के बाद यह कहने
की आवश्यकता नहीं रह जाती कि उपयोगी ‘ए-2’
प्रोटीन वाली गऊएं भारतीय है ? यूरोपीय देश कितने
कपटी हैं जो इस प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारी हमसे
अनेक दशकों तक छुपा कर रखते हैं.
इतना ही नहीं अपनी मुसीबतें हम पर थोंपने का भरपूर
पैसा भी हमसे वसूल करते हैं. क्या ऐसा अन्य अनेक विषयों में
भी नहीं हो रहा होगा ? अनेकों बार इस प्रकार
की जानकारी सामने है जिसे दबा दिया गया.
ऐसे में यदि यह संदेह करना गलत न होगा कि पशुपालन
विभाग का दुरूपयोग करके, करोड़ रु. अनुदान देकर, पशु
कल्याण के नाम पर भारतीय गौवंश को नष्ट करने की गुप्त
योजना पश्चिमी ताकतें चला रही हैं. भोले
भारतीयों को उनका आभास तक नहीं है। दूध् बढ़ाने और
वंश सुधार के नाम पर भारतीय गौवंश का बीज नाश
‘कृत्रिम गर्भाधन’ करके कत्लखानों से कई गुणा अधिक
आपकी सहमति, सहयोग से, आपके अपने द्वारा हो रह है। धन
व्यय करके कृत्रिम गर्भाधन से अपने अमूल्य ‘ए-2’ गौवंश
को हम स्वयं नष्ट कर रहें हैं। गौवंश विनाश यानी भारत
का विनाश। चिकित्सा का अद्भुत साधन व
कृषि का अनुपम आधार समाप्त हो रहा है.
विषाक्त विदेशी गौवंश से बने संकर भारतीय गौवंश से
प्राप्त किया घी, दूध्, दही ही नही, गोबर, गौमुत्र, स्पर्श
और निश्वास भी विषाक्त होगा न ? इन दुग्ध् पदार्थो से
हमारा और हमारी संतानों का स्वास्थ्य बरबाद
नही हो रहा क्या ? इनके गोबर, गौमूत्र से बनी खाद और
पंचगव्य औषधिया भी परम हानिकारक प्रभाव
वाली होगी। हमारी खेती नष्ट होने, पंचगव्य औषधियों के
असफल होने, घी, दूध्, दहीं खाने-पीने पर भी स्वास्थय में
सुधार होने की बजाए बिगाड़ का बड़ा कारण यह संकर
गौवंश है,
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