Tuesday, June 16, 2015

शिवलिंग

शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाशगंगा की तरह है। यह शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड में घूम रहे पिंडों का प्रतीक है, कुछ लोग इसे यौनांगों के अर्थ में लेते हैं और उन लोगों ने शिव की इसी रूप में पूजा की और उनके बड़े-बड़े पंथ भी बन गए हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने धर्म को सही अर्थों में नहीं समझा और अपने स्वार्थ के अनुसार धर्म को अपने सांचे में ढाला।

शिवलिंग .......... वातावरण सहित घूमती धरती तथा ...... सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।The whole universe rotates through a shaft called ........ shiva lingam.

.""लिंग"" एक संस्कृत का शब्द है.........

जिसके निम्न अर्थ है :

@@@@ त आकाशे न विधन्ते -वै०। अ ० २ । आ ० १ । सू ० ५अर्थात..... रूप, रस, गंध और स्पर्श ........ये लक्षण आकाश में नही है ..... किन्तु शब्द ही आकाश का गुण है ।

@@@@ निष्क्रमणम् प्रवेशनमित्याकशस्य लिंगम् -वै०। अ ० २ । आ ० १ । सू ० २ ०अर्थात..... जिसमे प्रवेश करना व् निकलना होता है ....वह आकाश का लिंग है ....... अर्थात ये आकाश के गुण है ।

@@@@ अपरस्मिन्नपरं युगपच्चिरं क्षिप्रमिति काललिङ्गानि । -वै०। अ ० २ । आ ० २ । सू ० ६अर्थात..... जिसमे अपर, पर, (युगपत) एक वर, (चिरम) विलम्ब, क्षिप्रम शीघ्र इत्यादि प्रयोग होते है, इसे काल कहते है, और ये .... काल के लिंग है ।

@@@@ इत इदमिति यतस्यद्दिश्यं लिंगम । -वै०। अ ० २ । आ ० २ । सू ० १ ०अर्थात....... जिसमे पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊपर व् नीचे का व्यवहार होता है ....उसी को दिशा कहते है....... मतलब कि....ये सभी दिशा के लिंग है ।

@@@@ इच्छाद्वेषप्रयत्नसुखदुःखज्ञानान्यात्मनो लिंगमिति -न्याय० अ ० १ । आ ० १ । सू ० १ ०अर्थात..... जिसमे (इच्छा) राग, (द्वेष) वैर, (प्रयत्न) पुरुषार्थ, सुख, दुःख, (ज्ञान) जानना आदि गुण हो, वो जीवात्मा है...... और, ये सभी जीवात्मा के लिंग अर्थात कर्म व् गुण है ।

इसीलिए......... शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने के कारन.......... इसे लिंग कहा गया है...।

स्कन्दपुराण में स्पष्ट कहा है कि....... आकाश स्वयं लिंग है...... एवं , धरती उसका पीठ या आधार है .....और , ब्रह्माण्ड का हर चीज ....... अनन्त शून्य से पैदा होकर..... अंततः.... उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है .........

यही कारन है कि...... इसे कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है ........जैसे कि .....: प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic pillar/lingam) ... इत्यादि...!

वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्स/धुरी ही लिंग है।

लेकिन बौद्धकाल में धर्म और धर्मग्रंथों के बिगाड़ के चलते लिंग को गलत अर्थों में लिया जाने लगा जो कि आज तक प्रचलन में है।

शिवलिंग की पूजा को ठीक से समझने के लिए ......

आप जरा आईसटीन का वो सूत्र याद करें...... जिसके आधार पर उसने परमाणु बम बनाया था....!

क्योंकि.... उस सूत्र ने ही .....परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक दिखाई ...... जो कितनी विध्वंसक थी..... ये सर्वविदित है |

और... परमाणु बम का वो सूत्र था.....

e / c = m c {e=mc^2}

अब ध्यान दें कि .... ये सूत्र एक सिद्धांत है .... जिसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतया ऊर्जा में बदला जा सकता है .....अर्थात, अर्थात..... पदार्थ और उर्जा ... दो अलग-अलग चीज नहीं... बल्कि , एक ही चीज हैं..... परन्तु.... वे दो अलग-अलग चीज बनकर ही सृष्टि का निर्माण करते हैं....!

और..... जिस बात तो आईसटीन ने अभी बताया ..... उस रहस्य को तो ...हमारे ऋषियो ने हजारो-लाखों साल पहले ही ख़ोज लिया था.

यह सर्वविदित है कि..... हमारे संतों/ऋषियों ने हमें वेदों और उपनिषदों का ज्ञान लिखित रूप में प्रदान किया है ...

शिवलिंग का प्रकृति में बनना.. हम अपने दैनिक जीवन में भी देख सकते है जब कि ......

किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है .....तो , उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व नीचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं (आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ऊपर व नीचे ) होता है.. जिसके फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है

उसी प्रकार.... बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप... एवं, शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप .... भी शिवलिंग का निर्माण करते हैं....!

दरअसल.... सृष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ..... जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में इस प्रकार मिलता है कि ........ आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शाश्वत अंत न पा सके ।

, शिवलिंग का प्रतिरूप ब्रह्माण्ड के हर जगह मौजूद है.... जैसे कि....1. हमारी आकाश गंगा , हमारी पडोसी अन्य आकाश गंगाएँ (पांच -सात -दस नही, अनंत है) , ग्रहों, उल्काओं आदि की गति (पथ), ब्लैक होल की रचना , संपूर्ण पृथ्वी पर पाए गये सर्पिलाकार चिन्ह ( जो अभी तक रहस्य बने हए है.. और, हजारों की संख्या में है.. तथा , जिनमे से अधिकतर पिरामिडों से भी पुराने है । ), समुद्री तूफान , मानव डीएनए, परमाणु की संरचना ... इत्यादि...!

इसीलिए तो.... शिव को शाश्वत एवं.... अनादी, अनत..... निरंतर भी कहा जाता है....!

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