कोहिनूर सफेद हीरा है और यह दुनिया का सबसे बड़ा
हीरा था पर कटने के बाद यह १०५ कैरेट (२१.६ ग्राम) का हो गया। इस समय, यह
इंग्लैंड की महारानी के मुकुट में जड़ा है। कोहिनूर हीरा, काकातीया राजवंश
के समय, कोला खदान में मिला था। इसलिये यह इनकी सम्पत्ति था। इन्होंने
इसे देवी के आंख के रूप में मंदिर में स्थापित कर दिया। तुगलक शाह-१ जब
दिल्ली का राजा बना तब उसने अपनी सेना को
काकतीया राज वंश को हराने के लिए १३२३ ई. में भेजा। पहली बार, उसकी हार
हुई पर दूसरी बार वह जीत गया। उसके बाद हुई लूटपाट में, कोहिनूर हीरा
दिल्ली पहुंचा। उसके बाद, इस हीरे ने, दिल्ली सल्तनत की शान बढ़ायी।
शाहजहां ने इसे अपने तख्ते- ताउस - सिंहासन (Peacock throne) पर जड़वाया।
१७३९ ई. पर नादिर शाह ने आक्रमण किया और अपने साथ तख्ते ताउस और कोहिनूर
हीरों को पर्शिया ले गया। उसने इस हीरे का नाम कोहिनूर रखा। १७४७ ई. में
नादिरशाह की हत्या हो गयी और कोहिनूर हीरा अफ़गानिस्तान शांहशाह के पास
पहुंच गया। १८०९ ई. में मो. शाह ने उसको अपदस्त कर दिया। १८३० ई. में,
अफ़गानिस्तान के अपदस्त शांहशाह शाह शूजा कोहीनूर हीरे के साथ भाग कर
लाहौर पहुंचा। उसने कोहिनूर हीरे को पंजाब के राजा रंजीत सिंह को दिया एवं
इसके एवज में राजा रंजीत सिंह ने, शाह शूजा को अफ़गानिस्तान का
राज-सिंहासन वापस दिलवाया। रंजीत सिंह ने कोहिनूर हीरे को जगन्नाथ मंदिर को
वसीयत कर दिया। लेकिन अंग्रेज हकूमत ने उनकी वसीयत नहीं माना और लाहौर
संधि के अन्दर, कोहिनूर हीरा इंग्लैंड की महारानी को दे दिया गया। कहा जाता
है कि कोहिनूर हीरे के साथ श्राप है। यह पुरूषों के लिये विपत्ति लाता है
पर महिलाओं के लिए नहीं। यह जिन-जिन राजाओं के साथ रहा उन पर विपदायें ही
आयीं। उनकी सल्तनत चली गयी। केवल महिलायें ही, इसके श्राप से बचीं हैं।
इस समय यह महरानी एलिजाबेथ के पास है उनके बाद तो शायद कोई पुरूष राजा
बने। तब पता चलेगा कि यह मिथक सच है अथवा नहीं। विष्णु पुराण और भागवत
में, स्यमन्तक मणि का उल्लेख मिलता है।
इस मणि को सूर्यदेव ने, सत्राजित की तपस्या से प्रसन्न हो कर, उसे दिया था।
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