ऐसे कराई जाए 
अ से अज-सर्वशक्तिमान ईश्वर जिसका जन्म नही होता। जो अजर और अमर है, अखण्ड और अविनाशी है। अनंत और अनादि है।
आ से आर्य-जीवन की उन्नत दशा और दिशा को दर्शाने वाले धीर वीर गंभीर और दिव्य गुणों से परिपूर्ण व्यक्ति का चित्र जो प्राचीन काल में भारत में आर्य के नाम से संबोधित किया जाता था। यहां के रहनेवाले लोग आर्य, यहां की भाषा आर्यभाषा (संस्कृत) तथा देश का नाम आर्यावत्र्त था। कालांतर में भारतीय, भारती और भारत व हिंदू, हिंदी, हिंदुस्तान इसी समीकरण को पूर्ण कराने वाले शब्द कवियों और विद्वानों ने खोजे।
इ से इंदु-इन्दु चंद्रमा को कहते हैं। यह शब्द बड़ा ही प्यारा है। यूनानी इन्दु को इण्डु कहते थे। मुसलमानों से पूर्व भारतीय लोगों को इन लोगों ने इण्डु (सिंधु से इन्दु का उच्चारण किया जाना) या इन्दु इसलिए भी कहा था कि हमारे पंजाब और कश्मीर के जिन लोगों के संपर्क में यूनानी आए उनकी खूबसूरती चंद्रमा के समान थी।
ई से ईशान-शिव के रूप में सूर्य की मुखाकृति। शिव कल्याणकारी को कहते हैं सूर्य पूरे भूमंडल के जीवधारियों के लिए शिव कल्याण कारक है। इसलिए इस महान देवता के विषय में बताते हुए विद्यार्थियों को प्रारंभ से ही शिक्षा दी जाए।
उ से उत्सव-उत्सव जीवन में उत्स-उत्साह को उत्पन्न करते हैं। इससे जीवन संगीतमय बना।रहता है। जीवन में इसलिए उत्सवों का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है।
ऊ से ऊषा-‘ऊ’ के लिए ऊषा-प्रात:काल केस्वैर्गिक वातावरण को दर्शाने वाला
चित्र। बहुत ही सुंदर संस्कार देने वाला काल और जीवन को उन्नति में ढालने वाला पवित्र काल।
ऋ से ऋषि-चिंतन के अधिष्ठाता ऋषि का चित्र। पूरा भारतीय वांग्मय चिंतन की पराकाष्ठा तक पहुंचाने वाला और आनंदप्रदायक है। इस अक्षर के लिए ऋषि का चित्र ही सबसे उत्तम है।
ए से एकल-एकाकी व्यक्ति। एकाकीपन हमारे लिए ईश्वर भजन के लिए सर्वोत्तम होता है। प्राचीन काल में ऐसी अवस्था का उपयोग हमारे पूर्वज जीवन की साधना के लिए किया करते थे। एकाकीपन ईश्वरीयआनंद की अनुभूति कराने में सहायक होता है।
ऐ से ऐरावत-‘ऐरावत’ नामक इंद्र के हाथी का हमारे इतिहास में विशेष उल्लेख है।ऐरावत के माध्यम से बच्चों को इतिहास की झलक दिखायी जा सकती है।
ओ से ओ३म्-सृष्टि का सबसे प्यारा शब्द, ईश्वर का निज नाम। सर्वरक्षक ईश्वर सर्वान्तर्यामी सर्वाधार, सर्वेश्वर और सर्वव्यापक परमात्मा के सभी गुण, कर्म, स्वभाव का वाचक शब्द।
औ से औषधि – औषधियों का जीवन में विशेष महत्व है। बच्चों को औषधियों के चित्रों से स्वास्थ्य संबंधी जानकारी खेल खेल में दी जाए। हिंदी वर्णमाला में ये सारे अक्षर स्वर कहलाते हैं। संस्कृत में इनकी संख्या तेरह है स्वर उन वर्णों को कहा जाता है जिन्हें बोलते समय किसी दूसरे वर्ण की सहायता न लेनी पड़े।
तनिक सोचें: गुरूनानक ने सिखों को नाम के पीछे सिंह लगाना सिखाया तो सिख जाति संसार की सबसे बहादुर कौम बनी।
महर्षि दयानंद ने हमें आर्य शब्द दिया तो भारत में ज्ञान विज्ञान की धूम मच गयी।
इसलिए उ से उल्लू और ग से गधा बनने की बजाए अपने वर्णों के वैज्ञानिक अर्थों को समझकर उनके अनुसार चित्र बनाकर बच्चों को वैज्ञानिक बुद्घि का बनाना शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए। इसलिए उपरोक्तानुसार पढ़ाया जाना आवश्यक है।
अक्षरों की पहचान
अ से अज-सर्वशक्तिमान ईश्वर जिसका जन्म नही होता। जो अजर और अमर है, अखण्ड और अविनाशी है। अनंत और अनादि है।
आ से आर्य-जीवन की उन्नत दशा और दिशा को दर्शाने वाले धीर वीर गंभीर और दिव्य गुणों से परिपूर्ण व्यक्ति का चित्र जो प्राचीन काल में भारत में आर्य के नाम से संबोधित किया जाता था। यहां के रहनेवाले लोग आर्य, यहां की भाषा आर्यभाषा (संस्कृत) तथा देश का नाम आर्यावत्र्त था। कालांतर में भारतीय, भारती और भारत व हिंदू, हिंदी, हिंदुस्तान इसी समीकरण को पूर्ण कराने वाले शब्द कवियों और विद्वानों ने खोजे।
इ से इंदु-इन्दु चंद्रमा को कहते हैं। यह शब्द बड़ा ही प्यारा है। यूनानी इन्दु को इण्डु कहते थे। मुसलमानों से पूर्व भारतीय लोगों को इन लोगों ने इण्डु (सिंधु से इन्दु का उच्चारण किया जाना) या इन्दु इसलिए भी कहा था कि हमारे पंजाब और कश्मीर के जिन लोगों के संपर्क में यूनानी आए उनकी खूबसूरती चंद्रमा के समान थी।
ई से ईशान-शिव के रूप में सूर्य की मुखाकृति। शिव कल्याणकारी को कहते हैं सूर्य पूरे भूमंडल के जीवधारियों के लिए शिव कल्याण कारक है। इसलिए इस महान देवता के विषय में बताते हुए विद्यार्थियों को प्रारंभ से ही शिक्षा दी जाए।
उ से उत्सव-उत्सव जीवन में उत्स-उत्साह को उत्पन्न करते हैं। इससे जीवन संगीतमय बना।रहता है। जीवन में इसलिए उत्सवों का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है।
ऊ से ऊषा-‘ऊ’ के लिए ऊषा-प्रात:काल केस्वैर्गिक वातावरण को दर्शाने वाला
चित्र। बहुत ही सुंदर संस्कार देने वाला काल और जीवन को उन्नति में ढालने वाला पवित्र काल।
ऋ से ऋषि-चिंतन के अधिष्ठाता ऋषि का चित्र। पूरा भारतीय वांग्मय चिंतन की पराकाष्ठा तक पहुंचाने वाला और आनंदप्रदायक है। इस अक्षर के लिए ऋषि का चित्र ही सबसे उत्तम है।
ए से एकल-एकाकी व्यक्ति। एकाकीपन हमारे लिए ईश्वर भजन के लिए सर्वोत्तम होता है। प्राचीन काल में ऐसी अवस्था का उपयोग हमारे पूर्वज जीवन की साधना के लिए किया करते थे। एकाकीपन ईश्वरीयआनंद की अनुभूति कराने में सहायक होता है।
ऐ से ऐरावत-‘ऐरावत’ नामक इंद्र के हाथी का हमारे इतिहास में विशेष उल्लेख है।ऐरावत के माध्यम से बच्चों को इतिहास की झलक दिखायी जा सकती है।
ओ से ओ३म्-सृष्टि का सबसे प्यारा शब्द, ईश्वर का निज नाम। सर्वरक्षक ईश्वर सर्वान्तर्यामी सर्वाधार, सर्वेश्वर और सर्वव्यापक परमात्मा के सभी गुण, कर्म, स्वभाव का वाचक शब्द।
औ से औषधि – औषधियों का जीवन में विशेष महत्व है। बच्चों को औषधियों के चित्रों से स्वास्थ्य संबंधी जानकारी खेल खेल में दी जाए। हिंदी वर्णमाला में ये सारे अक्षर स्वर कहलाते हैं। संस्कृत में इनकी संख्या तेरह है स्वर उन वर्णों को कहा जाता है जिन्हें बोलते समय किसी दूसरे वर्ण की सहायता न लेनी पड़े।
तनिक सोचें: गुरूनानक ने सिखों को नाम के पीछे सिंह लगाना सिखाया तो सिख जाति संसार की सबसे बहादुर कौम बनी।
महर्षि दयानंद ने हमें आर्य शब्द दिया तो भारत में ज्ञान विज्ञान की धूम मच गयी।
इसलिए उ से उल्लू और ग से गधा बनने की बजाए अपने वर्णों के वैज्ञानिक अर्थों को समझकर उनके अनुसार चित्र बनाकर बच्चों को वैज्ञानिक बुद्घि का बनाना शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए। इसलिए उपरोक्तानुसार पढ़ाया जाना आवश्यक है।
अक्षरों की पहचान

 
 
 
 
 
 
 
 
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