Tuesday, June 16, 2015

हिंदू धर्म में विभूति लगाने के वजह और महत्व को जानें

विभूति मात्र एक राख नहीं है जो पूजा के बाद माथे पर लकीर बन रह जाए। विभूति एक बहुमूल्‍य राख है जो कि एक विशेष प्रकार की लकड़ी को जलाने के बाद प्राप्‍त होती है। विभूति को गाय के गोबर या फिर चावल की भूसी से भी प्राप्‍त किया जा सकता है।विभूति को आमतौर पर भगवान शिवा के साथ जोड़ा गया है क्‍योंकि वह अपने पूरे शरीर पर इस पवित्र राख को लगाते थे। विभूति के कई सारे आध्यात्मिक महत्व है भी हैं। पूजा में तांबे के बर्तन का उपयोग क्‍यूं किया जाता है?यह इस दुनिया को इस बात की याद दिलाने का भी महत्‍व रखती है, कि हम सभी अस्‍थायी हैं और एक दिन हम सब को राख में ही नाश हो जाना होगा।
विभूति कैसे बनाई जाती हैश्मशान की भूमि, चावल की भूसी या गोबर आदि को जला कर विभूति तैयार की जाती है। कहीं कहीं विभूति को विषेश लकड़ी को जला कर बनाया जाता है।
विभूति मानव जाति के लिए चेतावनी है कि इंसान को सांसारिक इच्छाओं या माया के चारों ओर बंधना नहीं चाहिये। वासना और इच्‍छाओं का एक ही अंत होता है, जैसे कि कामदेव का अंत भगवान शिव ने उन्‍हें जला कर राख किया था।
विभूति आमतौर पर माथे, हाथ या गर्दन पर लगाई जाती है। यह एक लाल सिंदूर के तिलक के साथ लगाई जाती है। विभूति भगवान शिव और लाल सिंदूर शक्‍ति को दर्शाती है। यह प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व बयां करती है कि शिव और शक्ति ब्रह्मांड में केवल सत्य हैं।
विभूति को भस्‍मा के रूप में भी जाना जाता है, जिसका बहुत बड़ा औ‍षधीय महत्‍व है। यह शरीर से अत्‍यधिक नमी को बाहर निकाल कर सोख लेता है और सिरदर्द तथा ठंड से बचाता है। इसे साधू साबुन की जगह पर नहाने के लिये प्रयोग में इसलिये लाते हैं क्‍योंकि इससे त्‍वचा अच्‍छी तहर से साफ हो जाती है।
विभूति भगवान शिव का एक पसंदीदा समान है। यह इस ब्रह्मांड में सबसे पवित्र और शुद्ध चीज़ के रूप में मानी जाती है। इसे भगवान शिव अपने पूरे शरीर पर लगाते थे। इसका कभी क्षय नहीं हो सकता और एक दिन पूरा संसार राख बन कर शिव के अंदर समा जाएगा।

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