Monday, June 15, 2015

साधनात्मक ऋण

साधनाओ में सफलता क्यों नहीं मिलता ?
साधनाओ का पूरा फल प्राप्त क्यों नहीं होता ?
एक छोटी सी साधना भी हमे पूर्ण फल प्रदान क्यों नहीं करता ?
चाहे वो मंत्र साधना ही क्यों ना हो सिद्ध क्यों नहीं होता ?
क्या हमारे द्वारा की गयी साधना विधान गलत है ?
क्या मंत्र में कोई त्रुटी है ?
क्या हम कही कुछ छोड़ रहे है ?
अगर नहीं तो इसका समाधान क्या है ?
यह वो सवाल है जिसका उत्तर हर साधक को ज्ञात होना अवश्यक ही नहीं अनिवार्य है ..
इस के जानकारी के बिना साधना का पूरा परिश्रम बेकार चला जाता है
हमे साधनाओ का पूरा फल क्यों नहीं प्राप्त होता इसका एक कारण है" ऋण "
यह उन समस्त गुरुओ का ऋण है जिन्होंने वो साधना जो आप कर रहे है उसे आप तक पहुँचाने में ना जाने कितने तकलीफे झेली है ..

ना जाने कितने दिन योग्य शिष्य ढूँढने में लगा दिया ताकि आप तक वो विधान सही सलामत पहुंचे ..
और उस विधान से आप अपने जीवन को सुसज्जित कर सके ..
पर हम उनके ऋण को चुकाने की तो दूर की बात उनके प्रति अपने कृतज्ञ बोध तक प्रदर्शित नहीं करते ..
दूसरा कारण है बेजान मंत्र को साधनाओ में प्रयोग करना .
इसी लिए शास्त्र कहता है की मंत्र केवल गुरु मुख से प्राप्त कर ही साधना करे वरना नहीं ..
तीसरा कारण है उन समस्त महापुरुषो के ऋण के कारण उन्हें मिलने वाला हिस्सा ..
अजीब बात है ना यह ?
उनका भी हिस्सा ?
पर मित्रो यह शत प्रतिशत सच है उन्हें भी हमारे द्वारा किया गया जप तप साधना पूजा हवन का सबको एक एक हिस्सा मिलता है ..
जैसे की एक मंत्र " ॐ नमः शिवाय " इस मंत्र को आप तक पहुँचाने में 9 9 गुरुओ ने अपनी जीवन लगा दिया और आप ने मंत्र का जाप कर के सौ रुपया कमाया है
तो उन सभी 9 9 महात्माओ को एक एक रुपया देना होगा उनके हिस्सा के तौर पर ..
अब आप ही बताइए सौ में से 99 उनको दे दोगे तो तुम्हारे पास कितना बचेगा ?
सिर्फ एक रुपया ना?
बस यही कारण है हमे पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता ..
और तो और कलियुग में तो हर विधान का चार गुना ज्यादा का मत है .. फिर तो हो गया साधना मंत्र जाप ..

जब तक नहीं दोगे मंत्र को नून ..(नमक)
तब तक नहीं गायेगा मंत्र तुम्हारा गुण ..
यह सुनने में अजीब सा प्रतीत हो पर सच्चाई इसकी ध्रुव तारा की जैसे ही है .. नहीं समझे क्या ?
पर समस्त समस्याओ का यही एक मात्र सहज सरल और अचूक उपाय है जिसके द्वारा कोई भी मंत्र को चैतन्य किया जा सकता है किसी भी मंत्र में जान फूंका जा सकता है ..

और इसी के द्वारा उन समस्त गुरुओ की ऋण को चुकाया जा सकता है .
.
कोई भी साधना करने से पहले भगवती को वो मंत्र विधान तीन बार जप करके सुनाये और हाथ में थोड़ा सा नमक लेके भगवती के श्री चरणों में यह कहते हुए चढ़ाये की हे माँ में इस नमक से उस महात्मा का ऋण अदा कर रहा हूँ जिसने इस मंत्र की रचना की।।
फिर से एक चुटकी नमक लेके यह कहे की हे माँ जिन जिन महात्माओ ने मुझ तक इस विधान को पहुँचाने में अपना जीवन व्यतीत कर दिया उनका भी ऋण में इस नमक से चूका रहा हूँ ..
फिर से एक चुटकी नमक लेके बोले की हे माँ इस धरा पर स्थित समस्त रचना जिन्होंने इस मंत्र को सहेज कर रखने वाले की मदद किया उनका भी ऋण में चूका रहा हू।
ऋण चुकाने के लिए नमक ही क्यों ?
क्योंकि मेरे मित्र इस दुनिया में सब कु्छ उधार माँगा जाता है किन्तु नमक नहीं ..

बुजुर्गो का कहना है की जो जिसका नमक खाता है उस उस नमक का हक अदा करना ही पड़ता है वर्ना उसके सात पुस्ते गुलाम बने रहते है नमक खिलाने वाले का .
..
अगर आप सभी इस विधान को कर लेते है तो कोई भी मंत्र चैतन्य होकर अपना पूर्ण प्रभाव दिखा देगा ..
कोई भी साधनाओ का पूर्ण फल प्राप्त होने में कोई कठिनाई नहीं होगा ..
क्योंकि आप ने तो उस विधान से पहले ही उन सभी का ऋण अदा कर दिए थे ..
कोई भी साधना सफल होने में कोई तकलीफ नहीं होगा ..
हां आप स्वयम् कोई गलती करते है तो इसके लिए मुझे दोषी मत करार दीजियेगा ...
आप लोग इस विधान को करे और फिर इसके प्रभाव देखे...

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