खतरे मेँ तो वो लोग हैँ जो सनातन का अनादर कर रहेँ है और सनातन को
बर्बाद करने का सपना देख रहेँ हैँ। सनातन धर्म अनादि काल से चला आ रहा है
इसका आदि है न अंत वो हमेशा से ही अपनी स्थिति मेँ है जो उसके नियमोँ के
अनुसार चलता है उसका मंगल होता है बाकी के जीवन मेँ दुःख दर्द बराबर बना
रहता है और एक समय ऐसा आता है जब उसके जीवन की यात्रा का समापन हो जाता है
और ठनठनपाल ही रह जाता है। ईतिहास साक्षी है ऐडा ऐडा कई गये रावण ,
हिरण्यकशिपु , कौरव कंस। कुछ लोग बोलते हैँ हम धर्म की रक्षा करेँगे अरे
सनातन धर्म तो तुमसे पहले भी था अब भी है बाद मेँ भी रहेगा। तुम क्या उसकी
रक्षा करोगे वो स्वयं अमृत कलश लिए खडा है कि तुम अपना अकड छोड कर अपना
कल्याण कर लो, परमतत्व प्राप्त कर लो। कुछ तुच्छ और पैशाचिक मानसिकता वाले
इंसान के रुप मेँ दो पैर वाले पशु हैँ जो सोचते हैं कि हम दुष्प्रचार कर के
लोगोँ को सनातन धर्म से भटकाऐँगे और उनके साथ मनमाना नियम लागू कर के
मुफ्त का माल लूटेंगे और उंगलियोँ पर नचाऐँगे। परंतु ऐसे लोग स्वयं नष्ट
भ्रष्ट होते गये सब कुत्ते की मौत मरे तडप तडप कर मरे, ईतिहास गवाह है
जितनोँ ने सनातन के साथ छेडछाड की सब बेमौत मरे। खतरा किसको है नष्ट भ्रष्ट
कौन हो रहा है? खतरे मेँ तो वो सारे लोग हैँ जो सनातन धर्म का पालन करने
मेँ दूरी बनाए हुए हैँ और अपने को धर्मनिर्पेक्ष , साधारण व्यक्ति और
नास्तिक बोलकर अपना गला काट रहे, अपने हाथोँ गर्दन काट रहे और अपने पैर मेँ
स्वयं कुल्हाडी मार रहे और मनमाना आचरण, व्यवहार कर रहे हैँ और दुसरोँ को
भी वैसा आचरण करने को मजबूर कर रहे। वो नीच लोग कहीँ भी कुछ भी किसी भी समय
कर रहे और बोल रहे की हम अपना जीवन आजादी से जी रहे, अरे ये तो उच्च स्तर
की वेबकूफी है पशु भी ऐसी आजादी का ईसतेमाल नहीँ करते। कोई बोलेता की "मैँ
अपने मन की करता हूँ" तो अपने मन के अनुसार तो कुत्ता भी करता है, सुअर भी
करता है, बकरा भी करता है, गधा भी करता है, कौवा भी करता है। बच्चे तो पशु
और कीडे मकौडे भी पैदा कर लेते हैँ, भोग भोग सकते है, लडाई झगडा करते हैँ।
बकरा एक दिन मेँ ४० बकरियोँ से शारीरिक संबंध बना सकता है और सुअर १२ - १२
बच्चे पैदा कर सकता है एक समय मेँ! जहाँ तक रही बात मजे की तो सङक का
कुत्ता भी सडक के सिग्नल या चौराहे पे खडा हो के आने जाने वाले लोगोँ पर
भोँक कर मजा ले लेता है। तो आखिरकार अंत मेँ निष्कर्ष यही हुआ की जो लोग
सनातन धर्म का पालन करने मेँ दूरी बनाए हुए हैँ और अपने को धर्मनिर्पेक्ष ,
साधारण व्यक्ति और नास्तिक बोल रहे हैँ वो केवल दो पैर वाले पशु समान हैँ
क्योँकी इन धर्मनिर्पेक्षता और साधारण जीवन वालोँ का व्यवहार पशु जैसा ही
है। मानो या ना मानो, बोलो या ना बोलो परंतु बोलने पर भडक जाऐँगे की हमको
ऐसा कह दिया। कह क्या दिया एक बार सोच कर देखो जानवरोँ और तुममेँ कोई फर्क
नहीँ रह गया है अगर समय रहते नहीँ सँभले तो तुम्हारा जीवन और बदतर होता चला
जाऐगा। ऐसे पैशाचिक व्यवहार/दशा वालोँ का नामोँ निशान मिट जाता है और दो
कौडी की भी इज्जत नहीँ रहती हर तरफ केवल दुत्कार ही मिलती है। सनातन धर्म
की शुरुआत दैवी संपदा के गुणोँ से होती है। संयम और ब्रह्मचर्य जिसके
अभिन्न अंग हैँ जिसके बिना इंसान पशु समान है। " सनातन धर्म हमारा
जन्मसिध्द अधिकार है। हमारा सब कुछ है ईसे हम ले कर रहेंगे। " जिस दिन
स्वाभाविक अंदर से ये आवाज आने लगे समझ लेना आप ठीक रास्ते जा रहे हो। आखिर
कब तक नष्ट होते रहोगे? कब तक सिकुडते रहोगे? कब तक अपने मन की गुलामियोँ
की जंजीरोँ मेँ जकडे रहोगे? कब तक मूर्ख लोगोँ की बातोँ मेँ आ कर अपने परम
पवित्र सनातन धर्म को ठोकर मारते रहोगे और राक्षसोँ के सामने गिडगिडाते
रहोगे? ॰॰॰॰॰¿ उखाड फेँको इन नकारात्मक विचारोँ को कि तुम्हेँ धर्म से क्या
लाभ होगा? अपने मन की मान्यताओँ को उखाड फेकोँ लग जाओ अपने कल्याण मेँ कब
तक लोगोँ के, मित्रोँ के, भाई के, स्त्री के पीछे गिडगिडाते रहोगो? क्या
तुम्हारा कोई आत्मसम्मान नहीँ केवल दूसरोँ की चापलूसी करना ही जीवन रह गया
है? अगर ऐसा है तो मुर्दा है वो इंसान जिसे आत्मसम्मान नहीँ। मैँ कोई धर्म
का ठेकेदार नहीँ हूँ जो तुमको धर्म सिखाऊँ। मैँ तुम्हारा दिशा निर्देशन कर
रहा हूँ की सम्हल जाओ। अब तुम्हारी मर्जी तुमको गरज होगी तो सुधरोगे अन्यथा
यू ही पशुओँ समान जीते रहो? हमे क्या? हम तो अपना आत्मोद्धार करने के
रास्ते हर हालत मेँ जाऐँगे और कर के रहेँगे, मार्ग की कठिनाईयोँ को कुचलते
हुए आगे बढेँगे। अब तुम्हारा आत्म सम्मान जागे तो ठीक नहीँ तो राक्षसोँ
जैसा जीते रहोँ। तुम्हारी मर्जी। अंत मेँ यही कहुँगा की " सनातन धर्म कभी
खतरे मे नहीँ था, न है, न होगा, खतरा तो उनके उपर मडरा रहा जो सनातन धर्म
को धूमिल कर के नया मनमाना धर्म कर्म बना रहे।" यही कारण है कि लोगोँ की
उम्र कम हो गयी है पहले कई हजार वर्षोँ तक जीते थे पर अब १०० वर्ष भी ठीक
से नहीँ जी पा रहे। कहीँ लूले, लगडे, अंधे-काने, बहरे, बिना मुँह के, बिना
हड्डियोँ के माँस का लोथडा पैदा हो रहे, जन्म से ही हजारोँ प्रकार की
बिमारियाँ ले कर पैदा हो रहे किसी का कुछ खराब तो किसी का कुछ (हाल ही मेँ
AIDS जैसी बिमारियाँ जन्मते हुए बच्चे को भारत के बाहर सामान्य बात हो कर
रह गयी है और भारत मेँ भी तेजी से फैल रही)। फिर बोलेँगे भगवान निर्दयी है।
नालायको थोडा संयम से रहते सनातन धर्म के अनुसार चलते तो तुम्हारा क्या
घाटा था। "सनातन धर्म हम सबकी रक्षा कर रहा है हम सनातन धर्म की नहीँ।"
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