प्रोफेसर आर्य एवं मौलाना साहिब की भेंट आज बाज़ार में हो जाती हैं. मौलाना 
साहिब जल्दी में थे बोले की ईद आने वाली हैं इसलिए क़ुरबानी देने के लिए 
बकरा खरीदने जा रहा हूँ. आर्य साहिब के मन में तत्काल उन लाखो निर्दोष 
बकरों, बैलो, ऊँटो आदि का ख्याल आया जिनकी गर्दनो पर अल्लाह के नाम पर 
तलवार चला दी जाएगी. वे सब बेकसूर जानवर धर्म के नाम पर क़त्ल कर दिए 
जायेगे.आर्य जी से रहा न गया और वे मौलाना साहिब से बोले की -यह क़ुरबानी 
मुस्लमान लोग क्यों देते हैं .यूँ तो मौलाना जल्दी में थे पर जब इस्लाम का 
प्रश्न हो तो समय निकल ही आया. अपनी लम्बी बकरा दारी पर हाथ फेरते हुए 
बोले- इसके पीछे एक पुराना किस्सा हैं. हज़रत इब्राहीम से एक बार सपने में 
अल्लाह ने उनकी सबसे प्यारी चीज़ यानि उनके बेटे की क़ुरबानी मांगी, अगले 
दिन इब्राहीम जैसे ही अपने बेटे इस्माइल की क़ुरबानी देने लगे तभी अल्लाह ने
 उन के बेटे को एक मेदे में तब्दील कर दिया और हज़रत इब्राहीम ने उसकी 
क़ुरबानी दे दी . अल्लाह उन पर बहुत मेहरबान हुआ और बस उसके बाद से हर साल 
मुस्लमान इस दिन को बकर ईद के नाम से बनते हैं और इस्लाम को मानने वाले 
बकरा, मेदा, बैल आदि की क़ुरबानी देंते हैं और उस बकरे के मांस को गरीबो में
 बांटा जाता हैं जिससे पुण्य मिलता हैं.आर्य जी- जनाब अगर अनुमति हो तो में
 कुछ पूछना चाहता हूमौलाना जी – बेशक सेआर्य जी- पहले तो यह की बकर का असली
 मतलब गाय होता हैं न की बकरा फिर बकरे, बैल, ऊंट आदि की क़ुरबानी क्यों दी 
जाती हैं ?दूसरे बकर ईद के स्थान पर इसे गेंहू ईद कहते तो अच्छा होता 
क्योंकि एक किलो गौशत में तो दस किलो के बराबर गेंहू आ जाता हैं और वो ना 
केवल सस्ता पड़ता हैं अपितु खाने के लिए कई दिनों तक काम आता हैं.आपका यह 
हजरत इब्राहीम वाला किस्सा कुछ कम जँच रहा हैं क्योंकि अगर इसे सही माने तो
 अल्लाह अत्याचारी होने के साथ साथ क्रूर भी साबित होता हैं.आज अल्लाह किसी
 मुस्लमान के खवाबो में क़ुरबानी की प्रेरणा देने के लिए क्यों नहीं आते और 
आज के मुसलमानों को भी क्या अल्लाह पर विश्वास नहीं हैं की वे अपने बेटो की
 क़ुरबानी नहीं देते बल्कि एक निरपराध पशु के कत्ल के गुन्हेगार बनते हैं. 
यह संभव ही नहीं हैं क्योंकि जो अल्लाह या भगवान प्राणियों की रक्षा करता 
हैं वह किसी के सपने में आकर उन्हें मारने की प्रेरणा देगा . मुस्लमान लोगो
 की बुद्धि को क्या हो गया हैं अगर हज़रत इब्राहीम को किसी लड़की के साथ 
बलात्कार करने को अल्लाह कहते तो वे उसे नहीं मानते तो फिर अपने इकलोते 
लड़के को मारने के लिए कैसे तैयार हो गए. मुसलमानों को तत्काल इस प्रकार का 
कत्लेंआम बंद कर देना चाहिए.मुसलमानों के सबसे पाक किताब कुरान-ए-शरीफ के 
अल हज २२:३७ में कहा गया हैं न उनके मांस अल्लाह को पहुँचते हैं और न उनके 
रक्त , किन्तु उसे तुम्हारा तकवा (धर्मप्रयाणता) पहुँचता हैं. यहीं बात अल-
 अनआम ६: ३८ में भी कहीं गयी हैं. हदीसो में भी इस प्रकार के कई प्रमाण 
मिलते हैं.यहाँ तक की मुसलमानों में सबसे पवित्र समझी जाने वाली मक्का की 
यात्रा पर किसी भी प्रकार के मांसाहार यहाँ तक की जूं तक को मारने की 
अनुमति नहीं होती हैं तो फिर अल्लाह के नाम पर इस प्रकार कत्लेआम क्यों 
होता हैं.मौलाना जी- आर्य जी यहाँ तक तो सब ठीक हैं पर मांसाहार करने में 
क्या बुराई हैं?आर्य जी -पहले तो शाकाहार विश्व को बुखमरी से बचा सकता हैं.
 आज विश्व की तेजी से फैल रही जनसँख्या के सामने खाने की बड़ी समस्या हैं 
.एक कैलोरी मांस को तैयार करने में १० कैलोरी के बराबर शाकाहारी पदार्थ की 
खपत हो जाती हैं अगर सारा विश्व मांसाहार को छोड़ दे तो धरती के सीमित 
संसाधनों का उपयोग अच्छी प्रकार से हो सकता हैं और कोई भी भूखा नहीं रहेगा 
क्यूंकि दस गुना मनुष्यो का पेट भरा जा सकेगा. अफ्रीका में तो कई मुस्लिम 
देश बुखमरी के शिकार हैं. अगर ईद के नाम की जकात में उन्हें शाकाहारी भोजन 
दिया जाये तो कईयों का पेट भर जायेगा.दुसरे मांसाहार बीमारियों की जड़ हैं.
 इससे दिल के रोग, गोउट, कैंसर जैसे अनेको रोगों की वृद्धि देखी गयी हैं और
 एक मिथक यह हैं की मांसाहार खाने से ज्यादा ताकत मिलती हैं इसका प्रबल 
प्रमाण पहलवान सुशील कुमार हैं जो विश्व के नंबर एक पहलवान हैं और पूर्ण 
रूप से शाकाहारी हैं. आपसे ही पूछते हैं की क्या आप अपना मांस किसी को खाने
 देंगे. नहीं ना तो फिर आप कैसे किसी का मांस खा सकते हैं.मौलाना जी – आर्य
 जी आप शाकाहार की बात कर रहे हैं क्या पोंधो में आत्मा नहीं होती हैं , 
क्या उसे खाने से पाप नहीं लगता हैं, महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बासु के 
मुताबिक तो पोंधो में जान होती हैंआर्य जी- पोंधो में आत्मा की स्थिति 
सुषुप्ति की होती हैं अर्थात सोये हुए के समान, अगर किसी पशु का कत्ल करे 
तो उसे दर्द होता हैं, वो रोता हैं, चिल्लाता हैं मगर किसी पोंधे को कभी 
दर्द होते, चिल्लाते नहीं देखा जाता ,जैसे कोमा के मरीज को दर्द नहीं होता 
हैं उसे प्रकार पोंधो को भी उखाड़ने पर दर्द नहीं होता हैं . उसकी उत्पत्ति
 ही खाने के लिए ईश्वर ने की हैं. जगदीश बासु का कथन सही हैं की पोंधो में 
प्राण होते हैं पर उसमे आत्मा की क्या स्थिती हैं और पोंधो को दर्द नहीं 
होता हैं इस बात पर वैज्ञानिक मौन हैं. सबसे महतव्पूर्ण बात हैं की 
शाकाहारी भोजन प्रकृति के लिए हानिकारक नहीं हैं.मौलाना जी- परन्तु हिन्दुओ
 में कोलकता की काली और गुवहाटी की कामख्या के मंदिर में पशु बलि दी जाती 
हैं और तो और वेदों में भी हवन आदि में तो पशु बलि का विधान हैं.आर्य जी- 
जो स्वयं अंधे हैं वे दूसरो को क्या रास्ता दीखायेंगे. हिन्दू जो पशु बलि 
में विश्वास रखते हैं खुद ही वेदों के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं. पशु बलि 
देने से केवल और केवल पाप लगता हैं, भला किसी को मारकर आपको सुख कैसे मिल 
सकता हैं. जहाँ तक वेदों का सवाल हैं मध्यकाल में कुछ अज्ञानी लोगो ने हवन 
आदि में पशु बलि देना आरंभ कर दिया था और उसे वेद संगत दिखाने के लिए 
महीधर, सायण आदि ने वेदों के कर्म कांडी अर्थ कर दियें जिससे पशु बलि का 
विधान वेदों से सिद्ध किया जा सके. बाद में माक्स्मुलर , ग्रिफीथ आदि 
पाश्चात्य लोगो ने उसका अंग्रेजी में अनुवाद कर दिया जिससे पूरा विश्व यह 
समझे की वेदों में पशु बलि का विधान हैं. आधुनिक काल में ऋषि दयानंद ने जब 
देखा की वेदों के नाम पर किस प्रकार से घोर प्रपंच किया गया हैं तो 
उन्होंने वेदों का एक नया भाष्य किया जिससे फैलाई गयी भ्रांतियों को मिटाया
 जा सके. देखो वेदों में पशु आदि के बारे में कितनी सुंदर बात कहीं गयी 
हैं-ऋगवेद ५/५१/१२ में अग्निहोत्र को अध्वर यानि जिसमे हिंसा की अनुमति 
नहीं हैं कहाँ गया हैं.यजुर्वेद १२/३२ में किसी को भी मारने से मनाही 
हैंयजुर्वेद १६/३ में हिंसा न करने को कहाँ गया हैंअथर्ववेद १९/४८/५ में 
पशुओ की रक्षा करने को कहाँ गया हैंअथर्ववेद ८/३/१६ में हिंसा करने वाले को
 मारने का आदेश हैंऋगवेद ८/१०१/१५ में हिंसा करने वाले को राज्य से 
निष्काषित करने का आदेश हैंइस प्रकार चारो वेदों में अनेको प्रमाण हैं 
जिनसे यह सिद्ध होता हैं की वेदों में पशु बलि अथवा मांसाहार का कोई वर्णन 
नहीं हैं.मौलाना जी – हमने तो सुना हैं की अश्वमेध में घोड़े की , अज मेध 
में बकरे की, गोमेध में गों की और नरमेध में आदमी की बलि दी जाती थी.आर्य 
जी- आपकी शंका अच्छी हैं. मेध शब्द का अर्थ केवल मात्र मरना नहीं हैं, 
मेधावी शब्द का प्रयोग जिस प्रकार से श्रेष्ठ अथवा बुद्धिमान के लियें किया
 जाता हैं उसी प्रकार से मेध शब्द का प्रयोग श्रेष्ठ कार्यो के लिए किया 
जाता हैं. शतपथ १३/१/६/३ एवं १३/२/२/३ में कहाँ गया हैं की जो कार्य 
राष्ट्र उत्थान के लियें किया जाये उसे अश्वमेध कहते हैं , निघंटु १/१ एवं 
शतपथ १३/१५/३ के अनुसार अन्न को शुद्ध रखना, संयम रखना, सूर्य की रौशनी से 
धरती को शुद्ध रखने में उपयोग करना आदि कार्य गोमेध कहलाते हैं. शांति पर्व
 ३३७/१-२ के अनुसार हवन में अन्न आदि का प्रयोग करना अथवा अन्न आदि की 
उत्पादन क्षमता को बढाना अजमेध कहलाता हैं, मनुष्य के मृत शरीर का उचित 
प्रकार से दाह कर्म करना नरमेध कहलाता हैं .मौलाना जी – हमने तो सुना हैं 
की श्री राम जी मांस खाते थे एवं महाभारत वनपर्व २०७ में रांतिदेव राजा ने 
गाय को मारने की अनुमति दी थी.आर्य जी- रामायण , महाभारत आदि पुस्तकों में 
उन्हीं लोगो ने मिलावट कर दी हैं जो हवन में पशु बलि एवं मांसाहार आदि 
मानते थे. वेद स्मृति परंपरा सेसुरक्षित हैं इसलिए वेदों में कोई मिलावट 
नहीं हो सकती उसमे से एक शब्द अथवा एक मात्रा तक को बदला नहीं जा 
सकता.रामायण में सुंदर कांड स्कन्द ३६ श्लोक ४१ मेंस्पष्ट कहाँ गया हैं की 
श्री राम जी मांस नहीं लेते वे तो केवल फल अथवा चावल लेते हैं.महाभारत 
अनुशासन पर्व ११५/४० में रांतिदेव को शाकाहारी बताया गाय हैं.शांति पर्व 
२६२/४७ में गाय और बैल को मारने वाले को पापी कहाँ गाय हैं.इस प्रकार के 
अन्य प्रमाण भी मिलते हैं जिनसे यह भी सिद्ध होता हैं की रामायण एवंमहाभारत
 में मांस खाने की अनुमति नहीं हैं और जो भी प्रमाण मिलते हैं वे सब मिलावट
 हैं.मौलाना जी – तो क्या आर्य जी हमे किसी को भी मारने की इजाजत नहीं 
हैं.आर्य जी – बिलकुल मौलाना साहिब यहाँ तक की कुरान के उस अल्लाह को ही 
मानना चाहिए जो अहिंसा, सत्य,प्रेम, भाईचारे की बात करे क़ुरबानी, मारना, 
जलना,घृणाकरना, पाप करना आदि सिखाने वाली बातें ईश्वरकृत नहीं हो सकती.हदीस
 ज़द अल-माद में इब्न क़य्यिम ने कहाँ हैं की “गाय के दूध- घी का इस्तेमाल 
करना चाहिए क्योंकी यह सेहत के लिए फायदेमंद हैं और गाय का मांस सेहत के 
लिए नुकसानदायक हैं”.मौलाना जी- आर्य जी आपकी बातों में दम बहुत हैं और साथ
 ही साथ वे मुझे जाच भी रही हैं.अब मैं कभी भी जीवन भर मांस नहीं खाऊंगा , 
ईद पर बकरा नहीं काटूँगा और साथ ही साथ अपने अन्य मुस्लिम भाइयों को भी इस 
सत्य के विषय में बताऊंगा. आर्य जी आपका सही रास्ता दिखने के लिए अत्यंत 
धन्यवाद.
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