सभी मित्रों को राम राम जी।
यह प्रसंग बड़ा है कृपया कुछ समय दे कर इसे जरूर पढे।
बहुत कम मित्र सुलोचना के बारे में जानते होंगे।सुलोचना वासुकी नाग की पुत्री और लंका के राजा
रावण के पुत्र मेघनाद की पत्नी
थी।मेघनाद का वध करने की
प्रतिज्ञा लेकर लक्ष्मण जिस समय युद्ध भूमि में जाते है तब राम उनसे कहते हैं कि मेघनाद का मस्तक भूमि पर किसी भी प्रकार न गिरे।क्योंकि मेघनाद एकनारी-व्रत का पालक है और उसकी पत्नी परम पतिव्रता है ऐसी साध्वी के पति का मस्तक अगर पृथ्वी पर गिर पड़ा तो हमें युद्ध में विजय की आशा त्याग देनी पड़ेगी।लक्ष्मण ने वैसा ही किया अपने बाणों से मेघनाद का मस्तक उतार लिया,पर उसे
पृथ्वी पर नहीं गिरने दिया। हनुमान उस मस्तक को रघुनंदन के पास ले आये।मेघनाद की दाहिनी भुजा आकाश में उड़ती हुर्इ उसकी पत्नी सुलोचना के पास जाकर गिरी।सुलोचना अन्यंत दु:ख से विलाप करने लगी।पर उसने भुजा को स्पर्श
नहीं किया।उसने सोचा,सम्भव है यह भुजा किसी अन्य की हो।
ऐसी दशा में पर-पुरुष के स्पर्श का दोष मुझे लगेगा।उसने भुजा से कहा-यदि तू मेरे स्वामी की
भुजा है, तो मेरे पतिव्रत की शक्ति से युद्ध का सारा वृतान्त लिख दे।भुजा ने लिख दिया-प्राणप्रिये, यह भुजा मेरी ही है।युद्ध भूमि में लक्ष्मण से मेरा युद्ध हुआ।वे तेजस्वी तथा समस्त दैवी गुणों से सम्पन्न है।अन्त में उन्हीं के बाणों से मेरा प्राणान्त हो गया। मेरा शीश श्रीराम के पास है पढ़ते ही सुलोचना विलाप करने लगी।सुलोचना ने निश्चय किया कि मुझे अब सती होना चाहिए किंतु पति का शीश तो राम-दल में पड़ा हुआ था फिर वह कैसे सती होती? सुलोचना खुद शीश लाने का निर्णय लिया।सुलोचना के आने का समाचार सुनते ही श्रीराम खड़े हो गये और स्वयं सुलोचना के पास आये और बोले-देवी, तुम्हारे पति विश्व के अन्यतम योद्धा और पराक्रमी थे।उनमें बहुत-से सदगुण थे; किंतु विधी की लिखी को कौन बदल सकता है आज तुम्हें इस तरह देखकर मेरे मन में पीड़ा हो रही है।सुलोचना भगवान की स्तुति करने लगी।श्रीराम ने उसे बीच में ही टोकते
हुए कहा- "देवी,मुझे लज्जित न
करो।मैं जानता हूँ कि तुम परम सती हो।तुम्हारे सतित्व से तो देवलोक भी थर्राता है।सुलोचना ने अश्रुपूरित नयनों से प्रभु की ओर देखा और बोली-राघवेन्द्र, मैं सती होने के लिये अपने पति का मस्तक लेने के लिये यहाँ पर आर्इ हूँ।श्रीराम ने शीघ्र ही ससम्मान मेघनाद का शीश मंगवाया और सुलोचना को दे दिया।पति का छिन्न शीश देखते ही सुलोचना का हृदय अत्यधिक द्रवित हो गया।रोते हुए उसने पास खड़े लक्ष्मण की ओर देखा और कहा सुमित्रा नन्दन, तुम भूलकर भी गर्व मत करना की मेघनाथ का वध मैंने किया है।मेघनाद को धराशायी करने की शक्ति विश्व में किसी के पास नहीं थी।यह तो दो पति व्रता नारियों का भाग्य था।आप की पत्नी भी पतिव्रता हैं और मैं भी पति चरणों में अनुरक्ती रखने
वाली उनकी अनन्य उपसिका
हूँ।पर मेरे पति देव पतिव्रता नारी का अपहरण करने वाले पिता का अन्न खाते थे।इसी से मेरे जीवन धन परलोक सिधारे सभी योद्धा सुलोचना को राम शिविर में देखकर चकित थे।वे समझ नहीं पा रहे थे कि सुलोचना को कैसे पता चला कि उसके पति का शीश भगवान राम के पास है।जिज्ञासा शान्त करने के लिये सुग्रीव ने पूछ ही लिया कि यह बात उन्हें कैसे ज्ञात हुर्इ कि मेघनाद का शीश श्रीराम के शिविर में है।सुलोचना ने बता दिया-मेरे पति की भुजा ने लिखकर मुझे बता दिया व्यंग्य भरे शब्दों में सुग्रीव बोल उठे-निष्प्राण भुजा यदि लिख सकती है फिर तो यह कटा हुआ सिर भी हंस सकता है।महान
पतिव्रता स्त्री श्रीराम की मुख कृति देखकर सुलोचना उनके भावों को समझ गयी।उसने कहा-यदि मैं मन, वचन और कर्म से पति को देवता मानती हूँ, तो मेरे पति का यह निर्जीव मस्तक
हंस उठे।सुलोचना की बात पूरी
भी नहीं हुर्इ थी कि कटा हुआ
मस्तक जोरों से हंसने लगा।यह
देखकर सभी दंग रह गये।सभी ने पतिव्रता सुलोचना को प्रणाम किया।चलते समय सुलोचना ने श्रीराम से प्रार्थना की-भगवन, आज मेरे पति की अन्त्येष्टि क्रिया है अत: आज युद्ध बंद रहे।श्रीराम ने स्वीकार कर लिया।लंका में समुद्र के तट पर एक चंदन की चिता तैयार की गयी।पति का शीश गोद में लेकर सुलोचना चिता पर बैठी और धधकती हुई अग्नि में सती हो गई।
यह प्रसंग बड़ा है कृपया कुछ समय दे कर इसे जरूर पढे।
बहुत कम मित्र सुलोचना के बारे में जानते होंगे।सुलोचना वासुकी नाग की पुत्री और लंका के राजा
रावण के पुत्र मेघनाद की पत्नी
थी।मेघनाद का वध करने की
प्रतिज्ञा लेकर लक्ष्मण जिस समय युद्ध भूमि में जाते है तब राम उनसे कहते हैं कि मेघनाद का मस्तक भूमि पर किसी भी प्रकार न गिरे।क्योंकि मेघनाद एकनारी-व्रत का पालक है और उसकी पत्नी परम पतिव्रता है ऐसी साध्वी के पति का मस्तक अगर पृथ्वी पर गिर पड़ा तो हमें युद्ध में विजय की आशा त्याग देनी पड़ेगी।लक्ष्मण ने वैसा ही किया अपने बाणों से मेघनाद का मस्तक उतार लिया,पर उसे
पृथ्वी पर नहीं गिरने दिया। हनुमान उस मस्तक को रघुनंदन के पास ले आये।मेघनाद की दाहिनी भुजा आकाश में उड़ती हुर्इ उसकी पत्नी सुलोचना के पास जाकर गिरी।सुलोचना अन्यंत दु:ख से विलाप करने लगी।पर उसने भुजा को स्पर्श
नहीं किया।उसने सोचा,सम्भव है यह भुजा किसी अन्य की हो।
ऐसी दशा में पर-पुरुष के स्पर्श का दोष मुझे लगेगा।उसने भुजा से कहा-यदि तू मेरे स्वामी की
भुजा है, तो मेरे पतिव्रत की शक्ति से युद्ध का सारा वृतान्त लिख दे।भुजा ने लिख दिया-प्राणप्रिये, यह भुजा मेरी ही है।युद्ध भूमि में लक्ष्मण से मेरा युद्ध हुआ।वे तेजस्वी तथा समस्त दैवी गुणों से सम्पन्न है।अन्त में उन्हीं के बाणों से मेरा प्राणान्त हो गया। मेरा शीश श्रीराम के पास है पढ़ते ही सुलोचना विलाप करने लगी।सुलोचना ने निश्चय किया कि मुझे अब सती होना चाहिए किंतु पति का शीश तो राम-दल में पड़ा हुआ था फिर वह कैसे सती होती? सुलोचना खुद शीश लाने का निर्णय लिया।सुलोचना के आने का समाचार सुनते ही श्रीराम खड़े हो गये और स्वयं सुलोचना के पास आये और बोले-देवी, तुम्हारे पति विश्व के अन्यतम योद्धा और पराक्रमी थे।उनमें बहुत-से सदगुण थे; किंतु विधी की लिखी को कौन बदल सकता है आज तुम्हें इस तरह देखकर मेरे मन में पीड़ा हो रही है।सुलोचना भगवान की स्तुति करने लगी।श्रीराम ने उसे बीच में ही टोकते
हुए कहा- "देवी,मुझे लज्जित न
करो।मैं जानता हूँ कि तुम परम सती हो।तुम्हारे सतित्व से तो देवलोक भी थर्राता है।सुलोचना ने अश्रुपूरित नयनों से प्रभु की ओर देखा और बोली-राघवेन्द्र, मैं सती होने के लिये अपने पति का मस्तक लेने के लिये यहाँ पर आर्इ हूँ।श्रीराम ने शीघ्र ही ससम्मान मेघनाद का शीश मंगवाया और सुलोचना को दे दिया।पति का छिन्न शीश देखते ही सुलोचना का हृदय अत्यधिक द्रवित हो गया।रोते हुए उसने पास खड़े लक्ष्मण की ओर देखा और कहा सुमित्रा नन्दन, तुम भूलकर भी गर्व मत करना की मेघनाथ का वध मैंने किया है।मेघनाद को धराशायी करने की शक्ति विश्व में किसी के पास नहीं थी।यह तो दो पति व्रता नारियों का भाग्य था।आप की पत्नी भी पतिव्रता हैं और मैं भी पति चरणों में अनुरक्ती रखने
वाली उनकी अनन्य उपसिका
हूँ।पर मेरे पति देव पतिव्रता नारी का अपहरण करने वाले पिता का अन्न खाते थे।इसी से मेरे जीवन धन परलोक सिधारे सभी योद्धा सुलोचना को राम शिविर में देखकर चकित थे।वे समझ नहीं पा रहे थे कि सुलोचना को कैसे पता चला कि उसके पति का शीश भगवान राम के पास है।जिज्ञासा शान्त करने के लिये सुग्रीव ने पूछ ही लिया कि यह बात उन्हें कैसे ज्ञात हुर्इ कि मेघनाद का शीश श्रीराम के शिविर में है।सुलोचना ने बता दिया-मेरे पति की भुजा ने लिखकर मुझे बता दिया व्यंग्य भरे शब्दों में सुग्रीव बोल उठे-निष्प्राण भुजा यदि लिख सकती है फिर तो यह कटा हुआ सिर भी हंस सकता है।महान
पतिव्रता स्त्री श्रीराम की मुख कृति देखकर सुलोचना उनके भावों को समझ गयी।उसने कहा-यदि मैं मन, वचन और कर्म से पति को देवता मानती हूँ, तो मेरे पति का यह निर्जीव मस्तक
हंस उठे।सुलोचना की बात पूरी
भी नहीं हुर्इ थी कि कटा हुआ
मस्तक जोरों से हंसने लगा।यह
देखकर सभी दंग रह गये।सभी ने पतिव्रता सुलोचना को प्रणाम किया।चलते समय सुलोचना ने श्रीराम से प्रार्थना की-भगवन, आज मेरे पति की अन्त्येष्टि क्रिया है अत: आज युद्ध बंद रहे।श्रीराम ने स्वीकार कर लिया।लंका में समुद्र के तट पर एक चंदन की चिता तैयार की गयी।पति का शीश गोद में लेकर सुलोचना चिता पर बैठी और धधकती हुई अग्नि में सती हो गई।
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